किसान आंदोलन खत्म होते ही पंजाब की चुनावी पिच पर भाजपा और कैप्टन साझीदार की भूमिका में आ गए हैं। फर्क यह है कि इस गठबंधन में भाजपा प्रमुख पार्टी होगी और पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिदंर सिंह की पंजाब लोक कांग्रेस (पीएलसी) बी टीम बनकर चुनाव लड़ेगी। ठीक वैसे ही, जैसे तीन दशक तक शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के साथ गठबंधन में भाजपा बी टीम के रूप में करीब दो दर्जन सीटों पर चुनाव लड़ती रही है। भाजपा 2017 के विधानसभा चुनाव में 117 में से 23 सीटों पर लड़ी थी, लेकिन उसे कामयाबी सिर्फ तीन सीटों पर मिली। भाजपा-पीएलसी में सीटों के बंटवारे का औपचारिक एलान जनवरी में होने की उम्मीद है।
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक नए गठबंधन में भाजपा बड़े दल की भूमिका निभाएगी। ज्यादातर शहरी सीटों पर भाजपा मोर्चा संभालेगी जबकि ग्रामीण इलाकों में पीएलसी के उम्मीदवार होंगे। सितंबर में मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने के बाद कांग्रेस से किनारा करने वाले कैप्टन अमरिंदर ने कहा था कि अगर केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार कृषि कानूनों को रद्द करने की किसानों की मांग मान लेती है, तो विधानसभा चुनाव में वे भाजपा से हाथ मिला लेंगे।
केंद्र के तीन कृषि कानूनों के विरोध में 15 महीने चले किसान आंदोलन ने पंजाब के भाजपा नेताओं को सामाजिक और राजनीतिक बहिष्कार के कारण घरों में कैद रहने के लिए मजबूर कर दिया था। कृषि कानून रद्द होने के बाद किसान आंदोलन थमा तो भाजपा नेता अब बाहर निकलने लगे हैं। अमरिंदर के साथ गठबंधन में खुद को कैप्टन की भूमिका में देख रही भाजपा के पंजाब अध्यक्ष अश्विनी शर्मा ने आउटलुक से कहा, “2022 के विधानसभा चुनाव के लिए हमारा नारा 'नवा पंजाब भाजपा दे नाल' (नया पंजाब बीजेपी के साथ है) है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने जो कृषि कानून रद्द किया है, उसके बाद से हम एक नया भविष्य देखते हैं। पंजाब में बदलाव की हवा चल रही है, जिसे हम सभी महसूस कर सकते हैं।”
भाजपा खुद को किसानों की पार्टी होने का दावा भी करने लगी है। पंजाब भाजपा प्रभारी और राष्ट्रीय महासचिव दुष्यंत गौतम कहते हैं, “हम किसानों की पार्टी हैं और हमेशा किसानों की पार्टी रहेंगे। हमारी सरकार ने किसानों के हित में कई योजनाएं शुरू की हैं। कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन के दौरान भी हमने किसान कल्याण योजनाएं जारी रखीं। हमने अकाली, कांग्रेस और आप के विरोध के बावजूद किसानों को सीधे उनके बैंक खातों में भुगतान करने के लिए डीबीटी स्कीम जारी रखी।”
पंजाब में परंपरागत रूप से शहरी हिंदू कारोबारियों से जुड़ी भाजपा 2022 के विधानसभा चुनाव के लिए राज्य में अपना आधार बढ़ाने की कोशिश कर रही है। पंजाबी भाषा में चलाए गए प्रचार अभियान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गुरुद्वारे में मत्था टेकने की तस्वीर के साथ सिखों की कल्याणकारी योजनाओं की सूची प्रकाशित की जा रही है। इसमें पाकिस्तान के करतारपुर साहिब गलियारे के उद्घाटन से लेकर 1984 के सिख विरोधी दंगों के पीड़ितों के लिए न्याय, लंगर से जीएसटी हटाने, अफगानिस्तान से लौटे सिखों का पुनर्वास और वहां से पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब के पावन स्वरूप को वापस लाने, गुरु नानक देव के 550वें प्रकाश पर्व उत्सव और गुरु गोबिंद सिंह के 350वें प्रकाश पर्व पर विशेष आयोजनों का उल्लेख है।
भाजपा की पंजाब इकाई के महासचिव सुभाष शर्मा ने कहा, “केंद्रीय स्तर पर पंजाब के लिए भाजपा का प्रचार अभियान प्रदेश में पार्टी के बारे में गलतफहमियों को दूर करने के प्रयास का एक हिस्सा है। भाजपा एक राष्ट्रीय पार्टी है, पर यह धारणा गलत है कि यह शहरी लोगों के एक विशेष वर्ग का ही प्रतिनिधित्व करती है। जब हम शिअद के साथ गठबंधन में थे, तो केवल 23 सीटों पर चुनाव लड़ते थे। उन सीटों पर शहरी और हिंदू मतदाता अधिक थे। शिअद के बड़े नेता ही सीटों का फैसला हम पर थोपते थे, पर अब हम अपना दायरा बढ़ाएंगे।”
हाल ही दिल्ली गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के पूर्व अध्यक्ष और शिअद नेता मनजिंदर सिंह सिरसा समेत कई अकाली सिख चेहरों को पार्टी में शामिल कराना भाजपा की पंजाब फतह की कोशिशों का एक हिस्सा है। लेकिन देखना है कि चतुष्कोणीय मुकाबले में पार्टी की कोशिशें कितना रंग लाती हैं।
चुनाव से पहले फिर बेअदबी
पंजाब में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले एक बार फिर माहौल बदलने लगा है। पिछले दिनों अमृतसर और कपूरथला में श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी की दो घटनाएं हुईं, जिनमें दोनों आरोपियों को लोगों ने पीट-पीट कर मार डाला। बेअदबी की घटना 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले भी हुई थी। इस बार शिरोमणि अकाली दल की बजाय सत्तारूढ़ कांग्रेस निशाने पर है। हत्या की घटनाओं पर तो सभी पार्टियां चुप हैं, लेकिन बेअदबी की सबने निंदा की है। प्रदेश कांग्रेस प्रमुख नवजोत सिंह सिद्धू ने तो मांग की है कि किसी भी धर्म का अपमान करने वाले को सार्वजनिक रूप से फांसी दी जानी चाहिए। हाल की घटनाओं को एक समुदाय के खिलाफ साजिश बताते हुए उन्होंने आरोप लगाया कि कट्टरपंथी ताकतें प्रदेश में माहौल बिगाड़ना चाहती हैं।
बेअदबी की पहली घटना श्री हरमंदिर साहिब (र्स्वण मंदिर), अमृतसर में 18 दिसंबर को और दूसरी घटना कपूरथला में 19 दिसंबर को हुई। उसके बाद गुस्साए श्रद्धालुओं ने आरोपियों को मौत के घाट उतार दिया। कपूरथला में तो पुलिस की मौजूदगी में भीड़ ने आरोपी को पीट-पीट कर मार डाला। इससे पहले अक्टूबर में तीन कृषि कानूनों के विरोध के दौरान, निहंगों के एक समूह ने बेअदबी के आरोप में सिंघु बॉर्डर पर लखबीर सिंह नाम के व्यक्ति को मार डाला था। इस पर शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) के अध्यक्ष ज्ञानी हरजिंदर सिंह धामी की दलील है, “अभी तक राज्य सरकार उम्र कैद या मौत की सजा जैसा सख्त प्रावधान नहीं कर सकी है। बेअदबी के आरोपी के पक्ष में कोई अपील नहीं चलती। उसके लिए तो सजा साधु-संगत ही मुर्करर करती है।”
धामी की दलील पर खुलकर बोलने को कोई तैयार नहीं, पर अक्टूबर में सिंघु बॉर्डर पर लखबीर की हत्या के मामले में पटियाला के परमेश्वर द्वार के प्रमुख रणजीत सिंह ढंडरियांवाले ने कहा था, “कत्ल करने वालों को बख्शा नहीं जाना चाहिए। बेअदबी का आरोप साबित हुए बगैर निहंगों ने एक को मौत के घाट उतार दिया।”
पिछले विधानसभा चुनाव से पहले बेअदबी की पहली घटना 12 अक्टूबर 2015 को फरीदकोट जिले के बरगाड़ी में हुई थी, जहां पवित्र श्री गुरु ग्रंथ साहिब के 110 फटे अंग (पृष्ठ) पाए गए थे। वहां 14 अक्टूबर को शांतिपूर्वक प्रदर्शन कर रहे दो युवक पुलिस फायरिंग में मारे गए। 13 और 16 अक्टूबर 2015 के बीच पंजाब में विभिन्न स्थानों से बेअदबी की कई और घटनाएं हुईं। उसके बाद 2017 के विधानसभा चुनाव में शिअद-भाजपा गठबंधन को करारी हार का सामना करना पड़ा। कैप्टन अमरिंदर सिंह ने मुख्यमंत्री बनने के बाद कहा था कि वे 2015 के मामले में न्याय सुनिश्चित करेंगे। लेकिन अभी तक संशोधित जांच रिपोर्ट पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत नहीं की जा सकी है। मौजूदा मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने भी मुख्यमंत्री बनने के बाद पहली प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि 2015 के मामलों में न्याय मिलेगा।
छह साल बाद बेअदबी की घटनाओं ने पंजाब की सियासत में 2017 की याद को फिर ताजा कर दिया है। चन्नी सरकार विपक्षी दलों के निशाने पर हो सकती है। पंजाब भाजपा प्रमुख अश्विनी शर्मा ने आरोप लगाते हुए कहा कि सरकार को सिखों की भावनाओं की कद्र नहीं है। शिअद अध्यक्ष सुखबीर के अनुसार, “यह एक व्यक्ति का काम नहीं, इसके पीछे गहरी साजिश है। साजिश के संकेत पहले ही मिल गए थे जब 17 दिसंबर को दरबार साहिब के पवित्र सरोवर में गुटका साहिब फेंकने की घटना हुई। राज्य की खुफिया एजेंसियों को इस साजिश की खबर क्यों नहीं लगी?” हालांकि गृह मंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा ने एसआइटी गठन का हवाला देते हुए कहा है कि जल्द ही असली दोषियों तक पहुंचने में कामयाबी मिलेगी।