संभावनाओं से भरे झारखंड के पास देश का 40 प्रतिशत खनिज का भंडार है। एशिया के घने जंगलों में एक सारंडा जंगल भी यहां है। पहाड़, नदी, झील, झरनों की कोई कमी नहीं। इसके बावजूद इस राज्य के पिछड़ेपन की कहानी झकझोरती है। लेकिन इसके ही एक शहर जमशेदपुर को मिनी मुंबई कहा जाता है। यह वही राज्य है, जिसमें नागवंशी राजाओं का ईस्वी सन 83 से लेकर 2014 तक का सुदीर्घ इतिहास है। 26-27 प्रतिशत जनजातीय आबादी वाला यह क्षेत्र हमेशा बेचैनी से गुजरता रहा। पहले तो यह मुगल, अंग्रेज आदि बाहरी तत्वों से जूझता रहा, फिर एक सार्वभौम राज्य की स्थापना के लिए। अब जबकि देसी ‘राज’ कायम हो गया है, तब भी विकास की बेचैनी बनी हुई है। 21 वर्षों में 11 सरकारें बनने और तीन मर्तबा राष्ट्रपति शासन लगने का इतिहास बन चुका था, और हर सरकार ने इसे देश का नंबर एक राज्य बनाने का सपना दिखाया।
पुस्तक में झारखंड के राजनीतिक इतिहास के साथ-साथ संक्षिप्ति की दायरे में अवाम के लिए आवश्यक शिक्षा, स्वास्थ्य, खनिज-उद्योग और इस राज्य की सुदीर्घ खेल परंपरा पर लेखक ने गंभीर दृष्टि डाली है।
इस पुस्तक के अध्यायों द्रोहकाल, विद्रोह काल, टेंशन और टशन, धूल का फूल, बाबा का मन डोला, बाबा की बदगुमानी, बाजीगरी, फिर शिबू, बालू की भीत जैसे नाम पहली ही नजर में आकर्षित कर लेते हैं। ऐसे ही साहित्यिक अंदाज में राजनीति और इतिहास की बातें भी पढ़ने में अच्छी लगती हैं। झारखंड की राजनीति पर शोध करने वालों, राजनीतिक क्षेत्र में भ्रमण करने वालों और झारखंड के विषय में जानने-समझने की इच्छा रखने वालों के लिए यह उपयोगी किताब है। यह न केवल घटनाओं, नामों का वर्णन है, अपितु सारा कुछ तिथिवार संजोया-पिरोया गया है।
झारखंड: एक बेचैन राज्य का सुख
श्याम किशोर चौबे
प्रकाशक | प्रभात
पृष्ठः 247 | मूल्यः 400