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सांस्कृतिक विरासत को बचाने का संकल्प

कथक की सुपरचित कलाकार विदूषी शोभना नारायण भारत की सांस्कृतिक विरासत की अन्वेषी नृत्यांगना है।...
सांस्कृतिक विरासत को बचाने का संकल्प

कथक की सुपरचित कलाकार विदूषी शोभना नारायण भारत की सांस्कृतिक विरासत की अन्वेषी नृत्यांगना है। मानवतावाद से अभिप्रेत और हिन्दू, बौद्ध- सूफी, परंपराओं से अनुप्रणि विराट सांस्कृतिक धरोहर को शोभना अपनी कला में समेटकर उन्हें गहरी रचना शीलता से अपने नृत्य में उभारती है। आसावरी नृत्य अकादमी के जरिए शोभना ने इस सांस्कृतिक विरासत को नृत्य से सरंचित कर एक पूरा सौन्दर्य को रचा है। 

लखनऊ घराने के कथक से जुडी शोभना ने कथक के शिखर पुरूष पंडित बिरजू महाराज की छत्रछाया में नृत्य की गहरी तालीम हासिल की। एक प्रखर नृत्यांगना के रूप में उभरी शोभना ने देश-विदेश में अपने नृत्य का जलवा बखूबी बिखेरा। नई पीढ़ी को कथक से जोड़ने व प्रोत्साहित करने के लिए उन्होने आसावरी डांस अकादमी की स्थापना की। और बतौर गुरू छात्रो को प्रशिक्षा देना शुरू किया। गौरतलब है कि इस समय उनके शिष्य- शिष्याओं की एक लंबी कतार है। उनमें कई कुशल युवा नृत्य कलाकार तेजी से उभरे हैं। 

कथक के प्रचार- प्रसार और युवा कलाकारों को प्रोत्साहित करने के लिए आसावरी संस्था कई कार्यक्रमों का आयोजन करती हैं उनमें प्रमुख है ललिता अर्पण संगीत - नृत्य समारोह। हाल ही ज्योतिसना और शोभना नारायण द्वारा दो द्विवसीय यह समारोह इंडिया हेबिटेट सेंटर के स्टेन सभागार में संपन्न हुआ। मंगला चरण के रूप में कार्यक्रम का आरंभ अर्धनारिश्वर की प्रस्तुति से हुआ। परिकल्पना में आत्मा- परमात्मा यानि शिव- पार्वती के मिलन में एक दूसरे में विलीन होने पर एकाकार होने का गहरा दार्शनिक भाव है। 

अर्द्धनारीश्वर की संकल्पना को शोभना जी की शिष्या पल्लवी लोहानी और सुहेल भान ने एक बडी सीमा तक सार्थकता से प्रस्तुत किया। नृत्य और अभिनय में दोनो का अच्छा कौशल दिखा। जय शिवशंकर गायन की ध्वनि में साकार और निराकार का जो मावेशित चित्रसा था। उसके उपरांत पल्लवी ने तीनताल में  निबद्ध सोलो नृत्य में नृत्य के प्रकार भैरों परन 16 वीं सती की वृंदावन रासधारी पीपीलिका यति स्त्रोतावहा यति और लय में बंधी तिहाइंयों को शुद्धता और खूबसूरती से पेश किया। 

एकल नृत्य में सुहैल भान ने गणपति श्लोक, संत कवि स्वाति तिरूनाल द्वारा रचित पदम पानिमती मुखी बाल को गायन के आधार पर सरसता से प्रस्तुत किया। आखिर में पल्लवीं और सुहैल ने राग धनाश्रि में  निबद्ध तराना और तिल्लाना को एक लय में  बांधकर सुन्दरता से प्रस्तुत किया। समारोह के दूसरे दिन मेघा नायर की मोहिनी अट्टम और विश्वनाथ मंगराज की ओडिसी में एकल और जुगलबंदी में प्रस्तुति रोमांचक और दर्शनीय थी। कवित कृष्णा कन्हैया को ही कहत तुम सरस प्रस्तुति से आरंभ होने के बाद मशहूर मोहिनी अट्टम नृत्यांगना और भारती शिवा जी गुरू की शिष्या मेघा नायर के सोलो नृत्य में लास्य प्रधान मोहिनी अट्टम की मनोरम झलकियां नजर आई। 

राग सुरत में निबद्ध पारंपरिक मुख चालम की प्रस्तुत में नृत्य और अभिनय का सुन्दर समन्वय था। संत कवि जयदेव के गतिगोविंद में अष्टपदी से उद्धत प्रसंग कृष्णा के प्रेम में आसक्ति नायिका के मनोभावों का संचारी भाव में  प्रस्तुति रोचक थी। ओडिसी नृत्य में पुरूष नर्तक यदाकदा ही हैं। लेकिन प्रतिभा का धनी विश्वनाथ भंगराज ने नृत्य और अभिनय में जो रंग बिखेरा वह बहुत ही लुभावना और मर्मस्पर्शी था। 

राग किरवानी में निबद्ध अमूर्त नृत्य पल्लवी की प्रस्तुति ताल-लय में पूरी तरह गठित थी। नाच में अंगसंचालन चैक,त्रिभंगी और पद संचालन में गजब की तराश थी। राग पहाड़ी में गुरू केलुचरसा महापात्र की नृत्य सरंचना और भुवनेश्वर मिश्र के संगीत में संयोजित अष्टपदी से उद्धर्त प्रसंग याही माधव याही केशवे की रोमांचकारी प्रस्तुति में वे भावपूर्ण नयनों में जो रस भर रहे थे। वह देखने लायक था। आखिर में मेघा और विश्वनाथ द्वारा मोझ की प्रस्तुति भी मोहक थी।

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