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पेट्रोल-डीजल : बढ़े तो ज्यादा दो, घटे तो हमें दो

2014 में जब मोदी सरकार आई, तब की तुलना में कच्चे तेल की कीमत आधी लेकिन ईंधन के दाम 30 फीसदी ज्यादा, पेट्रोल 100 के पार पहुंचा
पेट्रोल-डीजल

कालजयी हिंदी फिल्म चलती का नाम गाड़ी का एक डायलॉग है, चित मैं जीता, पट तुम हारे। पेट्रोल-डीजल के दाम में आम लोगों के साथ कुछ ऐसा ही सलूक हो रहा है। पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान 10 फरवरी 2021 को राज्यसभा में एक सवाल का जवाब दे रहे थे। सवाल था कि पेट्रोल और डीजल की आसमान छूती कीमतों से आम लोगों को राहत देने के लिए क्या सरकार इन पर एक्साइज ड्यूटी घटाएगी? इससे इनकार करते हुए प्रधान ने जवाब दिया, “जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल महंगा होता है, तो हम पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ाते हैं। जब कच्चा तेल सस्ता होता है तो हमें भी कीमत घटानी पड़ती है। यह बाजार आधारित व्यवस्था है, जिसका तेल कंपनियां पालन करती हैं। हमने उन्हें दाम तय करने की आजादी दे रखी है।”

अब पेट्रोलियम मंत्री के इस मासूम जवाब की हकीकत भी जान लेते हैं। पिछले साल कोरोना के चलते दुनिया के अनेक देशों में लॉकडाउन हुआ तो कच्चे तेल की मांग घट गई। इसकी कीमत दो दशक में सबसे कम, 20 डॉलर प्रति बैरल से भी नीचे आ गई। अगर पेट्रोलियम मंत्री की बात सही होती तो पेट्रोल-डीजल काफी सस्ता हो जाना चाहिए था। पर ऐसा हुआ नहीं, क्योंकि सरकार ने पहले तो मार्च में इन पर एक्साइज ड्यूटी तीन-तीन रुपये प्रति लीटर बढ़ाई। उसके बाद मई में पेट्रोल पर ड्यूटी 10 रुपये और डीजल पर 13 रुपये फिर बढ़ा दी।

केंद्र और राज्यों के टैक्स का ही नतीजा है कि सामान्य किस्म के पेट्रोल की कीमत कुछ जगहों पर 100 रुपये प्रति लीटर से अधिक हो गई है। प्रीमियम पेट्रोल तो पिछले महीने ही 100 के पार चला गया था। इस साल जनवरी से 17 फरवरी तक दिल्ली में पेट्रोल 5.83 रुपये और डीजल 6.08 रुपये महंगा हुआ है।

यूपीए सरकार ने 2010 में पेट्रोल, और एनडीए ने 2014 में डीजल के दाम को नियंत्रणमुक्त किया था। कहा यह गया कि अंतरराष्ट्रीय भावों के मुताबिक तेल कंपनियां खुद पेट्रोल-डीजल के खुदरा दाम तय करेंगी। लेकिन वास्तव में इन पर हमेशा सरकार का नियंत्रण रहा है। होता यह है कि जब भी अंतरराष्ट्रीय बाजार में दाम बढ़ते हैं, तो खुदरा दाम तत्काल बढ़ जाते हैं। लेकिन जब अंतराष्ट्रीय स्तर पर दाम में कमी आती है, तो अक्सर सरकार नए टैक्स जोड़ देती है।

इस डिकंट्रोल का एकतरफा फायदा सरकार को ही होता है। कंट्रोलर जनरल ऑफ एकाउंट्स (सीजीए) के अनुसार अप्रैल से नवंबर 2020 के दौरान एक्साइज ड्यूटी संग्रह 48 फीसदी बढ़कर 1.96 लाख करोड़ रुपये हो गया। एक साल पहले यह 1.33 लाख करोड़ रुपये था। तेल मंत्रालय के पेट्रोलियम प्लानिंग एेंड एनालिसिस सेल (पीपीएसी) के अनुसार इन आठ महीनों में डीजल की बिक्री 5.54 करोड़ टन से घटकर 4.49 करोड़ टन रह गई। पेट्रोल की खपत भी 2.04 करोड़ टन से घटकर 1.74 करोड़ टन पर आ गई। आठ महीने में डीजल एक करोड़ टन और पेट्रोल 30 लाख टन कम बिका, फिर भी एक्साइज संग्रह डेढ़ गुना हो गया तो यह एक्साइज ड्यूटी में बढ़ोतरी का ही कमाल है।

मोदी सरकार 2014 में जब सत्ता में आई, तब पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी 9.48 रुपये और डीजल पर 3.56 रुपये थी। नवंबर 2014 से जनवरी 2016 के दौरान जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम घट रहे थे, तब सरकार ने पेट्रोल-डीजल पर नौ बार एक्साइज ड्यूटी बढ़ाई थी। उन 15 महीनों में पेट्रोल पर ड्यूटी 11.77 रुपये और डीजल पर 13.47 रुपये प्रति लीटर बढ़ी। नतीजा यह हुआ कि आम लोगों को अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल सस्ता होने का फायदा नहीं मिला।

 

तेल कंपनियां दाम तय करने की बाजार आधारित व्यवस्था का पालन करती हैं, हमने उन्हें पूरी छूट दे रखी है

धर्मेंद्र प्रधान, पेट्रोलियम मंत्री

 

अक्टूबर 2017 में सरकार ने एक्साइज ड्यूटी पहले दो रुपये और फिर 1.50 रुपये घटाई थी, लेकिन जुलाई 2019 में फिर दो रुपये बढ़ा दी। उसके बाद पिछले साल मार्च और मई में बढ़ाई। मई में पेट्रोल पर ड्यूटी 10 रुपये और डीजल पर 13 रुपये बढ़ाने के कारण ही 2020-21 में कुल एक्साइज संग्रह के अनुमान को सरकार ने 2.67 लाख करोड़ से बढ़ाकर 3.61 लाख करोड़ रुपये कर दिया है।

इंडियन ऑयल के 16 फरवरी के आंकड़ों (प्राइस बिल्डअप) के अनुसार पेट्रोल पर 32.90 रुपये और डीजल पर 31.80 रुपये एक्साइज ड्यूटी है। यानी पेट्रोल की कीमत में 39 फीसदी और डीजल में 42 फीसदी हिस्सा एक्साइज ड्यूटी का है। इसमें राज्यों का वैट मिला दें तो पेट्रोल की कीमत का 60 फीसदी और डीजल का 54.5 फीसदी टैक्स में जाता है। राज्य सरकारें भी पेट्रोल-डीजल पर वैट और अन्य लेवी बढ़ाती रही हैं। लेकिन केंद्र सरकार के अनुपात में इन्होंने कम बढ़ाया है। 2014-15 से तुलना करें तो पेट्रोलियम पर केंद्र का एक्साइज संग्रह 125 फीसदी बढ़ा, जबकि राज्यों का वैट संग्रह 46 फीसदी।

 

कच्चा तेल और महंगा होने के आसार नहीं

अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल इस साल डेढ़ महीने में 22 फीसदी महंगा हुआ है। पेट्रोलियम विशेषज्ञ नरेंद्र तनेजा इसके तीन कारण बताते हैं। पहला, तेल उत्पादक ओपेक देशों और रूस ने उत्पादन घटाया है। उन्होंने मई 2020 से उत्पादन रोजाना एक करोड़ बैरल घटाने का फैसला किया था। सऊदी अरब ने जनवरी के शुरू में ऐलान किया कि वह रोजाना उत्पादन 10 लाख बैरल घटाएगा। दूसरा, अमेरिका और यूरोप में अभी काफी ठंड होने के कारण तेल की मांग ज्यादा है। ठंड वाले इलाकों में तेल का उत्पादन भी ठप हो गया है। तीसरा, अमेरिका में शेल ऑयल के उत्पादन में गिरावट आई है। हालांकि अभी तक कच्चे तेल की मांग कोविड-19 से पहले की स्थिति में नहीं पहुंची है। तनेजा के अनुसार यह अभी सात फीसदी कम है।

 

 

अंतरराष्ट्रीय बाजार में ब्रेंट क्रूड 63 डॉलर और तेल का भारतीय बास्केट 60 डॉलर प्रति बैरल के आसपास है। गोल्डमैन साक्स का अनुमान है कि ब्रेंट 65 डॉलर तक जा सकता है। हालांकि तनेजा और एक अन्य पेट्रोलियम विशेषज्ञ अरुण घोष कहते हैं कि अब दाम ज्यादा बढ़ने की गुंजाइश नहीं है। उनका आकलन है कि जून तक भारतीय बास्केट की कीमत 54-55 डॉलर तक गिर जाएगी। लेकिन साल की दूसरी छमाही में आर्थिक गतिविधियां बढ़ने पर भारत ही नहीं, दुनियाभर में मांग बढ़ेगी। तब भारतीय बास्केट एक बार फिर 60 डॉलर तक जा सकता है।

 

 

केंद्र और राज्य सरकारें दाम एक-एक रुपया घटा सकती हैं, इससे उनके राजस्व पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा

नरेंद्र तनेजा, पेट्रोलियम विशेषज्ञ

 

भारत जरूरत का 85 फीसदी कच्चा तेल आयात करता है। इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी का आकलन है कि 2040 तक भारत में पेट्रोलियम की मांग चीन से भी तेजी से बढ़ेगी। 2019 में भारत में तेल की मांग 50 लाख बैरल रोजाना थी। यह 2040 में 87 लाख बैरल हो जाएगी। इस दौरान प्राकृतिक गैस की मांग तीन गुना बढ़कर 200 अरब घन मीटर हो जाने की उम्मीद है। ऐसे में भारत को सस्ते विकल्प की दरकार है।

घोष के अनुसार ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंध से भारत को नुकसान हुआ है। एक समय भारत सबसे ज्यादा कच्चा तेल ईरान से ही आयात करता था। घोष की राय में भारत को रूस से आयात बढ़ाना चाहिए। तनेजा इसकी वजह बताते हैं। कच्चा तेल सस्ता होने से इसके सबसे बड़े निर्यातक सऊदी अरब की कमाई घटी है। अपने लोगों को सब्सिडी और अन्य सुविधाएं देने के लिए वह चाहता है कि कच्चा तेल 68 डॉलर प्रति बैरल के आसपास रहे। सबसे बड़े उत्पादक रूस के लिए 38 डॉलर का भाव काफी है। इसलिए रूस उत्पादन बढ़ाना चाहता है, जबकि सऊदी अरब उत्पादन घटाकर दाम बढ़ाना चाहता है।  दोनों विशेषज्ञों का मानना है कि ओपेक देश अब दाम ज्यादा नहीं बढ़ाएंगे, क्योंकि मांग घटने का डर है।

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