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8 जुलाई 2024 · JUL 08 , 2024

जनादेश ’24/झारखंड: आदिवासी झटका

राज्य में सभी पांच आदिवासी आरक्षित सीटों से खिसकी भाजपा की जमीन, इसी साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए भी संकट गहराया
दोनों बेटों के साथ कल्पना सोरेन

झारखंड आदिवासियों के भाजपा से विमुख होने का अहम क्षेत्र बनकर उभरा और 2024 का जनादेश अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों पर भाजपा के सफाए का फैसला सुना गया। आदिवासी क्षेत्रों में अपने मुद्दों की अपील और लगातार पैठ बढ़ाने की कोशिश से इंडिया गठबंधन ने भाजपा की जमीन खिसका दी। आदिवासी पहचान के लिए चर्चित राज्‍य की कुल 14 संसदीय सीटों में पांच खूंटी, लोहरदगा, दुमका, राजमहल, सिंहभूम अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटें हैं। इन पांचों सीटों पर भाजपा को पराजय मिली। पिछले चुनाव में खूंटी, लोहरदगा और दुमका सीट पर भाजपा का कब्‍जा था। इस बार तीन पर झामुमो और दो पर कांग्रेस काबिज हो गई है।

इन क्षेत्रों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, भाजपा अध्‍यक्ष जेपी नड्डा और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह जैसे दिग्‍गजों की एकाधिक चुनावी सभाएं भी भाजपा उम्‍मीदवारों को जीत नहीं दिला सकीं। उम्‍मीदवारों का चेहरा बदलना भी भारी पड़ गया। हार के कारणों की पड़ताल और नई रणनीति के लिए भाजपा के अंदर गंभीर मंथन चल रहा है। इसी साल प्रदेश में विधानसभा के चुनाव होने हैं। यही हवा विधानसभा चुनाव में भी बही, तो भाजपा के लिए मुश्किल हो जाएगी। आदिवासी वोटों के संकट को देखते हुए पड़ोसी राज्‍य छत्तीसगढ़ के बाद ओडिशा में भी आदिवासी को मुख्‍यमंत्री बनाया गया है। समय बताएगा कि पड़ोसी राज्‍य के आदिवासी मुख्‍यमंत्री झारखंड के आदिवासियों को कितना लुभा पाते हैं।

बाबूलाल मरांडी

बाबूलाल मरांडी

झारखंड में सत्ता साधने के लिए 26 प्रतिशत आदिवासी वोटों का बड़ा महत्‍व है। आदिवासियों के लिए 28 सीटें भले ही आरक्षित हों मगर और भी विधानसभा क्षेत्र हैं, जहां आदिवासियों के निर्णायक वोट हैं। 2019 के विधानसभा चुनाव में जनजातियों के लिए आरक्षित 28 सीटों में से एनडीए या कहें भाजपा को सिर्फ दो सीट पर जीत मिली थी। उसके बाद से भाजपा ने आदिवासी वोटों की घेराबंदी शुरू कर दी थी। तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री हेमंत सोरेन भी सधे कदमों से मंजे हुए नेता की तरह चाल चलते रहे। ताजा चुनाव में सरना धर्म कोड, 1932 के खतियान पर आधारित स्‍थानीयता नीति, संविधान पर खतरा जैसे मुद्दों के साथ हेमंत को जेल भेजने और उनकी पत्‍नी कल्‍पना सोरेन के भावुक और आक्रामक भाषणों ने आदिवासी वोटरों को खूब प्रभावित किया। अपने शासन के शुरुआती वर्ष में ही हेमंत सोरेन ने आदिवासियों की पहचान से जुड़े सरना धर्म कोड को विधानसभा से सर्वसम्‍मत पास कराकर गेंद केंद्र के पाले में डाल दी था। आदिवासी हिंदू हैं, की धारणा के साथ आरएसएस के विरोध के बावजूद भाजपा को मजबूरी में सदन में इसका समर्थन करना पड़ा। सरकार ने 1932 के खतियान पर आधारित स्‍थानीयता नीति, निजी कंपनियों में स्‍थानीय लोगों को 75 प्रतिशत आरक्षण, पत्‍थलगड़ी के नाम पर आदिवासियों के मुकदमों की वापसी, नेतरहाट फील्‍ड फायरिंग रेंज के अवधि विस्‍तार पर विराम, अबुआ आवास योजना, 10 रुपये में लुंगी-साड़ी योजना, पीवीटीजी छात्रों के लिए मुफ्त आवासीय कोचिंग, सर्वजन पेंशन, आदिवासियों को 50 की उम्र में पेंशन, वनाधिकार पट्टा, रघुनाथ मूर्मू ट्राइबल यूनिवर्सिटी, जनजातीय छात्रों को सरकारी खर्च पर विदेश में उच्‍च तकनीकी शिक्षा, फूलो झानो आशीर्वाद योजना जैसी अनेक योजनाओं के जरिये सीधे तौर पर आदिवासियों को प्रभावित किया।

ईडी ने हेमंत सोरेन को गिरफ्तार कर जेल भेजा, तो संदेश गया कि भाजपा सरकार से हाथ न मिलाने के कारण साजिश के तहत उन्‍हें जेल भेजा गया। उनकी पत्‍नी कल्‍पना सोरेन ने जनता के बीच आंसू भी बहाए और स्‍टार प्रचारक की तरह जनजातीय क्षेत्रों में बड़ी संख्‍या में सभाएं कर भाजपा सरकार पर हमलावर रहीं। खुद के नाम माइनिंग लीज और सदस्‍यता पर खतरे वाले बंद लिफाफे की धमकी के बीच समय से बहुत पहले ही तमाम नीतिगत निर्णय कर हेमंत सोरेन ने चुनावी तैयारी कर ली थी। पहली बार आदिवासी महोत्‍सव का भी आयोजन हुआ। तीन राउंड में ‘आपके अधिकार, आपकी सरकार आपके द्वार’ कार्यक्रम को लेकर पूरे प्रदेश का एक प्रकार से वे चुनावी दौरा कर जनता से सीधा संवाद और लाखों लोगों की समस्‍याओं का निबटारा कर चुके थे।

केंद्रीय मंत्री अन्नपूर्णा देवी

केंद्रीय मंत्री अन्नपूर्णा देवी

सरना धर्म कोड को लेकर झारखंड की सड़कों पर लगातार बड़े-बड़े आंदोलन हुए। विधानसभा से इसे पास कराने के बाद हेमंत और झामुमो के लोग इसे विभिन्‍न फोरम पर उठाने लगे तो भाजपा को इसकी काट समझ में नहीं आई। तब भाजपा ने आदिवासियों के भगवान बिरसा मुंडा की जयंती को पूरे देश में जनजातीय स्‍वाभिमान दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया। इसकी पटकथा भी रांची में लिखी गई। भाजपा एसटी मोर्चा की राष्‍ट्रीय कार्यकारिणी की रांची में हुई बैठक में इस आशय का प्रस्‍ताव पारित किया गया, जिसे आनन-फानन में केंद्रीय कैबिनेट ने हरी झंडी दी। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछले साल बिरसा मुंडा की जयंती पर बिरसा के गांव खूंटी के उलिहातु पहुंचे। यहीं से विकसित भारत संकल्‍प यात्रा, 24 हजार करोड़ की लागत वाली कमजोर जनजातीय समूह विकास मिशन (पीएम- पीबीटीजी मिशन) का शुभारंभ किया। राष्‍ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का भी उलिहातू का दौरा कराया गया। भाजपा के बड़े नेता अपने संबोधनों में एक आदिवासी को राष्‍ट्रपति बनाने का श्रेय भी लेते रहे। बाद में गीता कोड़ा कांग्रेस से भाजपा के पाले में आ गईं। उसके बाद संताल में संदेश देने के लिए झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन की बड़ी बहू सीता सोरेन को भाजपा ने अपने पाले में करते हुए दुमका से लड़वाया।

2019 के विधानसभा चुनाव में पराजय के बाद भाजपा को हेमंत सोरेन पर आक्रमण के लिए किसी मजबूत आदिवासी नेता की तलाश थी। झारखंड विकास मोर्चा के प्रमुख बाबूलाल मरांडी को भाजपा में लाया गया। उन्‍हें विधायक दल का नेता बनाने के बाद प्रदेश अध्‍यक्ष की कुर्सी सौंपी गई, मगर भाजपा में बाबूलाल की ताजपोशी का असर विधानसभा उपचुनावों में नहीं दिखा। दुमका, बेरमो, मधुपुर, मांडर, रामगढ़, गांडेय में उपचुनाव हुए मगर रामगढ़ में भाजपा की सहयोगी पार्टी आजसू को छोड़ किसी सीट पर भाजपा जीत नहीं सकी।

खूंटी सीट पर केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा की पराजय के साथ झारखंड से जनजातीय मंत्रालय भी चला गया। 2019 के चुनाव में करीब 1450 वोट से पराजित होने वाले अर्जुन मुंडा इस बार करीब डेढ़ लाख के बड़े अंतर से पराजित हुए। गौर करने की बात यह है कि अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 28 विधानसभा क्षेत्रों में खूंटी और खूंटी जिला की तोरपा विधानसभा सीट पर भाजपा का कब्‍जा है मगर इन दोनों सीटों पर भी अर्जुन मुंडा के बदले कांग्रेस के कालीचरण मुंडा को अच्‍छी बढ़त मिली। जनजातीय वोटों को साधने के लिए समीर उरांव को केंद्रीय नेतृत्‍व ने आगे बढ़ाते हुए भाजपा जनजाति मोर्चा का राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष बनाया था और पूर्व केंद्रीय मंत्री सुदर्शन भगत का टिकट काटकर लोहरदगा से इन्‍हें उतरा था मगर एक लाख 40 हजार वोट से उन्‍हें भी हार का मुंह देखना पड़ा।

बाबूलाल के कार्यकाल में पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पत्‍नी और सिंहभूम से कांग्रेस सांसद गीता कोड़ा को भाजपा में शामिल कराकर भाजपा के टिकट पर लड़वाया गया। शिबू सोरेन के किले में सेंध लगाते हुए उनकी बड़ी बहू और जामा से तीन टर्म झामुमो विधायक रही सीता सोरेन को भाजपा जॉइन कराकर शिबू के गढ़ में ही, निवर्तमान सांसद नलिन सोरेन का टिकट वापस लेकर दुमका से उतार दिया गया। दोनों पराजित हो गईं। राजमहल से पूर्व प्रदेश भाजपा अध्‍यक्ष ताला मरांडी को भी विजय हांसदा से पराजित होना पड़ा।

निर्वाचित भाजपा सांसदों के अभिनंदन समारोह में भाजपा के प्रदेश अध्‍यक्ष बाबूलाल मरांडी ने कहा कि जनता ने नौ सीटों पर जीत दिलाकर एनडीए को झारखंड में सबसे बड़ा संगठन बनाया है। उन्होंने दावा किया कि राज्‍य में भी पार्टी की सरकार बनेगी और कहा कि लोकसभा चुनाव में 81 सदस्‍यीय झारखंड विधानसभा में 50 से अधिक सीटों पर एनडीए को जीत मिली है।

झारखंड में लोकसभा और विधानसभा चुनाव में वोटरों का मिजाज अलग होता है। अभी लोकसभा चुनाव के साथ गांडेय में हुए विधानसभा उपचुनाव की वोटिंग इसका ताजा उदाहरण है। लोकसभा के लिए भाजपा की अन्‍नपूर्णा देवी को गांडेय से 24 हजार की लीड मिली जबकि कल्‍पना सोरेन को 27 हजार से अधिक वोटों के अंतर से लोगों ने जितवाया। जमशेदपुर भी उदाहरण है। यहां एक भी सीट पर भाजपा का कब्‍जा नहीं है, इसके बावजूद सांसद विद्युत वरण महतो दो लाख 60 हजार के अंतर से झामुमो प्रत्‍याशी से जीत गए।

झारखंडी भाषा आंदोलन से उभरे जयराम महतो ने चंद माह पहले पार्टी बनाई जेबीकेएसएस और पहली बार चुनावी राजनीति में कदम रखा। गिरिडीह, रांची, हजारीबाग, चतरा, सिंहभूम, दुमका, धनबाद और कोडरमा में उन्होंने उम्‍मीदवार उतारे। कुड़मी-महतो के युवा वर्ग में इसकी अच्‍छी पैठ है। डुमरी और गोमिया विधानसभा सीट पर बढ़त लेकर उसने चौंका दिया। डुमरी से झामुमो और गोमिया से आजसू के विधायक हैं। संसदीय सीट गिरिडीह पर खुद जयराम महतो को करीब साढ़े तीन लाख वोट मिले तो रांची में देवेंद्रनाथ महतो ने एक लाख तीस हजार से अधिक वोट हासिल किए। हजारीबाग में जयराम की पार्टी को डेढ़ लाख वोट मिला। उसकी तैयारी विधानसभा चुनाव में 50 उम्‍मीदवार उतारने की है। जयराम की पार्टी भाजपा की सहयोगी आजसू के लिए चुनौती साबित हो सकती है।

 

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