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अभेद्य द्रविड़ एकता

एआइएडीएमके के साथ गठजोड़ के बावजूद भाजपा छाप नहीं छोड़ पाई
जीत के बाद द्रमुक समर्थक

तमिलनाडु आखिरी गैर भाजपा गढ़ है जहां भगवा पार्टी के उभार को लगातार अवरोध का सामना करना पड़ रहा है। ताजा लोकसभा चुनाव का यह साफ संदेश है, क्योंकि डीएमके की अगुआई वाले मोर्चे ने जिन 38 सीटों पर चुनाव लड़ा उनमें से 37 सीटों पर कब्जा कर लिया है। 2014 में एनडीए तीसरे मोर्चे के घटक के तौर पर दो सीटें जीतकर राज्य की राजनीति में पैर रखने में सफल रहा था लेकिन इस बार वह एआइएडीएमके के साथ गठबंधन करने के बावजूद कोई असर छोड़ने में नाकाम रहा। भाजपा के एकमात्र सांसद पोन राधाकृष्णन कन्याकुमारी से हार गए, जबकि सहयोगी दल पीएमके के सांसद ए. रामदास भी धर्मपुरी से पराजित हो गए। सहयोगी दल एआइएडीएमके को भी महज एक सीट मिली। एआइएडीएमके के प्रत्याशी और राज्य के उप मुख्यमंत्री ओ. पन्नीरसेल्वम के पुत्र रवींद्रनाथ ही जीत पाए।

राज्य भाजपा की पदाधिकारी वनती श्रीनिवासन ने कहा, “डीएमके द्वारा भाजपा विरोधी माहौल बनाया गया। अनुषंगी संगठनों और मीडिया के एक वर्ग ने भी हमारा रास्ता बाधित कर दिया। वे भाजपा पर झूठे आरोप लगाकर जीत गए। भाजपा पर तमिलनाडु के हितों के खिलाफ होने के आरोप लगाए गए। मैं उम्मीद करती हूं कि इस माहौल से तमिलनाडु में सक्रिय राष्ट्रविरोधी ताकतों को प्रोत्साहन नहीं मिलेगा।”

डीएमके नेताओं का कहना है कि राज्य की राजनीतिक सोच हमेशा से ही भाजपा विरोधी विचारधारा से विकसित होती रही है। डीएमके के सांसद टी. के. एस. एलंगोवन कहते हैं, “जब-जब भाजपा तमिलनाडु में प्रभाव बनाने की कोशिश करती है, तो द्रविड़ सिंद्धांतों में रची-बसी समान विचारधारा वाली ताकतों में परोक्ष गठजोड़ हो जाता है। पिछले तीन साल में यही हुआ, जब भाजपा ने एआइएडीएमके के जरिए राज्य सरकार पर रिमोट कंट्रोल पाकर जयललिता के निधन के बाद उत्पन्न राजनीतिक शून्य का इस्तेमाल करने का प्रयास किया। भाजपा को राजनीतिक, सामाजिक, मीडिया और सिनेमा तक हर जगह विरोध का सामना करना पड़ा।”

इस तरह की विरोधी भावनाओं का सामना कर रही भाजपा कभी आत्मविश्वासी नहीं दिखाई दी। पीएम मोदी पर वारधा तूफान आने के बाद राज्य का दौरा न करने का आरोप है, जबकि उनके केंद्रीय मंत्री मतदाताओं को गलत मुद्दों से रिझाने का प्रयास करते रहे। उन्होंने नीट और सेलम हाईवे प्रोजेक्ट का प्रचार किया, जबकि इसका विरोध हो रहा है। राजनीतिक विश्लेषक रवींद्रन दुरइस्वामी कहते हैं, “लगता है कि भाजपा और आम तमिल के बीच कोई संपर्क ही नहीं है। वह कभी तमिलों को प्रभावित नहीं कर पाई।”

अगर भाजपा ने एआइएडीएमके के राज्यसभा सदस्यों को केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल करने पर विचार नहीं किया, तो तमिलनाडु का अल्प प्रतिनिधित्व भी छिन जाएगा। एआइएडीएमके के राज्यसभा में 12 और लोकसभा में एक सदस्य हैं। एआइएडीएमके को नई कैबिनेट में जो भी स्थान दिया जाता है, वह प्रतीकात्मक ही होगा।

भाजपा को इस द्रविड़ क्षेत्र में राजनीतिक ताकत के तौर पर स्थापित होने को तमिलनाडु के लिए विशिष्ट दीर्घका‌िलक रणनीति तैयार करनी होगी। राज्य की दिग्गज राजनीतिक हस्तियों करुणानिधि और जयललिता के निधन के बाद भी भाजपा अपनी जगह बनाने में नाकाम रही। इसका अर्थ है कि उसे स्थानीय स्तर पर अपने नेता तैयार करने होंगे। लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद उसकी प्रतिष्ठा विधानसभा सीटों के उपचुनाव से अवश्य बच सकी। 22 सीटों पर हुए उपचुनाव में एआइएडीएमके नौ सीटें जीतने में सफल रही, जो विधानसभा में बहुमत पाने के लिए पर्याप्त हैं। हालांकि मुख्यमंत्री ई. के. पलानीसामी मई 2021 तक पद पर बने रहेंगे लेकिन उन्हें अगले विधानसभा चुनाव में जीत पाने के लिए और सक्षम प्रशासन सुनिश्चित करना होगा। जबकि डीएमके प्रमुख एम. के. स्टालिन को सभी 22 विधानसभा सीटें जीतने की उम्मीद थी, जिससे उन्हें पलानीसामी को सत्ता से बाहर करने का मौका मिल सकता था। लेकिन उन्हें अभी केंद्र और राज्य दोनों जगह विपक्ष की भूमिका में ही रहना होगा।

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