धीरे-धीरे दिल्ली फिल्म बनने के नए केंद्र के रूप में स्थापित हो रही है। यहां न सिर्फ फिल्मों की शूटिंंग होने लगी है बल्कि मुंबई पर अब निर्भरता कम हो रही है।
पीके फिल्म के नाम पर जितनी चिल्ला चोट हो सकती है हो रही है। बैनर-पोस्टर आग के हवाले किए जा रहे हैं। टेलीविजन चैनल पर बहस का बाजार गरम है। यह फिल्म के विषय पर बहस न होकर केसरिया-हरे की बहस हो कर रह गई है।