छत्तीसगढ़ में चुनावी पारा चढ़ चुका है। दिलचस्प है, सियासी माहौल को गरमाने का काम केंद्र सरकार की ओर से किया गया है। पिछले महीने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के करीबी विनोद वर्मा के यहां छापेमारी की थी। इस पर प्रतिक्रियाओं की आंच ठंडी भी नहीं हुई थी कि ईडी ने सितंबर के पहले सप्ताह में वर्मा के बेटों और पत्नी तक को समन भेज दिया। इसके बाद से भूपेश बघेल लगातार केंद्र और भारतीय जनता पार्टी पर हमलावर हैं। राजनांदगांव में 8 सितंबर को कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की उपस्थिति में ‘भरोसे का सम्मेलन’ आयोजित कर बघेल ने चुनाव प्रचार की औपचारिक शुरुआत कर दी है।
राज्य में विधानसभा की कुल 90 सीटों पर मुख्यत: कांग्रेस और भाजपा के बीच मुकाबला होता रहा है। राज्य के गठन के बाद 15 साल तक राज्य में भाजपा की सरकार रही। 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा को पहली बार राज्य में मात दी और काफी विवादों और चर्चाओं के बाद भूपेश बघेल सर्वसम्मति से लोकप्रिय मुख्यमंत्री बनकर उभरे। डेढ़ दशक तक सत्ता में रही भाजपा राज्य में 15 विधायक ही बनवा सकी। चुनाव के बाद कांग्रेस पार्टी के 68 विधायक थे। 2022 में संपन्न हुए खैरागढ़ उपचुनाव के बाद सदन में कांग्रेस विधायकों की संख्या बढ़कर 71 हो गई है।
पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले 2023 में कुल मतदाताओं की संख्या में 9 लाख 49 हजार 866 की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। इनमें महिलाएं, पुरुषों से आगे निकल चुकी हैं। इतना ही नहीं, 14 जिले ऐसे हैं जहां पुरुषों से ज्यादा महिला वोटर हैं। महिला वोटरों को साधने में जुटी कांग्रेस विधानसभावार महिला प्रभारियों की नियुक्ति अप्रैल में ही कर चुकी है।
उधर, मिशन-2023 की तैयारी में जुटी भाजपा जीती हुई सीटें बरकरार रखने के साथ हारी हुई सीटों पर फोकस कर रही है। कोई तीन महीने बाद होने वाले विधानसभा और उसके बाद लोकसभा चुनाव में पार्टी के 14 विधायकों और 11 सांसदों की कड़ी परीक्षा होनी है। भाजपा के साथ एक लाभ यह है कि केंद्र में भी उसी की सरकार है और ईडी, सीबीआइ जैसी एजेंसियां कथित रूप से केंद्र के इशारे पर अब खुलेआम राज्य सरकारों के खिलाफ काम कर रही हैं। पिछले महीने राजस्थान, छत्तीसगढ़, केरल और झारखंड में पड़े विपक्षी नेताओं के यहां छापे इसकी तसदीक करते हैं। आरोप है कि एजेंसियों के सहारे भाजपा राज्य सरकारों को उखाड़ने और असंवैधानिक रूप से कमजोर करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है।
उम्मीदवारों की पहली लिस्ट
बीते दिनों जब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने रायपुर का दौरा किया था, तो उन्होंने छत्तीसगढ़ सरकार के खिलाफ 104 पन्नों का एक आरोपपत्र जारी किया। रायपुर के दीनदयाल उपाध्याय सभागार में आरोपपत्र जारी करते हुए शाह ने कहा था कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़ को गांधी परिवार का ‘एटीएम' बना दिया है और राज्य को विकास के रास्ते से भटका दिया है। अब केवल भाजपा ही छत्तीसगढ़ को कांग्रेस की लूट, अत्याचार और कुशासन से बचा सकती है।
इस बीच 17 अगस्त को भाजपा ने अपने 21 उम्मीदवारों को भी मैदान में उतार दिया है। पांच पूर्व विधायक, एक सांसद के अलावा 16 नए चेहरों वाली इस सूची में पार्टी ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की विधानसभा सीट पाटन से पूर्व विधायक और दुर्ग लोकसभा सीट से सांसद विजय बघेल को चुनावी मैदान में उतारा है। विजय मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के भतीजे हैं। विजय को चुनावी मैदान में उतार कर भाजपा ने यहां की लड़ाई बघेल बनाम बघेल की कर दी है। बताया जाता है कि भाजपा की पहली सूची खुद अमित शाह की मंजूरी से तैयार हुई है, लेकिन दूसरी सूची को लेकर अभी कोई सुगबुगाहट नहीं है। माना जा रहा है कि कांग्रेस की पहली सूची का भाजपा को इंतजार है।
कांग्रेस की पहली सूची में कई कारणों से देरी हो रही है। पहले बताया गया था कि कांग्रेस 7 सितंबर तक अपने उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर देगी, लेकिन स्क्रीनिंग कमेटी की बैठकें टलते रहने के कारण अब तक ऐसा नहीं हो सका है। माना जा रहा है कि 8 सितंबर को राजनांदगांव पहुंचे खड़गे की अध्यक्षता में स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक होनी थी, जिसके बाद शायद कुछ दिनों के भीतर कांग्रेसी उम्मीदवारों की सूची आ जाए। संभव है इस सूची के आने के बाद ही भाजपा दूसरी सूची पर हाथ लगाए।
विकास और संस्कृति के भरोसे
कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे की उपस्थिति में राजनांदगांव के ठेकवां विकास प्रखंड में 8 सितंबर को मुख्यमंत्री बघेल ने 355 करोड़ 23 लाख रुपये की लागत के कुल 1867 विकास कार्यों का भूमिपूजन और लोकार्पण किया। इसमें 177 करोड़ 86 लाख रुपये के 1691 कार्यों का भूमिपूजन एवं 177 करोड़ 36 लाख रुपये के 176 कार्यों का लोकार्पण शामिल है। बघेल बीते पांच साल में अपने किए ऐसे ही विकास कार्यों, शिलान्यासों और लोकार्पणों पर भरोसा जताते रहे हैं। खासकर, राज्य सरकार की ग्रामीण विकास योजनाओं से सीधे महिलाओं की बड़ी आबादी की आर्थिक गतिविधियों में संलग्नता बढ़ी है।
राज्य सरकार की महत्वाकांक्षी नरवा, गरुवा, घुरवा और बाड़ी और गोधन न्याय योजना के तहत गौठानों में गोबर से वर्मी कम्पोस्ट के साथ ही अन्य सामग्रियों के निर्माण का काम शुरू किया गया। गौमूत्र से न केवल फसल कीटनाशक और जीवामृत तैयार किया गया बल्कि गोबर से प्राकृतिक पेंट बनाने का काम भी पूरे प्रदेश में शुरू किया गया। इन योजनाओं में गौर करने लायक बात महिलाओं की भागीदारी की है। अब इस योजना के तहत महिलाएं प्रशिक्षण लेकर स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से पेंट का निर्माण कर रही हैं।
यहां एक बात ध्यान देने वाली यह है कि कांग्रेस के सत्ता में आते ही स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) की संख्या बहुत तेजी से बढ़ी है। दिसंबर 2018 के बाद से अब तक 13 लाख से अधिक महिलाएं इन समूहों से जुड़ चुकी हैं। जब महिलाएं एसएचजी से जुड़ती हैं तो बैंकिंग गतिविधियों से भी जुड़ती हैं, एकाउंटेंसी से भी परिचित होती हैं और मार्केट को भी समझ पाती हैं। इस तरह से खुद को वे पूरी तरह से आर्थिक कार्यकलापों में दक्ष बना पाती हैं। सरकार ने इन महिला एसएचजी को ध्यान में रखकर अलग से बाजार प्रदान भी करने का काम भी किया है। हर जिले में सी-मार्ट खोले गए हैं जिनके माध्यम से हर क्षेत्र के खास उत्पादों को जगह मिली है।
भूपेश सरकार उन मजदूरों के वोट पर भी भरोसा कर रही है, जिन्हें लॉकडाउन के बाद छत्तीसगढ़ वापस लौटने पर उनके कौशल के अनुसार रोजगार उपलब्ध कराने के प्रयास किए गए हैं। सरकार ने कार्यस्थल पर दुर्घटना मृत्यु में पंजीकृत निर्माण श्रमिकों के परिजनों को मिलने वाली सहायता राशि एक लाख रुपये से बढ़ाकर पांच लाख रुपये तथा स्थायी विकलांगता की स्थिति में इन्हें देय राशि 50 हजार से बढ़ाकर ढाई लाख रुपये करने का प्रावधान किया। अपंजीकृत श्रमिकों को भी कार्यस्थल पर दुर्घटना से मृत्यु होने पर एक लाख रुपये की सहायता प्रदान करने की घोषणा की गई। श्रमिकों के लिए मासिक सीजन टिकट (एमएसटी) जारी करने के अलावा, पंजीकृत निर्माण श्रमिकों को नवीन आवास निर्माण अथवा क्रय के लिए 50 हजार रुपये का अनुदान और हार्ट सर्जरी, लीवर ट्रांसप्लांट, किडनी ट्रांसप्लांट, न्यूरोसर्जरी, रीढ़ की हड्डी की सर्जरी, घुटने की सर्जरी, कैंसर, लकवा जैसी गंभीर बीमारियों के इलाज में स्वास्थ्य विभाग की योजनाओं के अतिरिक्त भी 20 हजार रुपये के अनुदान को मंजूरी दी।
दूसरी तरफ, सरकार ने श्रमिकों और किसानों का मान बढ़ाने के लिए मजदूर दिवस के दिन लोगों से बोरे-बासी खाने की अपील की। उनकी इस अपील ने लोगों को भावनात्मक और सांस्कृतिक रूप से जोड़ने का भी काम किया। मजदूरों के पसंदीदा भोजन बोरे-बासी खाकर लोगों ने न केवल आपसी समरसता और भाईचारे का परिचय दिया बल्कि इसकी चर्चा सत्ता के गलियारों में खूब हुई। भूपेश ने अपने निवास में राज्य में मनाए जाने वाले ठेठ छत्तीसगढ़िया त्योहार, जैसे तीजा, पोरा हरेली का आयोजन कर के भी सांस्कृतिक मोर्चे पर लोगों को जोड़ने का काम किया है।
भूपेश सरकार ने राज्य के आदिवासी समुदाय के पारंपरिक दैनिक आहार मोटे अनाज को बढ़ावा देने के लिए ‘मिलेट मिशन’ शुरू किया है। मोटे अनाजों के उत्पादन और उपभोग को प्रोत्साहित करने के लिए छत्तीसगढ़ में कोदो, कुटकी और रागी का समर्थन मूल्य घोषित किया गया और इसी मूल्य पर खरीदी भी की जा रही है। इस पहल से छत्तीसगढ़ में मिलेट्स का रकबा डेढ़ गुना बढ़ा है और उत्पादन भी बढ़ा है। इसी दिशा में कांकेर जिले के नथिया-नवागांव में मिलेट्स का सबसे बड़ा प्रोसेसिंग प्लांट भी स्थापित किया जा चुका है, जो कि एशिया की सबसे बड़ी मिलेट्स प्रसंस्करण इकाई है।
राज्य सरकार ने छत्तीसगढ़िया खेलों को भी आगे बढ़ाने का काम किया। सरकार ने छत्तीसगढ़िया ओलंपिक का आयोजन पहली बार इसी मंशा से किया, जिसे भारी जनसमर्थन देखने को मिला। अपने अब तक के कार्यकाल में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने छह जिलों का निर्माण भी किया है। इसके पीछे सोच है कि वहां रहने वाले आदिवासी, अनुसूचित जाति तथा पिछड़े वर्गों का विकास तो हो ही, साथ ही सांस्कृतिक, धार्मिक, ऐतिहासिक, पुरातात्विक विकास के साथ खनिज संसाधनों का समुचित लाभ भी इन जिलों के लोगों को मिल सके।
राम के नाम पर
भूपेश बघेल को राम के नाम का भी आसरा है। इस मामले में छत्तीसगढ़ सरकार ने कई राज्यों की भाजपाई सरकारों को भी मात दे दी है। बघेल सरकार ने सबसे पहले राम वनपथगमन योजना की घोषणा की, वह भी उस समय जब केंद्र सरकार अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के प्रचार में लगी हुई थी। राज्य सरकार ने चन्दखुरी स्थित माता कौशल्या मंदिर से यह काम प्रारंभ किया। देखते ही देखते सरकार ने 51 स्थलों को चिन्हित कर राम वनगमन पर्यटन परिपथ के रूप में विकसित करने की शुरुआत की।
सरकार की इस पहल का दोहरा असर हुआ। एक ओर अंतरराष्ट्रीय हिन्दू परिषद ने भूपेश सरकार की योजनाओं की तारीफ की और छत्तीसगढ़ प्रवास में परिषद् के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष प्रवीण तोगड़िया ने भूपेश सरकार को सराहा, तो दूसरी ओर राज्य में सांप्रदायिक दंगे भी हुए। छिटपुट सांप्रदायिक तनावों के बीच 2021 में कवर्धा में हुआ सांप्रदायिक दंगा सबसे अहम रहा, जिसके आरोप में भाजपा के एक वर्तमान और एक पूर्व सांसद के खिलाफ एफआइआर दर्ज की गई। भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह कवर्धा के रहने वाले हैं।
सांप्रदायिक तनाव की सबसे हालिया घटना जशपुर जिले की है जहां के एक गांव डूमरबहार में जन्माष्टमी के दिन दो समुदायों के बीच तनाव पैदा हो गया। मामले में भाजपा के एक नेता का नाम सामने आया है। इससे पहले भी राज्य के दूसरे इलाकों में सौहार्द बिगाड़ने की घटनाएं हो चुकी हैं।
बघेल के बयान
फिलहाल, सबकी नजर इस बार के चुनाव में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पर टिकी है। उनके और पार्टी के सामने विधानसभा चुनाव में जीत की रणनीति बनाने के साथ-साथ अपने उम्मीदवारों के चयन की चुनौती भी है। पार्टी के सूत्रों की मानें तो 30 प्रतिशत से भी ज्यादा चेहरे ऐसे हैं जिन पर पार्टी दोबारा दांव खेलने नहीं जा रही है। नए चेहरों को लाकर पार्टी सत्ता में वापसी के अलावा छत्तीसगढ़ कांग्रेस के भीतर पीढ़ी परिवर्तन का अवसर भी तलाश रही है। यह रणनीति सफल रही तो इसमें टिकट उन दावेदारों को दिया जाएगा, जो पिछले लगभग दो दशक से पार्टी के साथ सक्रिय रूप से बिना किसी पद के बावजूद बने हुए हैं।
भूपेश बघेल के सामने यह चुनौती ऐसे दौर में है जब उनके करीबी राजनीतिक सलाहकार, कांग्रेसी नेताओं और समर्थकों पर लगातार ईडी और आयकर विभाग की कार्रवाई जारी है। इसलिए भूपेश न केवल भाजपा पर आक्रामक हैं, बल्कि, केंद्र सरकार, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री पर भी तीखी टिप्पणी करने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं। उनकी मानें तो छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सबसे बड़ी चुनौती ईडी और आइटी से लड़ना है, भाजपा से नहीं।
कांग्रेस पर आरोपपत्रः गृह मंत्री अमित शाह (बीच में) के साथ पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह (दाएं)
भूपेश कहते हैं, “ईडी और आयकर विभाग भाजपा के पावरफुल विंग के रूप में काम कर रही है। वे छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव से पहले भय का माहौल पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन वे अपने प्रयासों में सफल नहीं होंगे। ये केंद्रीय एजेंसियां मेरे कुछ करीबी सहयोगियों के खिलाफ हैं। जांच एजेंसियां किसी को भी गिरफ्तार कर सकती हैं। पार्टी ऐसी स्थिति से निपटने के लिए तैयार है। हमें 2018 में जेल में डाल दिया लेकिन उसके बाद उनकी 15 साल की सरकार 15 सीटों पर सिमट गई। इस बार भी अगर वे इस रणनीति को आजमाएंगे तो उन्हें ऐसे ही परिणाम देखने को मिलेंगे।”
भूपेश बघेल को भी कुछ राज्यों के मुख्यमंत्रियों की तरह जी-20 रात्रिभोज में दिल्ली बुलाया गया था। उन्होंने नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे को आमंत्रित न किए जाने को लोकतंत्र पर हमला करार देते हुए सरकार पर तंज कसा और कहा दिल्ली को नो फ्लाई जोन बना दिया गया है, ऐसे में वह उड़ कर वहां कैसे जा सकते हैं। बघेल ने सरसंघचालक मोहन भागवत के “200 साल तक आरक्षण” वाले बयान पर भी मौका नहीं गंवाया और मांग कर डाली कि भागवत छत्तीसगढ़ के राज्यपाल से 76 प्रतिशत वाले आरक्षण बिल पर दस्तखत करवा दें। तल्ख बयानों से गरमा चुके चुनावी माहौल में फिलहाल भूपेश बघेल और कांग्रेस पार्टी भाजपा को निशाने पर लेने का कोई मौका नहीं छोड़ रही। सभी को संसद के विशेष सत्र के नतीजों का इंतजार है जिसका पता 22 सितंबर को ही चलेगा। अगर इस संसद सत्र का पहले चुनाव करवाने या ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ से कोई भी लेना-देना है, तो निश्चित रूप से दो चुनावों के दबाव में भाजपा अपने सारे घोड़े खोल देगी। भूपेश बघेल की असली चुनौती तब सामने आएगी।