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क्रिकेटः टाइगर का अपमान!

टाइगर पटौदी के नाम चली आ रही ट्रॉफी को रिटायर करने की योजना पर बीसीसीआइ मौन
टाइगर पटौदी

टाइगर नाम से मशहूर, मंसूर अली खान पटौदी भारतीय क्रिकेट के सबसे करिश्माई कप्तानों में एक थे। भारत के साथ-साथ इंग्लैंड में भी उनके प्रशंसकों की संख्या कम नहीं थी। उनके खेल को देखते हुए इंग्लैंड में भारत और इंग्लैंड के बीच खेले जाने वाली टेस्ट सीरीज को पटौदी ट्रॉफी कहा जाता था। अब खबर है कि 2007 से चली आ रही इस प्रतिष्ठित ट्रॉफी को रिटायर करने की योजना है। यह फैसला इंग्लैंड और वेल्स क्रिकेट बोर्ड ने लिया है। बीसीसीआइ को भी इस बारे में जानकारी है, मगर अभी तक इस पर उसका कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है।

इंग्लैंड और भारत के बीच क्रिकेट मुकाबलों का लंबा और गौरवशाली इतिहास रहा है। 2007 में इंग्लैंड और वेल्स क्रिकेट बोर्ड ने इंग्लैंड में होने वाली भारत-इंग्लैंड टेस्ट सीरीज को पटौदी ट्रॉफी नाम दिया था। मंसूर अली खान का जन्म 5 जनवरी 1941 को भोपाल में हुआ था, लेकिन उनकी शिक्षा और क्रिकेट की प्रारंभिक ट्रेनिंग इंग्लैंड में हुई। उन्होंने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में पढ़ाई की और वहीं से क्रिकेट में अपनी प्रतिभा का परिचय दिया। उन्होंने इंग्लैंड के लिए काउंटी क्रिकेट खेला और उनकी पहचान एक बेहतरीन बल्लेबाज के रूप में बनी।

टाइगर पटौदी सिर्फ 21 साल की उम्र में भारतीय टेस्ट टीम के सबसे युवा कप्तान बने। 1961 में एक सड़क हादसे में टाइगर की आंख की रोशनी चली गई। एक आंख से क्रिकेट खेलना मुश्किल भरा था और सभी को लग रहा था कि अब शायद ही वे कभी क्रिकेट पाएं। लेकिन उनका जिद ही थी कि उन्होंने एक आंख की मदद क्रिकेट खेलना सीख लिया। इसके बाद उन्होंने न सिर्फ शानदार वापसी की, बल्कि कुछ समय बाद भारतीय टीम में जगह भी बना ली। उन्होंने भारतीय टीम को आक्रामक और आत्मविश्वास से भरपूर क्रिकेट खेलने की दिशा में आगे बढ़ाया। उनकी कप्तानी में भारत ने पहली बार विदेशी धरती (न्यूजीलैंड) पर टेस्ट मैच जीता और घरेलू मैदानों पर स्पिन को बढ़ावा देने जैसी नई रणनीतियों को अपनाया। उनके कई निर्णय आने वाले दशकों में भारतीय क्रिकेट के लिए लाभकारी साबित हुए। मंसूर के पिता इफ्तिखार अली खान पटौदी ने भी 1932 में इंग्लैंड के लिए एशेज में टेस्ट क्रिकेट खेला था। बाद में भारत की तरफ से भी उन्होंने टेस्ट क्रिकेट खेला। पटौदी परिवार का भारत और इंग्लैंड दोनों से गहरा रिश्ता था।

यही वजह है कि इंग्लैंड और वेल्स क्रिकेट बोर्ड का यह फैसला निराशाजनक है। इस फैसले पर टाइगर पटौदी का परिवार भी दुखी है। खासतौर पर उनकी पत्नी शर्मिला टैगोर इस फैसले से आहत हैं। एक अंग्रेजी अखबार से बातचीत करते उन्होंने कहा, ‘‘ईसीबी ने सैफ को एक पत्र भेजा है, जिसमें कहा गया है कि वे ट्रॉफी को रिटायर कर रहे हैं। बीसीसीआई को तय करना चाहिए कि वे लोग टाइगर की विरासत को याद रखना चाहते हैं या नहीं।’’

उपलब्धियां

शर्मिला टैगोर पहले भी ईसीबी के टाइगर के साथ किए गए व्यवहार पर नाखुशी जाहिर कर चुकी हैं। 2018 में एक खेल पत्रिका से बात करते हुए उन्होंने  एक वाकिया सुनाया था। उन्होंने कहा था, ‘‘इंग्लिश टीम को फोटो खिंचवाने और जश्न मनाने के लिए ले जाया गया और टाइगर ट्रॉफी के पास खड़े रहे। उस समय के इंग्लिश कप्तान एंड्रयू स्ट्रॉस ने देखा कि टाइगर अनिश्चित खड़े थे कि वे क्या करें, वहीं खड़े रहें या चले जाएं, तब वे खुद चलकर उनके पास आए और टाइगर ने उन्हें ट्रॉफी सौंप दी। लेकिन इस समय ट्रॉफी देने की न तो कोई तस्वीर ली गई न इसका टेलीविजन पर प्रसारण हुआ। यह घटना अगस्त की है। हम विशेष तौर पर ईसीबी के निमंत्रण पर ही पटौदी ट्रॉफी प्रदान करने के लिए लंदन गए थे। इसके बाद भारत लौटने पर टाइगर बीमार पड़ गए और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। सितंबर में उनका निधन हो गया। उस समय हमारे परिवार की प्राथमिकताएं दूसरी थीं इसलिए हम भी इस मामले पर ध्यान नहीं दे सके।’’

इस ट्रॉफी का इतिहास पहले से ही परेशानियों भरा रहा है। पटौदी परिवार तब भी बहुत खुश नहीं था क्योंकि दोनों क्रिकेट बोर्डों ने आधिकारिक तौर पर इसे मान्यता नहीं दी थी। हालांकि शर्मिला भारत की भी एक ट्रॉफी का नाम टाइगर के नाम पर कराना चाहती थीं। उन्होंने नवंबर 2012 में बीसीसीआइ अध्यक्ष एन. श्रीनिवासन को इस बारे में पत्र भी लिखा था। उन्होंने पत्र में अनुरोध किया था कि भारत-इंग्लैंड टेस्ट ट्रॉफी का नाम उनके दिवंगत पति के नाम पर कर दिया जाए। बीसीसीआइ ने यह कहते हुए मना कर दिया था कि घरेलू टेस्ट ट्रॉफी का नाम पहले से ही एंथनी डी मेलो के नाम पर रखा है। ट्रॉफी का नाम पटौदी के नाम पर रखने के बजाय, बीसीसीआइ ने 2013 में मंसूर अली खान पटौदी मेमोरियल लेक्चर शुरू किया था, जिसमें सुनील गावस्कर ने पहला व्याख्यान दिया था। उसके बाद अनिल कुंबले, वीवीएस लक्ष्मण, राहुल द्रविड़, फारूक इंजीनियर, केविन पीटरसन जैसे कई दिग्गज इस मेमोरियल लेक्चर का हिस्सा बन चुके हैं। 2020 में आखिरी बार वीरेंद्र सहवाग ने इसमें भाषण दिया था। पटौदी भारतीय क्रिकेट के महान कप्तानों में से एक थे, लेकिन उनके योगदान को भारत में लंबे समय तक नजरअंदाज किया गया। 2001, यानी उनकी कप्तानी के लगभग 35 साल बाद, बीसीसीआई ने उन्हें सीके नायडू लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से सम्मानित किया था।

उपलब्धियां

खबर है कि ईसीबी पटौदी ट्रॉफी का नाम बदल कर दोनों देशों की टेस्ट सीरीज के लिए एंथनी डी मेलो नाम को ही ट्रॉफी के लिए मान्यता दे सकती है। अब तक इंग्लैंड की टीम भारत के दौरा करती थी, तब टेस्ट सीरीज के लिए एंथनी डी मेलो ट्रॉफी दी जाती थी। पहली बार यह ट्रॉफी 1951-52 में दी गई थी। इसे भारतीय क्रिकेट बोर्ड ने भारतीय क्रिकेट प्रशासक एंटनी डी मेलो के नाम पर शुरू किया था। उन्होंने बीसीसीआइ की स्थापना में भी अहम भूमिका निभाई थी।

किसी ट्रॉफी को रिटायर करने की रवायत आम नहीं है, लेकिन खेल में ऐसा होने के कई उदाहरण हैं। इंग्लैंड और वेस्टइंडीज के बीच खेली जाने वाली विजडन ट्रॉफी को रिटायर कर दिया गया और नए पुरस्कार का नाम बदलकर रिचर्ड्स-बॉथम ट्रॉफी हो गया। एशेज, जिसके लिए इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया लंबे प्रारूप में प्रतिस्पर्धा करते हैं, 1982-83 से अस्तित्व में है, जब इंग्लैंड में पहली द्विपक्षीय टेस्ट शृंखला खेली गई थी। इसके अलावा अन्य शृंखलाएं भी हैं, जिनमें फ्रैंक वॉरेल ट्रॉफी (वेस्टइंडीज और ऑस्ट्रेलिया के बीच, 1960/61 से), बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी (भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच 1996/96 से), क्रो-थोर्प ट्रॉफी (न्यूजीलैंड और इंग्लैंड के बीच 2024-25 से) और वार्न मुरलीधरन ट्रॉफी (ऑस्ट्रेलिया और श्रीलंका के बीच 2007/08 से) शामिल हैं।

यह सिर्फ एक ट्रॉफी का नाम बदलने का मामला नहीं है, बल्कि यह भारतीय क्रिकेट के इतिहास के एक सुनहरे अध्याय को भुलाने की कोशिश है। पटौदी ट्रॉफी सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि भारत और इंग्लैंड के बीच क्रिकेट के संबंधों की एक अहम विरासत थी। लेकिन सोचना तो बीसीसीआइ को चाहिए।

विशेष उपलब्धियां

• भारत के सबसे युवा कप्तान: 1962 में मात्र 21 साल की उम्र में भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान बने

• 1961 में एक कार दुर्घटना में उनकी दाईं आंख की रोशनी चली गई थी, फिर भी उन्होंने टेस्ट क्रिकेट में शानदार प्रदर्शन किया

• भारत को पहली विदेशी टेस्ट सीरीज जीत दिलाई: 1967-68 में न्यूजीलैंड के खिलाफ भारत को पहली बार विदेश में टेस्ट सीरीज जिताई

• भारतीय क्रिकेट में आक्रामक कप्तानी की शुरुआत: उन्होंने भारतीय क्रिकेट में आक्रामक मानसिकता और टीम को जीतने का विश्वास दिया

• अर्जुन पुरस्कार (1964) और पद्मश्री (1967) से सम्मानित: भारतीय खेल में योगदान के लिए प्रतिष्ठित सम्मान प्राप्त किए

 शर्मिला टैगोर

बीसीसीआइ को तय करना चाहिए कि वे लोग मंसूर अली खान पटौदी की विरासत को याद रखना चाहते हैं या नहीं

शर्मिला टैगोर, अभिनेत्री तथा टाइगर पटौदी की पत्नी

 

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