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2007 का विलेन, 2024 में हीरो

टीम इंडिया के टी20 विश्व कप खिताब जीतने के साथ ही मुख्य कोच के रूप में राहुल द्रविड़ का कार्यकाल समाप्त...
2007 का विलेन, 2024 में हीरो

टीम इंडिया के टी20 विश्व कप खिताब जीतने के साथ ही मुख्य कोच के रूप में राहुल द्रविड़ का कार्यकाल समाप्त हो गया। पूर्व भारतीय कप्तान ने उसी वेस्ट इंडीज में आइसीसी ट्रॉफी जीत के साथ अपना कार्यकाल समाप्त किया जहां उनकी कप्तानी में भारत आइसीसी विश्व कप 2007 में लीग चरण में ही बाहर हो गया था। 17 साल पहले भारतीय क्रिकेट की बदनामी के उस भयंकर दौर से लेकर आज विश्व चैंपियन बनने तक राहुल ने इस मंजिल तक पहुंचने के दौरान बहुत कुछ झेला। किसी को अंदाजा नहीं था कि तकनीक का धनी बल्लेबाज मॉडर्न डे क्रिकेट कोचिंग के प्रति अपने समर्पण को जिंदा रखते हुए भारत को उसके सबसे फिसड्डी फॉर्मेट में विश्व विजेता बना देगा। क्रिकेट में कहा जाता है, अगर असली आक्रामकता महसूस करनी हो तो राहुल द्रविड़ की आंखों में देखनी चाहिए। बारबाडोस में विश्व कप जीत के बाद सबसे कमाल की तस्वीर कोच साहब की ही थी। प्लेयर ऑफ द फाइनल विराट कोहली ने जब उन्हें ट्रॉफी थमाई, तो राहुल द्रविड़ की खुशी देखने लायक थी। ऐसा लग रहा था जैसे द्रविड़ की जिंदगी पूरा गोल चक्कर घूमकर वापस आ गई हो। जिस भीड़ ने 17 साल पहले उन्हें विलेन मान लिया था, वही भीड़ द्रविड़ की एक झलक पाने के लिए बेताब थी।

2007 के एकदिवसीय विश्व कप में सुपर आठ चरण से बाहर होना भारतीय क्रिकेट के सबसे कठिन दौर में से एक था। सितारों से सजी टीम, जहां सचिन तेंडुलकर अपनी प्रतिभा के साथ चरम पर थे। सौरव गांगुली की वापसी ने टीम को मजबूती दी थी और राहुल द्रविड़ कप्तान के रूप में भारत को वेस्ट इंडीज में विश्व कप जीत दिलाने के लिए उत्साहित थे। इसके साथ टीम में युवा एमएस धोनी और फॉर्म में चल रहे युवराज सिंह भी मौजूदगी थे। सभी को लग रहा था कि इस बार टीम कुछ अलग कर के आएगी।

बांग्लादेश और श्रीलंका के खिलाफ अपमानजनक हार के बाद भारत पहले दौर में बाहर हो गया था। इसके बाद टीम इंडिया के मुख्य कोच के रूप में ग्रेग चैपल के उतार-चढ़ाव भरे दौर का अंत हुआ और यह राहुल द्रविड़ की कप्तानी के कार्यकाल में एक भूलने वाला अध्याय साबित हुआ। इसके बाद राहुल को कप्तानी छोड़नी पड़ी, मगर 17 साल बाद समय ने करवट बदल और राहुल द्रविड़ की देखरेख में ही भारत विश्व विजेता बन कर उभरा।

राहुल द्रविड़ टीम इंडिया के अब तक के सबसे अच्छे कोच साबित हुए हैं। इससे पहले कोई भी कोच भारत को लगातार विश्व कप फाइनल में नहीं ले जा सका। मेहनत और अनुशासन के चलते राहुल द्रविड़ ने यह कर के दिखाया। टी20 वर्ल्ड कप 2024 में टीम इंडिया की जीत उनके दृढ़ संकल्प और कड़ी मेहनत का नतीजा थी। वे अपनी कप्तानी में विश्व कप नहीं दिला सके। अगर कोच रहते हुए भी वे विश्व कप नहीं ज‌िता पाते, तब शायद दो दशक से भी ज्यादा समय तक भारतीय क्रिकेट के लिए उन्होंने जो किया है उसकी अनदेखी हो जाती।

51 वर्षीय द्रविड़ को जब रवि शास्‍त्री के कार्यकाल के बाद लगभग तीन साल पहले भारतीय क्रिकेट टीम का प्रबंधन सौंपा गया था तब उनसे उम्मीदें बहुत थीं। द्रविड़ भले ही भारत को विश्व टेस्ट चैंपियन और वनडे चैंपियन न बना पाए हों लेकिन भारत को टी20 विश्व कप दिलाकर उन्होंने इसकी भरपाई कर दी है, हालांकि मैच के बाद पूरा ध्यान विराट कोहली और रोहित शर्मा के संन्यास की घोषणाओं पर चला गया लेकिन द्रविड़ को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा। उन्हें बस यही संतोष था कि 39 साल का उनका क्रिकेट का सफर एक महत्वपूर्ण ट्रॉफी की जीत के साथ समाप्त हुआ।

आंकड़ों और प्रदर्शन के आधार पर राहुल द्रविड़ की कोचिंग में टीम इंडिया दुनिया में शीर्ष प्रदर्शन करने वाली टीम रही। उनकी कोचिंग में भारत ने 56 वनडे में से 41 और 69 में से 48 टी20 जीते। इस दौरान रोहित शर्मा की अगुवाई वाली भारतीय टीम केवल एक टेस्ट सीरीज हारी, जिसमें पांच जीत और दो ड्रॉ रहीं। सभी प्रारूपों में भारत का प्रदर्शन दुनिया की अन्य सभी टीमों से बेहतर रहा, लेकिन यदि टीम इंडिया फाइनल न जीती होती तो कहानी कुछ अलग ही होती।

दरअसल, पिछले 12 महीनों में किसी भी आइसीसी प्रतियोगिता में भारत लगातार तीसरी बार फाइनल में पहुंची थी। पिछले साल जून में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ आइसीसी विश्व टेस्ट चैंपियनशिप फाइनल, नवंबर में आइसीसी वनडे विश्व कप 2023 फाइनल और 2022 में पिछले टी20 विश्व कप में सभी मैच जीतने के बाद अंतिम मैच इंग्लैंड से हार गई।

राष्ट्रीय टीम का मुख्य कोच बनने से पहले द्रविड़ अंडर-19 टीम और भारत ए टीम के मुख्य कोच के साथ-साथ राष्ट्रीय क्रिकेट अकादमी (एनसीए) में क्रिकेट के प्रमुख थे। उन्होंने पृथ्वी शॉ की कप्तानी में 2018 में भारत को अंडर-19 विश्व कप खिताब दिलाने में मदद की। शुभमन गिल, अभिषेक शर्मा, कमलेश नागरकोटी, शिवम मावी और अर्शदीप सिंह उस टीम का हिस्सा थे जिसने ऑस्ट्रेलिया में खिताब जीता था। राहुल द्रविड़ को इसलिए भी क्रिकेट में अलग ख्याति प्राप्त है क्योंकि उन्होंने धरातल से जुड़कर भारत के भविष्य की फौज तैयार की है।

माना जा रहा है कि द्रविड़ कुछ साल के लिए क्रिकेट से ब्रेक ले सकते हैं। इसके बाद वह एनसीए में जूनियर स्तर के क्रिकेट में अपना काम फिर से शुरू कर सकते हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि द्रविड़ को सर्वश्रेष्ठ कोचों में से एक के रूप में याद किया जाएगा, जो अपने पीछे गजब के आंकड़े और उपलब्धियां छोड़ गए हैं। उन्होंने भारतीय क्रिकेट टीम के अगले मुख्य कोच यानी गौतम गंभीर के लिए बड़ी जिम्मेदारी छोड़ी है। बीसीसीआइ द्वारा गंभीर को कोच बनाने का निर्णय दूरदर्शिता के हिसाब से लिया गया है। टीम के ट्रांजिशन फेज को संभालते हुए आक्रामक और चुनौतीपूर्ण बने रहना गंभीर की सबसे बड़ी चुनौती होगी।

पूर्व सलामी बल्लेबाज गौतम गंभीर ने भारत की 2011 वनडे विश्व कप और 2007 की टी20 विश्व कप जीत में अहम भूमिका निभाई थी। मानसिक मजबूती के लिए विख्यात 42 वर्षीय बाएं हाथ के बल्लेबाज को द्रविड़ की जगह लेने के लिए प्रबल दावेदार माना जा रहा था। गौरतलब है कि 1990 के दशक के अंत में कपिल देव के बाद यह पद पाने वाले गंभीर दूसरे सबसे युवा भारतीय हैं। वैसे, उन्होंने इससे पहले लिस्ट ए या प्रथम श्रेणी क्रिकेट में किसी घरेलू या अंतरराष्ट्रीय टीम को कोचिंग नहीं दी है, लेकिन भारतीय टीम के लिए यह कोई असामान्य बात नहीं है। मसलन, रवि शास्‍त्री और अनिल कुंबले दोनों के पास क्रमशः 2014 और 2016 में कार्यभार संभालने के समय कोचिंग का अनुभव नहीं था।

गंभीर को यह पद दो आइपीएल फ्रेंचाइजी के मेंटर के रूप में सफल कार्यकाल के आधार पर मिला है। जहां तक खिलाड़ियों की बात है, तो रोहित शर्मा, विराट कोहली और रवींद्र जडेजा के टी-20 से संन्यास लेने के साथ ही इस प्रारूप में बदलाव पहले ही शुरू हो चुका है। सबसे पहली बात तो यही है कि फिलहाल एकदिवसीय और टेस्ट टीम में निकट भविष्य बदलाव के संकेत नहीं है। अगर इसमें बदलाव हुआ भी, तो 2025 में चैंपियंस ट्रॉफी और विश्व टेस्ट चैंपियनशिप के बाद होगा। शायद तब ही खिलाड़ियों पर कोई सवाल उठे। गौतम का कार्यकाल 2027 वनडे विश्व कप तक चलने की संभावना है, उन्हें भारत का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने के लिए कार्यभार प्रबंधन योजना के साथ काम करना पड़ सकता है।

यह तो तय है कि गौतम गंभीर भारत के अब तक के सभी कोच से अलग साबित होंगे। इसकी वजह यह है कि वे अनुशासन पसंद करते हैं और खिलाड़ियों से सीधे बात करना पसंद करते हैं। भारत के लिए वे उपलब्धियों के सिलसिले में क्या अलग कर पाते हैं, ये देखने वाली बात होगी।

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