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उत्तर-पूर्व : अब तो हल निकले

गठन के समय से ही सातों राज्यों के बीच सीमा विवाद जारी, लेकिन अभी तक इसे सुलझाने के गंभीर प्रयास नहीं
आखिर कब तकः असम पुलिस के मारे गए जवानों को गार्ड ऑफ ऑनर

विडियो क्लिप सिर्फ 25 सेकंड का है, जिसमें एक उलटाए गए वाहन के पीछे कुछ लोग नजर आते हैं। उनके हाथों में स्वचालित हथियार हैं। लेकिन वीडियो में आ रही आवाज गौर करने वाली है। लगातार गोलियां चलने की आवाज सुनाई पड़ती है। कुछ और वीडियो क्लिप भी हैं। सभी मोबाइल फोन के कैमरे से रिकॉर्ड किए गए हैं। एक में हथियारों से लैस मिजोरम पुलिस के जवान पहाड़ी के ऊपर नजर आते हैं। उनमें से एक आदेश भरे लहजे में कहता है, "5 मिनट टाइम देता है, चला जाओ।" एक अन्य वीडियो में मिजोरम पुलिस के हथियारबंद जवान पहाड़ी से उतरते हैं। नीचे लोग खुशियां मना रहे हैं, एक दूसरे की पीठ थपथपाते हैं, आपस में हाथ मिलाते हैं। जैसे कोई जंग जीती हो।

आरोप है कि पहाड़ी के ऊपर से इन पुलिसवालों ने लाइट मशीन गन और दूसरे हथियारों से असम पुलिस के जवानों पर फायरिंग की, जिसमें छह जवान मारे गए और 40 से ज्यादा घायल हुए। यह घटना असम और मिजोरम की विवादास्पद सीमा पर हुई। उत्तर पूर्व में सीमा विवाद दशकों पुराना है और इस तरह की खूनी झड़पें पहले भी होती रही हैं। ताजा घटना 26 जुलाई की है, जो कारगिल विजय दिवस भी है। असम का दावा है कि विवादित भूमि उसके कछार जिले के लायलापुर में है। मिजोरम का कहना है कि वह जमीन उसके कोलासिब जिले में है। अन्य अंतर्राज्यीय सीमा विवादों की तरह यह भी 1972 से चला आ रहा है जब असम से अलग कर मिजोरम बना था। तब मिजोरम का इलाका ‘लुशाई हिल्स’ नाम से जाना जाता था।

अगले दिन कछार जिले के सिलचर में पत्रकारों के साथ बातचीत में असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा, “उन्होंने ऐसे फायरिंग की मानो यह दो देशों की अंतर्राष्ट्रीय सीमा हो।” कछार, करीमगंज और हायलाकांडी, दक्षिणी असम के तीनों जिले मिजोरम के साथ 164.6 किलोमीटर लंबी सीमा बनाते हैं। सरमा हालात का जायजा लेने और मारे गए पांच पुलिसकर्मियों (घायल छठे पुलिसकर्मी की मौत बाद में हुई) को श्रद्धांजलि देने गए थे। उन्होंने एक वीडियो ट्वीट किया और लिखा, "असम पुलिस के पांच जवानों को मारने और अनेक को घायल करने के बाद मिजोरम पुलिस और वहां के गुंडे जश्न मना रहे हैं। यह बड़ा दुखद और भयावह है।" मिजोरम के मुख्यमंत्री जोरामथांगा के साथ सोशल मीडिया पर ही उनके कुछ आरोप-प्रत्यारोप भी चले। बात यहां तक पहुंच गई कि दोनों राज्यों ने एक-दूसरे के खिलाफ एफआइआर दर्ज की। मिजोरम की एफआइआर में असम के मुख्यमंत्री का भी नाम लिखा गया, जिसे बाद में हटाया गया।

इस सीमाई इलाके में तनाव अक्टूबर 2020 से बना था। दोनों राज्यों में बीच-बीच में झड़पें होती रहीं और एक-दूसरे पर जमीन कब्जाने के आरोप लगते रहे। फरवरी में हालात तब बिगड़ गए जब सीमा के पास गलाचेरा आउटपोस्ट के करीब दो झोपड़ियां जला दी गईं। 10 जुलाई को इलाके का दौरा कर रही असम सरकार की एक टीम पर कुछ लोगों ने ग्रेनेड फेंका। फिर 11 जुलाई को बम विस्फोट की दो घटनाएं हुईं।

सरमा ने बताया कि असम पुलिस के जवान और अधिकारी 26 जुलाई को उस इलाके में गए थे। उन्हें सूचना मिली थी कि सीमाई जंगल में सड़क निर्माण चल रहा है। वहां उन्होंने पाया कि सड़क के साथ-साथ एक पुलिस पोस्ट भी बनाई गई है। असम के अधिकारी कोलासिब के एसपी के साथ बात कर ही रहे थे कि अचानक उनके ऊपर फायरिंग होने लगी। मिजोरम के गृहमंत्री पू लालचामलियाना ने अपनी पुलिस का यह कहकर बचाव किया कि उन्होंने जवाबी फायरिंग की। असम पुलिस के 200 जवान सीआरपीएफ ड्यूटी पोस्ट को जबरन लांघ आए थे। वे निशस्त्र लोगों के साथ लूटपाट और उन पर फायरिंग कर रहे थे।

इस घटना से 48 घंटे पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मेघालय की राजधानी शिलांग में उत्तर पूर्व के सभी मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक की थी। उस बैठक का मुख्य एजेंडा देश की आजादी के 75 साल पूरे होने से पहले राज्यों का सीमा विवाद खत्म करना था। सितंबर 2019 में भाजपा के नेतृत्व वाले उत्तर पूर्व लोकतांत्रिक गठबंधन (नेडा) की गुवाहाटी में हुई बैठक में अमित शाह ने कहा था कि जब हम बांग्लादेश के साथ सीमा विवाद हल कर सकते हैं तो उत्तर पूर्वी राज्यों के बीच सीमा विवाद का हल क्यों नहीं निकल सकता।

उत्तर पूर्व के सभी सात राज्यों में सरकार चलाने वाली पार्टियां 'नेडा' का हिस्सा हैं। असम के मुख्यमंत्री सरमा इसके संयोजक हैं। केंद्रीय गृहमंत्री को शायद लगा कि सभी राज्यों में एक ही पार्टी की सरकार होने से सीमा विवाद का समाधान आसान होगा। लेकिन सरमा कहते हैं, “इसका अलायंस के साथ क्या लेना देना? मेरे लिए राज्य सर्वोपरि है और चाहे जैसे हो हम अपनी जमीन की रक्षा करेंगे।”

जोरामथांगा के अनुसार उत्तर पूर्व का सीमा विवाद औपनिवेशिक काल से चला आ रहा है। उनका कहना है कि नगालैंड, मेघालय, अरुणाचल और मिजोरम जैसे राज्यों के गठन के समय से इसे अनसुलझा छोड़ दिया गया। असम के साथ विवाद पर उनका कहना है कि उस इलाके में मिजोरम वासी एक सदी से भी ज्यादा समय से रह रहे हैं। असम ने हाल ही इस इलाके पर दावा जताना शुरू किया है। इसके पीछे बराक घाटी में बाहर से आने वालों के कारण जनसंख्या का दबाव है।

राज्य पुनर्गठन अधिनियम 1956 के तहत जब भाषाई आधार पर राज्यों का पुनर्गठन किया जा रहा था, तब उत्तर पूर्व को अनछुआ रहने दिया गया। जल्दी ही नगा पहाड़ियों से लेकर दूसरे इलाकों में अलगाववादी आंदोलन खड़े होने लगे। जमीन की सीमाएं खींचते वक्त नस्लीय विशिष्टता का ध्यान नहीं रखा गया और आजादी के पहले की ऐतिहासिक सीमाओं की भी अनदेखी की गई। असम आजादी के बाद तय की गई सीमा को मानता है जबकि मेघालय, नगालैंड और मिजोरम ऐतिहासिक सीमा को मानते हैं।

उदाहरण के लिए नगालैंड का गठन दिसंबर 1963 में नगालैंड राज्य अधिनियम 1962 के आधार पर किया गया था। लेकिन अधिनियम में निर्धारित सीमा उसे स्वीकार नहीं थी। 1866 की अधिसूचना में जो इलाके नगा क्षेत्र में शामिल थे वह उन्हें भी राज्य में शामिल करने पर अड़ा रहा। प्रदेश के गठन के दो साल बाद ही, 1965 में सीमा को लेकर लड़ाई शुरू हो गई। 1979 और 1985 में हुई दो झड़पों में 150 लोग मारे गए जिनमें असम पुलिस के 28 जवान भी शामिल थे। असम-मिजोरम सीमा पर 26 जुलाई की घटना नगालैंड के साथ दशकों पुरानी उस घटना की याद दिलाती है।

भारत की आजादी के 75 साल अगले वर्ष पूरे हो जाएंगे। तब तक उत्तर पूर्वी राज्यों के बीच सीमा विवाद का समाधान होगा या नहीं, मौजूदा माहौल में इसकी सहज कल्पना की जा सकती है। शायद असम के मुख्यमंत्री की ही बात सच हो कि राज्य अलग देशों की तरह सीमा पर लड़ते रहेंगे।

 

हर सीमा पर विवाद

असम-मिजोरमः 164.6 किलोमीटर लंबी सीमा। जुलाई 2021 में मिजोरम पुलिस की फायरिंग में असम पुलिस के 6 जवानों की मौत हो गई

असम-अरुणाचल प्रदेशः 804 किलोमीटर लंबी सीमा। 2005 में असम पुलिस और वन विभाग के अधिकारियों पर अरुणाचल प्रदेश की सीमा में करीब एक सौ घरों में आग लगा देने का आरोप। 2007 में असम में एक शांति बैठक में गोलियां चलने से 8 लोग घायल। सुप्रीम कोर्ट में सीमा विवाद की सुनवाई जारी

असम-मेघालयः 733 किलोमीटर लंबी सीमा। मई 2010 में लांगपीह में असम पुलिस की फायरिंग में खासी जनजाति के चार लोगों की मौत।

असम-नगालैंडः 434 किलोमीटर लंबी सीमा। जनवरी 1979 में नगालैंड के सशस्त्र लोगों ने गोलाघाट जिले के एक गांव में कम से कम 54 लोगों की हत्या कर दी। उसके बाद कई हजार लोग उस इलाके से पलायन कर गए। जून 1985 में गोलाघाट जिले में ही असम पुलिस के 28 जवानों समेत लोगों की हत्या

मिजोरम-त्रिपुराः 66 किलोमीटर लंबी सीमा। एक गांव में शिव मंदिर को लेकर विवाद

मणिपुर-नगालैंडः डिजुकु घाटी और तुंगजय गांव को लेकर विवाद, 8 मणिपुरी गिरफ्तार

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