भोपाल से अनूप दत्ता लोकसभा चुनाव में भाजपा ने वह कर दिखाया जिसकी किसी को जरा भी भनक तक नहीं थी। मध्य प्रदेश में पहली बार भाजपा सभी 29 सीटें हथियाने में कामयाब रही। इस बार कांग्रेस की झोली बिलकुल खाली रह गई। 1980 से 2024 के बीच संपन्न हुए 12 लोकसभा चुनावों में यह पहला मौका है जब सभी सीटों पर भाजपा सांसद जीते हैं। इससे पहले 1984 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने सभी 40 (वर्ष 2000 से पहले अविभाजित मध्य प्रदेश में लोकसभा की 40 सीटें थीं) सीटों पर जीत हासिल की थी। ठीक 40 साल बाद 2024 में भाजपा ने वैसी ही जीत दोहराई है।
मध्य प्रदेश के इतिहास में यह कांग्रेस का अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन रहा है। कमलनाथ और कांग्रेस के गढ़ रहे छिंदवाड़ा में भी भाजपा इस बार सेंध लगाने में कामयाब रही। एक बार को छोड़कर कमलनाथ छिंदवाड़ा सीट कभी नहीं हारे। 45 साल से कांग्रेस इस सीट पर काबिज रही है। 1997 में हुए उपचुनाव में पहली बार पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा ने कमलनाथ को हराया था। इस बार भाजपा के विवेक साहू बंटी ने कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ को मात दी। लगभग छह महीने पहले हुए विधानसभा चुनाव में कमलनाथ ने साहू को हराया था। इस तरह विवेक साहू ने कमलनाथ और नकुलनाथ दोनों से हार का बदला ले लिया। कमलनाथ के गढ़ पर 26 साल बाद भाजपा अपना परचम लहराने में कामयाब रही है।
पिछले चुनाव में भाजपा द्वारा गुना सीट जीतने के बाद भाजपा नेताओं ने कहा था कि दो गढ़ों में से एक ढह गया है। छिंदवाड़ा जीत के बाद भाजपा कह सकती है कि उसने दूसरा गढ़ भी ढहा दिया। इसी से मिलती-जुलती कहानी राजगढ़ संसदीय क्षेत्र की भी है।
राजगढ़ सीट पर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने 33 साल बाद चुनाव लड़ा था। वे यहां से दो बार सांसद रह चुके हैं। 1993 में मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने राजगढ़ सीट छोड़ दी थी। इस बार उनके सामने भाजपा सांसद रोडमल नागर प्रत्याशी थे। 2019 में भोपाल लोकसभा सीट से चुनाव हारने के बाद दिग्विजय सिंह के लिए इस बार का चुनाव बेहद अहम था। उन्होंने अपने प्रचार में इसे अपना आखिरी चुनाव होने की बात कहकर जनता से साथ देने और वोट का वादा मांगा था। वहीं भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ा, लेकिन यहां दिग्विजय सिंह को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा। उनको भाजपा प्रत्याशी नागर ने 1,42,141 वोटों से हरा दिया।
गुजरात से सटे हुए रतलाम संसदीय क्षेत्र की कहानी बड़े उलटफेर को बयां करती है। अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित रतलाम-झाबुआ संसदीय सीट पर अब तक हुए 17 लोकसभा चुनाव और एक उपचुनाव में सिर्फ चार बार ही गैर-कांग्रेसी नेता जीत पाए हैं। इस सीट को लेकर एक रोचक संयोग यह भी है कि अधिकांश समय इस पर भूरिया उपनाम के नेताओं का कब्जा रहा है। इस क्षेत्र में 12 बार ‘भूरिया’ उपनाम के नेता सांसद चुने गए। दिलीप सिंह भूरिया कांग्रेस से पांच बार, कांतिलाल भूरिया कांग्रेस से पांच बार सांसद निर्वाचित हुए। इस बार के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की प्रत्याशी अनीता नागर सिंह चौहान ने पूर्व केंद्रीय मंत्री, प्रदेश अध्यक्ष और आदिवासी नेता कांतिलाल भूरिया को दो लाख के भारी अंतर से पराजित किया है।
लोकसभा चुनाव में भाजपा का सभी 29 सीटों को अपने पाले में लाना अचानक नहीं हुआ है। पार्टी ने इंदौर, भोपाल, विदिशा, उज्जैन, ग्वालियर जैसी सीटों को पहले अपना गढ़ बनाया। 1996 के बाद जबलपुर, मुरैना और सागर जैसी सीटों पर भाजपा ने पैठ बनाई। इसके बाद यहां भाजपा कभी नहीं हारी। सतना और बालाघाट सीटों पर 1998 के बाद भाजपा को कभी हार का सामना नहीं करना पड़ा।
जाहिर है, इस बार के चुनाव के बाद प्रदेश भाजपा दमदारी के साथ संगठन में कह सकती है कि अब मैदान में कोई भी कांग्रेसी नहीं बचा है। वहीं कांग्रेस खेमे में कमलनाथ, दिग्विजय और कई अन्य कद्दावर नेताओं की राष्ट्रीय राजनीति में सक्रियता कम है। जाहिर है लंबे अरसे के बाद अब प्रदेश कांग्रेस में कमलनाथ, दिग्विजय के चुनाव प्रबंधन और उनके जीतने के मॉडल की चर्चा कम होने जा रही है। लोकसभा में मध्य प्रदेश वाकई कांग्रेमुक्त हो चुका है।