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कोविड टीका : सरकार बदले मगर बर्बादी के बाद

‘मनमानी और अविवेकी’ नीति पर सर्वोच्च न्यायालय ने सख्ती दिखाई और जनता की नाराजगी बढ़ी तो राज्यों के लिए वैक्सीन खरीदने पर राजी हुआ केंद्र'
बदली नीतिः राज्यों को मुफ्त वैक्सीन देने की घोषणा करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

आखिरकार सुप्रीम कोर्ट की सख्ती, राज्यों के दबाव, आलोचनाओं और आम लोगों में रोष के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वैक्सीन खरीदकर राज्यों को मुफ्त में देने का ऐलान किया। केंद्र सरकार कंपनियों से 75 फीसदी वैक्सीन खरीदेगी और 18 साल से अधिक उम्र वालों के लिए उपलब्ध कराएगी। बाकी 25 फीसदी वैक्सीन निजी अस्पतालों के लिए होगी। वे कीमत के अलावा 150 रुपये प्रति डोज सर्विस चार्ज ले सकेंगे। टीकाकरण की नई गाइडलाइन भी जल्दी जारी होने की उम्मीद है। अभी केंद्र सरकार संक्रमित लोगों की संख्या और नष्ट होने वाले टीके जैसे मानकों के आधार पर वैक्सीन का कोटा तय करती है। ये नियम बने रह सकते हैं, लेकिन आगे राज्यों को ज्यादा छूट मिल सकती है।

नई खरीद नीति घोषित करने के साथ प्रधानमंत्री ने वैक्सीन पर अफरातफरी का सारा दोष गैर-भाजपा शासित राज्यों पर मढ़ने की कोशिश की। लेकिन उन्होंने अनेक सवालों के जवाब नहीं दिए जो सुप्रीम कोर्ट ने उठाए थे। सबसे बड़ा सवाल तो यही था कि राज्यों को केंद्र की तुलना में दोगुनी कीमत पर वैक्सीन खरीदने के लिए क्यों कहा गया? 45 साल से अधिक उम्र के लोगों को वैक्सीन मुफ्त दी जा सकती है, तो 18 से 44 वालों से पैसे लेने का क्या आधार है? कोर्ट ने दो हफ्ते में उन फाइल नोटिंग्स के साथ जवाब मांगा था जिनके आधार पर ये ‘मनमाने और अविवेकी’ निर्णय लिए गए थे। जब ऑक्सीजन की कमी से लोग दम तोड़ रहे थे, तब सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद ही स्थिति सुधरी थी। इसलिए जब वैक्सीन मामले में केंद्र ने कोर्ट के हस्तक्षेप का विरोध किया तो कोर्ट को कहना पड़ा कि नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों का हनन हो रहा हो, तो अदालतें मूकदर्शक नहीं रह सकती हैं। प्रधानमंत्री ने नवंबर तक 80 करोड़ गरीबों को मुफ्त राशन देने की भी घोषणा की।

वैक्सीन नीति बदलने का फैसला सरकार ने देर से किया, लेकिन इस बार ‘देर आने को दुरुस्त आना’ नहीं कह सकते, क्योंकि इस दौरान और लाखों लोगों को टीका लगाया जा सकता था। वैक्सीन न होने से अनेक सरकारी टीकाकरण केंद्र बंद हो गए। आउटलुक से बातचीत में छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव कहते हैं, “केंद्र को मालूम था कि वैक्सीन की कमी है। राज्यों के साथ प्रधानमंत्री की बैठक में केंद्र के ही अधिकारियों ने बताया था कि हर महीने सिर्फ सात करोड़ वैक्सीन बन रही हैं। फिर भी टीकाकरण सबके लिए खोल दिया गया।” उन्होंने कहा, “वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट में वैक्सीन के लिए 35,000 करोड़ रुपये का प्रावधान करते हुए कहा था कि जरूरत पड़ी तो और पैसे दिए जाएंगे। लेकिन वह तो पहले दौर में ही पीछे हट गईं।” केंद्र 150 रुपये में एक डोज खरीदता है। 35,000 करोड़ रुपये में टीके की 233 करोड़ डोज खरीदी जा सकती है। यह 85 फीसदी आबादी को दो बार टीका लगाने के लिए पर्याप्त है।

केंद्र ने 19 अप्रैल को कहा था कि 45 साल से कम वालों के लिए राज्य खुद वैक्सीन खरीदेंगे। लेकिन घरेलू कंपनियों की क्षमता कम है और विदेशी कंपनियों ने कह दिया कि वे सिर्फ केंद्र सरकार के साथ सौदा करेंगी। नतीजा यह हुआ कि 1 मई से 18-44 आयु वर्ग के लिए टीकाकरण की घोषणा के बावजूद गुजरात में एक महीने तक सिर्फ 10 जिलों में यह अभियान चला। बाकी 23 जिलों में 4 जून से टीकाकरण शुरू हुआ। दूसरे राज्यों को भी टीकाकरण रोकना या कम करना पड़ा। पंजाब के स्वास्थ्य मंत्री बलबीर सिंह सिद्धू के मुताबिक (2 जून को) 45 साल से अधिक वालों के लिए सिर्फ दो दिन की वैक्सीन बची थी। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने एक जून से टीकाकरण की प्राथमिकता सूची का विस्तार करते हुए इसमें दुकानदारों और रेहड़ी वालों को भी शामिल किया, पर वैक्सीन की किल्लत के चलते यह ऐलान सिरे नहीं चढ़ पाया। हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने आउटलुक को बताया, “18 से 44 आयु वर्ग के 1.05 करोड़ और 45 से अधिक आयु के 71 लाख लोगों के लिए 3.5 करोड़ डोज की जरूरत है।”

विज के अनुसार 18-44 आयु वर्ग को मुफ्त टीका देने के लिए राज्य ने 800 करोड़ रुपये की वैक्सीन का ऑर्डर दिया है। लेकिन कंपनियां इतनी तेजी से उत्पादन नहीं बढ़ा पा रही हैं। पंजाब के स्वास्थ्य मंत्री सिद्धू के मुताबिक 18-44 साल वालों के लिए सीरम इंस्टीट्यूट को 30 लाख डोज का ऑर्डर दिया गया था, लेकिन अभी सिर्फ 4.29 लाख डोज मिली हैं। झारखंड के अपर मुख्य सचिव (स्वास्थ्य) अरुण कुमार सिंह ने बताया कि प्रदेश में एक दिन में ढाई लाख लोगों को टीका लगाने की क्षमता है, मगर वैक्सीन ही नहीं है। कई जिलों में 45 से नीचे वालों का टीकाकरण बंद है।

वैक्सीन की अनिश्चितता शुरू से है, पर केंद्र ने या तो समस्या को कमतर बताया या दोष राज्यों पर मढ़ना चाहा। दबाव तब बढ़ता महसूस हुआ जब गैर-भाजपा शासित राज्य भी आवाज उठाने लगे। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि सभी मुख्यमंत्रियों को एक साथ प्रधानमंत्री से बात करनी चाहिए। केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने 11 गैर-भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखा। वैक्सीन के लिए ग्लोबल टेंडर का कोई जवाब न मिलने पर आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी ने कई मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखा, “हालात केंद्र बनाम राज्य जैसे हो गए हैं। अब समय आ गया है कि सभी राज्य एक सुर में बोलें।” केंद्र के बदले रवैये के पीछे राज्यों की ‘एकजुटता’ को भी एक कारण माना जा रहा है।

 

मौतें और वैक्सीन की उपलब्धता

राज्यों की शिकायत अपनी जगह, केंद्र के अपने तर्क हैं। आइसीएमआर के महानिदेशक डॉ. बलराम भार्गव कहते हैं, “अगर आप कहें कि एक महीने में ही देश में सबको वैक्सीन लगानी है तब तो कमी है, वर्ना दिसंबर तक वैक्सीन की कमी नहीं। हमें धैर्य रखना होगा।” लेकिन आंखों के सामने अपनों को दम तोड़ते देख कैसे धैर्य रखें। मई में भारत में 90.25 लाख लोग संक्रमित हुए और 1,19,89 लोगों की मौत हुई। किसी भी एक महीने में संक्रमण और मौत की संख्या, दोनों लिहाज से यह दुनिया में सर्वाधिक है। ये तो सरकारी आंकड़ें हैं। किसी भी शहर में महामारी से मरने वालों के सरकारी आंकड़े की तुलना में कोविड प्रोटोकॉल के तहत किए गए अंतिम संस्कार की संख्या कई गुना ज्यादा है। रिपोर्ट्स के मुताबिक 15 मार्च से 5 जून तक नोएडा में कोविड प्रोटोकॉल के साथ 3,155 शवों का अंतिम संस्कार किया गया, जबकि सरकारी आंकड़ों में सवा साल में यहां कोविड से सिर्फ 459 मौतें हुई हैं। मई में जब कोरोना की दूसरी लहर चरम पर थी तब गाजियाबाद में 5,422 मृत्यु प्रमाणपत्र जारी हुए, जबकि पिछले साल मई में सिर्फ 477 प्रमाणपत्र जारी हुए थे। इस साल मई में सिर्फ 239 को कोविड-19 से मौत बताया गया है।

वैक्सीन की उपलब्धता बढ़ाने के लिए सुप्रीम कोर्ट भी कह चुका है कि सरकार को कंपलसरी लाइसेंसिंग नियमों का इस्तेमाल करना चाहिए। आपात परिस्थिति में सरकार दूसरी कंपनियों से भी किसी एक कंपनी की दवा को बनाने के लिए कह सकती है। लाखों मौतों के बाद भी सरकार ने इस अधिकार का इस्तेमाल नहीं किया। इस रवैये पर दिल्ली हाइकोर्ट ने टिप्पणी की,  “क्षमता का इस्तेमाल नहीं करने के लिए कुछ लोगों पर हत्या का मुकदमा चलाया जाना चाहिए।”

इधर केंद्र ने कुछ कदम उठाए हैं। उसने पहली बार हैदराबाद की कंपनी बायोलॉजिकल ई को नई वैक्सीन कोर्बेवैक्स की 30 करोड़ डोज के लिए 1,500 करोड़ रुपये एडवांस दिए हैं। अप्रैल में सीरम इंस्टीट्यूट और भारत बायोटेक को उसने ऑर्डर दिए थे। स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार मई में 7.94 करोड़ डोज मिले थे, जून में 12 करोड़ डोज उपलब्ध होंगे। अगस्त से रोजाना एक करोड़ लोगों को वैक्सीन लगाई जा सकेगी। जैसा प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में कहा, देश में सात कंपनियां वैक्सीन बना रही हैं और तीन अन्य कंपनियों की वैक्सीन एडवांस स्टेज में है। सीरम इंस्टीट्यूट को दवा नियामक डीसीजीआइ ने स्पुतनिक-v वैक्सीन बनाने की अनुमति दी है, हालांकि अभी यह परीक्षण के स्तर पर है। सीरम अमेरिकी कंपनी नोवावैक्स की वैक्सीन भी बना रही है, पर उसे अमेरिकी रेगुलेटर से मंजूरी मिलनी बाकी है। फाइजर की वैक्सीन भी जुलाई से भारत में मिल सकती है।

 

तीसरी लहर की तैयारी

सरकार के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार के विजय राघवन ने 6 मई को कहा था कि तीसरी लहर आएगी, लेकिन समय नहीं बताया जा सकता। आइआइटी कानपुर और हैदराबाद के प्रोफेसरों ने ‘सूत्र मॉडल’ के आधार पर बताया है कि तीसरी लहर अक्टूबर-नवंबर में आ सकती है। लेकिन यही मॉडल दूसरी लहर की गंभीरता का अनुमान नहीं लगा पाया था। दूसरी लहर की शुरुआत महाराष्ट्र से ही हुई थी, इसलिए तीसरी लहर जल्दी आने की आशंका को देखते हुए राज्य सरकार ने तैयारी शुरू कर दी है। अस्पतालों में बच्चों के अलग वार्ड बनाए जा रहे हैं। दिल्ली सरकार ने इन्फ्रास्ट्रक्चर मजबूत करने और महामारी से निपटने की रणनीति बनाने के लिए दो समितियां बनाई हैं। आइआइटी दिल्ली ने हाइकोर्ट के निर्देश पर तैयार एक रिपोर्ट तैयार में बताया है कि राजधानी में भविष्य में ज्यादा संक्रमण हुआ तो ऑक्सीजन की कमी से कैसे निपटा जा सकता है। रिपोर्ट तैयार करने वाले आइआइटी के डॉ. संजय धीर आउटलुक से कहते हैं, “पिछली लहर की तुलना में 50 फीसदी ज्यादा मामले आए और हमारे सुझावों को मान लिया गया तो ऑक्सीजन की कमी नहीं होगी।”

दूसरे राज्य भी तैयारियों का दावा कर रहे हैं। हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री विज ने बताया कि 30 या अधिक बिस्तर वाले अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों में ऑक्सीजन प्लांट लगाए जा रहे हैं। हर बेड के साथ ऑक्सीजन और वेंटिलेटर की व्यवस्था की जा रही है। आइसीयू बेड भी निर्धारित होंगे। चिकित्सकों को रिफ्रेशर कोर्स के साथ पैरामेडिक स्टाफ तथा तकनीकी स्टाफ को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। 100 से अधिक बिस्तरों वाले अस्पतालों में टेस्टिंग लैब अपग्रेड की जा रही हैं।

झारखंड के स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता के अनुसार सभी सदर अस्पतालों में पेडियाट्रिक आइसीयू और जिला स्तर पर न्यूबॉर्न बेबी केयर वार्ड बनाए जा रहे हैं, जहां एक माह तक के बच्चों का इलाज किया जाएगा। सभी जिला उपायुक्तों से मैनपावर, संसाधन आदि का आकलन करने को कहा गया है। निजी अस्पतालों को भी बच्चों के लिए बेड सुरक्षित रखने का निर्देश है। प्रदेश के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल रिम्स रांची के सभी बेड पर ऑक्सीजन प्वाइंट की सुविधा रहेगी। रिम्स में बच्चों के लिए 300 और सदर अस्पताल में 50 डेडिकेटेड बेड तैयार किए जा रहे हैं। बच्चों के साथ रिम्स में अभिभावक भी रह सकें, इसका इंतजाम किया जा रहा है। डॉक्टरों की कमी को देखते हुए सरकार ने 2022 तक डॉक्टरों को रिटायर न कराने का फैसला किया है। दूसरी लहर में छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक कमी आइसीयू बेड की थी। सिंहदेव के अनुसार बेबी वेंटिलेटर और आइसीयू में बच्चे के साथ मां के रहने का इंतजाम किया जा रहा है। ऑक्सीजन प्लांट, लिक्विड ऑक्सीजन टैंक, जंबो सिलिंडर, सीएचसी स्तर तक ऑक्सीजन वाले बेड की तैयारी की जा रही है।

कैसे लगे टीकाः वैक्सीन की कमी के कारण मुंबई में भी कई टीकाकरण केंद्र बंद हो गए

जून की शुरुआत में अहमदाबाद के एक अस्पताल की तस्वीर आई थी। वहां कोविड वार्ड में सिर्फ एक मरीज भर्ती था। तस्वीर संकेत थी कि मौत का तूफान गुजर चुका है। कोरोनावायरस से अभी रोजाना करीब एक लाख लोग संक्रमित हो रहे हैं, मौतों का सरकारी आंकड़ा भी दो हजार के आसपास है। कोरोना की दूसरी लहर के शिखर पर रोजाना चार लाख लोग संक्रमित हो रहे थे और चार हजार से ज्यादा मौतें हो रही थीं। नए संकेत भले सुखद हों, पर दूसरी लहर के जख्म काफी गहरे हैं। राष्ट्रीय बाल अधिकार सुरक्षा आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामे में बताया कि 1 अप्रैल 2020 से 5 जून 2021 तक 3,601 बच्चे अनाथ हुए और 26,176 के माता-पिता में से किसी एक की मौत हो गई। हालांकि इसमें सामान्य मौतें भी शामिल हैं। कोरोना से मौत अब भी बेहिसाब है, खास कर ग्रामीण इलाकों की। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) के अनुसार मई में ग्रामीण जिलों में ही 53 फीसदी नए मामले आए और 52 फीसदी मौतें हुईं।

विशेषज्ञ अंदेशा जता रहे हैं कि तीसरी लहर आई तो वह दूसरी लहर से भी अधिक जानलेवा हो सकती है। इसलिए उनका सुझाव है कि स्वास्थ्य इन्फ्रास्ट्रक्चर जल्दी मजबूत करना चाहिए। लेकिन सरकारों ने इससे पहले अपनी छवि सुधारने की मुहिम शुरू कर दी है। मौत के तांडव के समय ‘लापता’ रहने वाली सरकार के नुमाइंदे कह रहे हैं कि हमने बहुत कम समय में दूसरी लहर पर काबू पा लिया।

वायरस कभी पूरी तरह खत्म नहीं होते। हमें अपने शरीर में प्रतिरोध क्षमता विकसित करनी पड़ेगी। इसके दो तरीके हैं, संक्रमण और वैक्सीनेशन। इंग्लैंड में 18 साल से अधिक उम्र के 75 फीसदी लोगों को वैक्सीन की एक डोज और 50 फीसदी को दोनों डोज दी जा चुकी है। लेकिन भारत में 7 जून तक 18.96 करोड़ लोगों को एक डोज और 4.66 करोड़ को दो डोज दी गई है। यह देश की आबादी का क्रमशः 14 फीसदी और 3.4 फीसदी है। ऐसा न हो कि तीसरी लहर की रफ्तार वैक्सीनेशन की रफ्तार से अधिक हो जाए।

 

 

इंटरव्यू

छत्तीसगढ़ भी उन राज्यों में शामिल है जिन्होंने केंद्र सरकार से वैक्सीन खरीदने की मांग की थी। प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री टी.एस. सिंहदेव ने एस.के. सिंह के साथ बातचीत में बताया कि केंद्र ने किन मौकों पर गलतियां कीं। बातचीत के मुख्य अंशः-

“अपनी गलती छिपाने के लिए राज्यों पर दोष मढ़ रहा केंद्र”

 

केंद्र सरकार की वैक्सीन नीति के बारे में क्या कहेंगे?

प्रधानमंत्री की घोषणा का स्वागत है। नीति शुरू में ही ठीक थी। सरकार ने तीन चरणों में 30 करोड़ लोगों को वैक्सीन लगाने की बात कही। पहले एक करोड़ स्वास्थ्यकर्मी, फिर दो करोड़ फ्रंटलाइन वर्कर। उसके बाद 60 साल से अधिक उम्र वाले 26 करोड़ और 45 से अधिक उम्र के एक करोड़ ऐसे लोग जो किसी पुरानी बीमारी से ग्रस्त हैं। शुरुआती अनुमान के अनुसार मई के मध्य तक इन सबको पहली डोज लग जाती।

तो गड़बड़ी कहां शुरू हुई?

केंद्र ने शुरू में वैक्सीन उत्पादन बढ़ाने की नहीं सोची। उसे अक्टूबर-नवंबर में ही कंपनियों से उत्पादन बढ़ाने को कहना चाहिए था। केंद्र ने 2 जनवरी को दो कंपनियों के टीके को अनुमति दी और कहा कि 16 जनवरी से टीके लगाए जाएंगे। उसे तब भी कंपनियों से उत्पादन बढ़ाने के लिए कहना चाहिए था, जो उसने नहीं किया। तब केंद्र सरकार ने सीरम इंस्टीट्यूट और भारत बायोटेक से हर महीने सिर्फ सात करोड़ वैक्सीन लेने की बात कही थी। केंद्र कहने लगा कि वैक्सीन की कोई कमी नहीं है, तो कुछ राज्य 18 साल से अधिक उम्र वालों के लिए भी वैक्सीन मांगने लगे। केंद्र ने यहां दोहरी गलती की। उसे पता था कि वैक्सीन नहीं है, फिर भी 1 मई से 18 साल से अधिक उम्र वालों के टीकाकरण की अनुमति दे दी, साथ ही कह दिया कि उसकी जिम्मेदारी राज्यों की होगी।

केंद्र का कहना है कि राज्यों की मांग पर ही नीति बदली थी।

केंद्र सरकार अपनी गलतियां छिपाने के लिए ऐसा कह रही है। इक्का-दुक्का राज्यों ने ही यह मांग की थी। राज्य वैक्सीन खरीदने के लिए तैयार थे, लेकिन मिलती तब तो। केंद्र ने शुरू में कहा कि ओपन पॉलिसी रहेगी। फिर राज्यों से मशविरा किए बिना वैक्सीन के दाम घोषित कर दिए गए।

दिसंबर तक सभी वयस्कों को वैक्सीन लग सकेगी?

केंद्र दूसरी लहर बीत जाने के बाद ऐसा कह रहा है। उसका कहना है कि अगस्त तक प्रतिमाह 20 करोड़ और उसके बाद 30 करोड़ डोज की उत्पादन क्षमता हासिल हो जाएगी। तब रोजाना एक करोड़ वैक्सीन लगाई जा सकेगी। तब भी 210 करोड़ डोज लगाने में सात महीने लगेंगे।

छत्तीसगढ़ में वैक्सीन की कितनी किल्लत है?

18 से 44 साल तक के लोगों को रोजाना कुछ हजार वैक्सीन ही लग पा रही हैं। इसे अच्छी नीति नहीं कह सकते क्योंकि इतने बड़े अमले को कुछ हजार वैक्सीन के नाम पर जाम करना पड़ रहा है।

दूसरी डोज के लिए वैक्सीन है?

45 साल से अधिक वालों के लिए तो काफी वैक्सीन पड़ी है, लेकिन अभी उन्हें दूसरी डोज लगाने का समय ही नहीं आया है। हम इस अतिरिक्त वैक्सीन को 45 साल से कम वालों को लगाना चाहते थे, जिनके लिए वैक्सीन नहीं है। हमने केंद्र से कहा था कि इसके पैसे देने के लिए तैयार हैं, लेकिन केंद्र उस पर भी राजी नहीं हुआ।

 

(साथ में चंडीगढ़ से हरीश मानव, रांची से नवीन मिश्र)

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