गुरुदत्त (1925–1964)
हिंदी सिनेमा की महत्वपूर्ण फिल्में बनाईं। निर्देशन के साथ अभिनय से भी मुरीद बनाया। प्यासा, कागज के फूल, साहिब बीवी और गुलाम, बाजी, चौदहवीं का चांद उनकी महानता के सबूत हैं।
बिमल रॉय (1909–1966)
पचास और साठ के दशक में ऐसी फिल्में बनाई, जिसके कारण उस दौर को सिनेमा का स्वर्णिम युग कहा गया। दो बीघा जमीन, काबुलीवाला, सुजाता, बंदिनी, देवदास, मधुमती के माध्यम से रॉय ने समाज में मौजूद भेदभाव, संघर्ष, असमानता दिखाने की कोशिश की।
के. आसिफ (1922–1971)
जुनूनी फिल्ममेकर ने मुगल ए आजम के निर्माण में अपनी जिंदगी लगा दी। जिस संघर्ष, परिश्रम और धैर्य के साथ उन्होंने यह फिल्म बनाई, वह उन्हें महान बनाता है। सिनेप्रेमियों के लिए एक संस्थान की तरह देखे जाते हैं के. आसिफ।
महबूब खान (1907–1964)
महबूब खान की फिल्मों में समाज और उसकी समस्याएं बहुत बारीकी और सुंदरता के साथ दिखाई देती हैं। मदर इंडिया के अलावा उन्हें अनमोल घड़ी, आन, अंदाज के लिए भी याद किया जाता है। वे पचास, साठ के दशक के महत्चपूर्ण फिल्मकारों में शुमार हैं।
कमाल अमरोही (1918–1993)
फिल्मों में समाजिक मुद्दे, मानवीय संवेदनाओं को बहुत सुंदरता के साथ दिखाया। महल से बतौर निर्देशक अपनी शुरू करने वाले अमरोही ने पाकीजा, रजिया सुल्तान जैसी भव्य फिल्में बनाईं। मुगल ए आजम में बतौर लेखक उनके योगदान को विशेष रूप से याद किया जाता है।
ऋषिकेश मुखर्जी (1922–2006)
सामाजिक मुद्दों पर कलात्मक फिल्में बनाईं। निर्देशन के साथ पटकथा लेखक और एडिटर के रूप में भी काम किया। आनन्द, गुड्डी, अभिमान, सत्यकाम, बावर्ची, गोलमाल, चुपके चुपके ऋषि दा की क्लासिक फिल्में रहीं।
मुजफ्फर अली (1944)
उमराव जान ने उन्हें हिंदी सिनेमा के इतिहास में अमर कर दिया। लेकिन गमन, अंजुमन, आगमन, जानिसार को भी कम नहीं आंका जा सकता, जो उनकी संजीदा फिल्में रहीं।
विजय आनन्द (1934–2004)
फिल्म माध्यम से कलात्मकता का परिचय दर्शकों से कराया। गाइड, जॉनी मेरा नाम, तीसरी मंजिल यह बताने के लिए काफी है कि वे जीनियस फिल्मकार थे।
सोहराब मोदी (1897–1984)
पारसी थिएयर से कला की दुनिया में कदम रखा। पुकार, सिकंदर, यहूदी, जेलर, मिर्जा गालिब बेहतरीन फिल्में रहीं। उनकी फिल्मों में सामाजिक-राष्ट्रीय संदेश होता था।
रमेश सिप्पी (1947)
28 साल की उम्र में हिंदी सिनेमा की सबसे सफल फिल्म शोले का निर्देशन किया। सीता और गीता, शान, शक्ति, सागर, अंदाज अन्य महत्वपूर्ण फिल्में रही हैं।
मनमोहन देसाई (1937–1994)
तीन दशकों तक सुपरहिट कमर्शियल फिल्मों से पहचान बनाई। मर्द, कुली, अमर अकबर एंथनी, नसीब, धरमवीर उनकी सुपरहिट और बॉक्स ऑफिस पर चलने वाली फिल्में रहीं।
यश चोपड़ा (1932–2012)
एेक्शन और रोमांटिक फिल्मों का निर्माण। दीवार, दिल तो पागल है, डर, मोहब्बतें, चांदनी, सिलसिला, कभी कभी ऐसी फिल्में रहीं जिनमें मनोरंजन, अभिनय, संगीत का संतुलन था।
शक्ति सामंत (1926–2009)
आराधना के साथ सत्तर के दशक में राजेश खन्ना के साथ कई सुपरहिट फिल्मों का निर्देशन। कटी पतंग, अमर प्रेम, कश्मीर की कली, हावड़ा ब्रिज ने सफलतम निर्देशकों में शुमार किया।
गोविंद निहलाणी (1940)
कलात्मक और लीक से हटकर फिल्में बनाईं। अर्ध सत्य, आक्रोश, तमस, विजेता, हजार चौरासी की मां उनके करियर की महत्वपूर्ण और उल्लेखनीय फिल्में साबित हुईं।
सई परांजपे (1938)
हल्की-फुल्की फिल्म में उनका कोई तोड़ नहीं। यही कारण रहा कि चश्मेबद्दूर, कथा, स्पर्श, दिशा, साज आज भी ऐसी फिल्मों की सूची में शामिल हैं, जिन्हें कभी भी देखा जा सकता है।
विशाल भारद्वाज (1965)
निर्देशन के साथ संगीतकार के रूप में भी शानदार काम किया। गुलजार की माचिस से बतौर संगीतकार पहचान मिली। मकबूल, हैदर, ओमकारा जैसी फिल्मों में उन्होंने शेक्सपियर की रचनाओं को विश्वसनीय तरीके से हिंदी में परदे पर उतारा।
सईद अख्तर मिर्जा (1943)
लीक से हटकर फिल्में बनाना उनकी पहली पसंद है। अल्बर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है, नसीम, मोहन जोशी हाजिर हो, सलीम लंगड़े पे मत रो उनकी कलात्मकता का नमूना है।
नीरज पांडेय (1973)
प्रयोगवादी निर्देशक के रूप में जाना जाता है। ए वेडनेसडे से करियर की शुरुआत। एेक्शन-थ्रिलर से पहचान बनाई। बेबी, स्पेशल 26, अय्यारी, नाम शबाना, एमएस धोनी – द अनटोल्ड स्टोरी।
कुंदन शाह (1947–2017)
जाने भी दो यारों के रूप में उन्होंने एक कल्ट फिल्म दे दी है। क्या कहना, कभी हां कभी ना भी उन्हीं के निर्देशन में बनीं लेकिन आज भी उनके नाम के साथ जाने भी दो यारों का जिक्र जरूर होता है।
दिबाकर बैनर्जी (1969)
पहली ही फिल्म लव, सेक्स और धोखा से मुरीद बना लिया। बाद में खोसला का घोसला, ओय लकी लकी ओय, डिटेक्टिव ब्योमकेश बख्शी, से अलग तरह के फिल्ममेकर के रूप में स्थापित हुए।
प्रियदर्शन (1957)
संवादों और कलाकारों के हावभाव से हास्य पैदा करना इनकी विशेषता है। हंगामा, हेरा फेरी, मालामाल वीकली, भूल भुलैया विरासत ऐसी फिल्में रहीं, जिन्हें दर्शकों का भरपूर साथ मिला।
वी. शांताराम (1901–1990)
मराठी भाषा में कई सफल और महत्वपूर्ण फिल्मों से पहचान बनाई। हिंदी में गीत गाया पत्थरों ने, दो आंखें बारह हाथ, नवरंग, पिंजरा, झनक झनक पायल बाजे उनकी यादगार फिल्में रहीं।
चेतन आनंद (1921–1997)
कई ऐसी फिल्में बनाईं, जिससे वे संजीदा निर्देशक के रूप में स्थापित हुए। नीचा नगर, हकीकत, कुदरत, हीर रांझा, काला बाजार, टैक्सी ड्राइवर आज भी सराही जाती हैं।
मणिरत्नम (1956)
तमिल फिल्मों के दिग्गज ने हिंदी में प्रेम कहानियों को नए अंदाज में कहा जैसे, रोजा और बॉम्बे। दोनों फिल्मों को दर्शकों और समीक्षकों का भरपूर प्यार मिला। दिल से, गुरु और युवा की कहानी अलग ढंग से कही।
नासिर हुसैन (1926–2002)
एेक्शन, रोमांस, इमोशन के मिश्रण के साथ बेहतरीन फिल्में पेश कीं। जब प्यार किसी से होता है, यादों की बारात, तुम सा नहीं देखा, हम किसी से कम नहीं प्रमुख फिल्में।
प्रमोद चक्रवर्ती (1929– 2004)
पचास और साठ के दशक में प्रमोद चक्रवर्ती ने कई सफल रोमांटिक और एेक्शन फिल्मों का निर्माण किया। जिद्दी, लव इन टोकियो, जुगनू, वारंट, ड्रीम गर्ल, आजाद, जागीर, तुमसे अच्छा कौन है उनकी चर्चित फिल्में रहीं। उन्हें खास तरह के रोमांटिक फिल्मों के लिए जाना जाता है।
राज खोसला (1925–1991)
देव आनंद ने राज की प्रतिभा को पहचाना और उन्हें निर्देशन के क्षेत्र में अवसर दिया। राज खोसला ने इस अवसर को भुनाया और सीआइडी से अपनी पहचान बनाई। वो कौन थी, मेरा साया का रहस्य दर्शकों को खूब भाया। दोस्ताना, दो रास्ते उनकी यादगार फिल्में रहीं।
सत्येन बोस (1916–1993)
पचास और साठ के दशक में कई कामयाब फिल्मों का निर्माण किया और हिंदी सिनेमा में अपनी पहचान बनाई। जीवन मृत्यु, जागृति, चलती का नाम गाड़ी, रात और दिन, दोस्ती उनकी सफल और सराही गई फिल्में रहीं।
केतन मेहता (1952)
केतन मेहता ने संवेदनशील, कलात्मक और लीक से हटकर फिल्में बनाईं। मिर्च मसाला, मांझी द माउंटेन मैन, रंग रसिया, मंगल पांडेय, हीरो हीरालाल, माया मेमसाब मेहता की महत्वपूर्ण फिल्में रही हैं।
श्याम बेनेगल (1934)
हिंदी सिनेमा की पारंपरिक छवि को तोड़कर नए किस्म का यथार्थवादी सिनेमा रचा। मंथन, निशांत, जुबैदा, जुनून, अंकुर, भूमिका जैसी फिल्में बनाकर बेनेगल ने हिंदी सिनेमा को समृद्ध किया।
लेख टंडन (1929–2017)
पहली ही फिल्म प्रोफेसर की कामयाबी से पहचान हासिल की। अगर तुम न होते, आम्रपाली, दुल्हन वही जो पिया मन भाए, दूसरी दुल्हन, शारदा उनकी महत्वपूर्ण फिल्में रहीं।
एच.एस. रवैल (1921–2004)
साल 1940 में दोरंगिया डाकू से शुरुआत की। रोमांटिक फिल्मों का निर्माण कर विशेष पहचान बनाई। मेरे महबूब, महबूब की मेंहदी, लैला मजनू, शरारत, पतंगा सफल फिल्में रहीं।
के. बालचंदर (1930–2014)
दक्षिण के दिग्गज को हिंदी सिनेमा में आईना और एक दूजे के लिए के लिए याद किया जाता है। प्रेम में मर-मिटने की कहानी एक दूजे के लिए से वे हिंदी फिल्मी इतिहास में अमर हो गए।
बासु भट्टाचार्य (1934–1997)
निर्देशक बिमल रॉय के साथ बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर शुरुआत की। पहचान तीसरी कसम से मिली। विवाह के बाद आई ऊब पर उनकी ट्रायलॉजी अनुभव, आविष्कार और गृह प्रवेश खूब सराही गई।
बासु चटर्जी (1927–2020)
जिस दौर में हिंदी फिल्मों में एेक्शन, ड्रामा हावी था, उस समय बासु चटर्जी सरल, सहज कथानक को फिल्मी पर्दे पर दिखा रहे थे। रजनीगंधा, छोटी सी बात, शौकीन, चित्तचोर, बातों बातों में, खट्टा मीठा यादगार फिल्में।
सुभाष घई (1945)
सुभाष घई ने कुछ बेहद चर्चित फिल्मों का निर्माण किया। कालीचरण और विश्वनाथ से विशेष पहचान मिली। विधाता, सौदागर, कर्मा, हीरो, राम लखन, खलनायक, परदेस, ताल, कर्ज ने उन्हें शीर्ष पर पहुंचाया।
शेखर कपूर (1945)
शेखर कपूर ने लीक से हटकर फिल्में बनाईं जिससे उन्हें हिंदी सिनेमा में विशेष पहचान मिली। मासूम, मिस्टर इंडिया, बैंडिट क्वीन के बाद उन्होंने विदेशी फिल्मों में भी शानदार काम किया।
रोहित शेट्टी (1973)
रोहित शेट्टी ने हास्य और एक्शन फिल्मों से हिंदी सिनेमा में अपनी पहचान बनाई। गोलमाल, सिंघम, चेन्नई एक्सप्रेस, बोल बच्चन रोहित शेट्टी की सुपरहिट फिल्में रही हैं।
रामगोपाल वर्मा (1962)
रामगोपाल वर्मा ने अपनी फिल्मों में ऐसे प्रयोग किए जिसने हिंदी सिनेमा की दिशा बदल दी। पारंपरिक छवि को तोड़ने का काम किया। शिवा, सत्या, कंपनी, रंगीला, सरकार उनकी बहुचर्चित फिल्में रहीं।
सूरज बड़जात्या (1964)
आदर्श पारिवारिक फिल्मी ड्रामे के लिए इन्हें जाना गया। मैंने प्यार किया, हम आपके हैं कौन, हम साथ साथ हैं, विवाह सूरज की कामयाब फिल्में रही हैं।
मीरा नायर (1957)
मीरा नायर ने कलात्मक व संवेदनशील विषयों पर फिल्में बनाईं। मॉनसून वेडिंग, सलाम बॉम्बे और वेब शो ए सूटेबल बॉय से मीरा नायर को दर्शकों का प्यार और सम्मान हासिल हुआ।
प्रकाश झा (1952)
राजनीतिक व सामाजिक मुद्दों पर बनाई फिल्मों के कारण प्रकाश झा को हिंदी सिनेमा में खूब लोकप्रियता हासिल हुई। दामुल, गंगाजल, आरक्षण, चक्रव्यूह, सत्याग्रह, राजनीति, अपहरण प्रकाश की महत्वपूर्ण फिल्में रही हैं।
गौतम घोष (1950)
गौतम घोष ने कलात्मक फिल्मों के माध्यम से अपनी पहचान बनाई। पार, पतंग, यात्रा घोष की महत्वपूर्ण फिल्में रहीं।
अमिय चक्रवर्ती (1912 –1957)
अमिय ने दाग, सीमा, पतिता, देख कबीरा रोया जैसी फिल्में के साथ अपने आप को एक बेहतरीन निर्देशक के रूप में स्थापित किया।
सुबोध मुखर्जी (1921–2005)
पचास और साठ के दशक में सुबोध मुख़र्जी ने जंगली, पेइंग गेस्ट, मुनीम जी, अभिनेत्री जैसी महत्वपूर्ण फिल्में बनाईं।
राजकुमार हिरानी (1962)
सामाजिक विषयों को मनोरंजक तरीके से सिनेमा में उठाने का प्रयास किया, जिसे दर्शकों ने खूब पसंद किया। लगे रहो मुन्ना भाई, मुन्नाभाई एमबीबीएस, पीके, थ्री ईडियट्स, संजू उनके सफल शाहकार रहे।
एम.एस. सथ्यु (1930)
एम.एस. सथ्यु ने कलात्मक फिल्में बनाकर अपनी विशिष्ट पहचान बनाई। वे इप्टा के शुरुआती सदस्यों में रहे। गर्म हवा के लिए उन्हें खूब नाम और सम्मान हासिल हुआ।
रामानंद सागर (1917–2005)
रामानंद सागर ने ऐतिहासिक टीवी धारावाहिक रामायण बनाने से पहले आरज़ू, गीत, आंखें, चरस, जैसी फिल्मों से फिल्म इंडस्ट्री में अपनी जगह बनाई।
मंसूर खान
निर्देशक नासिर हुसैन के पुत्र मंसूर खान ने कयामत से कयामत तक, जो जीता वही सिकंदर, जोश और अकेले हम अकेले तुम जैसी फिल्में बनाकर फिल्म निर्देशन को अलविदा कह दिया।
बी.आर. चोपड़ा (1914–2008)
बी.आर. चोपड़ा ने अपने पचास वर्ष के करियर में कई सफल फिल्में बनाईं। नया दौर, कानून, निकाह, इंसाफ का तराजू, साधना, गुमराह, दास्तान, धुंध उनकी बहुप्रशंसित फिल्में रहीं।
महेश भट्ट (1948)
महेश भट्ट ने अपनी फिल्मों से मानवीय रिश्तों को खूबसूरती से अभिव्यक्त करने का काम किया। अर्थ, ज़ख्म, नाम, सड़क, आशिकी, सारांश उन्हें खास बनाती हैं।
राजकुमार संतोषी (1956)
नब्बे के दशक में एक्शन फिल्मों से विशेष पहचान बनाई। घायल, दामिनी, घातक, अंदाज़ अपना अपना, खाकी, चाइना गेट, लज्जा, पुकार, द लीजेंड ऑफ भगत सिंह उनकी उल्लेखनीय फिल्में रहीं।
अनुराग कश्यप (1972)
रामगोपाल वर्मा ने सत्या में अनुराग को लेखन कार्य दिया और यहीं से उन्हें पहचान मिली। गैंग्स ऑफ वासेपुर ने उन्हें लोकप्रियता के शीर्ष पर पहुंचा दिया। गुलाल, रमन राघव, ब्लैक फ्राइडे, मनमर्जियां, नो स्मोकिंग, देव डी बनाई।
तिग्मांशु धूलिया (1967)
एनएसडी से पढ़ाई करने के बाद तिग्मांशु धूलिया ने टीवी धारावाहिक बनाने शुरू किए। पहली फिल्म हासिल बनाई। पान सिंह तोमर, शागिर्द, साहिब बीवी और गैंगस्टर उनकी लोकप्रिय फिल्में रही हैं।
आशुतोष गोवारिकर (1964)
बड़े बजट की पीरियड फिल्मों से पहचान बनाई। पहला नशा और बाजी शुरुआती फिल्में रहीं लेकिन लगान ने उन्हें स्थापित किया। जोधा अकबर, स्वदेस, पानीपत उनकी महत्वपूर्ण फिल्में रहीं।
विधु विनोद चोपड़ा (1952)
विधु विनोद चोपड़ा ने हिंदी सिनेमा की पारंपरिक छवि तोड़ने का काम किया और हिंदी सिनेमा में एक नई धारा को जन्म दिया। परिंदा, खामोश, 1942 ए लव स्टोरी, मिशन कश्मीर, शिकारा उनकी उल्लेखनीय फिल्में हैं।
रितुपर्णो घोष (1963–2013)
सत्यजीत राय और रवींद्रनाथ ठाकुर से प्रभावित रितुपर्णो घोष ने रेनकोट जैसी उत्कृष्ट फिल्म बनाई।
के विश्वनाथ (1930)
दक्षिण के फिल्मकार के. विश्वनाथ ने धनवान, संगीत, सरगम, संजोग जैसी बेहतरीन फिल्में बनाईं।
अवतार कृष्ण कौल (1939–1974)
कौल को कलात्मक फिल्म 27 डाउन के लिए जाना जाता है, लेकिन उनकी असमय मृत्यु हो गई।
ख्वाजा अहमद अब्बास (1914–1987)
ख्वाजा अहमद अब्बास को हिंदी सिनेमा के सफल फिल्म लेखक के रूप में जाना जाता है, लेकिन उन्होंने सात हिन्दुस्तानी जैसी कुछ फिल्मों का निर्माण बतौर निर्देशक किया।
अनुराग बासु (1970)
अनुराग बासु ने अपनी कलात्मक और लीक से हटकर बनी फिल्मों से विशेष पहचान कायम की। लूडो, बर्फी, गैंगस्टर, साया, जग्गा जासूस, मर्डर उनकी महत्वपूर्ण फिल्में रही हैं।
मधुर भंडारकर (1968)
मधुर भंडारकर ने मुंबई की झुग्गियों से निकलकर फैशन, चांदनी बार, ट्रैफिक सिग्नल, कॉरपोरेट, पेज 3 जैसी फिल्में बनाईं।
शूजित सरकार (1967)
शूजित सरकार को उनकी कलात्मक और संवेदनशील विषयों पर बनी फिल्मों के लिए पसंद किया जाता है। पिंक, पीकू, मद्रास कैफे, विकी डोनर, अक्टूबर उनकी चर्चित फिल्में रहीं।
बाबू राम इशारा (1934–2012)
बाबू राम इशारा ने सत्तर के दशक में कई बोल्ड फिल्में बनाकर सुर्खियां बटोरीं, जिनमें चेतना, जरूरत, और चरित्र शामिल थीं।
टी. रामाराव (1938-2022)
अपने लंबे करियर में हिंदी और तेलुगु की 75 फिल्मों का निर्माण किया। लोक परलोक, जुदाई, अंधा कानून उनकी महत्वपूर्ण हिंदी फिल्में रहीं।
प्रकाश मेहरा (1939–2009)
प्रकाश मेहरा ने अपनी सुपरहिट फिल्मों से विशेष पहचान बनाई। जंजीर से अमिताभ को एंग्री यंग मन बनाने के बाद उन्होंने उनके साथ मुकद्दर का सिकंदर, शराबी, लावारिस, शराबी, हेराफेरी बनाई।
जे.पी. दत्ता (1949)
देशभक्ति वाली फिल्मों से दर्शकों के बीच पहचान बनाई। भारत-पाकिस्तान युद्ध पर जे.पी. दत्ता ने जिस स्केल पर फिल्में बनाईं, वह कला का अद्भुत नमूना है। बॉर्डर, एलओसी करगिल, पलटन, हथियार, क्षत्रिय, रिफ्यूजी दत्ता की महत्वपूर्ण फिल्में रहीं।
हंसल मेहता (1968)
संवेदनशील विषयों पर फिल्म बनाने के लिए उन्हें जाना गया। अलीगढ़, शाहिद, ओमेर्ता, सिटी लाइट्स उनकी महत्वपूर्ण फिल्में रहीं। उनके वेब शो स्कैम 1992 ने उन्हें समकालीन हिंदी सिनेमा में विशेष पहचान दिलाई।
आदित्य चोपड़ा (1971)
यश चोपड़ा के पुत्र आदित्य ने अपनी फिल्मों के माध्यम से भारत के मध्यवर्गीय परिवारों में कुछ कर गुजरने का जज्बा पैदा किया। अकेले दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे ने उन्हें हिंदी सिनेमा के इतिहास में स्थान दे दिया।
संजय लीला भंसाली (1963)
भव्य, म्यूजिकल, ऐतिहासिक प्रेम कहानियों से विशिष्ट पहचान बनाई। हम दिल दे चुके सनम और देवदास, बाजीराव मस्तानी, पद्मावत, रामलीला, ब्लैक जैसी फिल्में बनाकर दर्शकों का दिल जीतने का काम किया।
कुमार शाहनी (1940)
सामानांतर सिनेमा के एक पुरोधा के रूप में उन्होंने माया दर्पण, तरंग और क़स्बा जैसी फ़िल्में बनाकर अपनी जगह बनाई।
श्रीराम राघवन (1963)
दो राष्ट्रीय पुरस्कार जीतने वाले राघवन ने अंधाधुन, बदलापुर, एक हसीना थी, जॉनी गद्दार जैसी चर्चित फिल्मों से अपनी पहचान बनाई।
मणि कौल (1944-2011)
मणि कौल ने आषाढ़ का एक दिन, उसकी रोटी और दुविधा जैसी फिल्म बनाकर कलात्मक सिनेमा को उस दौर में गति दी जब व्यावसायिक सिनेमा की लहरें उफान पर थीं। ऋत्विक घटक के विद्यार्थी रहे कौल सामांतर सिनेमा के अनूठे निर्देशक थे।
डेविड धवन (1951)
नब्बे के दशक में डेविड धवन ने अपनी कॉमेडी फिल्मों से बॉक्स ऑफिस पर सफलता की इबारत लिखी। गोविंदा, कादर खान, जॉनी लीवर और शक्ति कपूर के साथ डेविड धवन ने एक से बढ़कर एक फिल्में बनाईं और दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया।
करण जौहर (1972)
रोमांटिक फिल्मों के कारण खूब पसंद किए गए। नब्बे के दशक में कॉलेज लाइफ और प्रेम को बहुत सुंदरता के साथ दिखाया। कुछ कुछ होता है, कल हो ना हो, माइ नेम इज खान, कभी खुशी कभी गम महत्वपूर्ण फिल्में रहीं।