यूपी के गोंडा में साधारण परिवार में जन्मे अवध ओझा सोशल मीडिया में चर्चित हैं। बकौल ओझा, उन्हें आइएएस के अलावा कोई दूसरी नौकरी करने का कभी ख्याल नहीं आया। उन्होंने मेहनत भी की लेकिन दो बार मेंस लिखने के बावजूद सफल नहीं हो पाए। उनका सपना तो अधूरा रह गया लेकिन आज वे यूपीएससी की तैयारी करने वाले ढेरों छात्रों की प्रेरणा बन गए हैं। हालांकि शिक्षक के रूप में ओझा की यात्रा इत्तेफाकन शुरू हुई। उन्होंने सबसे पहले इलाहाबद में दर्शनशास्त्र पढ़ाया और बाद में 2005 में अपना कोचिंग सेंटर खोला, मगर आर्थिक कारणों से बंद करना पड़ गया। फिर, 2010 में उन्होंने नए कोचिंग सेंटर की शुरुआत की, जो आज भी जारी है। कोविड-19 महामारी के दौर से पहले उनका ऑफलाइन सेंटर उतना लोकप्रिय नहीं था। लॉकडाउन के दौरान उन्होंने अपने वीडियो यूट्यूब पर डालना शुरू किया और आज ओझा के यूट्यूब पेज पर करीब 4 लाख लोग जुड़े हुए हैं। उनके एक वीडियो की पहुंच लाखों में है। आउटलुक के लिए राजीव नयन चतुर्वेदी ने उनसे खास बातचीत की। संपादित अंश:
आपके लेक्चर सोशल मीडिया बहुत लोकप्रिय हैं। आपको किस तरह के संघर्ष से गुजरना पड़ा?
पढ़ाई में मैं ठीक-ठाक था। किसी की सलाह पर मैंने यूपीएससी की तैयारी शुरू कर दी। दो बार मेंस लिखने के बावजूद सलेक्शन नहीं हुआ। किसी के कहने के बाद मैं अध्यापन में आया। पढ़ाने के लिए मुझे सिर्फ दो समय का खाना मिलता था। कोरोना के दौर में हमारे ऊपर करीब डेढ़ करोड़ रुपये का कर्ज था। सो, महामारी के दौरान मैंने मोटिवेशनल वीडियो बनाकर यूट्यूब पर डालना शुरू किया। उसके बाद मॉर्डन इंडिया की भी कुछ वीडियो अपलोड किए। लोग इन्हें पसंद करने लगे। यहीं से मेरी शुरुआत हुई है।
सोशल मीडिया सफर कैसा रहा?
सोशल मीडिया पर मेरी शुरुआत वाजीराम से हुई। वहां जब फेयरवेल होता था तो लड़के वीडियो बनाते थे। वहीं से किसी ने मेरे स्पीच को पहली बार यूट्यूब पर डाला। मुझे लोगों की प्रतिक्रियाएं मिलने लगीं। पहले मुझे इस सब के बारे में कुछ पता नहीं था। धीरे-धीरे मैंने इसे समझा। वाजीराम में दिनों में जो, बीज बोया गया, कोरोना के दौर में वह पेड़ बन गया।
आजकल ऑनलाइन का जमाना है। शिक्षा अब मोबाइल पर है। अच्छे-अच्छे शिक्षक ऑनलाइन की तरफ मुड़ रहे हैं। क्या ऑफलाइन शिक्षा खत्म होने की कगार पर है?
कभी नहीं। शिक्षक और छात्र के बीच आमने-सामने जिस ऊर्जा का संचार होता है, वह ऑनलाइन में संभव नहीं। जब सामने खड़े होकर 100-200 बच्चों को पढ़ाया जाता है, तो वे शिक्षक से कनेक्ट होते हैं। क्लास का महत्व कभी खत्म नहीं हो सकता।
ऑनलाइन पढ़ाई में हमने क्या खोया है?
ऑफलाइन क्लास में देखकर यह समझ सकते हैं कि बच्चे का ध्यान कहां है। वह परेशान तो नहीं है? ऑनलाइन शिक्षा में यह कड़ी टूट गई है। बच्चे अब ज्यादा अकेले हो गए हैं। ऑफलाइन पढ़ाई का मौका मिले, तो कोई भी ऑनलाइन नहीं पढ़ेगा। 100 लोगों के साथ बैठ कर पढ़ने पर एकाग्रता ज्यादा होती है। ऑनलाइन में वही बच्चे कैजुअल हो जाते हैं।
ऑनलाइन में लोकप्रिय होने के लिए कुछ लोग उलूल-जुलूल हरकतें कर रहे हैं। इससे इस माध्यम की गंभीरता पर सवाल खड़े होते हैं। ऐसे शिक्षकों के बारे में आपका कहना है?
ऐसे दो-चार लोग हर जगह मिल जाएंगे। फिल्मी दुनिया में भी दर्जनों ऐसे लोग हैं। राजनीति में भी यही हाल है। लोगों को किसी भी तरह अटेंशन चाहिए।
पहले शिक्षकों में नाम, दाम, शोहरत की चाहत कम दिखती थी। आज शिक्षक ब्रांड बन गए हैं। इसके चलते कभी-कभी वे विवाद में भी घिरते हैं। इसे कैसे देखते हैं?
इसके लिए मैंने एक शब्द बनाया है ‘पैरासाइट फेम।’ अगर कोई ज्यादा फेमस हैं, लाखों की संख्या में उसके फॉलोवर हैं, तो उसका एक छोटा सा क्लिप निकालकर फैला दिया जाता है। ऐसे में अच्छे-खासे व्यूज मिल जाते हैं।
शिक्षक जब ब्रांड बन जाते हैं तो उनके पढ़ाने के तरीके में क्या बदलाव आता है?
कुछ नहीं। मैं जैसा पहले पढ़ाता था, वैसा ही अब भी पढ़ाता हूं। आज भी मैं कुछ भी पहन कर क्लास में चला जाता हूं। शिक्षक की स्वीकार्यता उसके ज्ञान से है, उसके ग्लैमर से नहीं।
ऑनलाइन शिक्षा को भारत में पूरी तरह स्वीकार्यता नहीं मिल पाई है। आपका विचार?
बिसलेरी जब इंडिया में आई, तो लोगों ने यही सोचा था कि यहां कौन है, जो पानी खरीदेगा? हमारे यहां, तो पानी पिलाना पुण्य का काम माना जाता है। लेकिन आज बिसलेरी के पानी की बिक्री अरबों में है। ऐसे ही हर चीज परिवर्तित होती है। नई पीढ़ी सब कुछ ऑनलाइन कर रही है। आने वाले 5-10 साल में इसे सभी लोग स्वीकार कर लेंगे।
भविष्य की आपकी योजना क्या है?
मेरा कोई खास प्लान नहीं है। शिक्षा के क्षेत्र में ही रहूंगा। मेरा इलाहाबाद के आस-पास एक स्कूल खोलने का इरादा है।