कश्मीर घाटी में श्रीनगर और दूसरे क्षेत्रों में कई थानों के बाहर मां-बाप लाइन लगाए खड़े हैं, ताकि अपने पकड़े गए बच्चों से मिलने की इजाजत पा सकें। मगर सरकार पांच अगस्त को संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत विशेष दर्जा खत्म करने के फैसले के बाद से घाटी में हुई इन गिरफ्तारियों के बारे में मौन है। सूत्रों के मुताबिक तो करीब 3,000 लोगों को गिरफ्तार किया गया है, लेकिन पुलिस हिरासत में रखे गए लोगों के बारे में कोई सूचना उपलब्ध नहीं है। अमूमन देर रात छापों में पुलिस लोगों को उठा ले गई है। ऐसी ही एक रात श्रीनगर के महजूर नगर इलाके से पुलिस करीब एक दर्जन लड़कों को पकड़ ले गई। इनमें एक 14 साल का जाहिद फयाज भी है। उसके परिवार वाले कहते हैं कि पुलिस और अर्धसैन्य बलों ने दीवार लांघकर उनके घर पर धावा बोल दिया और फयाज को उठा ले गए। उसे इस इलाके के सदर थाने के बजाय राजबाग थाने में ले जाया गया। मोहल्ले के लोगों के मुताबिक, उस रात कई घरों पर छापा मारा गया और आठ लड़कों को उठाया गया। लोग कहते हैं, “हमें नहीं पता कि दूसरे मोहल्लों और इलाकों से कितने लड़कों और लोगों को पकड़ा गया। पुलिस थाने गिरफ्तार युवकों से ठंसे पड़े हैं।”
लोग बेहद नाराज हैं। एक ने कहा कि अनुच्छेद 370 और 35ए हटाने के पीछे सरकार की मंशा यहां बाहरी लोगों को बसाकर जनसंख्या अनुपात बदल देना है। उसका कहना है कि अब एक ही हल है कि भारत और पाकिस्तान के बीच खुली जंग हो। इन दिनों घाटी में ज्यादातर जगहों पर लोगों को जंग ही हल दिखता है, जो घोर निराशा का ही संकेत है।
श्रीनगर के उत्तर में करीब 100 किलोमीटर दूर सीमावर्ती कस्बे उड़ी में सभी दुकानें बंद हैं और सड़कों पर ट्रैफिक लगभग गायब है। कुछ दवा की दुकानें खुली हैं लेकिन दुकानदार कहते हैं कि दवाइयों का स्टॉक 75 फीसदी कम हो चुका है। भूखे आवारा कुत्ते भौंक रहे हैं और खाने की तलाश में इधर-उधर दौड़ रहे हैं। 1990 के दशक में कश्मीर में आतंकवाद के दौर के बाद से उड़ी कस्बे में यह सबसे लंबा कर्फ्यू है। चार अगस्त को पुलिस ने उड़ी ट्रेडर्स एसोसिएशन के बीमार अध्यक्ष 85 वर्षीय हाजी असदुल्लाह लोन को गिरफ्तार कर लिया था। पांच अगस्त को केंद्र की भाजपा सरकार ने अनुच्छेद 370 के तहत विशेष दर्जे और 35ए को हटा दिया। साथ ही जम्मू-कश्मीर को दो टुकड़ों में बांटकर जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को केंद्रशासित प्रदेश बना दिया।
पुलिस ने पांच दिनों तक लोन को हिरासत में रखने के बाद उनके घर में शिफ्ट कर दिया, जहां वे नजरबंद हैं। लोन अपने क्षेत्र में कांग्रेस के ब्लॉक अध्यक्ष भी हैं। इलाके के लोग कहते हैं कि पांच अगस्त की सुबह कर्फ्यू लगा दिया गया, जो दस दिन तक जारी रहा। इसके बाद से क्षेत्र में “सिविल कर्फ्यू” है। क्षेत्र के एक सरपंच ने कहा, “जब आप लोगों की इच्छा के विरुद्ध कुछ भी करते हैं, तो हम हड़ताल करने के लिए बाध्य हो जाते हैं।” सरपंच के साथ तीन और लोग थे, जो घाटी की मौजूदा स्थिति पर बात कर रहे थे।
पारंपरिक रूप से यह क्षेत्र भारत समर्थक रहा है और लोगों ने बड़ी संख्या में मतदान भी किया था। सरपंच कहते हैं कि चुनाव में इस क्षेत्र में 80 फीसदी मतदान हुआ था। वे कहते हैं, “हम भारतीय हैं। हमारे मन में कोई दूसरा विचार नहीं था। हम चुनाव प्रक्रिया पर भरोसा रखते थे और मतदान करते रहे हैं। लेकिन अब भाजपा सरकार ने हमारे लिए स्थिति पूरी तरह बदल दी है। अनुच्छेद 370 और 35ए हटाकर सरकार ने हमारी संस्कृति, हमारी पहचान पर हमला किया है। हमारी भूमि खतरे में है। हमारे बच्चों का भविष्य बर्बाद हो गया है। अब हम श्रीनगर के लोगों के साथ चलेंगे।” वे सवाल करते हैं, “अगर नगालैंड में उनकी संस्कृति, भाषा, लोगों और भूमि की रक्षा के लिए अनुच्छेद 371 हो सकता है तो हमारे लिए ऐसी कोई व्यवस्था क्यों नहीं हो सकती।”
दुकानों के बंद शटर के बाहर जमीन पर बैठे लोग घाटी में मौजूदा राजनैतिक स्थिति और संचार माध्यमों पर प्रतिबंधों के बारे में बात कर रहे हैं। श्रीनगर और अन्य स्थानों पर लोगों की जंग की बातों के विपरीत उड़ी में लोग जंग की बात से दहशत में आ जाते हैं क्योंकि वे नियंत्रण रेखा पर भारत और पाकिस्तान के बीच नियमित रूप से गोलीबारी देखते हैं। इस वजह से उन्हें विस्थापित भी होना पड़ा है। स्वास्थ्य विभाग का एक कर्मचारी कहता है, “अमन रहना चाहिए। जंग किसी भी हालत में नहीं होनी चाहिए। हम जानते हैं कि इसके मायने क्या होते हैं।” मलिक मेडिकल हाउस के संचालक बताते हैं कि उनका स्टॉक पहली बार खत्म हुआ है। वे कहते हैं, “हर जगह हालत एक जैसी है। मैं कह सकता हूं कि घाटी में खाने-पीने की वस्तुएं उपलब्ध हैं, लेकिन दवाइयां नहीं हैं। यहां तक कि बेबी फूड भी उपलब्ध नहीं है।”
श्रीनगर से 60 किलोमीटर दूर सोपोर फल मंडी में बड़ी संख्या में ट्रक पिछले 15 दिनों से सेब की पेटियां लदने का इंतजार कर रहे हैं। लेकिन वे दुकानें खाली हैं, जहां लोग अपनी उपज बेचते हैं। एक व्यक्ति बेचने के लिए सेब की कुछ पेटियां मंडी में लेकर आया था, वह उन्हें वहीं छोड़ गया। एक गाय ने उसे बिखेर दिया, लेकिन गाय को हटाने के लिए मंडी में कोई नहीं था।
वहां से थोड़ी दूर पंजाब के गुरदासपुर से आए एक ट्रक ड्राइवर ने कहा कि वह तीन अगस्त को कश्मीर आया था, तब से घाटी में ही फंसा है। उसका अपने परिवार से कोई संपर्क नहीं हो पाया है। वह पूछता है कि कश्मीर में मोबाइल सेवा कब शुरू होगी।
फल उत्पादक और कारोबारी कहते हैं कि संचार माध्यमों पर रोक से बहुत परेशानी हो रही है। एक फल उत्पादक ने कहा, “बाहर की दुनिया से हमारा कोई संपर्क नहीं है। रेड डेलिसियस जैसी अगैती किस्म के सेब पेड़ों से तुड़ाई के 36 घंटे बाद खराब होने लगते हैं। हमें नहीं पता कि हम इनका क्या करें। हमें यह भी नहीं मालूम कि बाजार में भाव क्या है। कहां बेचें और कहां भेजें, क्योंकि संचार माध्यमों पर प्रतिबंध से व्यापार करना असंभव हो गया है।” वे कहते हैं कि सोपोर एशिया की सबसे बड़ी फल मंडियों में एक है, लेकिन पीक सीजन में भी हमें घाटा हो रहा है। दूसरे उत्पादक कहते हैं, “इस समय फलों की जो भी मात्रा घाटी से भेजी जा रही है, वह दिल्ली की आजादपुर मंडी जाती है क्योंकि अन्य मंडियों से हमारा कोई संपर्क नहीं है।” सोपोर के लोग बताते हैं कि पुलिस ने बहुत सारे लोगों को हिरासत में ले रखा है। सिर्फ डांगेरपोरा से ही पुलिसवाले आठ लोगों को ले गए।
गुलमर्ग में सिर्फ भूख से बिलबिलाते कुत्तों की आवाज सुनाई देती है। वे बंद दुकानों की ओर जाते हैं ताकि खाने को कुछ मिल जाए। एक दुकान पर कुछ नहीं मिलने पर दूसरी दुकान की ओर दौड़ पड़ते हैं। एक चायवाले ने चार अगस्त के बाद पहली बार दुकान खोली। वह कहता है, “मैं देखने आया था कि मेरी दुकान सुरक्षित है या नहीं। मैं दुकान में सफाई भी करना चाहता था। इससे पहले मैंने 1990 के शुरू में ऐसी स्थिति देखी थी, तब मैं बहुत छोटा था। मैंने यह दुकान 1996 में खोली थी। तब से गुलमर्ग में इतने लंबे समय के लिए कर्फ्यू कभी नहीं लगा।” चाय विक्रेता ने कहा कि सरकार ने पर्यटकों को यहां से जाने के लिए बाध्य कर दिया, इसके बाद होटल बंद हो गए। अब होटलों में सिर्फ दो-तीन हेल्पर या गार्ड रह गए हैं। अगर किसी होटल में आज किसी हेल्पर या गार्ड की मौत हो जाए तो किसी को पता भी नहीं चलेगा। गुलमर्ग में काम करने वाला तंगमर्ग का एक लड़का कहता है कि यहां डर है कि बड़े कारोबारी घराने बाहर से आएंगे और गुलमर्ग पर कब्जा कर लेंगे। चेहरे पर डर का कोई भाव लाए बगैर लड़का कहता है, “मैं अब चाहता हूं कि जंग हो जाए। मैं ऐसी जिंदगी जीना नहीं चाहता हूं।” वह कहता है कि सेना के लिए कुली का काम करने वाले कश्मीरियों से कुछ दिन पहले कहा गया है कि वह यहां से चले जाएं। गुलमर्ग के प्रवेश स्थान पर स्थित पुलिस चौकी में तैनात एक पुलिसकर्मी ने कहा कि अभी कोई भी गुलमर्ग नहीं आ रहा है। एक पुलिस अधिकारी ने कहा, “सेना के कुलियों से कुछ दिन पहले यहां से चले जाने को कहा गया था, लेकिन मुझे लगता है कि वे वापस काम पर लौट आए हैं।”
सरकार ने एक तरफ जहां मुख्यधारा के नेताओं को गिरफ्तार कर लिया है, वहीं उसने बड़ी संख्या में युवाओं को पत्थर फेंकने के आरोप में हिरासत में ले रखा है। सरकार ने हाजिन में कूका पर्रे के निवास पर सुरक्षा बढ़ा दी है। पूर्व इख्वानी कमांडर कूका पर्रे के बेटे खुर्शीद पर्रे कहते हैं, “हमारे पास सिर्फ 15 सुरक्षा गार्ड थे। उन्होंने 60 गार्ड और भेजे हैं।” खुर्शीद अपने घर के पिछवाड़े में वॉलीबॉल खेल रहे थे। सुरक्षा बल इसी घर में उनकी सुरक्षा करते हैं। ट्रैक सूट पहने खुर्शीद कहते हैं कि उनके परिवार और उनके पिता ने भारत के लिए जो भी किया, वह बेमिसाल है। वे आगे कहते हैं, “हमने राज्य में भारत का झंडा ऊंचा रखने के लिए कई कुर्बानियां दी हैं। अगर सरकार सोचती है कि अब भी हमारी कोई भूमिका है तो हमें वह जिम्मेदारी निभाने में खुशी होगी।”
खुर्शीद मानते हैं कि उनके पिता की एक ही पहचान थी कि वह भारतीय हैं। फारूक अब्दुल्ला के पास तो कई “पहचान-पत्र” हैं। वे बताते हैं कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल जब कश्मीर में तैनात थे, वह उनके पिता के संपर्क में रहते थे। लेकिन इस बार उन्होंने अभी तक उनसे संपर्क नहीं किया है। कूका पर्रे की अवामी लीग के प्रमुख खुर्शीद कहते हैं कि अनुच्छेद 370 को बदलने से उन पर किसी तरह का असर नहीं पड़ेगा। वे कहते हैं, “मैं नहीं समझता, इससे मेरे ऊपर या किसी भी कश्मीरी पर कोई प्रभाव पड़ेगा। जब तक मैं अपनी जमीन किसी बाहरी को नहीं बेचूंगा, तब तक कोई कैसे हमारी जमीन खरीद सकता है।”
खुर्शीद को लगता है कि लोग अब्दुल्ला पिता-पुत्र और महबूबा मुफ्ती की गिरफ्तारी से खुश हैं। वे कहते हैं, “मेरे पिता मुख्यमंत्री बन गए होते। 1996 में जम्मू-कश्मीर में चुनाव मेरे पिता की वजह से ही संभव हो सके थे।” वे कहते हैं कि फारूक अब्दुल्ला 1996 में लंदन में थे और मुफ्ती मोहम्मद सईद दिल्ली में। फारूक को डर था कि कूका पर्रे मुख्यमंत्री बन जाएंगे, इसलिए वह चुनाव लड़ने के लिए राजी हो गए और अपने दोस्तों की मदद से मुख्यमंत्री बन गए।