कविता मानव मूल्यों और रिश्तों की धरोहर है। अमिता दुबे का कविता-संग्रह कुछ तो बचा है यही एहसास कराता है। ये कविताएं नए प्रतीक, नए सौंदर्य, नए विषय सामने रखती हैं। अमिता की कविता में प्रश्न भी स्पष्ट दिखते हैं। गुरु द्रोण ने अर्जुन के लिए एकलव्य का अंगूठा मांग लिया, और उसी अर्जुन के पुत्र निहत्थे अभिमन्यु के वध के जिम्मेदार भी वही बने, यह प्रश्न छोटा नहीं है।
सहज अभिव्यक्ति और मानवीय संबंधों पर लिखी कविताएं आकर्षित करती हैं जैसे- विवशता, पिता, छोटी-छोटी खुशियां, लड़की का घर, बेटियां, हम बनाते हैं घर। अमिता की कविता में मां जोड़ना चाहती है, निर्माण करती है, तोड़ती नहीं। मां युद्ध नहीं चाहती-मैं मां हूं/ मुझे युद्ध से नफरत है। ‘अनुत्तरित प्रश्न’ शीर्षक कविता का फलक व्यापक है, यह कविता महाभारत जैसे बड़े विषय को केंद्र में रखकर लिखी गई है, जहां कई प्रश्न टकराते रहते हैं। संग्रह में कोरोना पर भी कविता दर्ज है, सरकारी विभागों में भी/ नहीं थी इतनी सुविधाएं/ न थे इतने कर्मचारी और लोग। यह आज के हालात का बयान है। निश्चित ही इन कविताओं में एक बेचैनी है, सरोकार है।
कुछ तो बचा है
अमिता दुबे
प्रकाशक | अनामिका, इलाहाबाद
मूल्य: 150 रुपये