आखिरकार चुनावी वर्ष में उत्तर प्रदेश सरकार बसपा के बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी को पंजाब से गृह राज्य लाने में सफल हो गई। अब कथित तौर उसकी कोशिश एक और बाहुबली अतीक अहमद को गुजरात की जेल से प्रदेश में लाने की है। जाहिर है, 2022 के शुरू में होने वाले विधानसभा चुनावों के पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार की नजर सख्ती के संदेश देने के साथ सियासी गणित और चुनावी प्रबंधन पर भी हो सकती है। वजह यह कि अंसारी का सियासी रसूख गाजीपुर, मऊ, बलिया, आजमगढ़ जैसे जिलों में बताया जाता है तो अतीक अहमद का असर इलाहाबाद, मिर्जापुर और आसपास के जिलों में कहा जाता है। बेशक, राज्य सरकार इसे अपनी माफिया ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति का हिस्सा बताती है और उसकी कोशिश लोगों में अपनी सख्त छवि का संदेश पहुंचाना है, मगर विपक्ष कई सवाल उठाता है।
वैसे, प्रदेश की भाजपा सरकार करीब दो साल से अंसारी को पंजाब से लाने की कवायद में जुटी हुई थी। अंसारी पर उत्तर प्रदेश में 50 से अधिक मामले चल रहे हैं। जनवरी 2019 से पंजाब की रोपड़ जेल में बंद अंसारी पर वसूली का मामला चल रहा है, जिसकी वजह से पंजाब सरकार उसे उत्तर प्रदेश को नहीं सौंप रही थी। हालांकि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद 7 अप्रैल को उत्तर प्रदेश पुलिस ने करीब 900 किलोमीटर की रात भर की यात्रा के बाद अंसारी को बांदा जेल में पहुंचा दिया।
अंसारी को उत्तर प्रदेश लाने की राज्य सरकार की जिद से कई तरह के शक-शुबहे भी पैदा हुए। अंसारी की पत्नी आफसा अंसारी ने राष्ट्रपति को लिखे 14 पन्नों के पत्र में फर्जी एनकाउंटर की आशंका जताई थी। कानपुर के पास बिकरू कांड में जिस तरह तथाकथित रूप से गाड़ी पलटने से विकास दुबे की और अलग-अलग एनकाउंटरों में उसके साथियों की मौत हुई थी, उससे अंसारी परिवार को डर सताने लगा था।
मुख्तार अंसारी की यूपी की जेल में वापसी ऐसे समय हुई है जब राज्य में पंचायत चुनाव चल रहे हैं और अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। वैसे तो अंसारी मऊ जिले की घोसी विधानसभा सीट से बसपा विधायक है, लेकिन पूर्वांचल के कई जिलों मऊ, गाजीपुर, बलिया, बनारस और आजमगढ़ की 20-25 सीटों पर असर देखा गया है। राजनीतिक रसूख का ही असर है कि मुख्तार के भाई अफजाल अंसारी गाजीपुर से सांसद हैं और उन्होंने 2019 में पूर्व केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा को चुनाव में हरा दिया था। इसी रसूख की वजह से अंसारी मुलायम सिंह और मायावती दोनों के करीबी रहे हैं। लेकिन 2017 में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनने के बाद से मुख्तार अंसारी के दिन गड़बड़ाने लगे। वैसे तो वह पिछले 17 साल से जेल में बंद है लेकिन इस दौरान उसके हनक में कमी नहीं आई थी। लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने कथित ‘माफिया विरोधी’ अभियान के तहत अंसारी और उसके सहयोगियों के कब्जे से सरकारी जमीन खाली कराने, अवैध निर्माण ढहाने और जब्ती-कुर्की शुरू की। सरकारी दावा है कि इसके जरिए 192 करोड़ रुपये की वसूली हुई है और 41 करोड़ रुपये की सालाना अवैध आय पर अंकुश लगा है। पुलिस ने अब तक 96 लोगों की गिरफ्तार किया है, 75 के खिलाफ गैंगस्टर एक्ट के तहत कार्रवाई की है और 72 शस्त्र लाइसेंस निरस्त और निलंबित किए गए हैं। आफसा अंसारी और बेटों अब्बास तथा उमर सहित 12 लोगों के खिलाफ जालसाजी कर पट्टे की जमीन हड़प कर होटल बनाने का भी मुकदमा दर्ज किया गया है। हालांकि विपक्ष कई तरह के सवाल उठा रहा है। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा, ‘‘मैंने जितना भी अखबारों में पढ़ा और टीवी पर देखा है, उसमें मुख्तार अंसारी के परिवार ने न्यायालय पर भरोसा जताया है। लेकिन जिस तरह से भाजपा काम करती है, उसे देखकर यह उम्मीद करना बेमानी है कि किसी को न्याय मिल पाएगा।’’
इस पर उप-मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा ने कहा, ‘‘शपथ लेने के साथ ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जीरो टॉलरेंस की नीति का ऐलान किया था, किसी व्यक्ति विशेष को लेकर यह नीति नहीं है, अपराध और अपराधी तत्वों को लेकर जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाई जा रही है।’’ मऊ विधानसभा सीट से पांचवीं बार विधायक मुख्तार अंसारी, पहली बार 1996 में बसपा के टिकट पर जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। इसके बाद वे 2002, 2007, 2012 और 2017 में जीतकर आए। खास बात यह है कि 2007 से वे जेल में रहकर चुनाव जीत रहे हैं।
बहरहाल, मुख्तार अंसारी के बाद कथित तौर पर गुजरात के जेल में बंद पूर्व सांसद अतीक अहमद को भी लाने की तैयारी के सियासी संदेश स्पष्ट हैं। लेकिन देखना है कि अगले साल चुनावों में इसका क्या असर होता है।
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रोपड़ से बांदा ः मुख्तार अंसारी को लेकर जाते पंजाब पुलिस के जवान