एक वक्त ऐसा भी था, जब युवा पीढी में परंपरागत समृद्धशाली संगीत-नृत्य के प्रति कोई सम्मान नही था। वे भारतीय कला के प्रति पूरी तरह उदासीन दिख रहे थे। लेकिन जब पूरी दुनिया में सामाजिक आर्थिक और कला संस्कृति का आदान-प्रदान शुरू हुआ तो भारतीय संगीत-नृत्य ने विदेशियों को बहुत प्रभावित किया। उसे देखकर हमारे देश के युवा भी बहुत आकर्षित और रोमांचित हुए और तेजी से इन कलाओं को समझने और सीखने की ओर बढने लगे। आज इन कलाओं के क्षेत्र में स्थिति बहुत उत्साहजनक है। इस समय एक से बढ़कर एक युवा प्रतिभाएं संगीत और नृत्य में उभरती दिख रही हैं। उनमें भरतनाटयम नृत्य में चमकती नई दस्तक प्रिशा मेहतानी हैं। भरतनाटयम की प्रतिष्ठित गुरु विदूषी प्रिया वेंकटरमण की इस होनहार शिष्या ने गुरु की क्षत्रछाया में जिस निष्ठा और लगन से भरतनाटयम नृत्य के हर पक्ष को पूर्णता से सीखा और किशोरावस्था में कुशल नृत्यांगना के रूप में स्थापित किया, वह वाकई में काबिलेतारीफ है।
हाल में नई दिल्ली के त्रिवेणी कला संगम के सभागार में इस युवा नृत्यांगना का मंच पर प्रवेश हुआ। नृत्य अदायिगी में उसका अंग संचालन मुद्राएं, लयात्मक गति में पद संचालन आदि में खासी तराश है। भरतनाट्यम में मुख्य और महत्वपूर्ण प्रस्तुति वरनम है। उसे प्रस्तुत करने में युवा कलाकार की प्रतिभा की परख होती है। वरनम संरचना में ताल, संगीत और अभिनय के बीच बहुत बारीक सामंजस्य होता है। प्रस्तुति में उसे शुद्धता से पेश करने में कडी साधना करनी होती है। यह बडी बात है कि इस उम्र में प्रिशा ने जिस परिपूर्णता से वरनम को प्रस्तुत किया, वह देखने लायक था। तोडी रागम और आदि ताल में निबद्ध वरनम - भगवान शिव के प्रेम में आसक्त नायिका की कथा है। उसके अभिनय में स्थायी कम, संचारी भाव ज्यादा था। शिव के सौन्दर्य और अपने प्रेम भक्ति का इजहार करते हुए नायिका याचना करती है कि आप मुझ पर क्रोध और मेरी उपेक्षा मत करना, क्योंकि मैं तुम्हारे लिए पूरी तरह से समर्पित हूं। आपके ही कृपा से मेरे कष्टों का निवारण हुआ, आपका असीम व्यक्तित्व बहुत आकर्षक और अलौकिक है। उसे इस युवा नृत्यांगना ने बडे चाव और चैनदारी में सरसता से प्रस्तुत किया।
उसने पारंपरिक नृत्य में आरंभ पुष्पांजलि की प्रस्तुति से किया। भगवान को पुष्प अर्पित करके उनकी अराधना में यह भक्ति भाव में प्रस्तुति थी। उसके उपरांत प्रिशा ने शुद्ध अमूर्त नृत जतिस्वरम को प्रस्तुत किया। इसके एक निश्चित दायरे में अठुव और हस्तकों की बनावट होती है। संगीत के स्वरों के आधार पर विविध चलनों में जतियों की निकास होती है। इसमें अठुव और नृतहस्थ का बारीक मेल रहता है। उसी आधार पर नृत्यांगना ने ताल स्वर और लय में बांधकर जतिस्वरम को प्रस्तुत किया। अभिनय के क्षेत्र में भी प्रिशा ने अपनी प्रस्तुति से प्रभावित किया। मोहनारागम में निबद्ध रचना आदिनाय कान्हा रचना में वृंदावन में भगवान कृष्ण के अलौकिक और सरस नृत्य का वर्णन है। उसे नृत्यांगना ने नृत्य और अभिनय मंे भावविभोर होकर तन्मयता से प्रस्तुत किया। इस नवरात्रि के अवसर कामक्षी देवी की उपासना में प्रस्तुति भक्तिभाव से प्रेरित थी। आखिर में परंपरागत थिल्लाना में विविध प्रकार की लयात्मक गति में प्रस्तुति भी दर्शनीय और रोमांचक थी। नृत्य प्रस्तुति को गरिमा प्रदान करने में गायन पर वेंकटस्वरम कुप्पू स्वामी, मृदगंम पर मनोहर बालचन्द्रन, घटमवादन में वरुण राजशेखरन और वायलिन में राघवेन्द्र प्रसाद उपस्थित थे।