उच्चतम न्यायालय ने मानसिक बीमारियों से ग्रस्त लोगों को उपचार के बाद अस्पताल से छुट्टी देने की बजाय उनके लिए एकीकृत राष्टीय नीति तैयार करने पर आज जोर दिया। प्रधान न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर, न्यायमूर्ति एन वी रमण और न्यायमूर्ति धनंजय वाई चंद्रचूड की खंडपीठ ने वकील जी के बंसल की जनहित याचिका का दायरा बढाते हुये इस संबंध में सभी राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों से जवाब मांगा है। जनहित याचिका में उत्तर प्रदेश के विभिन्न मानसिक रोगी अस्पतालों से करीब 300 व्यक्तियों को छुट्टी का मामला उठाते हुए आरोप लगाया गया था कि उपचार के बावजूद वे अभी भी अस्पतालों में हैं और इनमें से अधिकांश समाज के गरीब तबके के हैं।
नई दवाइयों के विकास, मेडिकल आधुनिक तकनीकों के उपलब्धता और मिर्गी से जुडी स्थिति के प्रति ज्यादा से ज्यादा जागरूकता रोगियों को सामान्य जिंदगी बिताने में काफी मदद कर रही है। मिर्गी दूसरा सबसे आम मस्तिष्क विकार है। भारत में प्रतिवर्ष 5 लाख नवजात शिशु मिर्गी की बीमारी के साथ जन्म ले रहे है। पिछले दशक में सिर की चोट लगने के कारण 20 फीसदी व्यस्कों में मिर्गी के मामलों में बढ़ोतरी हुई है। भारत में तकरीबन 95 फीसदी लोग मिर्गी का इलाज ही नहीं करवा पाते जबकि 60 प्रतिशत शहरी लोग दौरा पड़ने के बाद डाॅक्टर से परामर्श लेते है और इस मामले में ग्रामीण भारतीय का प्रतिशत सिर्फ 10 फीसदी है।