Advertisement

एक रस्ता, एक राही...

यात्रा का शौकीन होना और हर यात्रा का आनंद उठाना दो अलग-अलग बातें हैं। शौकीन लोग पहले मंजिल की जानकारी...
एक रस्ता, एक राही...

यात्रा का शौकीन होना और हर यात्रा का आनंद उठाना दो अलग-अलग बातें हैं। शौकीन लोग पहले मंजिल की जानकारी लेते हैं, वहां की सुविधाओं का जायजा लेते हैं और फिर निकलते हैं। आनंद उठाने वाले, जगह तय करते हैं और निकल पड़ते हैं। सचिन देव शर्मा इन निकल पड़ने वाले लोगों में से हैं। उनकी किताब ल्हासा नहीं लवासा इस बात का पुख्ता सबूत है। वर्णत तो इस किताब की खासियत है ही लेकिन एक और बात जिस पर ध्यान जाता है, वह है, परिवार के साथ यात्रा। जीवन की यात्रा के सहभागी के साथ किसी भी यात्रा का मजा दोगुना हो जाता है, इस बात से बहुत से लोग इत्तेफाक रखेंगे।

यात्रा वृत्तांत लिखना एक बार फिर से उस यात्रा को जी लेना है। और यह वृत्तांत होना भी ऐसा चाहिए कि पाठक इस यात्रा के साथ न सिर्फ जुड़ाव महसूस करें, बल्कि इस यात्रा के ही सहभागी हो जाएं। सचिन बहुत प्रभावी ढंग से इस यात्रा में 'पाठक सहयात्री' बनाते चलते हैं।

किताब का शीर्षक अपने आप में ध्यान आकर्षित करने के लिए काफी है। ल्हासा और लवासा का यह खेल पाठको को रोमांचित तो करता ही है, साथ ही नितांत एक नई जगह के बारे में ज्ञान भी कराता है। घूमना इन दिनों नई पीढ़ी का सिर्फ शौक ही नहीं बल्कि जुनून हो गया है। इस जुनून में रोमांच भी हो और सुकून भी हो, तो क्या कहने। लेकिन यदि वो जगहें आपकी पहुंच में भी हों, तो सोने पर सुहागा। भारत की ऐसी जगहें, जो बहुत कॉमन न हो और जहां घूमने की सारी शर्तें भी पूरी हो रही हों, तो यात्री और क्या चाहेगा। इस पुस्तक में ऐसी जगहों का जिक्र है, जहां आप यात्री भी हो सकते हैं और पर्यटक भी। दोनों के बीच बस इतना सा अंतर है कि पर्यटक होने पर आप उस जगह और आसपास के रमणीय स्थल तक पहुंचते हैं, देखते हैं और लौट आते हैं। लेकिन जब आप सचिन की तरह यात्री हो जाते हैं, तो उन यादों को संजो कर लाते हैं और जानकारी भरी एक किताब लिख देते हैं।

ल्हासा नहीं लवासा

सचिन देव शर्मा

हिंद युग्म

125 रुपये

124 पृष्ठ

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोर से
Advertisement
Advertisement
Advertisement
  Close Ad