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23 जनवरी 2023 · JAN 23 , 2023

कोरोना वायरस: नई लहर का इंतजार या राहत

कोरोना वायरस के नए सब वेरिएन्ट के वैश्विक खतरे के बीच भारत में विकसित इम्यूनिटी राहत का सबब, लेकिन खतरा टला नहीं
चीन पर गहराया कोविड का साया

भारत सहित दुनिया के कई देशों में फिर कोरोना महामारी के तेजी से फैलने की चर्चा है। भारत में संक्रमण के लगभग थम गए मामले फिर उभरने लगे हैं। बीते साल के अंत तक देश में कोरोना के कुल 3468 सक्रिय मामले आए हैं। भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा 3 जनवरी 2023 तक जारी आंकड़ों में कर्नाटक में कुल 295 तथा केरल में 1435 मामले थे जबकि बीते चौबीस घंटे में 222 नए मामले दर्ज किए गए थे। इन आंकड़ों के अनुसार देश में कोरोना के सक्रिय मामलों की दर 0.01 फीसदी है जबकि रिकवरी की दर 98.8 फीसदी हो चुकी है।

कोरोना वायरस के कई खतरनाक वेरिएंट दुनिया में कहर बरपा रहे हैं। उसी में एक ओमिक्रॉन के बीएफ.7 वेरिएंट के बीच अब एक और वेरिएंट का खतरा मंडराने लगा है। यह वेरिएंट पहले वाले से ज्यादा खतरनाक बताया जा रहा है। सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) के अनुसार कोविड-19 के नए वेरिएंट एक्सबीबी.1.5 का खतरा बढ़ता जा रहा है। भविष्य में यह वेरिएंट खतरनाक साबित हो सकता है। सीडीसी के अनुसार कोविड-19 का नया वेरिएंट एक्सबीबी.1.5 अमेरिका में 40 फीसदी तक फैल चुका है। इसके कारण अस्पताल में मरीजों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। यह बीएफ.7 के मुकाबले संक्रमण फैलाने में कहीं ज्यादा खतरनाक है।

ओमिक्रॉन सब वेरिएंट एक्सबीबी.1.5 की पहली बार भारत में पहचान की गई थी। चीन से आने वाले सभी यात्रियों को अमेरिका में प्रवेश करने से पहले कोविड-19 की नेगेटिव रिपोर्ट पेश करना अनिवार्य कर दिया गया है। कोरोना को लेकर भारत में चिंता की मुख्य वजह चीन में कोरोना संक्रमण के मामलों में आ रही तेजी है। कहा जा रहा है कि चीन में लॉकडाउन पूरी तरह हटा दिए जाने के बाद स्थिति बिगड़ी है। एक रिपोर्ट के अनुसार अगले दो-तीन महीने में कोरोना संक्रमण से चीन की लगभग 80 करोड़ आबादी संक्रमित हो सकती है। चीन के महामारी विशेषज्ञ बू जुन्यो ने कहा है कि कोरोना संक्रमण में हो रही वृद्धि जनवरी के मध्य तक चलेगी। इसके बाद दूसरी और तीसरी लहर फरवरी-मार्च 2023 में आ सकती है क्योंकि तब तक लोग छुट्टियों के बाद काम पर लौट आएंगे। महामारी विशेषज्ञ चीन में कोरोना संक्रमण के पुनः फैलने के पीछे चीन की ‘जीरो कोविड पॉलिसी’ को भी जिम्मेदार मानते हैं। वहां कोविड की वजह से लॉकडाउन के बेहद सख्त नियमों की वजह से लोगों में हुई इम्यूनिटी नहीं आ पाई। यह भी वजह है कि चीन में कोरोना की लहर क्रमशः उठ रही है।

कोरोना महामारी के विगत दो वर्षों में लोगों में विकसित हुई इम्यूनिटी की वजह से भारत में महामारी के नियंत्रित रहने की संभावना ज्यादा है, लेकिन कोरोना वेरिएन्ट ओमिक्रॉन के सब वेरिएन्ट बीएफ.7 एवं एक्सबीबी.1.5 के बारे में खतरनाक आशंकाएं व्यक्त की जा रही हैं पर इससे घबराने की जरूरत नहीं है। कोविड ऐप के अनुसार दिल्ली में अब तक टीके के 3.73 करोड़ डोज लग चुके हैं, हालांकि बीते महीने से कोरोना का ओमिक्रॉन वेरिएन्ट लगातार रूप बदल रहा है। अभी तक भारत में इसका घातक प्रभाव नहीं देखा गया है।

देश में अधिकतर लोग कोरोना के इस वेरिएन्ट से संक्रमित होकर ठीक भी हो चुके हैं। आम लोगों में कोरोना वैक्सीन को लेकर कई सवाल हैं। शुरू से ही वैक्सीन संदेह के घेरे में रही है। विशेष एवं आकस्मिक परिस्थिति (ईयूए) में तैयार वैक्सीन और इसकी खुराक पर भी पहले सवाल उठे हैं। अब इसके बूस्टर डोज एवं नए नेजल डोज की चर्चा जोरों पर है। हमारे देश में फिलहाल कोरोना से बचाव के नाम पर पांच वैक्सीनें- कोविशील्ड, कोवैक्सीन, कार्बेक्स, कोवैक्स एवं स्पुतनिक बी- प्रयोग में हैं। अब नाक से दी जाने वाली वैक्सीन इन्कोवैक को भी मंजूरी दे दी गई है। यह वैक्सीन भारत बायोटेक इंटरनेशनल लिमिटेड ने तैयार की है। कोविड से बचाव के लिए यह दुनिया की पहली इंट्रानेजल वैक्सीन है। कंपनी के अनुसार इस वैक्सीन को 18 वर्ष से ऊपर के लोगों के लिए जनवरी 2023 के चौथे हफ्ते में बाजार के हवाले कर दिया जाएगा। कोरोना प्रतिरक्षण के नाम पर वैक्सीन की बार-बार खुराक से जन स्वास्थ्य वैज्ञानिक चिंतित हैं क्योंकि इससे ‘ऐंटीजन शिफ्ट’ का खतरा है। यानि किसी व्यक्ति को किसी विशेष प्रकार के एंटीजन से बार-बार प्रतिरक्षित किया जाए तो शरीर प्रतिक्रिया देना बंद कर सकता है या खराब प्रतिक्रिया दे सकता है।

चीन और यूरोप के कई देशों में कोरोना के मामलों के मद्देनजर भारत सरकार ने सभी राज्य सरकारों को निर्देश जारी किया है कि कोरोना संक्रमण पर कड़ी नजर रखी जाए। यदि कहीं मामला बढ़ता हुआ दिखाई दे तो इसे तुरंत केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय से साझा किया जाए। केन्द्र सरकार के निर्देश पर सभी राज्य सरकारों को सीवेज और गंदे पानी की निकासी पर भी नजर रखने को कहा गया है। अध्ययन बताता है कि इन्फ्लूएन्जा (आईएलआई) तथा गंभीर एवं तीव्र श्वसन संक्रमण (एसएआरआई) पर भी निगरानी की जरूरत है क्योंकि देखा यह जा रहा है कि सामान्य नजला-जुकाम के मामलों में 25-30 प्रतिशत मामले कोविड-19 संक्रमण के मिल रहे हैं। इसलिए एहतियात जरूरी है। साथ ही कोरोना के वेरिएन्ट का पता लगाने के लिए जीनोम सिक्वेंसिंग की जरूरत है। कोरोना संक्रमण से जुड़ी एक बात और जानना जरूरी है, कि महामारी के शुरुआती दौर में समुचित प्रोटोकाल के अभाव में चिकित्सकों ने भी अंधाधुंध स्टेराइड्स आदि का उपयोग किया। कोरोनाग्रस्त रोगियों को दी जाने वाली गैरजरूरी दवाओं की कालाबाजारी इसलिए हुई क्योंकि चिकित्सक स्वयं में स्पष्ट नहीं थे। कोरोना संक्रमण के व्यापक फैलाव के बाद मरीजों की जान बचाने के नाम पर दी गई स्टेराइड्स और दूसरी गैरजरूरी दवाओं ने स्थिति और बिगाड़ दी। इससे हजारों लोग मरे, जिन्हें बचाया जा सकता था। रक्त जांच और संक्रमण से बचाव के लिए गुणवत्ता-विहीन इम्यून बूस्टर, सेनेटाइजर, मास्क आदि खुले बाजार में कई गुना महंगे बिके।  

कोरोना संक्रमण के लगभग दो वर्ष बीत जाने के बाद भी इससे हुई मौतों के आंकड़े पर शुरू से ही संदेह है। सन 2020 एवं 2021 में कोरोना महामारी से मरे लोगों के आंकड़े भारत सरकार के अनुसार लगभग 4 लाख 60 हजार थे जबकि कनाडा के टोरंटो विश्वविद्यालय के महामारी विशेषज्ञ प्रो. प्रभात झा के नेतृत्व में किए गए शोध के अनुसार यह आंकड़ा लगभग 30.7 लाख के आसपास है। इस आंकड़े की पुष्टि एक फ्रांसीसी वैज्ञानिक संस्थान के डेमोग्राफर क्रिस्टोफ गुइल मोटो भी करते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान तो और भी ज्यादा है। दिसंबर 2021 तक भारत में कोरोना से हुई मौतों का आंकड़ा लगभग 47.4 लाख का है, हालांकि भारत सरकार इसे खारिज कर चुकी है।

किसी भी महामारी खासकर वैश्विक महामारी के अध्ययन के लिए उससे संबंधित आंकड़े काफी महत्वपूर्ण होते हैं। कोरोना संक्रमण के दौर में सन 2021 के बाद से अभी तक कोई ठोस आंकड़े सरकारी संस्थाओं के पास नहीं हैं। भारत में वैसे भी महामारी या बीमारी से हुई मौतों के आंकड़े गंभीरता से रिकॉर्ड भी नहीं किए जाते। नेशनल हेल्थ सिस्टम रिसोर्स सेंटर के कार्यकारी निदेशक अतुल कोतवाल भी मानते हैं कि आंकड़ों में कई दिक्कतें हैं। उसी संस्थान के पूर्व कार्यकारी निदेशक डॉ. टी. सुंदररामन भारत में कोरोना से हुई मौतों के मामले में डब्लूएचओ के आंकड़े को सही बताते हैं। सुंदररामन कहते हैं कि भारत में मौत के आंकड़े जुटाने का सटीक तंत्र नहीं है। यहां केवल 21 फीसद मौतें ही रजिस्टर में दर्ज होती हैं जिन्हें मृत्यु प्रमाण पत्र जारी किया जाता है।

कोविड-19 के बारे में सटीक जानकारी के लिए सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल (सीडीसी), विश्व स्वास्थ्य संगठन और स्वास्थ्य मंत्रालय जैसे विश्वस्त सूत्रों की ओर से जारी सलाह पर ही भरोसा करना चाहिए। वायरस सामाजिक वर्ग, नस्ल, समुदाय या राष्ट्रीयता को नहीं देखता। ऐसे मामलों में हमें दूसरे व्यक्ति या समुदाय की जगह खुद को रख कर देखना चाहिए और उन लोगों के प्रति उदारता दिखानी चाहिए।

वेरिएन्ट नया पर घबराने की बात नहीं

रांची एयरपोर्ट पर मुस्तैदी

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कोरोना वायरस का बीएफ.7 वेरिएन्ट नया नहीं है, बल्कि यह ओमिक्रॉन का ही एक प्रकार है। भारत में कोरोना वायरस सार्स कोव-2 के दस विभिन्न प्रकार हैं और बीएफ.7 भी उसमें से ही एक है। बताया जा रहा है कि ओमिक्रॉन सब वेरिएन्ट में बीएफ.7 की संक्रमण क्षमता सबसे मजबूत है। अब तक भारत में बीएफ.7 के चार ज्ञात मामलों में सभी होम आइसोलेशन में ही ठीक हो गए हैं। इन्हें अस्पताल में भर्ती करने की आवश्यकता नहीं पड़ी। इधर विश्व स्वास्थ्य संगठन की मुख्य वैज्ञानिक डॉ. सौम्या स्वामीनाथन ने ओमिक्रॉन वेरिएन्ट के एक और सब वेरिएन्ट एक्सबीबी.1.5 को लेकर चिंता व्यक्त की है। ओमिक्रॉन के ही 300 से ज्यादा उपप्रकार हैं जिसमें एक्सबीबी.1.5 एक पुनः संयोजन वायरस है जो शरीर में एन्टीबाडी को खत्म कर सकता है। इसलिए इस पर निगरानी की आवश्यकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन कोरोना वायरस के विभिन्न वेरिएन्ट और उसकी पेचीदगियों से चिंतित है इसलिए उसने सभी देशों से संक्रमण के प्रभावी सर्विलांस की अपील की है।

(लेखक जन स्वास्थ्य वैज्ञानिक एवं राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त होमियोपैथिक चिकित्सक हैं)

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