वह 6 जनवरी, 2021 का दिन था जब सैकड़ों लोग वॉशिंगटन डीसी के कैपिटल हिल में जबरन घुस गए थे। उन्होंने सार्वजनिक संपत्ति को जबरदस्त नुकसान पहुंचाया, पुलिस पर हमले किए और चुनाव नतीजों के खिलाफ बवाल काटा, जिसमें डोनाल्ड ट्रम्प की हार हुई थी। अमेरिका सहित पूरी दुनिया कैपिटल हिल पर भीड़ के किए इस हमले से सकते में आ गई। इसके बाद की गई इस घटना की जांच फेडेरल ब्यूरो ऑफ इनवेस्टिगेशन (एफबीआइ) के इतिहास में सबसे बड़ी साबित हुई। ऐसे हमलों के बाद आम तौर से उसे उकसाने वाले का राजनीतिक करियर खत्म ही हो जाता है, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इस घटना के कोई चार साल बाद डोनाल्ड ट्रम्प एक बार से अमेरिका के राष्ट्रपति चुन लिए गए हैं।
अमेरिकी इतिहास के सबसे ज्यादा विभाजनकारी व्यक्तियों में एक ट्रम्प ने अमेरिकियों के मन पर ऐसा क्या जादू कर डाला है? पहली बार 2016 में हिलेरी क्लिंटन को हराकर हुआ उनका राजनीतिक उदय और एक बार फिर से एक अन्य महिला प्रत्याशी को हराकर उनका जीतना एक समाज के बतौर हमारे सामने सवाल खड़ा करता है कि हम लोग एक दूसरे को ठीक से जानते भी हैं या नहीं?
कैपिटल हिल्स में ट्रम्प के समर्थकों का उत्पात
ट्रम्प जब पहली बार 2015 में राजनीति के मंच पर नमूदार हुए थे और उन्होंने राष्ट्रपति पद की दौड़ में अपनी उम्मीदवारी का ऐलान किया था तब बहुत से लोगों ने उन्हें गंभीरता से नहीं लिया था। उत्साहित भीड़ के सामने उन्होंने कहा था, "हम अपने देश को फिर से महान बनाएंगे!" अगले साल अपने चुनाव प्रचार को उन्होंने प्रवासी विरोधी नीति, व्यापार संधियों के विरोध और मेक्सिको की सरहद पर एक "खूबसूरत दीवार" खड़ी करने के मुद्दों पर केंद्रित किया और तत्काल लोकप्रिय हो गए। चुनाव नतीजे आए तो उन्होंने हिलेरी क्लिंटन को ठिकाने लगा दिया जो अमेरिका की पहली महिला राष्ट्रपति होने की उम्मीद में थीं। देश का उदार वाम तबका ट्रम्प की जीत को डर के मारे मुंह बाये देखता रह गया।
ट्रम्प के पहले कार्यकाल को एक बार किनारे रख दें, तो कह सकते हैं कि उनके कार्यकाल का अंत बहुत अच्छा नहीं हुआ क्योंकि तब तक कोविड-19 पूरी दुनिया पर छा चुका था और इसके बहाने ट्रम्प ने लोगों के दिमाग पर कब्जा कर लिया था। उनके समर्थकों ने कोविड-19 को खारिज कर दिया, वैक्सीन के खिलाफ लोगों की भावनाएं भड़काईं और महामारी का बुरा असर झेल रही पूरी दुनिया के लिए इनका यह रवैया पचाना मुश्किल हो गया।
जल्द ही ट्रम्प के समर्थक अल्पसंख्यक रह गए और बदलाव की आवाजें उठने लगीं। यहां मंच पर जो बाइडन और उनके साथ एक अश्वेत दक्षिण एशियाई महिला कमला हैरिस का प्रवेश हुआ। उन्होंने अमेरिका से बदलाव का वादा किया। बाइडन से दुनिया को उम्मीद थी कि वे ज्यादा स्थिर और कम नाटकीय साबित होंगे, लेकिन वे अपने पीछे विरासत के रूप में साल भर से चल रही गाजा की जंग छोड़े जा रहे हैं, जिसका फिलहाल कोई अंत नहीं दिखता।
पिछले तीन साल के दौरान ट्रम्प ने ऐसे मुद्दों पर जोर दिया है जो लोगों की भावनाओं को उकसा सकें। इन्हीं मुद्दों पर ट्रम्प ने अपने प्रचार अभियान को भी केंद्रित किया। अर्थव्यवस्था, महंगाई और आवासीय संकट को महत्वपूर्ण मसले मानते हुए उन्होंने अमेरिकी अर्थव्यवस्था की बहाली का वादा किया है। अर्थशास्त्री उलटी बात कर रहे हैं। उनका कहना है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था इससे बेहतर कभी रही ही नहीं है, हालांकि एक हकीकत यह भी है कि हम कभी इतने कर्ज में नहीं रहे। यह कर्ज इतना है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था को ले डूबेगा।
सन फ्रांसिस्को और न्यूयॉर्क जैसे महानगरों में मुद्रास्फीति अपने चरम पर है। तनख्वाहों की तुलना में किराया बहुत तेजी से बढ़ रहा है। अमेरिका के ज्यादातर शहरों में बेघरी की समस्या विकराल रूप लेती जा रही है। यह सच है कि बाइडन और हैरिस की सरकार की औसत गोरे मध्यवर्ग के ऊपर से पकड़ छूट चुकी है, जो सबसे ज्यादा परेशान हैं। उनके कहे को अब औसत अमेरिकी कोई भाव नहीं देता है। जब उनके सामने बिल और किश्तें चुकाने का संकट खड़ा है, तो उनके बच्चे लैंगिक पहचान के संकट में उलझे पड़े हैं। इसलिए उन्हें समझ नहीं आ रहा कि वे क्या करें।
यूएस-मैक्सिको सीमा पर पहचान दिखाते प्रवासी
ट्रम्प भले ही तीन साल तक सत्ता में नहीं रहे लेकिन अमेरिकियों के दिमाग में वे हमेशा बने रहे। वे लगातार सुर्खियों में कायम रहे, चाहे जिन भी वजहों से- एक पोर्न स्टार स्टॉर्मी डेनियल्स को भुगतान के मामले में फर्जी कारोबारी रिकॉर्ड से लेकर बाइडन के सत्ता हस्तांतरण को 6 जनवरी के हमलों के माध्यम से पटरी से उतारने की कोशिशों तक। उनके ऊपर चौंतीस धाराओं में मुकदमे कायम हुए। इन मुकदमों में सजा को नवंबर तक रोके रखा गया ताकि चुनाव में कोई बाधा न पड़े। यह सब सुनने में ऐसा लगेगा कि आप तीसरी दुनिया के किसी देश की कहानी सुन रहे हैं लेकिन यह अमेरिका का हाल है, जो खुद को लोकतंत्र और पूंजीवाद का प्रवक्ता कहता रहा है, जिसे ट्रम्प के समर्थक "दुनिया का महानतम देश" कहते हैं।
जब बाइडन का अपनी ही पार्टी के भीतर समर्थन घट रहा था, तभी रिपब्लिकन पार्टी ने इस साल की शुरुआत में ट्रम्प को अपना आधिकारिक उम्मीदवार बनाया। राष्ट्रपति पद की दौड़ में पहली सार्वजनिक बहस बाइडन और ट्रम्प के बीच जून में हुई जिसमें यह साफ हो कि ट्रम्प के हमलों का जवाब देने में बाइडन सक्षम नहीं थे। ऐसा लग रहा था कि बाइडन भीतर से खोखले हो चुके हैं, बूढ़े हो चुके हैं और उनका आत्मविश्वास जा चुका है। फिर जल्द ही बाइडन के वीडियो चलने लगे जिसमें वे बोलने में गलतियां कर जा रहे थे। एक में उन्होंने युक्रेन के राष्ट्रपति को ब्लादीमिर पुतिन कह दिया था। उनके नामांकन के मसले पर डेमोक्रेटिक पार्टी दो फांक हो गई और उन्हें प्रचार से हटाने पर बात चलने लगी। जल्द ही बाइडन को पार्टी ने अभियान से बाहर कर दिया और उनकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस को अपना आधिकारिक उम्मीदवार बना दिया।
शुरुआत में हैरिस ने कुछ अहम लोगों का समर्थन जुटाकर अपना दमखम दिखलाया, जैसे टेलर स्विफ्ट और बिल गेट्स आदि, यहां तक कि अपनी पहली बहस में ट्रम्प को भी मात दे दी। दोनों की पहली सार्वजनिक बहस के बाद हुए सर्वेक्षणों में सामने आया कि एरिजोना और पेनसिल्वेनिया जैसे प्रांतों में कांटे की टक्कर है। इसके बाद ट्रम्प अपनी औकात पर उतर आए, जो उन्हें सबसे प्रिय है- अपने दुश्मनों पर कीचड़ उछालना। हैरिस को "पागल" और "कामरेड" कह कर ट्रम्प ने गाली-गलौज का महौल बना दिया। जुलाई में एक पत्रकारिता सम्मेलन के दौरान ट्रम्प ने हैरिस के बारे में कहा कि वे वोटों के लिए "ब्लैक कार्ड" खेल रही हैं, "मैं कुछ साल पहले तक नहीं जानता था कि वे ब्लैक हैं। फिर वे अचानक से ब्लैक हो गईं और सबको यही जतलाना चाहती हैं। मैं नहीं जानता कि वे भारतीय हैं या ब्लैक।"
ट्रम्प की लोकप्रियता को तब झटका पहुंचा जब उनके उपराष्ट्रपति प्रत्याशी जेडी वांस ने बयान दे डाला कि अमेरिका को "चाइल्डलेस कैट लेडीज" चला रही हैं। हैरिस के समर्थक भड़क गए। उन्होंने कहा कि हेरिस के सौतेले बच्चे भी उन्हीं के बच्चे हैं और वांस का बयान एक ऐसे देश में औरतों के अधिकारों पर सीधा हमला है जहां पहले ही औरतों से गर्भपात का मूलभूत अधिकार छीना जा चुका है।
फिल्मकार एंड्रिया कालिन की बनाई एक फिल्म पब्लिक डिफेंडर में वॉशिंगटन डीसी की एक सरकारी वकील और 6 जनवरी के हमलों में फंसे उसके मुवक्किलों के रिश्ते के बारे में दिखाया गया है। कालिन ने वांस वाले प्रसंग पर कहा था, "लोग अपनी आस्थाओं को लेकर बहुत जज्बाती हैं क्योंकि उनके राजनीतिक विचार उनकी पहचानों के साथ नत्थी हो चुके हैं। इसलिए बहुत से लोगों के लिए राजनीतिक विचार पर हमला उनकी निजी आस्थाओं पर हमले जैसा प्रतीत होता है। ध्रुवीकृत मीडिया इसे और पुष्ट करता है तथा राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी को सहधर्मी नागरिक के बजाय दुश्मन की तरह दर्शाता है। इस चुनाव में एक काली महिला का ट्रम्प जैसे ऐतिहासिक रूप से विभाजनकारी शख्स के सामने खड़ा होना इन अहसासों को और गहरा करता है। इस लड़ाई में लोगों की जान तक दांव पर लगी हुई है। कई मतदाताओं को ऐसा लगा रहा था कि उनकी पहचान और भविष्य इस चुनाव के नतीजे के साथ जुड़ा है। नस्ल, लिंग और राजनीतिक सत्ता के सम्मिश्रण से यह चुनाव पहले ही इतना जज्बाती हो चुका है, साथ में फर्जी सूचनाएं प्रत्याशियों के प्रति मतदाताओं की धारणा को बनाने में अहम भूमिका अदा कर रही हैं।"
सच है कि अमेरिकी चुनाव नीतियों पर नहीं लड़ा गया, यह अमेरिकी मतदाताओं के दिमाग पर कब्जे की लड़ाई थी। ट्रम्प ने बड़ी आसानी से लोगों का ध्यान अपने पालतू जानवर खाने वाले हैती के प्रवासियों की ओर मोड़ दिया।
जो बाइडन, डोनाल्ड ट्रम्प और कमला हैरिस (बाएं से दाएं)
कालिन कहती हैं, "ट्रम्प इसलिए अपील कर सके क्योंकि उन्होंने कई अमेरिकियों के भय और शिकायतों को सीधा स्वर दिया। उन्होंने खुद को एक ऐसे बाहरी आदमी की तरह पेश किया जो एक धांधली वाली व्यवस्था के खिलाफ लड़ने का माद्दा रखता है और सच बोल सकता है जबकि बाकी नेता इससे बचते हैं। कानूनी मुकदमों और विवादों के प्रति ट्रम्प का दुस्साहस इस धारणा को और मजबूत करता है कि वे उन्हीं ताकतों के हाथों शिकार हैं जिनके हाथों लोग खुद को उत्पीड़ित समझते हैं। ट्रम्प की कामयाबी एक ऐसा अफसाना गढ़ने में निहित है जहां उनके प्रति वफादारी का मतलब उनकी समझ वाले अमेरिका के प्रति वफादारी है।"
ट्रम्प का एक और कार्यकाल अमेरिका में बिना कागजात वाले लाखों प्रवासियों, प्रेस की आजादी और अभिव्यक्ति की आजादी के खात्मे का बायस बनने जा रहा है। इसका अर्थ होगा युक्रेन के मसले पर पुतिन के साथ एक सौदा, जो रूसी टैंकों की युक्रेन में राह आसान कर देगा। इसका अर्थ नाटो के भविष्य पर एक प्रश्नचिह्न होगा, मध्य-पूर्व में जंग के अनंत तक चलते रहने का संकेत होगा जो पहले ही हाथ से निकलता जा रहा है। ट्रम्प के राज वाले अमेरिका का मतलब है एक देश को दुनिया से अलग-थलग कर के उसे महान बना देना। ट्रम्प का अगला कार्यकाल अमेरिका को हमेशा के लिए बदल डालेगा।
(अंकिता एम. कुमार कैलिफोर्निया के सन फ्रांसिस्को में रहने वाली पत्रकार और फिल्मकार हैं। विचार निजी हैं)