शीर्ष अदालत ने इसके साथ ही ठाकुर के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू करने का भी फैसला किया। उनसे जवाब मांगा गया कि बीसीसीआई में सुधार लागू करने के अदालत के निर्देशों के क्रियान्वयन में बाधा पहुंचाने के लिये आखिर क्यों नहीं उन्हें जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए।
मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि बीसीसीआई के कामकाज को प्रशासकों की एक समिति देखेगी और उसने वरिष्ठ अधिवक्ता फाली एस. नरिमन और इस मामले में न्यायमित्र के रूप में सहायता कर रहे गोपाल सुब्रहमण्यम से प्रशासकों की समिति में ईमानदार व्यक्तियों को सदस्यों के रूप में नामित करने में अदालत की मदद करने का आग्रह किया।
इस पीठ में न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर और डी. वाई. चंद्रचूड़़ भी शामिल थे। पीठ ने कहा कि नरिमन और सुब्रहमण्यम दो सप्ताह में अपना काम पूरा करेंगे तथा प्रशासकों की समिति में व्यक्तियों के नामांकन के लिये निर्देश जारी करने संबंधी मसला अदालत में 19 जनवरी को लाया जाएगा। यह भी स्पष्ट किया गया कि नये प्रशासक के बीसीसीआई का कामकाज संभालने तक अध्यक्ष का कामकाज बोर्ड का सबसे वरिष्ठ उपाध्यक्ष और सचिव का काम वर्तमान संयुक्त सचिव संभालेगा।
शीर्ष अदालत ने कहा कि बीसीसीआई और राज्य संघों के सभी पदाधिकारियों को शपथपत्र देना होगा कि वे शीर्ष अदालत के निर्देशों का पालन करेंगे जिसने भारत के पूर्व मुख्य न्यायधीश आर. एम. लोढ़ा की अगुवाई वाले पैनल की सिफारिशों को स्वीकार किया है।
इसके साथ ही आगाह किया गया है कि बीसीसीआई या राज्य संघों के जो पदाधिकारी शीर्ष अदालत द्वारा स्वीकार की गयी लोढ़ा पैनल की शर्तों को मानने में नाकाम रहेंगे उन्हें अपना पद छोड़ना होगा। यह भी स्पष्ट किया गया कि लोढ़ा पैनल की सिफारिशों के अनुसार 70 साल से अधिक उम्र का कोई भी व्यक्ति, मानसिक तौर पर असंतुलित कोई व्यक्ति, मंत्री, सरकारी कर्मचारी, दोषी ठहराया जा चुका कोई व्यक्ति, नौ साल की संचित अवधि तक पद पर रह चुका व्यक्ति या फिर किसी अन्य खेल संघ से जुड़ा कोई व्यक्ति क्रिकेट संस्था का पदाधिकारी बनने के योग्य नहीं होगा।
भाषा