बाबूलाल मरांडीः
15 नवंबर 2000 से 18 मार्च 2003
भारतीय जनता पार्टी के कोडरमा से विधायक
पहले मुख्यमंत्री के नाते मरांडी ने नए अस्तित्व में आए राज्य झारखंड को दिशा देने का काम किया। राज्य का गठन 15 नवंबर 2000 को हुआ था। इस पद पर वे लगभग 2 साल 123 दिन रहे। उन्होंने मुख्य रूप से राज्य के बुनियादी ढांचे पर काम किया था। सड़क नेटवर्क सुधार तथा राजधानी रांची के विस्तार-विकास की योजना पर उन्होंने काम किया। आदिवासी-बहुल राज्य में सामाजिक न्याय और विकास के बीच समन्वय में बाबूलाल मरांडी ने बहुत प्रयास हुआ। हालांकि, गठबंधन की अस्थिरता और दूसरे तरह की राजनैतिक चुनौतियों से उनका काम थोड़ा प्रभावित हुआ। सहयोगी दलों के भीतर मतभेद के कारण उन्हें 2003 में पद छोड़ना पड़ा। फिर भी सीमित समय और संसाधन में उन्होंने राज्य को गति देने की पूरी कोशिश की।
अर्जुन मुंडाः

18 मार्च 2003 से 2 मार्च 2005
भारतीय जनता पार्टी से खरसवां के विधायक
बतौर मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा का पहला कार्यकाल, लगभग 1 साल 349 दिन का रहा। इस दौरान वे आदिवासियों के सशक्त नेता बन कर उभरे और शासन-व्यवस्था में पारदर्शिता लाने, सुचारू तंत्र लागू करने की कोशिश की। उन्होंने सामाजिक कल्याण-योजनाओं पर भी ध्यान दिया। उनका दूसरा कार्यकाल 12 मार्च 2005 से 18 सितंबर 2006 तक रहा। इस कार्यकाल में उन्होंने राज्य में आदिवासी हित को ही आगे बढ़ाया। हालांकि यह सरकार भी स्थिर न रह सकी और फिर सत्ता परिवर्तन हो गया। उनके नेतृत्वकाल का मुख्य योगदान, राज्य में लोकायुक्त का गठन, पंचायत एवं स्थानीय शासन प्रणालियों को सुदृढ़ करना, तथा आदिवासी युवा-खेल (तीरंदाजी) जैसे क्षेत्रों को बढ़ावा देना है। बाद में पार्टी में अनबन उनके आड़े भी आई।
शिबू सोरेनः

2 मार्च 2005 से 12 मार्च 2005
दुमका से आठ बार सांसद रहे, जीवन के अंतिम वर्ष में राज्यसभा सांसद
यह केवल 10 दिन का कार्यकाल था। आदिवासी राजनीति के बड़े नेता, गुरुजी नाम से ख्यात सोरेन की पूरी राजनीति केवल आदिवासियों के नाम रही। इस कार्यकाल का समय इतना कम था कि वे कोई निर्णायक काम नहीं कर पाए। फिर भी यह कार्यकाल महत्वपूर्ण इसलिए रहा कि उन्होंने आदिवासी पहचान, भूमि-स्वामित्व, और राज्य को आत्मनिर्भर बनाने के मामले में शुरुआत तो कर ही दी थी। भले ही यह कार्यकाल ‘प्रतीकात्मक’ ज्यादा, ‘क्रियात्मक’ कम था लेकिन उनकी बनाई राह पर बाद में राज्य चला।
अर्जुन मुंडाः
12 मार्च 2005 से 18 सितंबर 2006)
भारतीय जनता पार्टी से खरसवां के विधायक
दूसरे कार्यकाल में मुंडा लगभग 1 वर्ष 190 दिन पद पर रहे। इस दौरान उन्होंने निवेश-आधारित विकास, बिजली-ऊर्जा विस्तार तथा शासन-सुधार की ओर कदम बढ़ाए। मसलन, उन्होंने राज्य को विद्युत्-अधिकता वाला राज्य बनाने की दिशा में काम शुरू किया। गठबंधन राजनीति और कलह के हालात से कई काम नहीं कर पाए।
मधु कोड़ाः

18 सितंबर 2006 से 27 आगस्त 2008
निर्दलीय, जगन्नाथपुर से विधायक
कार्यकाल लगभग 1 वर्ष 343 दिन का था। कोड़ा निर्दलीय विधायक के रूप में मुख्यमंत्री बने थे। कोड़ा को विवादास्पद मुख्यमंत्री भी माना जाता है। उनके पद पर रहते, कई घोटाले और भ्रष्टाचार सामने आए। बाद में उन्हें कोयला ब्लॉक आवंटन के मामले में दोषी पाया गया।
शिबू सोरेनः
27 अगस्त 2008 से 19 जनवरी 2009
यह कार्यकाल लगभग 145 दिन का रहा। सोरेन ने इस अवधि में आदिवासियों के लिए फिर काम शुरू किया। सरकार की अस्थिर स्थिति और सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों के बीच वे आदिवासी मुद्दों को लेकर पहले से अधिक मुखर हुए। आदिवासी सामाजिक न्याय के दृष्टिकोण से यह महत्वपूर्ण था, मगर प्रशासन के हिसाब से काम कम हुआ।
शिबू सोरेनः
30 दिसंबर 2009 से 1 जून 2010
यह तीसरा कार्यकाल लगभग 153 दिन का था। इस दौरान भी उन्होंने आदिवासी अधिकार, भूमि-सुरक्षा और स्थानीय स्वशासन की बात की। राष्ट्रपति शासन के बाद फिर सरकार बनी थी इसलिए कार्यकाल सीमित था।
अर्जुन मुंडाः
11 सितंबर 2010 से 18 जनवरी 2013
उनका तीसरा कार्यकाल लगभग 2 वर्ष 129 दिन का रहा। इस अवधि में उन्होंने कुछ बुनियादी सुधार-योजनाएं आगे बढ़ाईं। स्थानीय निगमों और पंचायतों की व्यवस्था को मजबूती दी। इस बार भी वे पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए।
हेमंत सोरेनः

2013 से अब तक कई कार्यकाल
झारखंड मुक्ति मोर्चा के रामगढ़ से विधायक
पहला कार्यकाल: 13 जुलाई 2013 से 28 दिसंबर 2014 (लगभग 1 वर्ष 168 दिन), दूसरा कार्यकाल: 29 दिसंबर 2019 से 2 फरवरी 2024 (लगभग 4 वर्ष 35 दिन), तीसरा कार्यकाल: 4 जुलाई 2024 से अब तक जारी। उन्होंने सामाजिक कल्याण योजनाओं, शिक्षा-स्वास्थ्य एवं युवा-उद्यमिता पर केंद्रित नीतियां बनाईं। उन्होंने आदिवासी-बहुल गढ़बोनी को सुदृढ़ किया, योजनाओं को सामाजिक-भूमि से जोड़ा, और नेतृत्व की नई परिभाषा तैयार की।
रघुबर दासः

28 दिसंबर 2014 से 29 दिसंबर 2019
भारतीय जनता पार्टी के जमशेदपुर से विधायक
5 साल 1 दिन का पूर्ण कार्यकाल निभाया। यह झारखंड का अब तक का सबसे स्थिर कार्यकाल रहा। दास के शासन में औद्योगीकरण, बाहरी निवेश, राजधानी रांची और आसपास के जिलों में गति आई। साथ ही प्रशासन-सुधार, सड़क-इन्फ्रास्ट्रक्चर और बिजली-उर्जा क्षेत्र में भी काम हुआ।
चंपई सोरेनः

2 फरवरी 2024 से 4 जुलाई 2024
झारखंड मुक्ति मोर्चा के सरायकेला से विधायक
उनका कार्यकाल लगभग 153 दिन का रहा। राजनैतिक संकट के चलते चंपई को मुख्यमंत्री बनाया गया था। सीमित समय में भी उन्होंने अच्छा काम किया।
19 जनवरी 2009 से 29 दिसंबर 2009 तक, 1 जून 2010 से 10 सितंबर 2010 तक और 18 जनवरी 2013 से 13 जुलाई 2013 तक तीन बार राष्ट्रपति शासन लगा।