सबके दिमाग में एक फिल्म चल रही है और सब अपनी फिल्म में हीरो है- गैंग्स ऑफ वासेपुर के रामाधीर सिंह का यह डायलॉग इंसानी सभ्यता का ऐसा सच है जिसे नीत्शे के सुपरमैन से लेकर भारतीय दर्शन में ब्रह्म की अवधारणा तक तलाशा और पाया जा सकता है। नायक या हीरो बनने के इंसानी सपने को भारत में हिंदी सिनेमा ने जितना पोषित किया है उतना किसी और विधा ने नहीं किया। नायकों के बिना न समाज का गुजारा है, न फिल्मों का
पृथ्वीराज कपूर (1906 –1972)
शुरुआती दौर के दिग्गज अभिनेता। मुग़ल-ए-आजम में बादशाह अकबर का किरदार निभाकर अमर हो गए। नाटकों में भी बराबर का दखल। पृथ्वी थिएटर की स्थापना की, जो आज तक मौजूद है।
मोतीलाल (1910–1965)
स्वाभाविक अभिनेता की पहचान। अनाड़ी, देवदास, परख, पैगाम, जागते रहो, लीडर करियर की महत्वपूर्ण फिल्में रहीं। मुंबई नौकरी की खोज में आए थे।
बलराज साहनी (1913–1973)
1939 में बीबीसी लंदन की हिंदी सेवा में गए। भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) से जुड़े। दो बीघा जमीन से पहचान बनी। काबुलीवाला, वक्त, अनुराधा, हकीकत, गर्म हवा महत्वपूर्ण फिल्में रहीं। लेखन से भी गहरा लगाव था।
अशोक कुमार (1911– 2001)
दादामुनि के नाम से मशहूर। नौकरी के दौरान इत्तेफाक से जीवन नैया में देविका रानी के साथ काम करने का मौका मिला। चलती का नाम गाड़ी, महल, पाकीजा, छोटी-सी बात, हावड़ा ब्रिज, किस्मत, परिणीता कामयाब फिल्में रहीं।
देव आनंद (1923–2011)
‘सदाबहार अभिनेता।’ सीआइडी, काला बाजार, जॉनी मेरा नाम, गैंबलर, प्रेम पुजारी, हरे राम हरे कृष्ण से जनमानस के दिलों में उतर गए। लड़कियां उनकी मुस्कान की कायल थीं। गाइड करियर की श्रेष्ठ फिल्म साबित हुई।
राज कुमार (1926–1996)
1952 में रंगीली से फिल्मी दुनिया में कदम रखा। मदर इंडिया से पहचान मिली। पैगाम, नीलकमल, हमराज, तिरंगा, वक्त, दिल एक मंदिर, हीर रांझा, कुदरत, सौदागर महत्वपूर्ण फिल्में रहीं।
राज कपूर (1924–1988)
शोमैन के नाम से मशहूर। सादगी और भोलेपन से भरा अभिनय मन मोह लेता था। हिंदी सिनेमा में खूब प्रयोग किए। आर्थिक असमानता से लेकर विधवा विवाह और स्त्री शिक्षा जैसे मुद्दे फिल्म के माध्यम से उठाए। श्री 420, जागते रहो, आवारा, अनाड़ी, तीसरी कसम में अभिनय की ऐसी छाप छोड़ी कि दर्शक उनकी ये भूमिकाएं आज भी शिद्दत से याद करते हैं।
दिलीप कुमार (1922 – 2021)
मेथड एक्टिंग के जनक। मधुमती, मुगल-ए-आजम, नया दौर, राम और श्याम से उन्होंने अदाकारी के रंग दिखाए। देवदास की भूमिका के बाद ‘ट्रेजेडी किंग’ खिताब मिला। शानदार अभिनय के लिए आठ बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्म फेयर पुरस्कार मिला।
मनोज कुमार (1937)
भारत कुमार के नाम से मशहूर। देशभक्ति की फिल्मों के माध्यम से अलहदा पहचान बनाई। शहीद, उपकार, पूरब और पश्चिम, क्रांति, रोटी कपड़ा और मकान, हिमालय की गोद में, पत्थर के सनम करियर की महत्वपूर्ण और कामयाब फिल्में रहीं।
अमिताभ बच्चन (1942)
12 फ्लॉप फिल्मों के बाद जंजीर मिली। एंग्री यंग मैन नामकरण हुआ। उस समय महानायक बनकर उभरे जब राजेश खन्ना का वर्चस्व था। दीवार, शोले, अमर अकबर एंथनी, कालिया, त्रिशूल, शक्ति, मुकद्दर का सिकंदर जैसी फिल्मों ने सिंहासन पर बैठाया।
राजेन्द्र कुमार (1929–1999)
जुबली कुमार के नाम से मशहूर हुए क्योंकि अधिकतर फिल्में 25 हफ्ते तक सिनेमाघरों में कारोबार करती थीं। संगम, सूरज, मेरे महबूब, दिल एक मन्दिर में बेहतरीन अभिनय किया। मदर इंडिया मील का पत्थर साबित हुई।
शम्मी कपूर (1931-2011)
मदमस्त, अल्हड़ अंदाज और बिजली सी ऊर्जा पहचान थी। जंगली, कश्मीर की कली, दिल देके देखो, अंदाज, तुम सा नहीं देखा, विधाता, ब्रह्मचारी से खूब नाम कमाया। ब्रह्मचारी के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्म फेयर पुरस्कार। हिंदी फिल्मों में नायक के डांस का ट्रेंड शुरू किया।
सुनील दत्त (1929- 2005)
मदर इंडिया में बिरजू के किरदार ने शोहरत की बुलंदियों पर पहुंचा दिया। सुजाता, हमराज, मेरा साया, पड़ोसन, खानदान, गुमराह से अभिनय से लोहा मनवाया। मनमोहन सिंह सरकार में केंद्रीय मंत्री भी रहे।
संजीव कुमार (1938–1985)
अभिनय में विविधता, गहराई देखनी हो, तो बस यही नाम दिखाई देता है। आंधी, मौसम, कोशिश, शोले, त्रिशूल, खिलौना जैसी फिल्मों को अभिनय से अमर बना दिया। शोले के ठाकुर के रूप में आज भी याद किए जाते हैं।
शशि कपूर (1938–2017)
धर्मपुत्र से शुरुआत की। राखी, जीनत अमान और शर्मिला टैगोर के साथ जोड़ी बनाई। शर्मीली, दीवार, सत्यम शिवम सुंदरम, रोटी कपड़ा और मकान, चोर मचाए शोर, कभी कभी, आ गले लग जा, जब जब फूल खिले सुपरहिट फिल्में दीं। रंगमंच से भी बेहद लगाव था। पृथ्वी थिएटर का काम खुद संभालते थे। अमिताभ बच्चन के साथ कई सुपरहिट फिल्में दीं।
फारूख शेख (1948–2013)
साथ साथ, उमराव जान, कथा, बाजार, चश्मेबद्दूर, शतरंज के खिलाड़ी, नूरी महत्वपूर्ण फिल्में रहीं। दीप्ति नवल के साथ उनकी जोड़ी खूब पसंद की गई।
शत्रुघ्न सिन्हा (1946)
परंपरागत तरीके से भिन्न एक्टिंग करते थे। दोस्ताना, शान, नसीब, रामपुर का लक्ष्मण, बनफूल, प्यार ही प्यार, आ गले लग जा जैसी फिल्मों में महत्वपूर्ण किरदार निभाए। कालीचरण से पहचान मिली।
जीतेंद्र (1942)
डांस स्टाइल के कारण जंपिंग जैक नाम मिला। गोल्डन एरा के इकलौते ऐसे अभिनेता, जिनकी फिल्में अभिनय से ज्यादा डांस के लिए देखी जाती थीं। मेरे हुजूर, हिम्मतवाला, तोहफा, गीत गाया पत्थरों ने स्थापित किया।
अमोल पालेकर (1944)
सहजता से भरे चरित्र निभाने में महारत हासिल थी। नाटक करते हुए फिल्मों में आ गए। अपनी विशेष पहचान बनाई। बासु चटर्जी के साथ उन्होंने बहुत शानदार फिल्में कीं। रजनीगंधा, छोटी सी बात, चितचोर, गोलमाल, बातों बातों में, नरम गरम से सिने प्रेमियों के लिए अलग संसार रचा।
राजेश खन्ना (1942–2012)
पहले सुपरस्टार। सत्तर के दशक की शुरुआत में 15 सुपरहिट फिल्में दीं। उनके बारे में कहा जाता था, ‘ऊपर आका, नीचे काका।’ लड़कियों में ऐसी दीवानगी थी कि वे उनकी फोटो के साथ शादी रचाती थीं। अमर प्रेम, आनंद, दो रास्ते खूब कामयाब हुईं।
विनोद खन्ना (1946–2017)
एक्शन और रोमांटिक हीरो दोनों छवि में दर्शकों ने प्यार दिया। चलने की अदा इतनी खास थी कि निर्माता विशेष तौर पर वॉकिंग सीन डलवाते थे। मुकद्दर का सिकंदर, मेरे अपने, परवरिश, अमर अकबर एंथनी फिल्मों ने ऊंचाई दी।
धर्मेन्द्र (1935)
हिंदी फिल्मों के ही-मैन। फिल्मफेयर की एक्टिंग कॉन्टेस्ट जीत कर मुंबई आए थे। बंदिनी के बाद उनकी गाड़ी चल निकली। शोले, चुपके चुपके, धरम वीर, सीता और गीता, सत्यकाम जैसी फिल्मों ने उन्हें कामयाबी और बुलंदी के शिखर पर पहुंचाया।
संजय दत्त (1959)
रॉकी से शानदार शुरुआत की। एकमात्र हीरो जिनकी खलनायक छवि को भी दर्शकों ने पसंद किया। साजन, वास्तव, खलनायक, मुन्नाभाई एमबीबीएस, लगे रहो मुन्नाभाई, मिशन कश्मीर, अग्निपथ और केजीएफ 2 जैसी फिल्मों से वर्चस्व स्थापित किया। बायोपिक संजू भी रिलीज हो चुकी है।
अमरीश पुरी (1932–2005)
450 से अधिक फ़िल्मों में काम करने वाले अमरीश पुरी हिन्दी सिनेमा के सबसे सफल खलनायकों में शामिल हैं। अपने भाई अभिनेता मदन पुरी को देखकर फ़िल्मों में काम करने आए लेकिन पहला प्रयास असफल रहा। पृथ्वी थिएटर में नाटक करने से शुरुआत की।
नसीरुद्दीन शाह (1950)
नैनीताल के सेंट जोसेफ स्कूल में एक नाटक से अभिनय की शुरुआत। आर्ट फ़िल्मों के माध्यम से अपनी राह बनाई। शाह ने हिन्दी फ़िल्मों को एक अलग रंग दिया। गुलज़ार द्वारा मिर्ज़ा ग़ालिब पर बनाए सीरियल में ग़ालिब की भूमिका।
ऋषि कपूर (1952–2020)
मेरा नाम जोकर में चाइल्ड आर्टिस्ट से शुरुआत। बाल कलाकार का राष्ट्रीय पुरस्कार। पहली फिल्म बॉबी से मशहूर हो गए। उनके स्वेटर बहुत लोकप्रिय हुए। कर्ज, खेल खेल में, लैला मजनू, प्रेम रोग, दामिनी, चांदनी लोकप्रिय रहीं। नायिका प्रधान फिल्मों से कभी नहीं कतराए।
गोविंदा (1963)
कादर खान, गोविंदा, जॉनी लीवर, डेविड धवन और शक्ति कपूर के साथ मिल कर नब्बे के दशक में सुपरहिट कॉमेडी फिल्मों की झड़ी लगा दी। कुली नंबर 1, हीरो नंबर 1, राजा बाबू, साजन चले ससुराल, बड़े मियां छोटे मियां, दूल्हे राजा, दीवाना मस्ताना से छा गए।
अनिल कपूर (1956)
वो सात दिन से मुख्य अभिनेता काम करना शुरू किया। मशाल ने करियर में बड़ा बदलाव किया। इसके लिए सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का फिल्म फेयर पुरस्कार मिला। मेरी जंग, मिस्टर इंडिया, तेजाब, कर्मा कामयाब फिल्में रहीं।
सईद जाफरी (1929– 2015)
ऑल इंडिया रेडियो के साथ करियर शुरू करने वाले सईद जाफरी हिंदी फिल्मों के अहम चरित्र अभिनेता थे। उन्होंने ब्रिटिश और अमरीकी फिल्मों में भी काम किया।
ओम पुरी (1950– 2017)
बेहद गरीब परिवार से आने वाले ओम पुरी हिन्दी सिनेमा में आर्ट फ़िल्मों का चेहरा बने। नसीरुद्दीन शाह के साथ उन्होंने एक से बढ़कर एक कलात्मक फ़िल्में बनाईं।
रजा मुराद (1950)
हिंदी सिनेमा के प्रमुख खलनायकों में शामिल रजा मुराद को उनकी भारी आवाज के कारण विशेष पहचान मिली। राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन की फिल्म नमक हराम में इनके किरदार को सभी ने पसंद किया। राज कपूर ने रज़ा मुराद को खूब अवसर दिए और कुछ िफल्मों ने उनको विलेन के रूप में पहचान दी।
फिरोज खान (1939–2009)
क्लिंटवुड ऑफ द ईस्ट के रूप में मशहूर। हिंदी सिनेमा में स्टाइल आइकॉन की तरह याद किया जाता है। पहला मौका 1959 में दीदी में मिला लेकिन कुर्बानी, सफर, यलगार, दयावान, धर्मात्मा और काला सोना जैसी फिल्मों से धूम मचा दी थी। धर्मात्मा अफगानिस्तान में शूट होने वाली पहली भारतीय फिल्म थी।
प्राण (1920–2013)
350 से अधिक फ़िल्में करने वाले प्राण हिंदी फिल्मों के सबसे बड़े विलेन थे। उनका ऐसा खौफ था कि लोगों ने अपने बच्चों के नाम प्राण रखने से परहेज़ कर दिया था। उनकी आवाज़ और अंदाज़ सबसे जुदा था।
ओम प्रकाश (1919–1998)
ऑल इंडिया रेडियो से करियर की शुरुआत करने वाले ओम प्रकाश अपने विशेष अंदाज़ के कारण हिन्दी सिनेमा में याद किए जाते हैं। फ़िल्म पत्रकार के तौर काम करते हुए एक दिन ओम प्रकाश को फ़िल्मों में अभिनय का काम मिल गया।
शाहरुख खान (1965)
किंग खान नाम से मशहूर। दिल आशना है पहली फिल्म। दीवाना की छोटी सी भूमिका में प्रभावित किया। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। बाजीगर, डर, कुछ कुछ होता है, करण-अर्जुन दिलवाले दुलहनिया ले जाएंगे से बादशाहत कायम की।
अनुपम खेर (1955)
महेश भट्ट की फ़िल्म सारांश में एक बूढ़े आदमी का किरदार निभाकर दुनिया की नज़रों में जगह बनाने वाले अनुपम खेर हिन्दी फ़िल्मों के सफल चरित्र अभिनेताओं में शामिल हैं। खेर ने हिन्दी फ़िल्मों में हर तरह की भूमिकाएं निभाईं। एफटीआइआइ पुणे के चेयरमैन भी रहे।
सलमान खान (1965)
मैंने प्यार किया से परदे पर दस्तक दी। जितनी फैन फॉलोइंग उनकी है, उतनी किसी के हिस्से नहीं आई। अभिनय के अलावा भी सुर्खियों में रहते हैं। हिंदी सिनेमा में 100 करोड़ रुपये के कारोबार का ट्रेंड सेट किया। हर ईद पर दर्शक फिल्म का इंतजार करते हैं।
पंकज कपूर (1954)
उन्हें रिचर्ड अटेनबरो ने अपनी फ़िल्म गांधी में महत्वपूर्ण भूमिका दी। इससे पंकज कपूर को विश्वास भी मिला और पहचान भी। एक डॉक्टर की मौत, रुई का बोझ, ब्लू अंब्रेला, जाने भी दो यारो, चमेली की शादी, मोहन जोशी हाजिर हो, जैसी फ़िल्मों से अभिनेता पंकज कपूर का हुनर दुनिया के सामने आया।
रणबीर कपूर (1982)
ऋषि कपूर के पुत्र और कपूर खानदान के सबसे युवा सुपरस्टार रणबीर इस पीढ़ी के सबसे सफल कलाकारों में गिने जाते हैं। अब तक छह फिल्म फेयर पुरस्कार जीत चुके हैं। सबसे ज्यादा फीस लेने वाले अभिनेताओं में शामिल।
अक्षय कुमार (1967)
एक्शन फ़िल्मों के हीरो के रूप में शुरुआत करने वाले अभिनेता अक्षय कुमार आज हिन्दी सिनेमा के सबसे लोकप्रिय अभिनेता हैं। कई फ्लॉप फिल्मों के बाद अक्षय कुमार कॉमेडी फ़िल्मों की तरफ बढ़े। सामाजिक मुद्दों पर फ़िल्म बनाने की शुरुआत की।
अजय देवगन (1969)
पहली ही फिल्म फूल और कांटे सुपर-डुपर हिट रही। जिगर, दिलवाले, सुहाग, विजयपथ, दिलजले जैसी फिल्में देकर अपनी जगह बनाई। जख्म के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार मिला।
मिथुन चक्रवर्ती (1950)
मृगया के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। डिस्को डांसर के बाद गरीब, मजदूर, शोषित वर्ग को संबोधित करती फिल्मों के आइकॉन बने। इन्हीं की बदौलत हिंदी सिनेमा के लोकप्रिय अभिनेता बन गए।
मनोज बाजपेई (1969)
नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से निकले मनोज बाजपेई बैंडिट क्वीन, सत्या से सशक्त अभिनेता बनकर उभरे। गैंग्स ऑफ वासेपुर, शूल, अलीगढ़, राजनीति, आरक्षण महत्वपूर्ण फिल्में। तीन बार नेशनल अवॉर्ड और छह बार फिल्मफेयर पुरस्कार मिला।
जॉनी वॉकर (1926–2003)
तीन सौ से अधिक फ़िल्मों में काम करने वाले जॉनी वॉकर हिन्दी फ़िल्मों के महानतम कॉमेडियन के रूप में याद किए जाते हैं। बेस्ट की बसों में काम करने वाले जॉनी ने गुरु दत्त को अपनी कला से प्रभावित कर दिया। इसके बाद गुरु दत्त की फ़िल्मों में उनको काम मिला।
श्रीराम लागू (1927– 2019)
श्रीराम लागू रंगमंच की दुनिया का बड़ा नाम रहे हैं। उन्होंने अभिनय से कई दशकों तक हिंदी सिनेमा में अपना प्रभाव छोड़ा। पिंजरा, घरौंदा, किनारा, खुद्दार, मुकद्दर का सिकंदर श्रीराम लागू की महत्वपूर्ण फिल्में रहीं।
असरानी (1940)
पचास वर्षों के फिल्मी करियर में 350 से अधिक फ़िल्में करने वाले असरानी हिन्दी सिनेमा के महत्वपूर्ण हास्य कलाकारों में शामिल हैं।
नाना पाटेकर (1951)
विश्वनाथ पाटेकर उर्फ़ नाना पाटेकर हिन्दी और मराठी फ़िल्मों का एक बड़ा नाम हैं। नाना उन चुनिंदा कलाकारों में शामिल हैं जो सामाजिक मुद्दों पर अपनी राय रखते हैं और योगदान भी देते हैं।
अमजद खान (1940–1992)
हिन्दी फ़िल्मों के सबसे काबिल अभिनेताओं में शामिल अमजद ख़ान उर्दू व फारसी के अच्छे जानकार थे। दो दशक के फिल्मी करियर में 100 से अधिक फ़िल्में करने वाले अमजद ख़ान को विलेन के रूप में याद किया जाता है। शोले में गब्बर सिंह का किरदर निभाकर वे अमर हो गए।
आमिर खान (1965)
पहली ही फिल्म से स्टारडम हासिल कर लिया। राजा हिन्दुस्तानी, हम हैं राही प्यार के, दिल, जो जीता वही सिकंदर, सरफरोश ने उन्हें अलग पंक्ति में खड़ा किया। लीक से हटकर विषयों पर फ़िल्म बनाने के लिए जाने जाते हैं।
सनी देओल (1956)
बेताब से फिल्म जगत पर छा गए। अभिनय के साथ एक्शन में भी खुद को साबित किया। घातक, घायल, जिद्दी, इंडियन, गदर, त्रिदेव, बॉर्डर जैसी ब्लॉकबस्टर फिल्मों ने शीर्ष पर पहुंचाया। देशभक्ति और राष्ट्रप्रेम फिल्मों के पोस्टर बॉय बनकर उभरे।
परेश रावल (1955)
हिंदी सिनेमा के सबसे सशक्त चरित्र अभिनेताओं की जब बात होती है तो उसमें अभिनेता परेश रावल का नाम अग्रणी कलाकारों में आता है। कॉमेडी, संजीदा, विलेन आदि सभी तरह के किरदारों को बेहतरीन ढंग से निभाने का श्रेय परेश रावल को जाता है।
कादर खान (1937–2018)
कादर खान का बचपन संघर्षों में बीता। कादर ख़ान शिक्षक थे। पहले नाटक और फिर फिल्मों में लिखने का काम मिल गया। कादर खान हिंदी फिल्मों में डायलॉग राइटर के रूप में प्रसिद्ध हुए।
इरफान खान (1967–2020)
एनएसडी से निकलने के बाद संघर्ष भरे दिन रहे। मीरा नायर की फ़िल्म सलाम बॉम्बे से पहचान मिली लेकिन संघर्ष का दौर जारी रहा। मकबूल और हासिल वो फ़िल्में रहीं जिन्होंने दुनिया का परिचय इरफान खान से कराया।
महमूद (1932–2004)
महमूद को हिंदी सिनेमा के सबसे सफल कॉमेडियन के रूप में याद किया जाता है। महमूद उन चुनिंदा कॉमेडियन में से हैं, जिन्हें हिन्दी सिनेमा इतना स्पेस मिला। महमूद ने अभिनय के साथ फ़िल्म निर्माण का कार्य भी किया। अमिताभ को पांव जमाने में मदद की।
प्रेम चोपड़ा (1935)
साठ वर्षों के फिल्मी करियर में तकरीबन 400 फिल्में करने वाले प्रेम चोपड़ा विलेन के रूप में याद किए जाते हैं। बॉबी, दाग, नसीब, कटी पतंग, अभिनेता प्रेम चोपड़ा के फिल्मी करियर की महत्वपूर्ण फ़िल्में रहीं।
डैनी डेन्जोंगपा (1948)
पचास वर्षों के फिल्मी करियर में तकरीबन 200 फिल्में करने वाले अभिनेता डैनी डेन्जोंगपा हिंदी फिल्मों के सफलतम कलाकारों में से एक हैं। गुलज़ार की फ़िल्म मेरे अपने से उन्हें पहचान मिली। डैनी ने अपनी पहचान एक विलन के रूप में स्थापित की।
उत्पल दत्त (1929–1993)
अपने विशिष्ट अंदाज के कारण हिंदी सिनेमा में विशेष स्थान रखने वाले अभिनेता उत्पल दत्त मूल रूप से बंगाली रंगमंच में काम करते थे। उत्पल दत्त भारतीय जन नाट्य संघ के सदस्य रहे और उन्होंने अंग्रेज़ी थियेटर में भी खूब काम किया।
अजीत (1922–1998)
चालीस साल के फिल्मी करियर में तकरीबन 200 फिल्में करने वाले अजीत ने अपनी शुरुआत मुख्य अभिनेता के रूप में की थी लेकिन समय के साथ परिस्थितियां कुछ ऐसी पैदा हुईं कि अजीत ने खलनायक किरदार निभाने शुरू किए।
जीवन (1915–1987)
जीवन को हिंदी सिनेमा के प्रारंभिक खलनायकों के तौर पर याद किया जाता है। फ़िल्मों का जुनून जीवन को मुम्बई ले आया। जीवन को हिन्दी फ़िल्मों में नारद मुनि के क़िरदार निभाने के लिए भी याद किया जाता है।
जयंत (1915-1975)
जकारिया खान उर्फ़ जयंत हिंदी सिनेमा के शुरुआती दौर के अभिनेता थे। उन्होंने हिंदी फिल्मों के साथ गुजराती फ़िल्मों में भी काम किया। निर्देशक विजय भट्ट की फ़िल्म संसार लीला से जयंत ने शुरुआत की।
गिरीश कार्नाड (1938– 2019)
गिरीश कार्नाड फ़िल्मों के साथ ही रंगमंच के बड़े नाटककार रहे हैं। उनके लिखे नाटक रंगमंच की दुनिया में मील का पत्थर माने जाते हैं। मंथन, निशांत, भूमिका, इक़बाल, उत्सव, गिरीश कर्नाड की महत्वपूर्ण हिंदी फ़िल्में रही हैं।
प्रेमनाथ (1926–1992)
वर्ष 1948 में हिंदी फिल्मों में पदार्पण करने वाले प्रेमनाथ ने तीन दशकों से अधिक के अपनी फिल्मी करियर में तकरीबन 100 फिल्मों में काम किया। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे।
आगा (1914–1992)
आगा को हिन्दी सिनेमा के शुरुआती दौर के सफल हास्य अभिनेता के रुप में याद किया जाता है। आगा को रेस कोर्स और घोड़ों से बेहद लगाव था, लेकिन नसीब हिंदी फिल्मों से जुड़ा था इसलिए आगा मुंबई आए और उन्होंने फिल्मों में अपनी पहचान बनाई। अनहोनी, इंसानियत, ललकार, मुकाबला, जब जब फूल खिले, जुगनू आगा के फिल्मी करियर की महत्वपूर्ण फ़िल्में रहीं।
ए के हंगल (1914–2012)
ए के हंगल दादा, पिता और चाचा के किरदारों में खूब लोकप्रिय हुए। बलराज साहनी और कैफी आजमी के साथ इप्टा में जुड़े रहे और हिंदी नाटकों में काम किया। हंगल ने भारत के स्वाधीनता आंदोलन में भी हिस्सा लिया था।
भगवान दादा (1913- 2002)
भगवान दादा को हिंदी सिनेमा में पहली पहचान फ़िल्म अलबेला से मिली। गीत शोला जो भड़के से भगवान दादा हिन्दीभाषी दर्शकों के बीच लोकप्रिय हुए। फिल्मों में आने से पहले भगवान दादा ने लंबे समय तक मजदूरी की, लेकिन अपने सपने को नहीं भूले।
पंकज त्रिपाठी (1976)
पंकज त्रिपाठी को रामलीला में अभिनय का मौक़ा मिला और यहीं से सिनेमाई दुनिया की राह प्रशस्त हुई। एनएसडी से पढ़ाई पूरी करने के बाद मुम्बई पहुंचे। शुरुआत में ही छोटे रोल मिलने शुरू हो गए। अनुराग कश्यप की गैंग्स ऑफ वासेपुर ने पंकज त्रिपाठी का नसीब बदल दिया।
के एन सिंह (1908–2000)
के एन सिंह भारतीय सिनेमा के लोकप्रिय विलेन और चरित्र अभिनेता रहे। बचपन से स्पोर्ट्स में भाग लिया और सेना में जाने का सपना देखा। अभिनेता पृथ्वीराज कपूर से उनके पारिवारिक संबंध रहे और इसी रिश्ते से के एन सिंह के लिए फिल्मी दुनिया का रास्ता खुला।
नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी (1969)
नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी संघर्ष की मिसाल हैं। एनएसडी से पढ़ाई पूरी करने के बाद मुंबई पहुंचे तो हर जगह निराशा मिली। अनुराग कश्यप की फ़िल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर से वे रातोंरात स्टार बन गए।
डेविड (1909–1982)
चालीस वषों के फिल्मी करियर में तकरीबन 100 फिल्में करने वाले अभिनेता डेविड हिंदी सिनेमा के इतिहास का एक जरूरी नाम हैं। डेविड को फिल्मों का शौक था और इसी शौक में उन्होंने फिल्मों में नसीब आजमाने का फैसला किया।
देवेन वर्मा (1937– 2014)
फिल्म और टीवी कलाकार देवेन वर्मा को निर्देशक गुलजार, ऋषिकेश मुखर्जी और बासु चटर्जी की फिल्मों में निभाए हास्य किरदारों के लिए याद किया जाता है। चालीस वर्षों के फिल्मी करियर में देवेन वर्मा ने कई महत्वपूर्ण किरदार निभाए।
कन्हैयालाल (1910–1982)
जब हिंदी सिनेमा के शुरुआती दौर के कलाकारों का जिक्र होता है तो उसमें कन्हैयालाल का नाम आता है। कन्हैयालाल को मंच से प्यार था और यही प्यार उन्हें मुंबई खींच लाया। महबूब खान की फिल्म मदर इंडिया उनके करियर की महत्वपूर्ण फिल्म साबित हुई। सहारा, सितारा, जीत, नौकरी, हीरा कन्हैयालाल की महत्वपूर्ण फिल्में रहीं।
इफ्तिखार (1920–1995)
हिंदी फिल्मों के सफल चरित्र अभिनेता इफ्तिखार बचपन से ही गायक कुंदनलाल सहगल के फैन थे और उन्हीं की तरह गायक बनना चाहते थे। यही चाह उन्हें कलकत्ता लेकर गई, जहां से उनके लिए फिल्मी दुनिया के दरवाजे खुले। भारत विभाजन के बाद इफ्तिखार का परिवार पाकिस्तान चला गया जबकि वे भारत में ही रहे।
रहमान (1921–1984)
रहमान निर्देशक गुरुदत्त की टीम का अहम हिस्सा थे। उन्होंने गुरुदत्त की फिल्मों में बेहतरीन अभिनय के माध्यम से अपनी विशेष पहचान बनाई। प्यार की जीत, प्यासा, साहेब, बीवी और गुलाम, बड़ी बहन, चौदहवीं का चांद, वक्त रहमान की सफल फिल्में रहीं।
रणवीर सिंह (1985)
चार बार फिल्म फेयर पुरस्कार। बॉलीवुड में सबसे ज्यादा फीस पाने वाले अभिनेताओं में शुमार हैं। रामलीला, बाजीराव मस्तानी, पद्मावत, सिंबा, गली बॉय जैसी फिल्मों से अलग मुकाम हासिल किया।
सदाशिव अमरापुरकर (1950–2014)
तीन दशक के फिल्मी करियर में तकरीबन 300 फिल्में करने वाले सदाशिव अमरापुरकर को हिंदी सिनेमा में कामयाब विलेन के रूप में याद किया जाता है। नब्बे के दशक में उन्होंने अपनी खलनायक छवि से सिनेमा के दर्शकों के बीच पहचान बनाई।