भारत के लिये ओलंपिक पदक से एक जीत दूर विकास 0-3 से हार गए जिससे रियो ओलंपिक की मुक्केबाजी स्पर्धा में भारत की झोली खाली रही। विकास ने कहा, मैं माफी चाहता हूं कि मैने आप सभी को निराश किया। मैने पहले दौर में बढ़त बनाने की कोशिश की लेकिन पहला दौर गंवाने के बाद वापसी मुश्किल थी, और मैंने उम्मीद छोड़ दी। यह भारत का 70वां स्वतंत्राता दिवस था और एक जीत विकास का पदक सुनिश्चित कर देती। अब भारत पर बार्सिलोना में 1992 ओलंपिक के बाद पहली बार बिना पदक के ओलंपिक से लौटने का खतरा मंडरा रहा है।
विकास ने कहा , मैं हमेशा से भारत के लिये पदक जीतना चाहता था लेकिन मैं नाकाम रहा। मुझे माफ कर दीजिये। उसने कहा, मैं इससे बेहतर नहीं कर सकता था। मैं बायें और दाहिने ओर पंच लगाने की कोशिश कर रहा था लेकिन कामयाबी नहीं मिली। हालांकि ऐसा लगातार दूसरी बार है जब पुरूष मुक्केबाज ओलंपिक में देश को पदक दिलाने में विफल रहे। इससे पहले 2012 के लंदन खेलों में एमसी मैरीकोम ने 51 किलोग्राम भर में भारत को कांस्य पदक दिलाया था। विजेंदर सिंह (75 किलोग्राम) एकमात्र भारतीय पुरूष मुक्केबाज हैं, जिन्होंने 2008 के बीजिंग खेलों में देश को कांस्य पदक दिलाया था। कल रात क्वार्टर फाइनल में सातवें वरीय विकास विश्व नंबर तीन के सामने कहीं भी मुकाबले में नहीं दिखे।
बहुत अधिक सतर्कता के साथ मुकाबले में उतरे भारतीय मुक्केबाज शुरुआत में हमला बोलने में सकुचाते हुए नजर आये और पहले राउंड से ही पिछड़ने लगे जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी मुक्केबाज ने बायें हाथ के पंच से स्कोर किया। दूसरा राउंड भारतीय मुक्केबाज के लिए और भी खराब रहा क्योंकि मेलिजकुजेव ने मुकाबले को पूरी तरह अपने कब्जे में कर लिया और उनका दाहिना हाथ भी चलने लगा था। वास्तव में उनके एक पंच से विकास का गम शील्ड बाहर आ गया और इससे पहले कि वह संभल पाते उनके प्रतिद्वंद्वी के बाएं हाथ के हमले से वह पूरी तरह धराशायी हो गये। मेलिजकुजेव के मुक्कों का जोर इतना ताकतवर था कि दो जजों ने दूसरे दौर में उनके पक्ष में 10-8 का स्कोर दिया। विकास इसके बाद अंतिम तीन मिनट में बिल्कुल रंगहीन दिखे और खुद को बचाते हुए दिखे और वह अपना संतुलन ढूंढने के लिए संघर्ष कर रहे थे। हालांकि उनके प्रतिद्वंद्वी ने कोई गलती नहीं की और मुकाबला अपने नाम कर लिया।
एजेंसी