नक्सलवाद की जमीन पर आए इस नए उपन्यास में सबसे अच्छी बात यह है कि नक्सलवाद को समस्या नहीं बल्कि बड़े कैनवास पर चल रही स्थिति परिस्थिति की तरह रेखांकित किया गया है। क्योंकि अब तक या तो नक्सली बागी या सरकार के लिए परेशानी का सबब हैं या फिर बेचारे। दरअसल नक्सली इन सबसे परे इंसान होने का हक मांगते हैं और पुलिस बस अपना कर्तव्य करती है। यह संतुलन ही इस उपन्यास की ताकत है।
एक आदिवासी लड़की दुड़िया की नजर से जब स्थितियों पर नजर से जब गौर किया जाने लगता है, तो कुछ बातें खुद ब खुद समझ में आ जाती हैं। पुस्तक पढ़ते हुए सहसा ही न्यूटन फिल्म के कुछ दृश्य घूमने लगते हैं। कैमरे की नजर से देखना अलग है लेकिन छत्तीसगढ़ पर शब्द चित्र पढ़ना बिलकुल अलग अनुभव है। यह उपन्यास समझाने में सफल रहा है कि साधारण मनुष्य के लिए तो पुलिस की बंदूक और नक्सली की बंदूक दोनों कई बार एक जैसी हो जाती है। उन लोगों का जीवन दुधारी तलवार पर चलने जैसा होता है।
दुड़िया उपन्यास नक्सलवाद की समस्या ही नहीं बताता बल्कि लोगों की उस दशा का भी ब्यौरा देता है, जो इसकी असल समस्या से जूझ रहे हैं और इस वजह से कैसे उन लोगों का जीवन प्रभावित हो रहा है। लेखक ने छत्तीसगढ़ की बारीक से बारीक चीज पर भी नजर रखी है, जिसमें आदिवासी जीवन का विश्वसनीय वर्णन और प्राकृतिक संपदा की लूट का वास्तविक वर्णन है। दरअसल यह उपन्यास इस बात को खूबसूरत तरीके से बताता है कि यह संपन्न राज्य किसी विद्रोह, बागी लोगों की वजह से नहीं बल्कि ऊंचे ओहदों पर बैठे लोगों के अंह, मनुष्य के लालच और मानव निर्मित समस्या के कारण इस हालत से गुजर रहा है।
विश्वास पाटील मराठी के प्रतिष्ठित लेखक हैं और उन्होंने इससे पहले पानीपत, महानायक और झाड़ाझड़ती उपन्यास लिखे हैं। इस बार उन्होंने बहुत ही अलग पृष्ठभूमि को अपने उपन्यास का विषय बनाया है। मूल रूप से मराठी में लिखी गई इस पुस्तक का हिंदी में अनुवाद आखेट फिल्म के निर्देशक और जाने-माने कथाकार रवि बुले ने किया है। कथाकार होने के नाते बुले जानते हैं कि अनुवाद में पाठक को पढ़ते हुए निर्बाध गति मिले। उन्होंने मूल कृति की भावना को बनाए रखा है। उपन्यास की शैली पठनीय है।
पाटील मराठी के लेखक हैं। लेकिन हिंदी सहित कई भाषाओं में उनकी रचनाओं के अनुवाद हो चुके हैं।
दुड़िया तेरे जलते हुए मुल्क में
विश्वास पाटील
अनुवाद: रवि बुले
राजकमल प्रकाशन
250 रुपये (पेपरबैक)
पृष्ठ 174