600 से अधिक फिल्म और थिएटर कलाकारों ने मतदाताओं से इस चुनाव में भाजपा को वोट न देने की अपील की। आप इसे कैसे देखते हैं?
यह पहली बार नहीं हुआ। इसी समूह ने पिछले संसदीय चुनावों में भी यही बात लिखी थी। वे अपने लोकतांत्रिक अधिकार का इस्तेमाल कर सकते हैं तो दूसरे भी ऐसा कर सकते हैं। मैं खुल कर बोलता हूं, वे छलावा करते हैं। ‘भाजपा को वोट मत दो’ कह कर वे परोक्ष रूप से दूसरी पार्टियों के लिए प्रचार कर रहे हैं।
ऐसे अभियानों की शुरुआत नरेंद्र मोदी के आगमन के साथ हुई है। पहले भी कई फिल्मी हस्तियां विभिन्न दलों से जुड़ी थीं, लेकिन 2014 के चुनाव से पहले मतदान से ठीक पूर्व कभी ऐसी अपील जारी नहीं की गई। क्या बॉलीवुड पिछले पांच वर्षों में मोदी समर्थक और मोदी विरोधी खेमे में बंट गया है?
मुझे नहीं लगता। लोगों की अपनी राय है और वे इसे खुलकर जाहिर कर रहे हैं। 2014 में यह अभियान कुछ लोगों ने शुरू किया था और फिल्मोद्योग से लगभग 70 व्यक्तियों से हस्ताक्षर करवा लिए थे। जब 600 लोगों ने एनडीए सरकार के खिलाफ वोट न करने की अपील जारी कि तो 900 से ज्यादा लोगों ने इस चुनाव में मोदी को ही वोट करने को कहा। निर्णय आखिर में मतदाता को ही करना है। एनडीए अलोकतांत्रिक तरीके से सत्ता में नहीं आया है। यह असहिष्णु गिरोह है जो उसे वोट न देने के लिए कह रहे हैं, जिन्हें पहले लोकतांत्रिक तरीके से चुना जा चुका है। मोदी वशंवाद की वजह से नहीं आए। वे पार्टी कार्यकर्ता के स्तर से उठकर यहां पहुंचे हैं। वे विधायक बने, फिर गुजरात के मुख्यमंत्री रहने के बाद देश के प्रधानमंत्री बने। यह खेमेबंदी उन लोगों की है जो लोगों से वोट न डालने की अपील करके खुद को दूसरों से ऊपर साबित करना चाहते हैं।
बॉलीवुड में मोदी समर्थक भी हैं?
मेरी राय में लता मंगेशकर से बड़ा कोई स्टार नहीं है, जो मोदी को आगे बढ़ते देखना चाहती हैं। हेमामालिनी, धर्मेंद्र, किरण खेर और विनोद खन्ना जैसे सितारे भाजपा के टिकट पर चुनाव जीते हैं। सनी देओल के काम को देखिए, गौतम गंभीर जिन्होंने टीम इंडिया का प्रतिनिधित्व किया है। क्या ये लोग कोई नहीं हैं?
2014 के पहले तक बॉलीवुड से किसी समूह या गुट ने कभी किसी प्रधानमंत्री या प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के खिलाफ अभियान नहीं चलाया था?
हो सकता है, उन्हें वशंवादी सत्ता अच्छी लगती रही हो। अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल को छोड़ दें तो उन लोगों ने हमेशा वंशवाद ही देखा है। जैसे, नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी और राहुल गांधी।
आपके राजनैतिक रुख ने बॉलीवुड के भीतर और बाहर व्यक्तिगत संबंधों को प्रभावित किया है?
एक-दूसरे से सहमत हुए बिना भी आप किसी के साथ रह सकते हैं। अपने घर में या दोस्तों के बीच भी, अलग-अलग लोगों की अलग-अलग राय होती है। आखिरकार आपको अपने साथ ही रहना होता है। आप पूरी दुनिया में हर किसी के बीच लोकप्रिय नहीं हो सकते। ऐसा नहीं है कि मैंने पिछले दस वर्षों में अपना रुख बदला है। मैं वही शख्स हूं जो इंडिया अगेंस्ट करप्शन आंदोलन में भी कूदा था। यही वह मंच था जिसने अरविंद केजरीवाल का उदय देखा।
क्या फिल्मों में काम करने के मामले में किसी की राजनैतिक संबद्धता कभी आड़े आती है। इस संबंध में आपका क्या अनुभव रहा है?
किसी गठबंधन से जुड़े रहने या उससे अलग रहने के कारण आपको फिल्म उद्योग में भूमिकाएं नहीं मिलतीं। भूमिकाएं अपने काम की वजह से मिलती हैं। मेरे लिए जो भूमिकाएं हैं अंततः वो मेरे पास ही आएंगी। मैंने वर्षों उतार-चढ़ाव का सामना किया है। जो अपने दम पर जगह बनाता है, उसमें अलग तरह का अभिमान होना ही चाहिए क्योंकि स्वाभिमान ही उसका अधिकार है।
सारांश (1984) से लेकर हाल ही में आई हिट अमेरिकी टीवी शृंखला न्यू एम्स्टर्डम... तक आपका लंबा और विशिष्ट करिअर रहा है।
पहले भी जब मैं अमेरिका जाता था, तो भारतीय आप्रवासी मुझे पहचान लिया करते थे। अब हिट टीवी श्रृंखला का धन्यवाद कि अमेरिकी लोग भी मुझे पहचानने लगे हैं। बहते हुए दरिया को कोई रोक नहीं सकता है। अपने विश्वास के साथ आगे बढ़ें और अपनी राह बनाते जाएं।