अफगानिस्तान के 3.8 करोड़ लोग 31 अगस्त की सुबह उठे तो देश पर तालिबान का कब्जा लगभग पूरा हो चुका था। अमेरिकी रक्षा मंत्रालय पेंटागन के अनुसार सोमवार मध्यरात्रि को आखिरी अमेरिकी सैन्य विमान ने काबुल एयरपोर्ट से उड़ान भरी। अमेरिकी सैनिकों ने 9/11 हमले के बाद 2001 में इस देश में कदम रखा था। इस तरह अमेरिका के सबसे लंबे युद्ध का अंत हो गया है। तालिबान ने एयरपोर्ट पर ही खुशी से फायरिंग के बीच ‘अमेरिका पर जीत’ का ऐलान कर दिया। कई जगहों पर लोगों ने अमेरिका और नाटो देशों के झंडे में लिपटे सांकेतिक ताबूत निकाले। राष्ट्रपति जो बाइडन ने सैनिक वापस बुलाने के फैसले का बचाव करते हुए कहा कि सैन्य ताकत से राष्ट्र का निर्माण नहीं किया जा सकता है।
अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन के अनुसार अफगानिस्तान में कम से कम 100 अमेरिकी नागिरक रह गए हैं जिन्हें कूटनीतिक तरीके से बाहर निकाला जाएगा। कई अन्य देशों के नागरिक भी हैं। तालिबान ने कहा है कि सही कागजात होने पर 31 अगस्त के बाद भी अफगानिस्तान और दूसरे देश के लोगों को देश से बाहर जाने की इजाजत होगी।
अमेरिकी सेना की दो दशक तक मौजूदगी का अंत बड़ी हिंसा के साथ हुआ। आइएस-खुरासान के आत्मघाती हमले में 13 अमेरिकी सैनिकों समेत 170 से ज्यादा लोग मारे गए। जवाब में अमेरिका ने एक कार पर ड्रोन हमला किया, जिसमें छह बच्चों समेत परिवार के 10 लोगों की जान चली गई। अमेरिका का दावा है कि कार में मौजूद एक शख्स आइएस का सदस्य था।
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14 अगस्त को काबुल पर तालिबान के कब्जे के बाद अमेरिका और दूसरे देशों के नागरिक अफगानिस्तान छोड़ने लगे थे। अमेरिका और मित्र देशों ने दो हफ्ते में 1.23 लाख नागरिकों को निकाला। इन सबके सामने सवाल है कि क्या वे फिर कभी अपने वतन लौट सकेंगे? दूसरी ओर, अफगानिस्तान में रह रहे लोग इस बात को लेकर फिक्रमंद हैं कि तालिबान किस तरह का सलूक करेंगे। दो दशक पहले शरीयत के नाम पर जो बर्बर कानून लागू किए थे, क्या फिर उनकी वापसी होगी?
तालिबान प्रवक्ता जबीहुल्ला मुजाहिद ने कहा कि हम अमेरिका और दुनिया से अच्छे रिश्ते चाहते हैं। उन्होंने अफगान नागरिकों से भी मतभेद भुलाकर साथ आने की अपील की। कहा कि अगर देशवासी ही साथ नहीं होंगे तो अंतरराष्ट्रीय समुदाय हमारी मदद नहीं करेगा। आर्थिक हालत सुधारने के लिए मुजाहिद ने दूसरे देशों से निवेश करने की भी अपील की। लेकिन उनकी बातों पर अफगान नागरिकों को जरा भी भरोसा नहीं। ग्रामीण इलाकों में लोगों का कहना है कि तालिबान बिल्कुल नहीं बदले हैं। पिछले दिनों लोक गायक फवाद अंदराबी को घर से निकाल कर मार डाला। अमेरिका के संपर्क में रहने वाले अनुवादकों, सैन्य ठेकेदारों, सरकारी कर्मचारियों, स्थनायी पत्रकारों, मानवाधिकार और एनजीओ कार्यकर्ताओं को अचानक अपना जीवन खतरे में लगने लगा है।
दशकों से युद्धरत अफगानिस्तान के रूढ़िवादी समाज में बीते दो दशकों में महिलाओं को काफी आजादी मिली। तालिबान के लौटने के बाद उनके ही सबसे अधिक प्रभावित होने की आशंका है। रेहाना राहा नाम की एक महिला तालिबान से बचने के लिए नाले के रास्ते काबुल एयरपोर्ट पहुंची और देश छोड़ पेरिस गई। काबुल एयरपोर्ट बंद होने के बाद देश छोड़ने के लिए पाकिस्तान और ईरान सीमा पर लोगों की लंबी कतार लग गई है।
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संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि साल के अंत तक पांच लाख लोग देश छोड़कर जा सकते हैं। इसलिए यूरोपीय देशों ने फिलहाल अफगान नागरिकों को मदद जारी रखने का फैसला किया है। वे नहीं चाहते कि सीरिया के बाद अब अफगान शरणार्थी भी आएं। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने तालिबान से उन लोगों को अनुमति देने का आग्रह किया है जो देश छोड़ना चाहते हैं। अफगानिस्तान दुनिया के सबसे गरीब देशों में है। यूनिसेफ के अनुसार यहां के 1.8 करोड़ लोगों को मदद की दरकार है। लेकिन अभी काबुल में कोई कॉमर्शियल फ्लाइट न होने से मदद मिलना मुश्किल है। काबुल एयरपोर्ट दोबारा शुरू करने के लिए तालिबान ने तुर्की और कतर से संपर्क किया है।
अमेरिका-यूरोप ने अभी तक तालिबान को मान्यता नहीं दी है, लेकिन कहा है कि नए संबंधों की शुरुआत होगी। भारत का रुख भी बदला लग रहा है। कतर में भारत के राजदूत दीपक मित्तल ने दोहा में तालिबान नेता शेर मोहम्मद अब्बास स्तानेकजई से 31 अगस्त को मुलाकात की। तालिबान ने भी कहा है कि वह भारत के साथ अच्छे संबंध चाहता है। लेकिन पूरी दुनिया को आशंका तालिबान के दोहरे चरित्र को लेकर है।