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नजरिया: दिल्ली में इन 6 वजहों से मिली 'आप' को मात

नजरिया: दिल्ली में इन 6 वजहों से मिली 'आप' को मात

दिल्ली नगर निगम में भाजपा को तीसरी बार बहुमत मिलना एक बड़ी कामयाबी है। विधानसभा चुनाव में 3 विधायकों पर सिमटी भाजपा के लिए यह डगर आसान नहीं थी। यह दिल्ली में भाजपा के नए चेहरों और नई रणनीति की जीत है। उधर, आम आदमी पार्टी विधानसभा की जबरदस्त जीत के बाद जनता की जबरदस्त नाराजगी का शिकार हो गई है।
नजरिया: नक्सलवाद से लड़ती सड़कों पर जवानोंं की शहादत

नजरिया: नक्सलवाद से लड़ती सड़कों पर जवानोंं की शहादत

इस बात में कोई संदेह नहीं कि सड़कें बहुत धीमी गति से नक्सलगढ़ की छाती पर सवार हो रही हैं और परिवेश बदल रहा है। भय का वातावरण सडकों के आसपास से कम होने लगा है।
नजरिया: अच्छा हुआ हेडलाइंस मैनेज करना सीख गए किसान

नजरिया: अच्छा हुआ हेडलाइंस मैनेज करना सीख गए किसान

जंतर-मंतर पर तमिलनाडु के किसानों का धरना-प्रदर्शन अपने अनूठे तौर-तरीकों को लेकर चर्चाओं में रहा। पढ़िए, इस आंदोलन को किस नजरिये से देखते हैं मध्य प्रदेश के युवा किसान नेता केदार सिरोही
नजरिया: अच्छा हुआ किसान भी हेडलाइंस मैनेज करना सीख गए

नजरिया: अच्छा हुआ किसान भी हेडलाइंस मैनेज करना सीख गए

जंतर-मंतर पर तमिलनाडु के किसानों का धरना-प्रदर्शन अपने अनूठे तौर-तरीकों को लेकर चर्चाओं में रहा। पढ़िए, इस आंदोलन को किस नजरिये से देखते हैं मध्य प्रदेश के युवा किसान नेता केदार सिरोही
भारत-अमेरिकी संबंधों पर ट्रंप प्रशासन का है सकारात्मक नजरिया : विदेश सचिव

भारत-अमेरिकी संबंधों पर ट्रंप प्रशासन का है सकारात्मक नजरिया : विदेश सचिव

विदेश सचिव एस जयशंकर ने आज कहा कि ट्रंप प्रशासन का भारत-अमेरिकी संबंधों को लेकर काफी सकारात्मक दृष्टिकोण है और संबंधों को आगे ले जाने में काफी रूचि है। एस जयशंकर इस दौरान अमेरिकी दौरे पर हैं। उन्होंने यह बात वरिष्ठ कैबिनेट सदस्यों और शीर्ष अधिकारियों के साथ व्यापक बातचीत के बाद कहा।
खिलाडि़यों पर अपना नजरिया थोपना मेरी शैली नहीं: कुंबले

खिलाडि़यों पर अपना नजरिया थोपना मेरी शैली नहीं: कुंबले

भारत के नये मुख्य कोच अनिल कुंबले ने स्वीकार किया है कि उनके काम करने की शैली में जान राइट का काफी प्रभाव है और वह युवा टीम पर अपने विचार थोपने की जगह उन्हें समझाने की कोशिश करेंगे।
नए विधायकों के लिए इंटर्नशिप था संसदीय सचिव पद

नए विधायकों के लिए इंटर्नशिप था संसदीय सचिव पद

1937 में जब पहली बार कांग्रेस-लीग के समझौते के बाद उत्तर प्रदेश में पहली कांग्रेस सरकार चुनकर आई तो नेहरू जी मंत्रिमंडल में लीग को स्थान देने के लिए तैयार नहीं हुए थे। जिसके फलस्वरूप देश के विभाजन की नींव रखी गई थी। मेरा उद्देश्य इस सवाल को उठाना नहीं है। उससे कई और सवाल जुड़े हैं। मैं यहां संसदीय सचिव (पार्लियामेंन्ट्री सेक्रेट्री) के पद के इतिहास के बारे में बात करना चाहता हूं। यह पद ब्रिटिश सरकार की परंपरा का हिस्सा है। मैंने कहीं पढ़ा था चर्चिल भी शायद पहले संसदीय सचिव ही हुए थे। सन 1937 में जब पंडित गोविंद वल्लभ पंत के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार बनी थी तो वह मुख्यमंत्री बने थे और विजय लक्ष्मी पंडित मंत्री बनी थीं। यदि संसद सचिवों की बात की जाए तो चौधरी चरण सिंह (जो प्रधानमंत्री बने), चंद्रभानु गुप्त (चार बार मुख्यमंत्री बने और कांग्रेस के कद्दावर नेता थे), आचार्य जुगल किशोर (1947 में आजादी के वक्त कांग्रेस के जनरल सेक्रेट्रियों में थे) समेत कई संसदीय सचिव थे। उसके बाद भी संसदीय सचिव की परंपरा मंत्रिमंडल का अंग रही। मैं स्मृति से लिख रहा हूं। केंद्र में भी यह पद था। प्रदेश में कई बड़े नेताओं ने संसदीय सचिव के पद से अपना करिअर आरंभ किया था जिनमें बाबू बनारसी दास (मुख्यमंत्री रहे), हेमवतीनंदन बहुगुणा (पूर्व मुख्यमंत्री, कैलाश प्रकाश पूर्व. शिक्षा मंत्री) आदि सम्मिलित हैं।
फांसी की शर्मनाक छाया

फांसी की शर्मनाक छाया

मौत की सजा के जरिये अपराध की रोकथाम का लक्ष्य विफल हो चुका है। शोध यह साबित करने में लगातार विफल रहे हैं कि मौत की सजा से अपराध पर रोक लगती है।
भू-अधिग्रहण: आग को सरकारी न्यौता

भू-अधिग्रहण: आग को सरकारी न्यौता

विकास हित में भूमि अधिग्रहण को सरकार और उद्योगों के लिए सुगम बनाने की मोदी सरकार की पहल ने मानो आग को न्यौता दे दिया है। सन 2013 का भू-अधिग्रहण कानून बदलने के अध्यादेश से देशभर में किसानों के बीच जो असंतोष फैला उसका एक नतीजा दिल्ली के ग्रामीण मतदाताओं के मतदान में दिखा, जिन्होंने भाजपा को एक भी सीट नहीं दी और जिस आम आदमी पार्टी को उन्होंने पिछले विधानसभा चुनाव में ठुकराया था उसकी झोली भर दी।
न्यायिक देर से भी अंधेर हो सकता है

न्यायिक देर से भी अंधेर हो सकता है

भारतीय संविधान के तहत उपलब्ध न्यायिक सुनवाई के अधिकार और संस्थाबद्ध प्रणालियों में त्वरित न्याययिक सुनवाई के अधिकार की ज्यादा गुंजाइश नहीं बनाई गई है, यह हाल में 40 साल बाद ललित नारायण मिश्र हत्याकांड में आए फैसले से साबित है।
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