कथक नृत्य में तेजी से उभरती निशा केसरी मशहूर नृत्यांगना और गुरु रानी खानम की शिष्या है। हाल ही में इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के सभागार में नृत्य की पहली दस्तक में ही वे थिरकते पावं से रंग भरती नजर आईं। देखने में लगा कि जिस शिद्दत और निष्ठा से गुरु ने उसे सिखाया उसी लगन और समर्पण से सीखा भी। परंपरागत नृत्य और अभिनय पक्ष दोनों की अच्छी तराश उनके नृत्य में दिखी। निशा ने नृत्य का आरंभ भगवान शिव की आराधना पर भक्ति भाव में डूबकर किया। शिव के असीम व्यक्तित्व में ही संसार के आदि और अन्त की बागडोर समाहित है, इस दार्शनिक अवधारणा को नृत्य के जरिए प्रदर्शित करने की भी अच्छी चेष्ठा निशा ने की। उसके उपरांत तीनताल में और ताल धमार में पिरोया पारंपरिक नृत्य के विविध प्रकार के चलनों को ओजस्वी ढंग से प्रस्तुत किया। नृत्य में कई तरह की बोल बंदिशों में उपज, ठाट, आमद, उठान, परन, तोड़े, तिहाई, थिरकती लय में लड़ी, खास लखनवी अंदाज में गत निकास में कई प्रकार की छवियों को उन्होंने मुक्त भाव में प्रस्तुत किया। उन्होंने आंचल की गत, शृंगारिक रूप में नवाब वाजिद अली शाह का गत निकास, हुस्न, सलामी और रुखसार की गत में अच्छा रंग था।
राग बसंत में रचना – “फगवा बृज देखन को चलो री” और राग बसंत बहार में 'कृति–केतकी गुलाब जूही’ की नजाकत भरे नृत्य और अभिनय भाव में प्रस्तुति सरस और दर्शनीय थी। बसंती मौसम में खिलते रंग-बिरंगे फूलों को देखकर बृजवासी खुशियों से झूम उठते हैं। शृंगारिक भाव से उद्वेलित गोपियां कृष्ण के साथ रास रचाती हैं। बसंत बहार पर कवि रसपूर्ण रचनाएं करते हैं। इस मौसम में गांव की छोरियां भी फूलों की सुगंध में मुग्ध होकर झूला झूलती हैं और इस ऋतु में होली के रंग में डूबकर अबीर और गुलाब से सखियों के साथ होली खेलती हैं। इस सुहावने दृश्य को नृत्य और अभिनय भाव से दर्शाने में निशा की मनोरम प्रस्तुति थी। उनके प्रभावशाली नृत्य को देखने से लगा कि उनमें एक कुशल और उज्ज्वल नृत्यांगना बनने की भरपूर संभावनाएं हैं। उनके नृत्य को गरिमा प्रदान करने में पढंत पर गुरु रानी खानम, गायन में सुहेब हसन, तबला पर अमान अली खां और सारंगी पर नासिर खां शामिल हुए।