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अलविदा मिस्‍बाह, आक्रामक हो सकते थे पर आप रहे हमेशा रक्षात्‍मक

27 साल की उम्र में 2001 में टेस्‍ट पदार्पण के साथ अपने अंतरराष्‍ट्रीय कैरियर का आगाज करने वाले पाकिस्‍तान के कप्‍तान मिस्‍बाह उल हक ने क्रिकेट के सभी प्रारुपों को अलविदा कह दिया है। वेस्‍टइंडीज के खिलाफ पाकिस्‍तान की आगामी टेस्‍ट सीरिज उनके जीवन की अंतिम सीरिज होगी।
अलविदा मिस्‍बाह, आक्रामक हो सकते थे पर आप रहे हमेशा रक्षात्‍मक

मिस्‍बाह 2015 विश्‍व कप के बाद वन डे और टी-20 से पहले ही संन्‍यास ले चुके हैं। मिस्‍बाह उल हक को पाकिस्‍तान की कुछ अहम हार का जिम्‍मेदार ठहराया जाता है। मीडिया ने भी उनके रक्षात्‍मक और बचाव मुद्रा की आलोचना की। यह एक हद तक सही भी कहा जा सकता है।

क्रिकेट के जानकार मानते हैं कि उनमें जावेद मियांदाद और इंजमाम उल हक की तरह जुझारु क्षमता थी लेकिन मिस्‍बाह पाकिस्‍तान को रोमांचक जीत दिलाने में ज्‍यादा कामयाब नहीं रहे। अगस्‍त 2016 में इंग्‍लैंड के साथ सीरिज ड्रा करने के बाद उम्र के अंतिम पड़ाव में बतौर कप्‍तान पाकिस्‍तान को टेस्‍ट में नंबर वन उन्‍होंने बनाया पर जेहन में हमेशा याद रहने वाले गजब क्रिकेटर की कला कौशल दिखाने में वह चूक गए।

मियांदाद-इंजमाम उल हक की तरह वह भी कुछ मैचों की कठिन परिस्थितियों में तेज तर्रार और आकर्षक बल्‍लेबाजी कर सकते थे पर वह ऐसा नहीं कर पाए। पाक मीडिया ने उनके रक्षात्‍मक बचाव के रुख को निशाने पर लेते हुए हमेशा उन पर करारे हमले किए पर मिस्‍बाह अपने इस रुख को अपने मूल स्‍वभाव आक्रामकता पर हमेशा हावी होने दिया। इसी वजह से वह पाकिस्‍तान के एक चैंपियन बल्‍लेबाज कभी नहीं कहे जा सकेंगे।     

हाल ही में वह विजडन के टाप 5 प्रेस्टिजियस अवार्ड से भी नवाजे गए। लेकिन टीम को लगातार पिछले छह टेस्‍टों में मिली हार ने उन्‍हें अलविदा कहने पर आखिरकार मजबूर कर ही दिया।

कैरियर के 19 टेस्‍ट खेलने के बाद ही टीम की कमान संभालने वाले मिस्‍बाह ने हालांकि बतौर कप्‍तान बेहतर क्रिकेट खेली है। उनका टेस्‍ट कैरियर का औसत 45.84 है लेकिन कप्‍तान बनने के बाद उनका बल्‍लेबाजी औसत 50.55 रहा। जो काबिले तारीफ है। अपने कैरियर के 10 टेस्‍ट शतकों में 8 शतक उन्‍होंने अपनी कप्‍तानी के दौरान ही बनाए। कप्‍तानी के 53 टेस्‍टों में 24 टेस्‍ट जीतकर पाक के सबसे सफल कप्‍तान तो मिस्‍बाह बन गए पर वह पाक के सर्वकालिक चैंपियन बल्‍लेबाज नहीं कहे जा सकते। आंकड़े बताते हैं कि वह एक जुझारु नायक तो थे लेकिन जीत का उन्‍हें शायद वरदान नहीं था।

पाक क्रिकेट के इतिहास पर नजर डालें तो पाएंगे कि 18 अप्रैल 1986 को शारजाह में भारत के खिलाफ आस्‍ट्रलेशिया कप के खिताबी मुकाबले में पाक को जीत के लिए आखिरी गेंद में चार रनों की दरकार थी। सभी क्रिकेट प्रेमियों की सांसे थम सी गई थी। तब चेतन शर्मा की गेंद पर छह रन मारकर पाक को मियांदाद ने स्‍वर्णिम जीत दिलाई थी। ठीक इसी तरह एक और चैंपियन  इंजमाम उल हक ने 1992 के विश्‍व कप टूर्नामेंट में ऑस्‍ट्रेलिया में सेमीफाइनल में न्‍यूजीलैंड के खिलाफ 37 बालों में 60 रनों की तेज तर्रार पारी खेल कर पाक को फाइनल में पहुंचाया।

इंजमाम ने फाइनल में भी इंग्‍लैंड के खिलाफ तेज पारी खेलकर कैप्‍टन इमरान खान की पाक क्रिकेट टीम को विश्‍व कप दिलाने में बड़ा योगदान दिया था। ऐसे दो बड़े खिलाड़ियों के बाद मिस्‍बाह के पास भी अपनी आक्रामक प्रतिभा को दिखाने का मौका था। लेकिन वह हमेशा चूक गए। 2007 के टी-20 विश्‍व कप में फाइनल में भारत के खिलाफ मिस्‍बाह अंतिम ओवर में छक्‍का नहीं जमा पाए और जोगेंद्र शर्मा की बाल पर कैच थमा पाक को मायूस कर दिया।

इसी तरह 2011 के विश्‍वकप में भारत के खिलाफ सेमीफाइनल में पाक के विकेटों के पतझड़ के बीच वह अवश्‍य टिके रहे लेकिन अंतिम समय में तेजी से रन नहीं बना पाए। इस हार के लिए भी उन्‍हें दोषी माना गया। इस मैच में जब तेजी से रन बनाने की दरकार थी तक वह आक्रामक होने की बजाय रक्षात्‍मक ही रहे और रन रेट की दर बढ़ती गई, नतीजन पाक को हार मिली। क्रिकेट पंडित मानते हैं कि वह आक्रामक हो सकते थे लेकिन वह हमेशा रक्षात्‍मक बने रहे।

कैरियर पर एक नजर

72 टेस्‍ट मैचों की 126 पारियों में 4951 रन, 10 शतक, 36 अर्ध शतक, औसत 45.84, सर्वोच्‍च स्‍कोर 161 नाबाद

162 वन डे मैचों की 149 पारियों में 5122 रन, 42 अर्ध शतक, औसत 43.40, सर्वोच्‍च स्‍कोर 96 नाबाद

39 टी-20 मैचों की 34 पारियों में 788 रन, 3 अर्ध शतक, औसत 37. 52, सर्वोच्‍च स्‍कोर 87 नाबाद    

  

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