विजयनगरम के महाराजकुमार, जिन्हें विज्जी नाम से अधिक जाना जाता है, का नाम इतिहास में षड्यंत्रकारी और अशिष्ट शैली वाले कप्तान के तौर पर दर्ज है। वे 1936 में इंग्लैंड जाने वाली टीम के कप्तान थे। जब से उनका नाम इन गुणों के कारण इतिहास में दर्ज हुआ है, तब से भारतीय क्रिकेट भरोसे की कमी और गुटबाजी से जूझती रही है। पैसा, राजनीतिक संपर्क के चलते असीम ताकत, प्रतिशोध या सिर्फ ईर्ष्या- इन सब बातों ने समय-समय पर भारतीय क्रिकेट को काफी नुकसान पहुंचाया है। लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ कि दो करिश्माई कप्तानों ने कप्तानी जैसे संवेदनशील मुद्दे पर सार्वजनिक रूप से विरोधाभासी बयान दिया हो।
भारतीय क्रिकेट का इतिहास ऐसी घटनाओं से भरा पड़ा है जब शीर्ष अधिकारियों ने एक दूसरे को धोखा दिया हो, राजनीतिक दल अपनी पसंद के खिलाड़ियों के समर्थन में आए हों, वरिष्ठ खिलाड़ियों ने टीम में गुटबाजी पैदा की हो या टीम के कप्तान कोच से उलझ गए हों। क्रिकेट के आकर्षण और इसकी लोकप्रियता के कारण बड़े बिजनेसमैन और राजनैतिक नेताओं ने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआइ) अध्यक्ष की कुर्सी का इस्तेमाल अपना प्रोफाइल मजबूत बनाने में किया है। लेकिन जब कोई पूर्व कप्तान विश्व क्रिकेट के सबसे शक्तिशाली पद की गरिमा को ऐसी बातों से ठेस पहुंचाए जिसे झूठ माना जाता हो, तो वह निंदनीय है।
विराट कोहली हमेशा अपनी आक्रामकता और निर्भीकता के लिए जाने जाते रहे हैं। मैदान पर विनम्र व्यवहार और शालीनता न दिखाने के कारण उनकी आलोचना होती रही है। लेकिन भारतीय टेस्ट टीम के दक्षिण अफ्रीका रवाना होने से पहले कोहली ने बड़ी विनम्रता के साथ बीसीसीआइ में पारदर्शिता की कमी और खिलाड़ियों के साथ संवादहीनता को उजागर कर दिया। खास बात यह है कि कोहली ने गांगुली की बातों को तब गलत बताया जब रोहित शर्मा को बड़े ही गोपनीय तरीके से एकदिवसीय टीम की कप्तानी दे दी गई।
मुख्य न्यायाधीश समेत सुप्रीम कोर्ट के जजों ने जब अगस्त 2018 में बीसीसीआइ के संविधान का पुनर्गठन किया, तो उसका मुख्य लक्ष्य बोर्ड का नियंत्रण वरिष्ठ खिलाड़ियों के हाथों में देना था जो प्रशासक बनना चाहते थे। नया संविधान बीसीसीआइ को अधिक पेशेवर और पारदर्शी बनाने तथा भारत में धर्म समझी जाने वाली क्रिकेट को चलाने में नेताओं और सरकारी अधिकारियों का प्रभाव कम करने के लिए था।
अक्टूबर 2019 में जब गांगुली बीसीसीआइ के अध्यक्ष बने तो उसे क्रिकेट प्रशासन के लिहाज से बड़े बदलाव का क्षण माना गया। उम्मीद यही थी कि वे बीसीसीआइ को उसी तरीके से चलाएंगे जिस तरह उन्होंने भारतीय क्रिकेट टीम को साफ-सुथरा, आत्मविश्वासी और संगठित बनाया था, खासकर विदेश दौरों में। गांगुली आक्रामक, इंटेलिजेंट और निष्पक्ष माने जाते थे। उन्होंने आगे बढ़कर मोर्चा संभाला और ऐसे उभरते खिलाड़ियों की टीम बनाई जो एक दूरदर्शी कप्तान के रूप में गांगुली का आदर करते थे।
लेकिन बीसीसीआइ अध्यक्ष के रूप में उनका कार्यकाल उनकी कप्तानी के कार्यकाल के विपरीत लग रहा है। गांगुली कमजोर और अपारदर्शी दिख रहे हैं। जिस तरीके से उन्होंने रोहित शर्मा को एकदिवसीय कप्तान बनाने के फैसले का बचाव किया, वह समय के अनुकूल नहीं था। शायद अन्य शक्तिशाली बीसीसीआइ अध्यक्षों की तरह उन्हें भी यह उम्मीद नहीं थी कि कोहली अपनी बात सार्वजनिक रूप से कहेंगे।
एकदिवसीय टीम की कप्तानी से हटाए जाने पर अगर कोहली बेहतर संवाद और पारदर्शिता की मांग करते हैं तो इसमें कुछ गलत नहीं
कोहली का यह अब तक का सबसे साहसिक कदम कहा जा सकता है। कोहली को एकदिवसीय की कप्तानी से हटाने के मामले में गांगुली शायद झूठ बोल रहे हैं। इससे इस बात के भी संकेत मिलते हैं कि बीसीसीआइ को अभी किस तरह चलाया जा रहा है। कप्तानों और महान खिलाड़ियों को कभी बोर्ड की तरफ से सम्मान नहीं मिला। आप मौजूदा प्रमुख कोच राहुल द्रविड़ से पूछिए। आप सचिन तेंदुलकर से पूछिए जिन्होंने भारत के लिए एक सौ अंतरराष्ट्रीय शतक लगाए हैं। या फिर गांगुली से ही पूछ लीजिए। एक सफल कप्तान और खिलाड़ी होने के बावजूद गांगुली को ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 2008 में आखिरी सीरीज खेलने के लिए बीसीसीआइ अध्यक्ष शरद पवार और मुख्य चयनकर्ता कृष्णमाचारी श्रीकांत की मदद की जरूरत पड़ी।
एकदिवसीय टीम की कप्तानी से हटाए जाने पर अगर कोहली बेहतर संवाद और पारदर्शिता की मांग करते हैं तो इसमें कुछ गलत नहीं है। बीसीसीआइ को लगा कि दक्षिण अफ्रीका के लिए टेस्ट टीम की घोषणा करने वाली प्रेस रिलीज में बतौर फुटनोट इसका जिक्र कर देना काफी होगा। गांगुली महत्वपूर्ण मुद्दों पर मीडिया से बात करने से बचते हैं। एक टीवी चैनल से बातचीत में उन्होंने कहा, “व्यक्तिगत रूप से मैंने कोहली से ट्वेंटी-20 की कप्तानी नहीं छोड़ने के लिए कहा था।” लेकिन कोहली ने इस बात से इनकार किया। उन्होंने यह भी कहा कि वे हमेशा टेस्ट और एकदिवसीय टीम की कप्तानी करना चाहते थे। दक्षिण अफ्रीका के लिए भारत की टेस्ट टीम चुने जाने से डेढ़ घंटे पहले उन्हें बताया गया कि वे एकदिवसीय टीम के कप्तान नहीं रहेंगे।
एकदिवसीय टीम के कप्तान पद से कोहली के हटाए जाने को कई नजरिए से देखा जा रहा है। एक चर्चा यह है कि शायद गांगुली, कोहली से इस बात का बदला ले रहे हैं कि उन्होंने अनिल कुंबले को मुख्य कोच के तौर पर स्वीकार नहीं किया और उनकी जगह रवि शास्त्री को पसंद किया। साल 2017 में इंग्लैंड में आइसीसी चैंपियंस ट्रॉफी के बाद कोहली, गांगुली और वीवीएस लक्ष्मण के नेतृत्व वाली एडवाइजरी कमेटी पर भारी पड़े थे और शास्त्री को मुख्य कोच बनवाने में सफल रहे थे। लेकिन तब सुप्रीम कोर्ट की तरफ से नियुक्त प्रशासकों की समिति थी। आज गांगुली बीसीसीआइ अध्यक्ष और लक्ष्मण नेशनल क्रिकेट अकादमी के प्रमुख हैं।
दबी जुबान से यह चर्चा भी हो रही है कि कोहली से अंततः टेस्ट टीम की कप्तानी भी ले ली जाएगी। इसके पीछे सिर्फ क्रिकेट कारण नहीं हो सकता। ट्वेंटी-20 वर्ल्ड कप मैच में पाकिस्तान के हाथों भारत की 10 विकेट से हार के बाद जब मोहम्मद शमी को ट्रोल किया गया, तब एकमात्र कोहली थे जिन्होंने शमी का साथ दिया। जब बीसीसीआइ ने चुप्पी साध ली थी और लाखों सोशल मीडिया फॉलोवर वाली नामचीन हस्तियों ने भी सधे तरीके से शमी के पक्ष में जुबान खोली थी, तब कोहली ने खुलकर शमी का समर्थन किया।
कोहली ने सोशल मीडिया पर लिखा, “धर्म के आधार पर किसी पर हमला करना मनुष्य होने के नाते सबसे बुरा है। धर्म बहुत ही पवित्र और निहायत व्यक्तिगत चीज है। लोग अपनी कुंठा इसलिए निकालते हैं क्योंकि वे यह नहीं समझते कि हम क्या कर रहे हैं। हम 200 फीसदी उसके (शमी के) साथ हैं। टीम का भाईचारा कोई डिगा नहीं सकता है।”
क्या कोहली की यही ईमानदारी उन पर भारी पड़ गई है? क्या गांगुली उन लोगों को खुश करने के लिए ऐसा कर रहे हैं जिनके दम पर वे बीसीसीआइ अध्यक्ष बने हुए हैं?
ये सवाल लगातार उठते रहेंगे। इस बीच 26 सितंबर को सेंचुरियन में जब टेस्ट सीरीज की शुरुआत होगी तो सबकी नजरें कोहली पर टिकी होंगी। कोहली करीब दो साल से फॉर्म में नहीं दिख रहे हैं। इस दौरान उनके खाते में एक भी शतक नहीं आया है। अगर दक्षिण अफ्रीका दौरे में भी उनका बल्ला नहीं चमका तो गांगुली एंड कंपनी उनके साथ और भी क्रूर तरीके से बदला ले सकती है।
(लेखक आउटलुक के खेल संपादक हैं)