कवियत्रियों द्वारा लिखी जा रही समकालीन हिंदी कविता के मुख्य विषय अधिकतर स्त्री-पुरुष संबंधों, स्त्रीवादी चेतना एवं निजी स्मृतियों तथा अनुभूतियों पर केंद्रित हैं। ऐसे परिदृश्य में बौद्धिक एवं भावात्मक दोनों पक्षों में समृद्ध एवं विस्तृत फलक समेटे रश्मि बजाज का यह छठा काव्य-संग्रह अपने लिए निसंदेह एक विशिष्ट स्थान बनाता है। अलग तेवर वाली इन कविताओं में कवि की प्रखर राजनीतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक चेतना उभरकर समक्ष आती है। संग्रह की बड़ी शक्ति है कविताओं की गुणवत्ता एवं श्रेष्ठ स्तर का प्रारंभ से अंत तक लगातार बने रहना। कहीं गहरे तीखे व्यंग्य, कहीं कोमल भाषा का माधुर्य, कहीं आक्रोश एवं गुस्सा, कहीं समाज को सकारात्मकता देते गंभीर संदेश तो कहीं स्नेह एवं प्रेम से भाव- विभोर करती पंक्तियां- रश्मि ‘कबीरन’ का काव्य-जगत बहुल विविधता लिए है।
यह रचनाकार सागर-तट पर ‘बहुरंगी कंकर पत्थर' के साथ खेलने से संतुष्ट नहीं है, क्योंकि उसकी चाहत और खोज है: “गहरे सागर-तल पैठीं अनमोल सीपियां!” संग्रह की प्रेम-कविताओं का तेवर भी अपनी ही किस्म का है। प्रेमी- प्रेमिका के सीमित संदर्भ से आगे जाकर ये कविताएं एक सामाजिक, सांस्कृतिक एवं मानवीय चेतना का संदेश देती हैं :
“प्रेम पर कविता लिखना
रूमानियत नहीं एक बगावत है
यह बगावत मेरे दौर की लाज़मी ज़रूरत है”
कवि का हृदय व्यथित है कि समकालीन विभाजनकारी विमर्श ने जीवन एवं साहित्य को बहुत रसहीन, रंगहीन कर दिया है :
मेरे युग का फतवा है- इंद्रधनुषी सपनों को घोषित किया जाता है तनखैया
मेरे युग का महाख्यान है- अवसान कवि का, कविता का कविताओं में रश्मि का दार्शनिक दृष्टिकोण भी अभिव्यक्ति पाता है: “शब्दों की हर यात्रा का अंतिम पड़ाव है केवल मौन / महासत्य यह आदि -अनादि कवि से बढ़कर जाने कौन?”
कोरोना एवं स्त्री- मुद्दों पर लिखी कविताओं में भी कवि की मौलिकता उभर कर समक्ष आती है। कोरोना-संबंधी कविताओं में कवि ने राजनैतिक, सामाजिक एवं जेंडर संदर्भ भी जोड़ दिए हैं। ‘करोना एवं एकाकी स्त्री' में खिलंदड़ शैली में बहुत गहरी बात की गई है। रात के मन चाहे प्रहर, नाइट कर्फ्यू वाली खाली सड़कों पर बेखौफ, बेफिक्र घूमती अकेली औरत की मनस्थिति की चंद शब्दों में संकेतात्मक अभिव्यक्ति देखिए : “जैसा भी सही/करोना पुरुष तो नहीं”
मूल रूप से स्त्रीवादी कवि रश्मि बजाज की स्त्री-संबंधी कविताएं इस संग्रह का बहुत सशक्त खंड हैं। सभी धर्मों, जातियों एवं राष्ट्रों की स्त्रियों की वैश्विक व्यथा यहां मुखरित होती है। कवि को यह अफसोस भी है कि स्वयं स्त्रियां धर्म एवं जाति में बंट कर स्त्री-मुद्दों को आवश्यक प्राथमिकता नहीं देतीं: “स्त्री का परिचय-स्त्री का मज़हब /स्त्री का परचम-स्त्री की जात!”
कवि अपनी बहुचर्चित कविताओं 'मैंने ख्वाब देखा है” और 'सयानी लड़कियां’ में अपना स्त्री एवं समतामूलक समाज संबंधी ‘नया विजन' भी देती है। उसकी सयानी लड़कियां “रख देती हैं उठाकर कहीं पीछे दूर नीचे/ पादरी पंडित मोमिन की दीं/ विचारकों विमर्शकारों की लिखीं सारी पोथियां/रचना है उन्हें एक भाष्य नया” कुछ कविताएं राजनीति एवं राष्ट्रीय जीवन में व्याप्त भ्रष्टाचार एवं हिंसा पर गहरा प्रहार करती हैं। बुद्धिजीवी, साहित्यकार एवं विमर्शकार अपने पक्षपातपूर्ण रवैये एवं चयनित चुप्पियों के चलते लगातार कवि की प्रताड़ना के घेरे में हैं: “आओ अदीबों, पढ़ लो फातेहा/दो अपनी अर्थी को कांधा: लेखक नाम, असत्य है”
संग्रह की अंतिम कविता 'यात्रा अभी बहुत है बाकी' कवि के ‘नव मनु, नव सृष्टि' के सृजन के प्रति समर्पण को सशक्तरूप से व्यक्त करती है: “अभी ना रुकना मेरी लेखनी/ यात्रा अभी बहुत है बाकी” और आश्वस्त करती है कि इस कवि की सुंदर, समतामूलक समाज बनाने की शुभ यात्रा जारी रहेगी।
समकालीन हिंदी कविता के परिदृश्य को समृद्ध करने वाला यह विचारोत्तेजक, विमर्शात्मक एवं भावपूर्ण काव्यसंग्रह “कहत कबीरन” अवश्य पठनीय है। उर्दू, अंग्रेज़ी, देशज, तत्सम शब्दों का प्रवाह में यथोचित प्रयोग कर पानेवाली एवं विविध विषयों पर समान कुशलता से लिख सकने वाली इस कवि का रचना-संसार महत्वपूर्ण संभावनाओं से परिपूर्ण है। आज जब अधिकतर रचनाकार विभिन्न मठों एवं विचारधाराओं के बंदी हो गए हैं, रश्मि बजाज की कविताएं मुक्ति की कविताएं हैं, मानव-मूल्यों एवं मानवता को बचाने वाली कविताएं हैं!
कहत कबीरन
डॉ. रश्मि बजाज
अयन प्रकाशन
पृष्ठ संख्याः 119
मूल्यः 280