दुनिया के उम्दा कोयले को झरिया के गर्भ निकालने का अधिकार तो बीसीसीएल को है मगर आग से खोखली हो चुकी जमीन और असुरक्षित इलाकों से पुनर्वास की जिम्मेदारी नहीं है। कंपनी के डायरेक्टर टेक्निकल ऑपरेशन, चंचल गोस्वामी के अनुसार खुद बीसीसीएल अपने सभी कर्मियों को सुरक्षित स्थानों पर शिफ्ट नहीं कर सका है। उनसे नवीन कुमार मिश्र की बातचीत के प्रमुख अंशः
बड़ी आबादी असुरक्षित इलाकों में रह रही है, पुनर्वास में क्या समस्या है?
पुनर्वास बीसीसीएल नहीं, जेआरडीए करता है। झरिया मास्टर प्लान के तहत पुनर्वास का प्रावधान हुआ है। आग से प्रभावित या अनस्टेबल साइट से हटाने की बात हो रही है। उसमें दो तरह के लोग हैं। लीगल टाइटल होल्डर (एलटीएच- कानूनी मालिक) और नॉन-एलटीएच यानी अतिक्रमण करने वाले। झारखंड सरकार ने जेआरडीए (झरिया पुनर्वास एवं विकास प्राधिकार) के माध्यझम से सर्वे कराया था। करीब 30-32 हजार एलटीएच और 70 हजार अतिक्रमण वाले हैं। एलटीएच की भी सूची बनी है, पर कागजात की जांच नहीं हुई। उन्हें हटाने का काम जेआरडीए का है।
बीसीसीएल की भूमिका किस हद तक है?
खदान खोदने, कोयला निकालने के लिए जहां जमीन की जरूरत है उसके लिए हमारी अलग नीति है। उस समय हम लोगों को हटाते हैं और लोगों को मुआवजा देते हैं। जब झरिया मास्टरप्लान बना तब 2004 कट ऑफ तारीख तय हुई थी। अभी 2009 और 2019 की बात हो रही है, पर मंजूरी नहीं मिली है। अब भी 2004 की कट ऑफ तारीक बरकरार है। एलटीएच पहले 28-30 हजार थे, अभी 32 हजार बोल रहे हैं। यह भी जांच का विषय है। अभी तक सिर्फ सूची बनी है।
असुरक्षित क्षेत्रों में बीसीसीएल कर्मी भी हैं?
करीब दस साल पहले 25 हजार बीसीसीएल क्वार्टर असुरक्षित जगहों पर थे। उन्हें हटाने की जिम्मेदारी बीसीसीएल की थी। साढ़े तीन-चार हजार क्वार्टरों को छोड़ बाकी से लोगों को तो हटाकर सुरक्षित स्थानों पर शिफ्ट किया गया है। नए क्वार्टर भी बनाए गए। दस साल में अनेक लोग रिटायर भी हुए हैं।
धनबाद-चंद्रपुरा रेल लाइन असुरक्षित घोषित की गई थी, तो एक साल विराम के बाद उसे चालू क्यों किया गया?
इसमें बीसीसीएल की कोई भूमिका नहीं है। उस लाइन के नीचे आग के कारण डायरेक्टर जनरल माइन्स सेफ्टी (डीजीएमएस) ने असुरक्षित कहा था, और ट्रेनों का परिचालन बंद कर दिया गया था। बाद में रेलवे बोर्ड ने निर्णय लिया कि चलाना है, सुरक्षित है।
ओपन माइनिंग से बेहतर किस्म के कोयले का नुकसान हो रहा है?
ओपन कास्ट सिर्फ बीसीसीएल में नहीं, पूरे देश में होता है। यह कम खर्चीला है। इसलिए भूमिगत खनन कम हो रहा है। झरिया कोलफील्ड में भूमिगत, ओपन और मिक्स मिलाकर बीसीसीएल की 35 खदानें हैं। बहुत सी नाजायज खदानें हैं, उन पर मैं कुछ नहीं बोल सकता।
कितना कोयला जल चुका होगा, कितना बचा हुआ है?
यह बताना संभव नहीं कि जमीन के भीतर कितना कोयला जला होगा। सौ साल से अधिक समय से आग लगी हुई है। कितना माइनिंग के योग्य है, किस स्तर का है, ठोस आकलन मुश्किल है। कोयला पर्याप्त मात्रा में है। ऊपर का शहर और बस्ती हट जाए तो बहुत कोयला है।
आग कितने इलाके में है?
गाइमेट ने पहले 25 वर्ग किलोमीटर बोला था। सात-आठ साल पहले 18 वर्ग किलोमीटर बताया। अब नेशनल रिमोट सेंसिंग, हैदराबाद का आकलन है कि तीन वर्ग किलोमीटर में आग है। बीसीसीएल लगातार खनन कर रहा है। कोयला निकाल रहा है, इससे भी आग का क्षेत्रफल घटा है।
आग बुझाई जा सकती है या पूरा विस्थापन करना ही एकमात्र उपाय है?
इस पर कमेंट नहीं कर सकते हैं। असुरक्षित जगह से सुरक्षित जगहों पर लोगों को ले जाने के लिए ही झरिया मास्टर प्लान बना था। उसकी अवधि खत्म हो गई है। अभी प्रस्ताव झारखंड सरकार के पास है, मंजूरी के बाद केंद्र को भेजा जाएगा।
चंचल गोस्वामी, डायरेक्टर, टेक्निकल ऑपरेशन, बीसीसीएल