दिल्ली असेंबली चुनाव में आम आदमी पार्टी (आप) की हार के बाद उपजी अटकलों को विराम देने के लिए 8 फरवरी को पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान, विधानसभा अध्यक्ष कुलतार सिंह संधवा समेत कई मंत्रियों और विधायकों ने दिल्ली में पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल से मुलाकात की, फिर तीन दिन बाद कपूरथला हाउस में बैठक हुई।
दिल्ली में मिली करारी शिकस्त के बाद अरविंद केजरीवाल ‘आप’ की पंजाब सरकार में अपना दखल बढ़ाएंगे या फिर भगवंत मान अपने लिए नई राह तलाशेंगे? यह सवाल पंजाब के सियासी गलियारों में गूंज रहा है। आप के नेताओं और विपक्षी नेताओं के बीच चर्चा आम है कि केजरीवाल के सामने पंजाब की सियासत में दखल को बचाए रखना सबसे बड़ी चुनौती होगी।
अब तक मुख्यमंत्री मान को डमी सीएम यानी केजरीवाल के महज मुखौटे के रूप में माना जाता रहा है। पंजाब सरकार और राज्य में पार्टी संगठन के तमाम अहम फैसले सीधे दिल्ली से लिए जाते हैं। आला अफसरों की नियुक्तियों का फैसला भी पार्टी सुप्रीमो केजरीवाल ही करते रहे हैं। मार्च 2022 में भगवंत मान की अगुआई में अप्रत्याशित बहुमत से पंजाब के लोगों ने सरकार बनाई थी लेकिन बतौर मुख्यमंत्री, मान की स्वायत्तता को लेकर सवाल लगातार उठते रहे हैं।
आप के एक वरिष्ठ नेता नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं, “दिल्ली की हार के बाद केजरीवाल पंजाब में अपनी पकड़ और दखल और बढ़ाने की कोशिश करेंगे। इससे भगवंत मान के लिए स्थितियां असहज हो सकती हैं।” इसलिए मान के सामने अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि बदले हुए हालात में क्या वह केजरीवाल की परवाह किए बगैर पार्टी के भीतर अपनी स्थिति मजबूत कर पाएंगे या फिर महाराष्ट्र के एकनाथ शिंदे की तरह अलग राह अपना लेंगे।
पंजाब की राजनीति पर बीते चार दशक से नजर रखने वाले पंजाबी युनिवर्सिटी, पटियाला के राजनीतिशास्त्र विभाग के डॉ. गुरजीत पाल सिंह का कहना है, ‘‘भगवंत मान अब भी पंजाब में लोकप्रिय हैं। अगर केजरीवाल उन पर नियंत्रण बढ़ाते हैं तो वह अपने समर्थक-विधायकों के साथ अलग रास्ता अपना सकते हैं। इन हालात में यहां प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस इस घटनाक्रम को भुनाने की पूरी कोशिश करेगी।”
पंजाब भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने आउटलुक से कहा, “तीन साल पहले पंजाब में ‘दिल्ली मॉडल’ बेचकर सत्ता में आए केजरीवाल का दिल्ली मॉडल फ्लॉप साबित हुआ है। केजरीवाल खुद हारने के बावजूद पंजाब में अपना दखल बढ़ाते हैं, तो पंजाब की आप लीडरशिप कुछ बड़ा फैसला लेने पर विवश होगी।”
राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ट पत्रकार हरप्रीत कौर का मानना है, ‘‘कृषि कानूनों के चलते पंजाब में कमजोर रही भाजपा आप के संकट को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी। 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले अगर भाजपा पंजाब में अपने लिए नई जगह बनाने में सफल होती है, तो सबसे बड़ा झटका अकाली दल को लगेगा। अकाली दल को अब भाजपा से नए सियासी खतरे का सामना करना पड़ेगा।”
राजनीतिक विश्लेषक मनमोहन चड्ढा का मानना है कि ‘‘भाजपा अब अकाली दल के वोट बैंक में सेंध लगाने की पूरी कोशिश करेगी। अगर भगवंत मान और आप कमजोर होते हैं, तो यह भाजपा के लिए स्वर्णिम अवसर होगा।”
दिल्ली में आप की हार की गूंज पंजाब में कितनी दूर तक जाएगी, यह आने वाला समय ही बताएगा, लेकिन इतना तय है कि अब पंजाब की राजनीति एक नए मोड़ पर खड़ी है। दिल्ली में 11 फरवरी को आप विधायकों की बैठक इसी का रास्ता निकालने के लिए बुलाई गई थी।