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इंटरव्यू/विश्वनाथन आनंद: “भारत में शतरंज की कई शानदार प्रतिभाएं”

व्यक्तिगत स्पर्धा वाले खेलों में शायद विश्वनाथन आनंद का कोई जोड़ नहीं है। ग्रैंडमास्टर आनंद उस...
इंटरव्यू/विश्वनाथन आनंद: “भारत में शतरंज की कई शानदार प्रतिभाएं”

व्यक्तिगत स्पर्धा वाले खेलों में शायद विश्वनाथन आनंद का कोई जोड़ नहीं है। ग्रैंडमास्टर आनंद उस बुलंद मुकाम पर हैं, जहां कोई भी भारतीय कभी नहीं पहुंच पाया। पांच बार के विश्वविजेता, आनंद की नई किताब, ‘माइंड मास्टर: विनिंग लेसंस फ्रॉम चैंपियंस लाइफ’आत्मकथा भी है और शतरंज में सीखे सबक की दास्तान भी। जी.सी. शेखर के साथ उन्होंने अपनी नई किताब, अपने खेल, भलमनसाहत और देश में शतरंज के भविष्य पर बात की। कुछ अंशः

संस्मरण और आत्मकथा अमूमन खेल से विदा लेने के बाद लिखी जाती है। आप अभी भी खेल में न सिर्फ सक्रिय हैं, बल्कि शीर्ष दस खिलाड़ियों में हैं। आपने करिअर के इस मुकाम पर क्यों लिखा?

मेरे 50वें जन्मदिन (11 दिसंबर) ने इसकी मोहलत मुहैया करा दी। इस पर कुछ समय से काम कर रहा था। किताब मेरे शतरंज के सबक पर है इसलिए कोई फर्क नहीं पड़ता कि मैं कुछ साल और खेल लूं।

शतरंज खिलाड़ी के लिए अपनी चालों पर बात करना, तैयारी करना और मैच के बाद विश्लेषण कर उससे सीखना आसान होता है, बनिस्बत, मसलन, किसी टेनिस खिलाड़ी के? आपके कई निष्कर्ष वास्तव में कंपनी बोर्ड रूम या प्रबंधन पाठ्यक्रमों में या  व्यावहारिक जीवन में काम आ सकते हैं?

मैंने सार्वजनिक रूप से भी काफी कुछ कहा, उससे भी यह हो सकता है। निश्चित रूप से, शतरंज आपको ऐसे सबक सिखाता है, जो आपको सीखने और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस की मदद लेने में मदद करता है।

शतरंज की पिछली बाजियों को रिकॉर्ड किया जाता है, उनका आगे के लिए विश्लेषण किया जाता है, तो क्या उन्हें हर बार अपना खेल नया करना पड़ता है? जैसे आपने बॉन (जर्मनी) में क्वीन की चाल से शुरुआत करके व्लादीमीर क्रेमनिक को चौंका दिया था

चाहे अपनी पुरानी चाल से शुरू करें या उसमें कुछ सुधार करें या  फिर बिलकुल नई चाल से शुरू करें, यह कश्मकश हर बार रहती है। हर टूर्नामेंट के लिए हमेशा नया प्रदर्शन नहीं हो सकता। आप कुछ नया करने की कोशिश करते रहते हैं। इसलिए शतरंज में पीछे और आगे दोनों ही रणनीति अपनाते हैं।

एलिस्बर उबिलाव (आनंद की प्रशिक्षक) ने एक बार आग्रह किया था कि आपको भारत, एशिया से आगे जाकर विश्व चैंपियनशिप पर ध्यान लगाना चाहिए। कोई टेनिस खिलाड़ी तो ग्रैंड स्लैम की ही सोचते हैं। किताब में आपने कहा है कि आपमें उस जज्बे की कमी थी। क्या शुरुआती दौर में आपमें वाकई जज्बे की कमी थी

नहीं, लेकिन मेरे सोचने का तरीका सीधा-सादा था। मुझे लगता था कि वर्ल्ड चैंपियनशिप उस लंबे सफर का अंत है। आप इस सफर में बढ़ते चलते हैं, तो वहां पहुंच ही जाएंगे। मेरे ट्रेनर बताने की कोशिश कर रहे थे कि मुझे उस बारे में अधिक जज्बे से सोचना चाहिए। हो सकता है मैं कोई एक चक्र पूरा कर लेता लेकिन मेरे ट्रेनरों ने सलाह दी कि विश्व खिताब की राह बहुत कठिन है, फिसलन भरी चढ़ाई चढ़नी पड़ती है, इसलिए मुझे अलग ढंग से सोचने की जरूरत है।

आपके प्रतिद्वंद्वियों कारपोव और कास्परोव को उनकी प्रतिष्ठा के कारण जो रियायत दी गई, वह आपको नहीं मिली। फिर भी आप परेशान नहीं हुए, इसे विवाद से दूर रहने की अपकी खासियत बताई गई। यहां तक कि कारपोव को यह भी कहते सुना गया कि आप शतरंज के भले लड़के तो हैं लेकिन बड़ी जीत का दम नहीं है। क्या आपको लगता है कि आपको कुछ अधिक  मुखर होना चाहिए था? या आपकी दक्षिण भारतीय परवरिश इसमें आड़े आती है?    

हां, मैं एक खास किस्म का हूं। बहुत ज्यादा मांग करने में झिझकता हूं। अनावश्यक इसका दबाव मुझ पर ही आएगा। अगर आप बहुत ज्यादा आशा रखते हैं और खराब खेलते हैं तो अंत में वह शून्य आपके चेहरे पर दिखाई देगा। प्राग में, जब वे दो चक्रों को एक करने की कोशिश कर रहे थे, तो मुझे पता ही नहीं था कि मैं अंतिम चार में हूं या आठ में। मैं तर्क दे सकता था और हो सकता था कि मेरी मांग को नजरअंदाज कर दिया जाता। या यह कि मैं सबको अनदेखा करके उसे ही अपने लिए न्याय मान लेता, क्योंकि पिछले छह महीने में मैंने बहुत खराब खेला था। मैं अच्छा खेलता हूं तो टेबल पर मेरी जगह होनी ही चाहिए। जो भी हो रहा है उसे स्वीकार करना या तो परिपक्व होने की निशानी है या आप खुद को बहुत दर्द में डाल रहे हैं। कारपोव के पास जीतने का अगर कोई मौका न हो तब भी वे मांग करते रहते हैं और मुख्य नायक की तरह व्यवहार करते हैं। मैं उस व्यवहार से भी ईर्ष्या करता हूं। फिर भी मैं स्थितियों से निपटने के अपने तरीके में सहज महसूस करता हूं।

आपका मानना है कि कंप्यूटर और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआइ) ने भौगोलिक महत्व को घटा दिया है, जो सोवियत-रूस और पूर्वी यूरोप के खिलाड़ियों के साथ खेल कर मिलता था, क्योंकि अब तो कोई भी शतरंज डेटा तक पहुंच सकता है। इसने शतरंज के खिलाड़ियों में अहंकार को भी कम किया है। आपको यह भी लगता है कि डेटा सर्फिंग उपलब्ध होने के बावजूद अक्सर आपको अपनी बुद्घि और लगातार उसमें सुधार करके खेलना पड़ता है। क्या एक दिन आएगा जब कंप्यूटर निर्धारित करेंगे कि शतरंज कैसे विकसित होगा? या वे पहले से ही ऐसा कर रहे हैं?

पहले से ही ऐसा हो रहा है। मैं किसी ऐसे को नहीं जानता जो अपने तरीके से विश्लेषण कर रहा है। नई चालें और विश्लेषण पहले से ही कंप्यूटर द्वारा संचालित हैं। लेकिन यह अभी भी कस्बों में शतरंज खेलने वालों की मदद करता है और इंसानों के साथ खेलने को प्रेरित करता है।  

आप भारत के पहले ग्रैंड मास्टर बने जिसने कई युवाओं को शतरंज के लिए प्रेरित किया। आज हमारे पास 6 ग्रैंड मास्टर हैं। सितंबर 2018 में आउटलुक से बातचीत में आपने कहा था कि भारत के कम से कम पांच भावी विश्व चैंपियन हैं। लेकिन हाल ही में प्रवीण ठिप्से ने कहा कि आपके बाद कोई भी भारतीय ग्रैंड मास्टर शीर्ष 20 रैंकिंग में पहुंचने में कामयाब नहीं रहा। भारत में आप किसमें चैंपियन बनने की संभावना देखते हैं?

आप मौजूदा युवा खिलाड़ियों पर नजर डालिए, उनके पास न केवल आगे जाने का वक्त है, बल्कि वे ग्रैंड मास्टर खिताब हासिल कर चुके हैं। यह उनकी प्रतिबद्धता दिखाता है। प्रज्ञानंदा, नीरव सरीन, गुकेश, रौनक सधवानी जैसी युवा प्रतिभाओं के पास काफी समय है। कुछ और भी हैं लेकिन मैं उन्हें कम रैंकिंग देता हूं। उनकी मजबूती के कारण नहीं बल्कि इसलिए कि वे अपनी उम्र के 20वें दशक में हैं और उनका समय घट रहा है। फिर, हरिकृष्ण शीर्ष 20 में थे और कई शीर्ष टूर्नामेंट खेल रहे हैं। विदित (संतोष गुजराती) और आदिपन भी अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। इन लोगों में जबर्दस्त गहराई है।

ग्रैंड मास्टर बनने के बाद भी आप मीडिया से बात करने में कतराते थे। लेकिन अरुणा के आने से आप बदल गए। आप अधिक मुखर और विनोदी स्वभाव के हो गए हैं। अब वे आपकी प्रबंधक हैं और आपके कार्यक्रम और अनुबंधों को तय करती हैं, आपके बैग पैक करती हैं। अरुणा ने आपके शतरंज को कितना बदला?

बहुत ज्यादा। अब मेरी क्षमताएं बढ़ गई हैं। मैं छोटी-मोटी बातों पर ध्यान भटकाए बगैर सिर्फ शतरंज खेल सकता हूं। कई महत्वपूर्ण साल में वे टीम का अभिन्न हिस्सा थीं।

आप किताब को मायूसी के एक मामूली नोट पर समाप्त करते हैं कि कैसे उम्र के 50वें दशक में आपको और गैलफेंड को लगता है कि कार्ल्सन, एरोनियन और नाकामुरा जैसे युवाओं को संभालना बहुत मुश्किल है। क्या यह केवल रैंकिंग की खोज में खेलने की खुशी के बारे में है, जो आप अाधिकारिक रूप से जब तक रिटायर नहीं हो जाएंगे तब तक कायम रहेगा? या आप अपने बेटे अखिल के साथ ज्यादा समय बिताना चाहेंगे, क्योंकि आप उसे बड़ा होते देखने का मौका छोड़ना नहीं चाहते?

कोई निराशा नहीं है। मैं केवल वास्तविकता के बारे में बात कर रहा हूं। मैंने अपना करिअर पूरा किया। आप अपने लक्ष्यों का लगातार मूल्यांकन करते रहते हैं। मैं जब परिवार के साथ होता हूं, शतरंज बीच में नहीं आता। दूसरी तरफ मैं कई बार लंबे समय के लिए गायब हो जाता हूं। लेकिन जब मैं खेलता हूं तो पूरी तरह खेलता हूं। मैं दोनों भूमिकाएं बखूबी निभाता हूं। पर, उम्र भी तो कुछ होती है जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता।

माइंड मास्टर : विनिंग लेसंस फ्रॉम ए चैंपियंस लाइफ
विश्वनाथन आनंद

प्रकाशक | हैशेता इंडिया

मूल्य: 599 रुपये | पृष्‍ठ: 286

 

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