चार राज्यों में भाजपा के विधानसभा चुनाव जीतने के बाद पार्टी का मुख्य चुनावी चेहरा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा था कि 2022 के परिणाम ने 2024 की जीत तय कर दी है। जीत तय हुई या नहीं यह तो बाद में पता चलेगा, लेकिन पार्टी ने अभी से 2024 की तैयारी जरूर शुरू कर दी है। इन सभी राज्यों में पार्टी ने सरकार का गठन कर लिया है। खासकर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की नई मंत्रिपरिषद में जिस तरह जातिगत और क्षेत्रीय संतुलन बनाने की कोशिश की गई है, उससे साफ जाहिर होता है कि यह 2024 में मतदाताओं को साधने की तैयारी है।
उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री पद के लिए योगी आदित्यनाथ और गोवा में प्रमोद सावंत के सामने तो कोई चुनौती नहीं थी, लेकिन उत्तराखंड और मणिपुर में जरूर मुख्यमंत्री बदलने का दबाव था। उत्तराखंड में पुष्कर सिंह धामी खटीमा से चुनाव हार गए थे और मणिपुर में एन. बीरेन सिंह को पार्टी के दो नेताओं से चुनौती मिल रही थी। लेकिन भाजपा केंद्रीय नेतृत्व ने चारों राज्यों में पुराने मुख्यमंत्रियों को ही इस बार भी जिम्मेदारी देने का निर्णय लिया।
उत्तर प्रदेश में योगी मंत्रिपरिषद में 18 कैबिनेट, 14 स्वतंत्र प्रभार वाले राज्य मंत्री और 20 राज्य मंत्री हैं। मुख्यमंत्री समेत अगड़ी जाति के 21, अन्य पिछड़ा वर्ग के 20, नौ दलित तथा मुस्लिम, सिख और पंजाबी समुदाय के एक-एक विधायक मंत्री हैं। चुनाव में समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव ने गैर-यादव ओबीसी को अपनी तरफ खींचने का प्रयास किया था। इस बात को ध्यान में रखते हुए जाट, गुर्जर, कुर्मी समेत ओबीसी वर्ग के 20 मंत्री बनाए गए हैं। इनमें आठ को कैबिनेट का दर्जा दिया गया है। सिराथु से हारने के बावजूद केशव प्रसाद मौर्य को बतौर उप मुख्यमंत्री बरकरार रखा गया है। हालांकि नौ दलित मंत्रियों में सिर्फ एक, उत्तराखंड की पूर्व राज्यपाल बेबी रानी मौर्य को कैबिनेट का दर्जा मिला है।
पार्टी ने अगड़ी जाति में अपने वोटबैंक का भी ध्यान रखा है। अगड़ी जाति के मंत्रियों में सात ब्राह्मण, तीन वैश्य और आठ ठाकुर हैं। पूर्व उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा की जगह ब्राह्मण बृजेश पाठक उपमुख्यमंत्री बनाए गए हैं।
समाजवादी पार्टी के कुर्मी प्रत्याशियों ने भाजपा के तीन मंत्रियों और कई विधायकों को हराया। इस जाति को खुश करने के लिए प्रदेश पार्टी अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह समेत चार विधायकों को मंत्री बनाया गया है। भूमिहार गढ़ गाजीपुर में सभी सीटें हारने के बावजूद इस समुदाय के सूर्य प्रताप शाही और पूर्व आइएएस एके शर्मा को मंत्री पद मिला है। यादवों में सपा का वर्चस्व तोड़ने के लिए कई यादव भी मंत्रिपरिषद में शामिल किए गए हैं। जातिगत समीकरण पर गौर करें तो लगता है कि आने वाले दिनों में पार्टी दलित और ओबीसी समुदाय पर ज्यादा फोकस करेगी।
इन चुनावों में भाजपा का नया रूप देखने को मिला है। नई भाजपा में जरूरी नहीं कि लंबे समय तक पार्टी की सेवा करने के बाद ही बड़ा अवसर मिलता हो। नए लोगों को भी पार्टी सीधे बड़े पद दे रही है। उदाहरण के लिए सिद्धार्थ नाथ सिंह, श्रीकांत शर्मा जैसे पुराने लोग इस बार मंत्रिपरिषद से बाहर कर दिए गए हैं उनकी जगह चुनाव से पहले पार्टी ज्वाइन करने वाले मंत्री बनाए गए हैं।
उत्तराखंड
खटीमा से पुष्कर सिंह धामी के हारने के बावजूद भाजपा ने उन्हें प्रदेश का 12वां मुख्यमंत्री बनाने का फैसला किया। धामी पिछले साल 45 साल की आयु में राज्य के सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री बने थे। अपनी सीट हारने के बावजूद कई बातें उनके पक्ष में गईं। उन्होंने चार धाम देवस्थानम बोर्ड के गठन के खिलाफ पुजारियों का आंदोलन खत्म कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हरिद्वार धर्म संसद में मुसलमानों के खिलाफ हिंसा की जो बात कही गई थी, उसके बाद की स्थिति को भी उन्होंने संभाला। पार्टी के भीतर कई नेता मुख्यमंत्री पद के दावेदार माने जा रहे थे, धामी ने उन सबको भी साथ लिया। प्रदेश के मैदानी इलाकों में भी पार्टी के अच्छे प्रदर्शन से पता चलता है कि धामी यहां किसान आंदोलन के असर को कम करने में सफल रहे। एक समय प्रदेश में पार्टी की हार तय मानी जा रही थी, फिर भी धामी 70 में से 47 सीटें जिताने में कामयाब रहे। धामी को दोबारा मुख्यमंत्री बनाकर केंद्रीय नेतृत्व ने असंतुष्टों को भी संकेत दिया है।
यहां नई सरकार में पांच पुराने मंत्रियों को रखा गया है। इनमें सतपाल महाराज, सुबोध उनियाल, रेखा आर्य, गणेश जोशी और धन सिंह रावत शामिल हैं। कुमाऊं और गढ़वाल क्षेत्र में भी संतुलन बनाने की कोशिश की गई है। प्रदेश में लोकसभा की पांच सीटें हैं और मंत्रिपरिषद में पांचों को प्रतिनिधित्व मिला है। इसमें अनुभवी के साथ युवा, महिला और दलित चेहरे भी हैं। धामी के मुख्यमंत्री बनने के बाद उनके लिए विधानसभा सीट की भी तलाश शुरू हो गई है। कहा जा रहा है कि छह विधायकों ने अपनी सीट छोड़ने की पेशकश की है। वे पिथौरागढ़ की डीडीहाट से चुनाव लड़ सकते हैं।
गोवा
इस छोटे से राज्य में भाजपा ने लगातार तीसरी बार सरकार बनाई है। आयुर्वेद के डॉक्टर 48 वर्षीय प्रमोद सावंत पार्टी को पूर्ण बहुमत तो नहीं दिला सके, लेकिन 40 में से 20 सीटों के साथ अब तक का दूसरा सबसे अच्छा प्रदर्शन जरूर किया। तीन बार के विधायक सावंत की सरकार को तीन निर्दलीय और महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी के दो विधायकों ने समर्थन दिया है। गोवा में मुख्यमंत्री समेत कुल 12 मंत्री बन सकते हैं। अभी तीन पद खाली हैं। शपथ ग्रहण के बाद प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सदानंद तनवडे ने बताया कि एक-दो महीने में तीनों पद भर लिए जाएंगे। माना जा रहा है कि ये पद समर्थक विधायकों के लिए छोड़े गए हैं।
मणिपुर
कहा जा रहा है कि यहां पिछली सरकार में मंत्री रहे विश्वजीत सिंह और चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हुए पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद दास कोंथुजम भी सीएम पद की जुगत में थे। लेकिन केंद्रीय नेतृत्व ने 60 में से 32 सीटें जिताने वाले एन. बीरेन सिंह पर ही भरोसा जताया। फुटबॉल खिलाड़ी से पत्रकार और फिर नेता बने 61 वर्षीय बीरेन सिंह पहले कांग्रेस में ही थे और अक्टूबर 2016 में भाजपा में आए। नगा पीपुल्स फ्रंट, भाजपा के साथ सरकार में शामिल है। हालांकि दोनों ने चुनाव अलग-अलग लड़ा था। नेशनल पीपल्स पार्टी पिछली सरकार में गठबंधन में थी, लेकिन इस बार वह प्रमुख विपक्षी पार्टी की भूमिका में है। पार्टी के भीतर संभावित असंतोष को देखते हुए मंत्रिपरिषद में छह पद खाली रखे गए हैं।
पंजाब
117 में से 92 सीटें जीतने वाली और प्रकाश सिंह बादल से लेकर चरणजीत सिंह चन्नी और नवजोत सिद्धू जैसे बड़े नामों को धूल चटाने वाली आम आदमी पार्टी के सामने अब अपने वादे पूरे करने की चुनौती है। इसने महिलाओं को प्रति माह 1,000 रुपए नकद देने के साथ शिक्षा व्यवस्था सुधारने और प्रदेश को नशा मुक्त करने का भी वादा किया है। पंजाब में मुख्यमंत्री समेत 18 मंत्री बन सकते हैं। फिलहाल मुख्यमंत्री भगवंत मान के अलावा 10 मंत्रियों ने शपथ ली है। मान के शुरुआती फैसलों में विधायकों की पेंशन से जुड़ा फैसला काफी चर्चा में है। अभी तक कोई नेता जितनी बार विधायक बनता था हर कार्यकाल के लिए उसे अलग पेंशन मिलती थी। अब उसे सिर्फ एक पेंशन मिलेगी। लेकिन मुफ्त बिजली का वादा करने वाली सरकार को फिलहाल भीषण बिजली कटौती का सामना करना पड़ रहा है। गर्मी बढ़ने के साथ बिजली की मांग बढ़ रही है और कोयला महंगा हो जाने के कारण निजी इकाइयों में उत्पादन घट गया है।