दरवेश की तरह लगातार साहित्य जगत में जीवन भर विचरते रहे सुरेश सलिल हाल ही में लंबी उम्र के बाद दुनिया को अलविदा कह गए। वे हमेशा दुनिया भर के श्रेष्ठ साहित्य को हिंदी पाठकों को मुहैया कराने के लिए संघर्षरत रहे। कुछ ही दिनों पहले उनका ‘अपनी जुबान में’ संग्रह आया, जो लंबे समय से उनके द्वारा अनुदित कहानियों का संग्रह है। विश्व की विभिन्न भाषाओं के प्रतिनिधि कथाकारों की कहानियों का चयन निस्संदेह दुरुह काम रहा होगा। लेकिन सुरेश सलिल ने इस पुस्तक में जिस बात का खयाल रखा, वह इस पुस्तक को अलग बनाती है। अमूमन स्पेनिश, रूसी, जापानी कहानियां पढ़ने के लिए सर्वसुलभ रहती हैं लेकिन लीबिया, मिस्र, सीरिया की कहानियां उस देश की अस्त-व्यस्तता में कहीं गुम सी गई हैं। सुलेश सलिल पुस्तक की शुरुआत में इस ओर इशारा भी करते हैं। वे निवेदन में लिखते हैं, “इसमें उन देशों की समकालीन कहानी का किंचित परिचय भी पाठकों के मिलेगा, जो विगत दशकों में राजनीतिक सुर्खियों में तो रहे किंतु उनके यहां की साहित्यिक गतिविधियों से हम लगभग अपरिचित रहे।”
आम पाठक के लिए अरबी (सूडान) के लेखक तैयब सालेह, लीबिया के लेखक अब्देल दाजिक अल-मंसूरी और मिस्र के लेखक तौफीक अल-हकीम का नाम भले ही कम पहचाना सा लगे लेकिन तीनों की कहानियां क्रमशः ‘खजूर’, ‘मरने के बाद’ और ‘तरबूजों का मौसम’ वहां की दुनिया को अलग दृष्टि से दिखाती है। कहते हैं न कि किसी लेखक की नजर से देश देखना और राजनीति या वहां की उथल-पथल से किसी देश को देखना बिलकुल अलग होता है। दाजिक की कहानी, ‘मरने के बाद’ बहुत छोटी सी कहानी है और कहानी के नायक आरिफ की चिंता जैसे किसी आम भारतीय की चिंता लगती है। सिकुड़ती जगह में बने जिन घरों को खरीदने में लोगों का जीवन गुजर जाता है, लेकिन आरिफ को अपने दोस्त की मृत्यु के बाद लगता है, घर तो बड़ा होना चाहिए, खुला दालान या मैदान होना चाहिए ताकि मरने के बाद वहां शामियाना लग सके, ताबूत ठीक तरह रखा जा सके और रिश्तेदार आराम से मातम के लिए बैठ सकें!
जकरिया तामेर (सीरिया) की कहानी ‘खुदकुशी’ पढ़ कर अंत में मंटो याद आ जाते हैं। रईफा की जिंदगी का एक सफा इसमें बजाय किया गया है, जिसे पढ़ कर लगता है जैसे, यह औरत की जिंदगी की कहानी है। ऋत्विक घटक की बांग्ला से अनुदित कहानी ‘प्रेम’ स्तब्ध कर देने वाली कहानी है।
अपनी जुबान में
चयन, अनुवाद, प्रस्तुति सुरेश सलिल
संभावना प्रकाशन
जनवरी 2023
मूल्य: 225 रु. | पृष्ठ:153