जब कहने को बहुत कुछ हो तो मौन सबसे बड़ा हथियार है। कई बार इसका असर हजारों शब्दों से ज्यादा होता है।
यही असर दिखता है युवा लेखक गौरव शर्मा की किताब में। किताब का शीर्षक है, द इंडियन स्टोरी ऑफ ऐन ऑथर। यानी एक लेखक की भारतीय कहानी।
कनाडा में रहने वाले और दिल्ली में जन्मे गौरव शर्मा किताब की शुरुआत में लिखते हैं- उन सभी प्रकाशकों का शुक्रिया, जिन्होंने मेरी पहले की कृतियों को खारिज किया। बार-बार खारिज होना इस किताब की वजह है। वह कहते हैं कि पेज जानबूझकर खाली छोड़े गए हैं। इन्हें अपनी सुविधा के हिसाब से इस्तेमाल करें।
गौरव शर्मा की यह किताब एक प्रकार का सांकेतिक प्रतिरोध है। चीजों को छपवाने के लिए यहां तमाम पापड़ बेलने पड़ते हैं। जान-पहचान से लेकर विचारधाराएं तक काम करती हैं। ऐसा ही कुछ गौरव के साथ हुआ।
उनकी दो किताबों ‘गॉड ऑफ सलीड’ और ‘लॉन्ग लिव सलीड’ को खारिज कर दिया गया। इसके बाद गौरव ने ये तरीका अपनाया। वह कहते हैं कि कुछ लोग समझ सकते हैं कि ये स्वांग है जबकि कुछ लोग इसे भावी लेखकों के लिए चेतावनी के तौर पर भी देख सकते हैं। थिंक टैंक बुक्स से छपी 100 रुपए की इस किताब को भी तमाम प्रकाशकों ने खारिज कर दिया था।
इंदिरा गांधी ने जब इमरजेंसी लगाई थी, तब अखबारों में शब्दों पर अंकुश लगाया गया था। ऐसे में रामनाथ गोयनका समेत कई दिग्गज पत्रकारों, संपादकों ने अखबारों में सम्पादकीय का पेज खाली छोड़ दिया था। यह प्रतिरोध का तरीका था। जब आपके कुछ कहने पर पाबंदी लगाई जाए तो बेहतर है कि आप 'कुछ ना कहकर' बहुत कुछ कह जाएं।
गौरव की किताब अपने शीर्षक से ही काफी कुछ कह देती है। आप उत्सुक होकर किताब के पन्ने पलटने लगते हैं। करीब तेरह पन्नों के बाद किताब की तरह आप भी 'ब्लैंक' हो जाते हैं। यह किताब व्यंग्य की तरह काम करती है। आप एक बार सोचने को मजबूर होते हैं। हो सकता है एक पल को आप नाराज भी हों कि ये क्या है लेकिन फिर आप इसके पीछे की नीयत समझते हैं तो हल्का सा मुस्कराते हैं। ऑस्कर वाइल्ड ने एक दफे कहा था कि अगर आप लोगों को सच बताना चाहते हैं तो उन्हें हंसाते हुए बताइए वरना लोग आपकी जान ले लेंगे।
गौरव को यह बात पता है कि यह किताब कोई बेस्टसेलर नहीं होगी। इसमें कोई प्लॉट नहीं है, कोई क्लाइमैक्स नहीं है, कोई लव स्टोरी नहीं है। उनका उद्देश्य यह है भी नहीं। वह बस ये चाहते हैं कि किताब के पन्ने आपको प्रकाशन की असली दुनिया से रूबरू करवाएं। किताब के पन्नों में शब्दों का ना होना ये संकेत देता है, जैसे शब्द स्वयं कह रहे हों कि हमें खारिज किया गया है इसलिए हम यहां से पलायन करते हैं।
केदारनाथ सिंह की कविता में माफी सहित थोड़ा बदलकर कहें तो शब्दों का पलायन साहित्य की सबसे खौफनाक क्रिया है।