पहले स्वाभाविक सवाल से ही शुरू करते हैं। डिजिटल प्लेटफॉर्म पर पहली बार आने के लिए आपने ब्रीद: इनटु द शैडोज़ को ही क्यों चुना?
मैंने इसे पहली बार की तरह नहीं देखा। यह मेरी कसौटी थी ही नहीं। मैंने इसे किसी दूसरे प्रोजेक्ट की तरह ही देखा। जब मैंने इसकी कहानी सुनी, तो मुझे यह बहुत पसंद आई। कहानी का भाव मुझे अंदर तक छू गया। इसलिए यह कसौटी थी ही नहीं कि यह अमेजन प्राइम वीडियो पर आ रहा है।
तो क्या बतौर अभिनेता आपको बड़ा परदा-छोटा परदा जैसी बात से कोई फर्क नहीं पड़ता?
ज्यादा से ज्यादा लोगों को मेरा काम देखने को मिले, बस यही मायने रखता है।
ब्रीद: इनटु द शैडोज़ की खासियत क्या है?
मेरी सोच कुछ अलग है। मुझे लगता है, मेरे निर्देशक मयंक शर्मा ही इसकी मुख्य खासियत हैं। वे वाकई शानदार हैं। शो के कंसेप्ट ने वास्तव में मेरा ध्यान खींचा है। इसका श्रेय पूरी तरह से मयंक और शो के लेखकों विक्रम तुली, भवानी अय्यर और अरशद सैयद को जाता है।
चरित्र में उतरने के लिए हर अभिनेता की अपनी खास शैली होती है। बतौर अभिनेता आप वेब शो के लंबे प्रारूप में क्या अंतर पाते हैं?
तकनीकी रूप से, इसमें कोई खास अंतर नहीं है, क्योंकि उपकरण और बाकी सब समान है। अंतर सिर्फ इतना है कि यहां चरित्र में सुधार करने के लिए लंबा वक्त मिलता है। सिनेमा में हमें दो या तीन घंटे में यह साबित करना होता है कि कोई चरित्र ऐसा क्यों करता है। इस प्रारूप में आप चरित्र में अधिक से अधिक अंतर्दृष्टि प्राप्त करने के लिए विशेषताओं और जटिलताओं पर काम कर सकते हैं। यहां चरित्र की खासियत में गहरा उतरने के लिए समय ज्यादा मिलता है।
हाल ही में अमेजन प्राइम वीडियो पर द फैमिली मैन और पाताललोक वेब सीरीज ने शानदार प्रदर्शन किया। आपकी उपस्थिति के कारण आपके शो से उम्मीदें अधिक हैं। क्या यह बात आप पर अतिरिक्त दबाव डालती है?
बिलकुल भी नहीं। मैं कभी इस तरीके से नहीं सोचता। मेरी चिंता यह है कि मैं अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर सकूं और किसी ऐसी चीज का हिस्सा बन सकूं जो लोगों का मनोरंजन करे। पाताललोक और द फैमिली मैन दोनों ही शानदार शो थे। मैंने उन्हें देखा और बहुत पसंद किया। मैं वैसे भी मनोज वाजपेयी का प्रशंसक हूं। मुझे लगता है, ओरिजिनल सीरीज के साथ अमेजन प्राइम वीडियो बहुत अच्छा काम कर रहा है। ब्रीद (2018) का सीजन 1 बहुत अच्छा था। अमेजन प्राइम वीडियो परिवार का हिस्सा बनने पर मैं उत्साहित हूं। आप उन अभिनेताओं की उत्कृष्ट कंपनी में हैं, जिन्होंने द फैमिली मैन और पाताललोक में अभिनय किया है। यह मौका मिलने से मैं उत्साहित हूं।
प्राइम वीडियो, नेटफ्लिक्स जैसी कंपनियों के आने के साथ, देश में मनोरंजन उद्योग का चेहरा हमेशा के लिए बदलने वाला है, या यह पहले से बदल गया है?
यह दुनिया भर में बदल गया है। मुझे नहीं लगता, कोई नया माध्यम दूसरे का विकल्प है। यह एक नया माध्यम है। मुझे नहीं लगता वे एक-दूसरे से कुछ लेने जा रहे हैं। कम से कम मुंबई में जहां मैं रहता हूं थिएटर अभी भी संपन्न हो रहा है, यह भी सच्चाई है। जब सिनेमा आया, तो थिएटर से कोई दूर नहीं गया, जब टेलीविजन का आगमन हुआ, तो इसने सिनेमा से किसी को दूर नहीं किया। अब जब डिजिटल प्लेटफॉर्म आ गए हैं, तो वे भी किसी दूसरे माध्यम से दूर नहीं कर रहे हैं। यह सिर्फ एक और नया माध्यम है जो अभिनेताओं, निर्देशकों और रचनात्मक लोगों को अपनी प्रतिभा दिखाने का एक नया अवसर दे रहा है।
यह संयोग ही है कि जे.पी. दत्ता की रिफ्यूजी से शुरुआत करने के ठीक 20 साल बाद ब्रीद: इनटु द शैडोज़ आई है। उस फिल्म की रिलीज की पूर्व संध्या पर आप क्या सोच रहे थे और अब क्या सोच रहे हैं?
बिलकुल वैसी ही है। वही नर्वसनेस, वही घबराहट, वही जगराते, वही आशंका कि लोग शो को पसंद करेंगे या नहीं। यह सब कभी हटता नहीं। यह हमेशा रहने वाला है।
कामयाबी और नाकामी अभिनेता के जीवन का अभिन्न हिस्सा है। आप सुपरस्टार के परिवार से हैं। नाकामी का सामना कैसे करते हैं?
नाकामी के साथ अच्छी बात यही है कि आप इससे नहीं निपटते, वही आपसे निपटती है। वह कोई विकल्प नहीं देती। इसलिए इस बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं। मेरी राय में यह कुदरत का यह बताने का तरीका है कि आपको क्या नहीं करना है।
तब आपको कैसा लगता है जब आपके काम को तो सराहना मिली, लेकिन फिल्में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाईं? जैसे, खेले हम जी जान से (2010) और मनमर्जियां (2018)?
आप व्यावसायिक दृष्टि से बात कर रहे हैं तो हां, खेले हम जी जान से दुर्भाग्य से अच्छा नहीं कर पाई, लेकिन मनमर्जियां निर्देशक अनुराग कश्यप की अब तक की सबसे बड़ी सफलता रही। इसलिए आप दोनों को एक ही श्रेणी में नहीं रख सकते। मुझे लगता है हमने वह सब हासिल किया, जिसकी हमें उम्मीद थी। खेले हम जी जान से निराशाजनक थी क्योंकि फिल्म बनाने का कारण व्यावसायिक नहीं था। मेरे लिए यह सम्मान की बात थी कि (क्रांतिकारी) सूर्य सेन की कहानी को सेल्युलाइड पर लाने और वर्तमान पीढ़ी को 29 वर्षीय स्कूल मास्टर और उनके 60 छात्रों के महान बलिदान से परिचित कराने का मुझे मौका मिला। निर्देशक आशुतोष गोवारिकर ने पहली बार मुझे कहानी सुनाई, तो मैं शर्मिंदा था कि मुझे इसके बारे में नहीं पता था। आप किसी फिल्म के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ देते हैं और जब यह अच्छा नहीं होता है, तो आप इससे सीखते हैं और खुद से कहते हैं, 'देखो, दोस्त, तुम्हारा अच्छा भी पर्याप्त नहीं था। अभी और भी ज्यादा मेहनत करनी होगी।’
आपके पास अभी लंबी पारी है लेकिन अपने दो दशक के करिअर को मुड़कर आप किस रूप में देखते हैं?
सोच-विचार करने का वक्त हर दिन है। हर अभिनेता को ऐसा करना ही चाहिए। सभी विचार कर सकते हैं कि वे खुद को कैसे सुधार सकते हैं। अभिनेता ही क्यों, हर व्यक्ति को यह सोचने के लिए कुछ समय बिताना चाहिए कि वह आज की तुलना में कल कैसे बेहतर कर सकता है। इसी से पता चलता है कि कैसे सुधारें, बढ़ें और बेहतर बनें। मैं हर दिन यह करता हूं। मैं सोचता हूं कि मैं कोई फिल्म कैसे कर सकता था या अलग तरीके से कैसे कोई भूमिका कर सकता था। मैं हमेशा अपने काम की समीक्षा करता हूं और अपनी सीमित क्षमता में सुधार करने की कोशिश करता हूं। मैं खुद को सिखाता हूं कि मैं कल जो था उससे बेहतर हो सकता हूं।
आपने कई अच्छी भूमिकाएं की हैं। कुछ लोगों को लगता है कि एक अभिनेता के रूप में आपको जो मिलना था वह नहीं मिला क्योंकि आप सिनेमा में एक ‘लिविंग लीजेंड‘ के बेटे के रूप में देखे गए। आपको नहीं लगता, आपके आलोचकों और मीडिया की ओर से आपके पिता से लगातार आपकी तुलना अनुचित है?
यह सवाल आपको खुद मीडिया के रूप में पूछना चाहिए और यही दर्शकों से भी पूछना चाहिए। मेरी ओर से इसका उत्तर देना अच्छा नहीं होगा। मैं इसे इस तरह देखता हूं कि आप लोग मुझे अमिताभ बच्चन से तुलना के योग्य मानते हैं। मेरे लिए यही बड़ी उपलब्धि है। ऐसे कितने अभिनेता हैं जिन्हें अमिताभ बच्चन से तुलना किए जाने का सम्मान मिला है? इसलिए लगता है कि मैं कुछ तो सही कर रहा हूं।
आपके पापा अपने अनुशासित जीवन और प्रोफेशनल करिअर में कई अन्य विशेषताओं के लिए जाने जाते हैं। अभिनेता के रूप में आपने इनमें से क्या आत्मसात किया है? ऐसी कोई बात जो आप उनसे और ज्यादा सीख लेना चाहते थे?
हां भी और नहीं भी। उनका अनुशासन अद्भुत है और कर्तव्य और समर्पण की उनकी भावना अद्वितीय है। आप जीवन में हमेशा कुछ अधिक कर सकते हैं। बाकी तो उनका बेटा होने के कारण मैं निश्चिंत हूं कि कुछ तो मेरे अवचेतन में होगा ही। मैं चाहूंगा कि मैं ऐसा कुछ करने की कोशिश करूं जो मेरे लिए अद्वितीय हो, मगर ऐसा कुछ जो स्पष्ट रूप से उनसे प्रेरित न हो। विशुद्ध रूप से यह काम के बारे में है। आज भी उनसे सीखने के लिए बहुत कुछ है। वह 50 साल से शीर्ष पर हैं और आज भी काम के लिए तैयार रहते हैं। जिस दिन मैंने फिल्म उद्योग में 20 साल पूरे किए मैं उनके पास गया, उनके पैर छुए और आशीर्वाद लिया। उन्होंने मुझ से पूछा, कि इतनी सुबह मैं कहां जा रहा हूं, तो मैंने कहा, “पा, जब आपने पिछले साल फिल्म उद्योग में 50 साल पूरे किए थे, तो मैं आपको बधाई देने आया था और आपसे पूछा था, कि आप कहां जा रहे हैं। आपने मुझसे कहा था, बेटा मैं काम पर जा रहा हूं।” वह मेरे लिए बड़ा सबक था। इंडस्ट्री में 50 साल पूरे करने के बाद भी मेरी राय में इस इंडस्ट्री के महान अभिनेता के अंदर काम की ललक है और आप अभी भी अपना श्रेष्ठ देना चाहते हैं! काम पूजा है और यही मैं करने की कोशिश भी करता हूं। मुझे आशा है कि मैं उनकी उम्मीदों पर खरा उतर सकता हूं। मुझे आशा है एक पिता के रूप में ही नहीं, एक सहकर्मी के रूप में भी मैं उन्हें मुझ पर गर्व महसूस करने का मौका दूंगा।
आपके पापा की फिल्म गुलाबो सिताबो का हाल ही में सीधे ओटीटी प्लेटफॉर्म पर प्रीमियर हुआ। आपकी भी कुछ फिल्में सीधे यहीं आएंगी। फिल्म उद्योग के लिए यह नया रास्ता क्या है?
मुझे इस बारे में जानकारी नहीं है। इस पर टिप्पणी करना अभी जल्दबाजी होगी। मुझे खुशी है कि मेरा काम वहां है। फिल्में बंद पड़ी रहें, इससे बेहतर है वे कहीं रहें। अमेजन प्राइम वीडियो पर मेरा शो आ रहा है, दो फिल्में बिग बुल और लूडो भी इस साल आएंगी। मेरी एक और फिल्म बॉब बिश्वास भी बस पूरी होने को है। बहुत सारे दिलचस्प काम हैं जिन्हें लेकर मैं रोमांचित हूं।