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आवरण कथा/कोटा गाथा: भर्तियां नाकाफी, पद खाली

योग्य उम्मीदवार न मिलने के बहाने अनारक्षित वर्ग को लाभ मिलने की मिसाल कई
सरकारी नौकरियों में आरक्षित वर्ग को नहीं मिलता समुचित लाभ

कानूनन केंद्रीय विभागों, मंत्रालयों, सार्वजनिक उपक्रमों, निगमों और शिक्षण संस्थाओं में ओबीसी कोटा के तहत 27 प्रतिशत आरक्षण लागू है। लेकिन सरकारी आंकड़े बताते हैं कि आज भी ओबीसी को संवैधानिक आरक्षण के अनुपात में प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाया है जबकि 1931 की जनगणना के आधार पर मंडल आयोग की रिपोर्ट में उनकी आबादी 52 प्रतिशत आंकी गई है। केंद्रीय शिक्षा राज्यमंत्री सुभाष सरकार ने 20 मार्च को संसद में बताया था कि देश के कुल 45 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में आरक्षित वर्ग के शिक्षकों के करीब 3, 874 पद खाली हैं। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में सबसे ज्यादा 576 पद खाली हैं, जबकि डीयू में यह संख्या 526 है। इसमें आरक्षित वर्ग के एसोसिएट प्रोफेसरों के खाली पदों की संख्या 299 है जबकि बीएचयू में यह संख्या 228 है। उनके मुताबिक, पांच विश्वविद्यालयों को आरक्षित वर्ग के शिक्षकों के 549 पदों पर योग्य उम्मीदवार ही नहीं मिले। हैदराबाद विश्वविद्यालय योग्य उम्मीदवार न मिलने में सबसे आगे है। इसमें अन्य पिछड़ा वर्ग के 14 पद शामिल हैं। जेएनयू, कर्नाटक केंद्रीय विश्वविद्यालय, बीएचयू और महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय को भी आरक्षित वर्ग के पदों पर योग्य उम्मीदवार नहीं मिले।

सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के तहत विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से डीयू के शिक्षक लक्ष्मण यादव को मुहैया कराए गए आंकड़ों पर गौर करें, तो पिछले साल मार्च तक देश के 45 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में शिक्षकों के कुल 18,924 पद स्वीकृत थे। इसमें से 18.44 प्रतिशत पद ओबीसी के लिए थे लेकिन केवल 49.88 प्रतिशत पदों पर ही ओबीसी शिक्षकों की नियुक्ति हुई। 

गैर-पूर्वोत्तर राज्यों में स्थित केंद्रीय विश्वविद्यालयों की बात करें तो प्रोफेसर के 2,544 स्वीकृत पदों में  15.02 प्रतिशत पद ओबीसी के लिए आरक्षित थे। 10.73 प्रतिशत पदों पर अन्य पिछड़ा वर्ग के शिक्षक नियुक्त थे लेकिन ओबीसी प्रोफेसर के 89.26 प्रतिशत पदों पर किसी की नियुक्ति नहीं की गई थी। एसोसिएट प्रोफेसर के 5,099 स्वीकृत पदों में से 15.02 प्रतिशत पद ओबीसी के लिए आरक्षित थे लेकिन केवल 17.23 प्रतिशत पदों पर ही नियुक्ति हुई। शेष ओबीसी के 82.77 प्रतिशत पद खाली थे। असिस्टेंट प्रोफेसर के 11,281 स्वीकृत पदों में से 20.76 प्रतिशत ओबीसी के लिए आरक्षित थे। 66.95 प्रतिशत पर ओबीसी शिक्षकों की नियुक्ति की गई और 33.04 प्रतिशत पद खाली थे।

पूर्वोत्तर राज्यों में स्थित केंद्रीय विश्वविद्यालयों में प्रोफेसर के 452 पद स्वीकृत थे जिसमें से 8.18 प्रतिशत पद अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के थे। केवल 2.70 प्रतिशत पद पर ओबीसी प्रोफेसर नियुक्त थे। शेष 97.29 प्रतिशत पद खाली थे। एसोसिएट प्रोफेसर के 795 स्वीकृत पद में से 5.28 प्रतिशत पद ओबीसी के थे। केवल 19.04 प्रतिशत पदों पर ओबीसी एसोसिएट प्रोफेसर नियुक्त थे। ओबीसी एसोसिएट प्रोफेसर के 80.95 प्रतिशत पद खाली थे। 45 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में असिस्टेंट प्रोफेसर के 1865 पद स्वीकृत थे जिसमें से 17.26 प्रतिशत पदों पर ओबीसी शिक्षकों की नियुक्ति होनी थी। लेकिन, केवल 17.26 पदों पर ओबीसी असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति हुई। शेष 15.83 प्रतिशत पद खाली थे।   

आरक्षण की मौजूदा स्थिति

ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ अदर बैकवर्ड क्लासेस इंप्लायीज वेलफेयर एसोसिएशन्स (एआइओबीसी) ने हाल ही में केंद्रीय वित्त मंत्रालय के अधीन लोक उद्यम विभाग के सर्वेक्षण-2021-22 के आंकड़ों का अध्ययन किया। 31 मार्च 2022 तक के आंकड़ों के विश्लेषण से उसने पाया कि केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों और विभागों के अधीन 43 लोक उद्यमों में ओबीसी के संवैधानिक कोटे (27 प्रतिशत) से कम पिछड़े अधिकारियों और कर्मचारियों की नियुक्ति हुई है। एआइओबीसी की मानें तो केंद्र सरकार के इन उद्यमों में 22.62 प्रतिशत ही ओबीसी कर्मचारी कार्यरत हैं। 

एआइओबीसी के आंकड़ों के मुताबिक, समूह ‘क’ (प्रबंधकीय और कार्यपालक) और समूह ‘ख’ (पर्यवेक्षकीय) में ओबीसी वर्ग के क्रमशः 21.88 प्रतिशत और 23.52 प्रतिशत ही अधिकारी नियुक्त हैं जबकि कई उद्यमों में ओबीसी की संख्या शून्य है। ऐसे विभागों में गृह मंत्रालय, उच्च शिक्षा विभाग, कृषि शोध एवं शिक्षा विभाग, उद्योग एवं आंतरिक व्यापार प्रोन्नति विभाग, वित्तीय सेवा विभाग, आर्थिक मामलों का विभाग, सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय, वैज्ञानिक औद्योगिक अनुसंधान विभाग, दिव्यांग सशक्तिकरण विभाग का नाम प्रमुख रूप से शामिल हैं।

उक्त 43 लोक उद्यमों में समूह ‘ग’ (कुशल श्रमिक) के पदों पर ओबीसी कर्मचारियों की संख्या 27.13 प्रतिशत है। लेकिन, उच्च शिक्षा विभाग, गृह मंत्रालय, आर्थिक मामलों के विभाग, वित्त सेवाएं विभाग, उत्तर पूर्वी क्षेत्र विकास मंत्रालय, अंतरिक्ष विभाग, आदिवासी मामलों के मंत्रालय, सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय, नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय, उद्योग एवं आंतरिक व्यापार प्रोन्नति विभाग, आयुष विभाग, कृषि शोध एवं शिक्षा विभाग में समूह ‘ग’ के पदों पर इनकी संख्या शून्य है।

इन उद्यमों में समूह ‘घ’ (अकुशल श्रमिक) के पदों पर ओबीसी कर्मचारियों की संख्या उनके संवैधानिक आरक्षण से कहीं ज्यादा कम है। आंकड़ों के मुताबिक, 14.64 प्रतिशत ही ओबीसी कर्मचारी इन उद्यमों में कार्य कर रहे हैं। करीब 13 प्रतिशत पद अभी भी खाली हैं। उच्च शिक्षा विभाग, गृह मंत्रालय, सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय, बॉयोटेक्नोलॉजी विभाग, कृषि शोध एवं शिक्षा विभाग, आयुष विभाग, उद्योग एवं आंतरिक व्यापार प्रोन्नति विभाग, आर्थिक मामलों के विभाग, वित्त सेवाएं विभाग, दिव्यांग सशक्तीकरण विभाग, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय, आदिवासी मामलों के मंत्रालय एवं अंतरिक्ष विभाग में समूह ‘घ’ के पदों पर ओबीसी कर्मचारियों की संख्या शून्य है।

पिछले 13 मार्च को इलाहाबाद हाइकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने उत्तर प्रदेश के प्राथमिक विद्यालयों में 69,000 सहायक अध्यापकों की भर्ती में ओबीसी वर्ग के 15,971 पदों के नुकसान के मामले में फैसला सुनाया। इसमें उसने पाया कि उत्तर प्रदेश सरकार ने आरक्षित वर्गों (ओबीसी, एसटी और एससी) के संवैधानिक अधिकारों का बड़े पैमाने पर हनन किया है। चयनित उम्मीदवारों की सूची बनाते समय वर्टिकल और हॉरिजॉन्टल आरक्षण को उल्टे क्रम में लागू किया जिससे गैर-आरक्षित वर्ग के उम्मीदवारों की संख्या आरक्षित वर्ग के उम्मीदवारों से ज्यादा हो गई।

आरक्षित वर्गों के मामले में प्रदेश सरकार और उसके अधिकारियों की कार्यशैली की आलोचना करते हुए पीठ ने लिखा, “सुनवाई के दौरान अनेक मौकों पर न्यायालय ने राज्य सरकार से सहायक अध्यापक भर्ती परीक्षा-2019 में शामिल उम्मीदवारों का विवरण उनके वर्ग और प्राप्तांकों के साथ मांगा लेकिन उसने केवल अनारक्षित और आरक्षित वर्ग में चयनित उम्मीदवारों की संख्या ही उपलब्ध कराई। इसी आधार पर वह तर्क देती रही कि आरक्षित वर्ग के उम्मीदवारों को अनारक्षित वर्ग में शामिल किया गया है। उसने आरक्षण अधिनियम-1994 की धारा-3(6) के प्रावधानों का उल्लंघन नहीं किया है। लेकिन, राज्य सरकार ने सहायक अध्यापक भर्ती परीक्षा-2019 में सफल हुए प्रत्येक उम्मीदवारों का विवरण उनके वर्ग और प्राप्तांकों के साथ न्यायालय को कभी भी मुहैया नहीं कराया। इस स्थिति में पीठ की राय है कि अनारक्षित वर्ग में आरक्षित वर्ग के मेरिटधारी उम्मीदवारों को शामिल करने का सही मूल्यांकन निर्धारित नहीं हो सकता है।” फिलहाल न्यायालय ने राज्य सरकार को तीन महीने के अंदर 1 जून 2020 को जारी चयनित उम्मीदवारों की सूची का पुनरीक्षण करने, नियमों के तहत उम्मीदवारों के क्वालिटी प्वाइंट तैयार कर उसके आधार पर उम्मीदवारों की मेरिट तैयार करने का आदेश दे दिया है।  

उप्र अधीनस्थ सेवा चयन आयोग ने 2021 में उप्र परिवार कल्याण महानिदेशालय के नियंत्रणाधीन स्वास्थ्य कार्यकर्ता (महिला) के 9212 पदों पर भर्ती के लिए विज्ञापन प्रकाशित किया था। इनमें 1346 पद एससी, 420 एसटी, 1660 ओबीसी और 921 ईडब्ल्यूएस के लिए आरक्षित थे। सीटों आवंटन के प्रतिशत की बात करें तो एससी वर्ग 14.61, एसटी 4.56 और ओबीसी को 18.01 सीटें आवंटित की गई थीं। ईडब्ल्यूएस समेत अनारक्षित वर्ग को कुल सीटों की 62.81 प्रतिशत सीटें दी गई थीं। आयोग ने केवल 8831 पदों पर ही भर्ती का परिणाम जारी किया। शेष 381 प्रतिशत सीटों का परिणाम लंबित कर दिया। एससी वर्ग में 1345, एसटी वर्ग में 40 और ओबीसी वर्ग में 1660 पदों पर ही उम्मीदवारों का परिणाम घोषित किया गया जो उनके संवैधानिक आरक्षण से कम है।

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