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जनादेश 2022/उत्तराखंड: क्यों और कैसे टूटे मिथक

भाजपा ने दूसरी बार दो-तिहाई बहुमत लाकर मिथक तोड़ा, गुटबाजी और बेदम प्रचार के नाते कांग्रेस सत्ता-विरोधी रुझान का लाभ नहीं ले सकी
जीत के बाद उत्साहित भाजपा समर्थक

परंपरा तो यही रही है कि पर्वतीय राज्य दोबारा किसी पार्टी को सत्ता नहीं देता। फिर, आखिरी साल में दो मुख्यमंत्री बदलकर तीसरा बनाने वाली भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ सत्ता-विरोधी रुझान भी कम नहीं था। तिस पर तराई के इलाके किसान आंदोलन से प्रभावित थे। फिर भी कांग्रेस महज 9 सीटों का ही इजाफा कर पाई और हरीश रावत समेत उसके कई दिग्गज नेता हार गए। उधर, मिथक और कयासों को झुठलाकर दो-तिहाई बहमुत हासिल करने वाली भाजपा को मुख्यमंत्री चयन की दिक्कतों से दो-चार होना पड़ रहा है। इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा की चुनावी मशीनरी ने फिर साबित किया कि उनका कोई जोड़ नहीं।

वर्चुअल माध्यम से प्रचार में भाजपा सबसे आगे रही और कांग्रेस शुरुआती दौर से ही पिछड़ती दिखी। भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री के अलावा गृह मंत्री अमित शाह, योगी आदित्यनाथ, केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा समेत अन्य दिग्गजों ने मोर्चा संभाला तो कांग्रेस की ओर से आए बड़े नेता महज प्रेस कॉन्फ्रेंस तक सीमित रहे। कांग्रेस के एक अदने से नेता की मुस्लिम विश्वविद्यालय की मांग को आधार बनाकर भाजपा ने सांप्रदायिक कार्ड खेल दिया। मोदी ने भी अपने संबोधन में इसका जिक्र किया। इसके विपरीत कांग्रेस शायद इसी भुलावे में रही कि सत्ता-विरोधी रुझान उसे जिता देगा। इस बार के चुनाव में कांग्रेस और भाजपा दोनों ही सियासी दलों ने दलबदल का खेल जमकर खेला। नतीजों पर गौर करें तो चौकाने वाला तथ्य यह रहा कि कांग्रेसी मतदाताओं को दलबदलू नेता पसंद नहीं आए तो इसके विपरीत भाजपाई वोटरों ने दलबदलू नेताओं को जमकर दुलार दिया। साढ़े चार साल तक भाजपा सरकार में मंत्री रहे यशपाल आर्य अपने पुत्र संजीव के साथ चुनाव से पहले कांग्रेस में शामिल हो गए। यशपाल ने कांग्रेस के टिकट पर बाजपुर सीट से चुनाव लड़ा और महज साढ़े ग्यारह सौ वोटों से जीत सके। उनके पुत्र संजीव को कांग्रेस ने नैनीताल सीट से टिकट दिया, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा।

इसी तरह से पुरोला सीट पर भाजपा छोड़नेे वाले पूर्व विधायक मालचंद ने इस बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा, लेकिन मतदाताओं ने उन्हें नकार दिया। लगभग पांच साल तक भाजपा सरकार में मंत्री रहे डॉ. हरक सिंह रावत चुनाव से पहले कांग्रेस में शामिल हो गए और अपनी पुत्रवधू अनुकृति को लैंसडाउन सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़वाया। अनुकृति को भी हार का सामना करना पड़ा।

उत्तराखंड की सीटें

चुनाव से ऐन पहले कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष किशोर उपाध्याय और महिला कांग्रेस की अध्यक्ष सरिता आर्य ने कांग्रेस को छोड़कर भाजपा का दामन थामा। भाजपा ने किशोर को टिहरी और सरिता को नैनीताल सीट से टिकट दिया। दोनों ही चुनाव जीत गए।

कांग्रेस नेता अपने सियासी विरोधी को निपटाने की मुहिम में पार्टी का ही नुकसान करते दिखे, हरीश रावत भी चुनाव हारे

कांग्रेस नेता अपने सियासी विरोधी को निपटाने की मुहिम में पार्टी का ही नुकसान करते दिखे, हरीश रावत भी चुनाव हारे

दोनों ही सियासी दलों में इस बार टिकटों के वितरण को लेकर खासा बवाल रहा। दोनों दलों में असंतोष सामने आया। कांग्रेस में सबसे ज्यादा असंतोष दिखा। दिग्गज अपने सियासी विरोधी को निपटाने की मुहिम में साफ तौर पर कांग्रेस का नुकसान करते दिखे। नतीजे सामने आए तो साफ दिखा कि एक-दूसरे की सियासत खत्म करने की कोशिश में लगे सभी नेता खुद अपना भी चुनाव हार गए। इसका सबसे बड़ा उदाहरण कांग्रेस चुनाव प्रचार समिति के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की करारी हार के रूप में सामने आया। अंतरकलह तो भाजपा में भी दिखी। कई सीटों पर बागी खड़े हुए। लेकिन महज एक सीट रुद्रपुर में ही भाजपा के बागी पूर्व विधायक राजकुमार ठुकराल कुछ दम दिखा सके। बाकी अधिकांश बागी तीन अंकों के वोटों तक ही सिमट गए।

आप आदमी पार्टी ने सूबे की सभी 70 सीटों पर चुनाव लड़ा। एक पूर्व सैन्य अफसर कर्नल अजय कोठियाल को सीएम का चेहरा घोषित करके इस सैन्य बहुल उत्तराखंड के अवाम से वोट लेने की कोशिश की। आप की ओर से दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया, सांसद भगवंत मान समेत दिल्ली के कई विधायकों ने यहां जमकर प्रचार किया। नतीजा सामने आया तो आप को एक भी सीट नहीं मिल सकी। अलबत्ता ऊधमसिंह नगर जिले की काशीपुर सीट पर आप प्रत्याशी दीपक बाली, बाजपुर सीट पर सुनीता बाजवा ने बेहतर प्रदर्शन किया। आप के सीएम कंडीडेट कर्नल अजय खुद भी चुनाव हार गए। उन्हें महज छह हजार वोट मिले।

नतीजों का विश्लेषण करने पर पता चलता है कि एक-दो मैदानी इलाकों में कांग्रेस को बढ़त मिली तो पर्वतीय क्षेत्रों में भाजपा ने परचम लहराया। पुरुषों की तुलना में छह फीसदी ज्यादा महिलाओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। सियासी जानकार इसे केंद्र सरकार की फ्री राशन और उज्ज्वला रसोई गैस योजना से जोड़कर देख रहे हैं।

वैसे, भाजपा की चुनौती अभी खत्म नहीं हुई है। चुनाव में भाजपा का चेहरा रहे मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी खटीमा सीट से चुनाव हार गए। अब मुख्यमंत्री का चेहरा कौन होगा, इस पर मंथन चल रहा है। सीएम पद के अन्य दावेदारों में केंद्रीय रक्षा राज्य मंत्री अजय भट्ट, सांसद डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक, राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी के साथ ही पूर्व सीएम बीसी खंडूड़ी की पुत्री और कोटद्वार से विधायक ऋतु खंडूरी का नाम भी लिया जा है। इन नामों के बीच भाजपा हाइकमान के सामने एक चुनौती उत्तराखंड गठन से समय से ही चल रहे ब्राह्मण बनाम राजपूत मुद्दे से भी पार पाने की है।

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