अमृतसर हवाई अड्डे पर 104 अवैध आप्रवासियों को लेकर उतरा अमेरिकी सेना का विशेष विमान टूटे सपनों और धोखेबाज इमिग्रेशन एजेंटों के हाथों लुटे लोगों की ऐसी कई दर्दनाक कहानियां साथ लेकर आया है, जो अपना सब कुछ दांव पर लगाकर डॉलर कमाने की चाह में अमेरिका गए थे। हरियाणा के करनाल जिले के नीलोखेड़ी के रहने वाले 26 वर्षीय संदीप सिंह ने अमेरिका जाने के लिए एक दलाल को 50 लाख रुपये दिए थे। संदीप के पिता ने अपनी आधी जमीन बेच दी और मां ने अपने गहने गिरवी रख दिए थे। संदीप को यकीन था कि अमेरिका में एक अच्छी नौकरी मिलने पर वह अपने परिवार की आर्थिक हालत सुधार सकेगा, लेकिन जैसे ही वह अमेरिका पहुंचा उसे इमिग्रेशन अधिकारियों ने हिरासत में ले लिया। डेढ़ महीने तक डिटेंशन सेंटर में रहने के बाद उसे हथकड़ियों और बेड़ियों में जकड़ कर भारत भेज दिया गया।
आंखों में सुनहरे सपने संजोये अमेरिका गए संदीप जैसे कई युवाओं ने शायद कभी सोचा भी नहीं होगा कि अमेरिकी डॉलर की चमक में अपना सब कुछ दांव पर लगाने वाले ये लोग एक आतंकी की तरह हथकड़ियों और बेड़ियों में जकड़े अपने देश लौटेंगे। इस पर संसद से सड़कों तक हंगामा बरपा, लेकिन लुटे हुए परिवारों को राहत सियासी बहस से नहीं मिलने वाली। अब आगे क्या, यह सवाल कई प्रभावित परिवार उठा रहे हैं।
पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने इस मसले पर केंद्र और हरियाणा सरकार को घेरा है, “हथकड़ियां और बेड़ियां लगा कर हमारे लोगों को भेजना हमारे देश के लिए बहुत शर्म की बात है।’’ मानसिक और आर्थिक रूप से टूट कर अमेरिका से डिपोर्ट होकर आए भारतीयों के जख्मों पर केंद्र और हरियाणा की डबल इंजन सरकार ने मरहम लगाने का कोई कोशिश नहीं की। कैदी ढोने वाली बस में लोगों को अमृतसर से लाकर दो दिन हरियाणा पुलिस ने थानों में रखा। विदेश मंत्री जयशंकर ने अवैध प्रवासियों को हथकड़ियों और बेड़ियों में जकड़ना अमेरिका की नीति बताकर उसका समर्थन किया है जबकि अक्टूबर 2024 में भी अवैध आप्रवासियों को चार्टर्ड विमान से वापस भेजते वक्त अमेरिका ने ऐसा सुलूक नहीं किया था।”
अमेरिका से लौटाए गए 104 अवैध आप्रवासियों में 96 पंजाब, हरियाणा और गुजरात के, तीन-तीन उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के तथा दो चंडीगढ़ के हैं। हरियाणा के 33 लोगों में से 11 कैथल जिले के हैं। विदेश में जाकर सुनहरे भविष्य की उम्मीद में इन युवाओं के परिजनों ने अपनी जिंदगी की जमा-पूंजी, जमीन-जायदाद सब कुछ दांव पर लगा दिया था। कई परिवारों ने साहूकारों से मोटे ब्याज पर भारी कर्ज लेकर तो कई माओं ने अपने गहने बेचकर बच्चों को अमेरिका भेजा ताकि वहां की कमाई से घर के हालात सुधर सकें। लेकिन अवैध इमिग्रेशन एजेंटों के हाथों ‘डंकी रूट’ का शिकार हुए इन परिवारों के पास अब पछतावे के अलावा कुछ भी नहीं बचा है। इन्हीं की तरह हजारों और भारतीय अमेरिकी डिटेंशन सेंटरों में कैद अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं।
डंकी रूट यानी अवैध ढंग से अमेरिका जाने वालों के बारे में बजाज ट्रैवलर्स कंपनी के बीआर बजाज का कहना है, “भारत से 13,500 किलोमीटर दूर अमेरिका की हवाई यात्रा करीब 20 घंटे में पूरी होती है जबकि अवैध काम करने वाले एजेंट लोगों को सीधे अमेरिका भेजने के बजाय इक्वेडर, बोलीविया और गुयाना जैसे देशों के रास्ते भेजते हैं क्योंकि इन देशों में भारतीयों को वीजा ‘ऑन अराइवल’ मिल जाता है। ब्राजील और वेनेजुएला समेत कुछ अन्य देशों में भी भारतीयों को आसानी से टूरिस्ट वीजा दे दिया जाता है। यहां से डंकी रूट से वे कोलंबिया पहुंचते हैं। कई लोग दुबई के रास्ते लैटिन अमेरिकी देश जाते हैं। इसमें उन्हें महीनों कंटेनरों में रहना पड़ता है।”
अवैध इमिग्रेशन एजेंटों पर शिकंजा कसते हुए हरियाणा पुलिस ने तीन एजेंटों पर मामला दर्ज किया है। जांच में पता चला कि हाल ही में अमेरिका से डिपोर्ट होकर भारत वापस आए हरियाणा के 33 लोगों से एजेंटों ने करीब 15 करोड़ रुपये ठगे। अवैध मानव तस्करी में शामिल लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई के लिए पंजाब के पुलिस महानिदेशक गौरव यादव ने चार सदस्यीय जांच कमेटी बनाई है।
अमेरिका में अवैध इमिग्रेशन के खिलाफ सख्त कार्रवाई जारी है। डोनाल्ड ट्रंप के 21 जनवरी को राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद इस मुद्दे पर सख्त रुख अपनाते हुए अवैध रूप से रह रहे लोगों को निष्कासित करने में तेजी दिखाई है। ट्रंप के सत्ता संभालने के बाद 25 हजार से ज्यादा अवैध प्रवासियों को हिरासत में लिया गया। हाल ही में हुए छापों में 1700 भारतीय हिरासत में लिए गए हैं जबकि 18,000 भारतीयों को वापस भेजने की योजना बनाई जा रही है।
अमेरिका के प्यू रिसर्च सेंटर के मुताबिक, “अमेरिका में सात लाख 25 हजार से ज्यादा अवैध आप्रवासी भारतीय रहते हैं। इमिग्रेशन एंड कस्टम एनफोर्समेंट ने नवंबर 2024 में बताया था कि अब तक बिना वैध दस्तावेज वाले 20,407 भारतीयों को चिह्नित किया है। इनमें से 2,467 भारतीय इमिग्रेशन एंड कस्टम एनफोर्समेंट के डिटेंशन सेंटरों में कैद थे। इसके अलावा 17,940 भारतीय ऐसे हैं जिन्हें गिरफ्तार नहीं किया गया है, लेकिन उनके पैरों में डिजिटल ट्रैकर लगाए गए हैं। इमिग्रेशन एंड कस्टम एनफोर्समेंट इनकी लोकेशन चौबीसों घंटे ट्रैक करती है।” अमेरिकी डिटेंशन केंद्रों में क्षमता के मुकाबले अधिक लोग बंद हैं। इन केंद्रों की कुल क्षमता 38,521 के मुकाबले 42 हजार अवैध आप्रवासी इनमें कैद हैं।
विदेश मंत्रालय के मुताबिक अमेरिका ने 487 अवैध आप्रवासी भारतीयों को भारत भेजने के लिए चिह्नित किया है। इनमें से 298 लोगों के बारे में जानकारी दी गई है। विदेश सचिव विक्रम मिस्री के मुताबिक, “इस बात का खयाल रखा जाएगा कि भारतीयों को भेजते वक्त कोई दुर्व्यवहार नहीं हो। ऐसा कोई भी मामला हमारे सामने आएगा तो हम उसे अमेरिका के सामने उठाएंगे। भारतीयों को 4 फरवरी को भारत भेजते वक्त उनके साथ दुर्व्यवहार के मुद्दे को हमने अमेरिकी अधिकारियों के सामने उठाया है।”
इस मसले पर हरियाणा के कैबिनेट मंत्री अनिल विज ने अपनी ही पार्टी की केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए आउटलुक से कहा, ‘‘अगर कोई गैर-कानूनी तरीके से किसी भी देश में जाता है, तो उसे वहां से निकालने का पूरा हक है। भारत को भी अमेरिका से सबक लेते हुए अपने देश में अवैध रूप से रह रहे लाखों बांग्लादेशी, रोहिंग्या लोगों पर सख्ती करनी चाहिए।”
अमेरिका से लौटाए गए अवैध प्रवासियों के सामने पहली चुनौती रोजगार है, दूसरा उनके परिवार कर्ज के बोझ तले दबे हुए हैं। इमिग्रेशन मामलों में तीन दशक से भी अधिक समय तक काम कर चुके ब्यूरो ऑफ इमिग्रेशन के पूर्व कमिश्नर केके शर्मा का कहना है कि अमेरिकी वीजा नीति के तहत इन 104 भारतीयों को भविष्य में वैध दस्तावेज पर भी अमेरिका, कनाडा, न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन समेत 20 अन्य देशों में जाने की अनुमति नहीं मिलेगी क्योंकि ये 20 देश अमेरिका की वीजा नीति का अनुसरण करते हैं। यह उन युवाओं के लिए चेतावनी है जो बिना सोचे-समझे अवैध इमिग्रेशन का रास्ता अपनाने की योजना बना रहे हैं। सरकार को इन युवाओं के पुनर्वास के लिए विशेष योजनाएं बनानी चाहिए। पंजाब और हरियाणा सरकार को चाहिए कि वे इन लोगों को कौशल विकास कार्यक्रमों से जोड़ें ताकि वे अपने देश में ही रोजगार पा सकें।”
पंजाब के लोगः अमृतसर में राज्य के एनआरआइ मंत्री (बीच में) के साथ लौटे युवा
पंजाब एनआरआइ सभा की अध्यक्ष परविंद्र कौर बंगा ने आउटलुक से बातचीत में कहा, “अवैध इमिग्रेशन एजेंट की सूची पंजाब सरकार द्वारा सावर्जनिक की जानी चाहिए। बिहार सरकार 200 से अधिक इमिग्रेशन एजेंटों को रेगुलेटरी फ्रेमवर्क के तहत लेकर आई है। पंजाब सरकार को अपने टूर ऑपरेटर्स एंड ट्रैवल एजेंट्स रेगुलेशन एक्ट 2022 को संशोधित करना चाहिए जिसके तहत प्रत्येक पंजीकृत एजेंट को जिला स्तरीय प्रशासन को विदेश जाने वाले लोगों की जानकारी देना अनिवार्य हो।”
अमेरिका से हाल में निर्वासित किए गए 104 भारतीयों की कहानी सिर्फ उनके परिवारों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह अवैध इमिग्रेशन एजेंटों के झांसे में आने वालों के लिए सीख है। खुशहाल जीवन के लिए विदेश में नौकरी या बसना सपना हो सकता है, लेकिन अवैध तरीके अपनाना घातक साबित हो सकता है। अवैध इमिग्रेशन एजेंटों पर कड़ा शिकंजा कसना जरूरी है ताकि भविष्य में किसी युवा के सपनों से कोई जालसाज खिलवाड़ न कर सके।
संसद में ‘अमानवीय’ बर्ताव का विरोध
जंजीरों के खिलाफः संसद परिसर में अमेरिका के दुर्व्यवहार के विरोध में विपक्ष का प्रदर्शन
अमेरिका से हथकड़ियों और बेड़ियों में जकड़ कर हवाई जहाज से भारत लौटाए गए अवैध आप्रवासियों के मसले पर संसद में ठीकठाक बवाल मचा। विपक्ष के नेताओं ने इस अपमानजनक तरीके से भारतीयों को वापस देश भेजे जाने पर अमेरिका और केंद्र की भाजपा सरकार की चुप्पी को आड़े हाथों लिया और राज्यसभा से वॉकआउट कर गए। बाद में विदेश मंत्री जयशंकर ने जब अमेरिका की इस कार्रवाई का बचाव करते हुए बयान दे दिया कि यह तो स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर है, जो केवल भारत पर नहीं बल्कि बाकी देशों के मामले में भी लागू है और अंतरराष्ट्रीय संबंधों में एक स्वीकार्य नीति है, तो इस बात से विपक्ष और भड़क गया।
पंजाब में आप्रवासियों से भरा विमान उतरने के एक दिन बाद संसद में कांग्रेस के राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव जैसे विपक्षी नेता संसद के बाहर इकट्ठा हो गए। सबने हथकड़ियां पहन रखी थीं और अपने हाथ में प्लेकार्ड लिए हुए थे जिन पर लिखा था ‘‘ह्यूमन्स, नॉट प्रिजनर्स।’’ विपक्ष की बुनियादी शिकायत यह है कि आप्रवासियों को जंजीरों में अपराधी की तरह जकड़ कर क्यों वापस भेजा गया और उसके लिए सेना के विमान का इस्तेमाल क्यों किया गया।
विरोध प्रदर्शन के दिन दोपहर तक लोकसभा और राज्यसभा की कार्रवाई स्थगित रखनी पड़ी। कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, तृणमूल, आम आदमी पार्टी और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने रूल 267 के अंतर्गत स्थगन का नोटिस दिया था। इन नोटिसों को खारिज कर दिया गया जिसके बाद सदन में बवाल देखने को मिला। राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने विपक्षी सांसदों के बयानों को रिकॉर्ड पर लेने से इनकार कर दिया। ये सांसद आप्रवासियों के मुद्दे पर बहस चाह रहे थे। उधर लोकसभा में स्पीकर ओम बिड़ला ने सांसदों को यह कहकर शांत करवाने का प्रयास किया कि जो कुछ हुआ है वह अमेरिकी विदेश नीति के अंतर्गत है। एक स्वतंत्र नोटिस में कांग्रेस नेता मणिक्कम टैगोर ने विदेश मंत्री से बयान की मांग कर डाली, जिसके बाद जयशंकर का बयान आया है।
यातना उनकी जुबानी
दलेर सिंह, सलेमपुर, लुधियाना
दलेर सिंह ने आउटलुक को बताया, “अमेरिका की एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में नौकरी की गारंटी के भरोसे मैंने लुधियाना के इमिग्रेशन एजेंट सतनाम को 60 लाख रुपये, अपना प्लॉट और पत्नी के गहने गिरवी रखकर दिए। 15 अगस्त 2024 को मैं अमेरिका के लिए घर से निकला, लेकिन पहले दुबई ले जाया गया और दुबई से सतनाम के जानकार एक एजेंट ने मुझे ब्राजील पहुंचाया। ब्राजील में दो महीने तक यह कह कर रोका गया कि अमेरिका में चुनाव के बाद ही एंट्री होगी, अभी वीजा रुका हुआ है। मेरे बार-बार जोर डालने के बाद दुबई का एजेंट जिसे मैं पहले से नहीं जानता था, सतनाम के कहने पर मुझे अमेरिका भेजने के लिए तैयार हुआ पर अमेरिका के बजाय पनामा के जंगलों में मुझे एक ग्रुप में शामिल कर दिया गया, जो अमेरिका जाने के लिए तैयार था। ग्रुप में 11 लोग थे जिनमें कुछ नेपाली परिवार भी थे। जंगल पार कराने के लिए हमारे साथ पनामा का एक स्थानीय नागरिक था जिसे हम डोंकर कहकर बुलाते थे। पनामा के 20 किलोमीटर के खतरनाक घने जंगल को हमने चार दिन में पार किया। रास्ते में कई लोगों की लाशें और कंकाल देखे जो शायद उसी रास्ते से कभी अमेरिका के लिए निकले होंगे। पनामा के जंगल को पार करने के बाद हम 14 जनवरी को मैक्सिको पहुंचे और वहां से अमेरिका के तेजवाना बॉर्डर की ओर बढ़ रहे थे कि 15 जनवरी की सुबह बॉर्डर पर पैट्रोलिंग पुलिस ने पूरे ग्रुप को गिरफ्तार कर लिया। 18 दिन तक बॉर्डर से 20 किलोमीटर दूर एक डिटेंशन सेंटर में कैद रखा गया जहां एक कमरे में 10 लोग थे।”
मुस्कान, जगराओं, लुधियाना
मुस्कान को अमेरिकी सैनिकों ने अमेरिका-मैक्सिको बॉर्डर के पास पकड़ लिया। जगराओं में ढाबा चलाने वाले मुस्कान के पिता जगदीश कुमार ने 45 लाख रुपये खर्च करके मुस्कान को 5 जनवरी 2024 को तीन साल के लिए इंग्लैंड में पढ़ने के लिए भेजा था। मुस्कान के मुताबिक, “मुझे अमेरिका की सेना ने गलती से पकड़ कर डिपोर्ट किया है। मैं तो बीते एक साल से इंग्लैंड की सीयू यूनिवर्सिटी में बिजनेस मैनेजमेंट की पढ़ाई कर रही थी और जब कुछ समय बचता तो होटल में पार्टटाइम काम करती। अभी मेरा इंग्लैंड का दो साल का वीजा बाकी है। मैं 25 जनवरी को इंग्लैंड से मैक्सिको के तिजुआना घूमने गई थी पर वहां बॉर्डर पर अमेरिकी सैनिकों ने 40 लोगों के साथ मुझे भी पकड़ लिया। मेरे लाख कहने पर कि मैंने अमेरिका में प्रवेश नहीं किया है, मेरे पास इंग्लैंड का तीन साल का वीजा है, अमेरिकी सैनिकों ने मेरी बात नहीं सुनी और बाकी लोगों के साथ मेरे भी हाथ बांधकर सैनिक छावनी में ले गए। दस दिनों तक हमें छावनी में बंधक रखा गया, जहां खाने-पीने और साफ-सफाई का प्रबंध ठीक था पर कड़ाके की सर्दी में भी हमें सोने के वक्त ओढ़ने के लिए गर्म कपड़े नहीं दिए गए।”
मनप्रीत सिंह, नवांशहर, पंजाब
27 वर्षीय मनप्रीत सिंह ने 60 लाख रुपये खर्च कर डंकी रूट के जरिये अमेरिका में घुसने की कोशिश की। जब वह अमेरिका पहुंचा, तो उसे टक्सन, एरिजोना में अमेरिकी बॉर्डर पैट्रोल पुलिस ने पकड़ लिया। उसे कई दिनों तक हिरासत में अमानवीय परिस्थितियों में रखा गया। 4 फरवरी की शाम टेक्सस के सेंट एंटोनियो एयरपोर्ट पर अमेरिकी सैन्यकर्मियों ने जब उसे जहाज पर चढ़ाया तो उसे व उसके साथ के सभी भारतीयों को इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी कि उन्हें कहां ले जाया जा रहा है। उनके साथ 19 महिलाएं समेत तीन बच्चे भी थे। चालीस घंटे का सफर इन लोगों ने हाथों में हथकड़ी व पैरों में बेड़ियां पहने तय किया। नवांशहर लौटे मनप्रीत ने बताया, “अमेरिका जैसे नरक में जाना मेरे जीवन की सबसे बड़ी गलती थी। रोटी तो अपने देश में भी थी। अब यहीं खेतों में मेहनत करूंगा।”
परमजीत सिंह, हैबतपुर, नीलोखड़ी
45 वर्षीय परमजीत सिंह ने एक करोड़ रुपये देकर 20 जनवरी को अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ डंकी रूट से अमेरिका में प्रवेश किया था जहां पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर के कैंप में भेज दिया। उसे कैंप से ही डिपोर्ट कर दिया गया। बेहद संगठित तरीके से काम करने वाले अवैध इमिग्रेशन एजेंट भोले-भाले युवाओं को अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और यूरोप के सपने दिखाकर लाखों रुपये ऐंठ लेते हैं। अधिकतर मामलों में ये दलाल ‘डंकी’ रूट का इस्तेमाल करते हैं, जिसमें मैक्सिको बॉर्डर के जरिये अमेरिका में प्रवेश कराया जाता है।
विक्रम सिंह, करनाल
एजेंट को 70 लाख रुपये देने वाले करनाल के 22 वर्षीय विक्रम सिंह से एजेंट ने वादा किया था कि उसे तीन महीने के भीतर अमेरिका के एक वेयरहाउस में सुपरवाइजर की नौकरी मिल जाएगी। विक्रम को डंकी रूट में दुबई, इक्वेडर, कोलंबिया, पनामा, होंडुरास और मैक्सिको के रास्ते से अमेरिका भेजा गया। इस खतरनाक यात्रा के दौरान उसे जंगलों, पहाड़ों और नदियों के पार ले जाया गया, उसे कई बार लूटपाट और मारपीट का सामना करना पड़ा। जब वह अमेरिका पहुंचा, तो बॉर्डर पैट्रोल पुलिस ने पकड़ कर उसे तुरंत डिपोर्ट कर दिया। विक्रम की मां ने कहा, “हमने अपनी जिंदगी भर की जमा पूंजी के साथ आढ़ती से लिया कर्ज भी खो दिया। अब हम इस कर्ज को कैसे चुकाएंगे यह हमें नहीं पता।”
गुरप्रीत सिंह, कैथल, हरियाणा
गुरप्रीत सिंह को भी अमेरिका जाने का सपना पूरा करने के लिए 45 लाख रुपये खर्च करने पड़े। गुरप्रीत के माता-पिता ने बेटे को विदेश भेजने के लिए अपनी पुश्तैनी जमीन बेच दी थी। अमेरिका में गुरप्रीत को ट्रक ड्राइवर की नौकरी दिलाने का वादा किया गया था, लेकिन 20 दिनों तक डिटेंशन सेंटर में रहने के बाद उसे भारत भेज दिया गया।
प्रत्यर्पण की प्रक्रिया कोई नई नहीं है, कई साल से जारी है। अंतरराष्ट्रीय संबंधों में यह सभी देशों पर लागू स्वीकार्य नीति है।
एस. जयशंकर, विदेश मंत्री, भारत सरकार
भारत को भी अमेरिका से सबक लेते हुए अपने देश में अवैध रूप से रह रहे लाखों बांग्लादेशी, रोहिंग्या लोगों पर सख्ती करनी चाहिए।
अनिल विज, हरियाणा के कैबिनेट मंत्री
भारतीयों के जख्मों पर मरहम लगाने के बजाय केंद्र और हरियाणा की डबल इंजन सरकार ने उन्हें प्रताड़ित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।
भगवंत मान, पंजाब के मुख्यमंत्री