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पुस्तक समीक्षा: सिनेमाई गुणसूत्रों की तलाश

पूरी किताब में भाषा का अद्भुत संतुलन है जो सबसे अधिक ध्यान खींचता है
सिनेमा पर किताब

कला-माध्यमों के पारखी प्रताप सिंह ने सिनेमा पर अपनी नई किताब ‘इन जैसा कोई दूसरा नहीं’ में भारतीय सिनेमा में असाधारण भूमिका निभाने वाले कुल चौदह कलाकारों के माध्यम से सिनेमाई दुनिया का अलहदा भाष्य रचा है। प्रताप सिंह प्रचलित सिनेमाई भाषा में तोड़-फोड़ करके एक नई भाषा का अविष्कार करते हुए दिखलाई देते हैं।

पुस्तक में चार अभिनेताओं- देव आनंद, राजेश खन्ना, ओमपुरी, इरफान; दो अभिनेत्रियों- लीला मिश्रा, नादिरा; दो गायकों- तलत महमूद, किशोर कुमार; दो गीतकार- शैलेन्द्र, कवि प्रदीप; दो-दो के समूह में चार निर्देशक- कुंदन शाह, सागर सरहदी, परमेश्वरन कृष्णन नायर और मृणाल सेन के बारे में लेख हैं। वे देवानंद के अभिनय में आत्मनिरीक्षण और आत्मद्वंद्व की परतों को याद करते हुए दिलीप कुमार के अभिनय की सूक्ष्मता को रेखांकित करते चलते हैं। राजेश खन्ना के अभिनय के संदर्भ में वे फ्रैंक कापरा के संदेश ‘ट्रेजेडी इस नॉट व्हेन एक्टर क्राई, ट्रेजेडी इस व्हेन द ऑडियंस क्राई’ को याद करते हैं। ओमपुरी के अभिनय के देसी-रसायन और किरदार के रूखेपन की तहों को उकेरते हुए नसीरुद्दीन शाह से लेकर टॉम हैंक्स के अभिनय की रवानगी को वे याद करते हैं। ‘मकबूल’ में इरफान के अभिनय को याद करते हुए रोमन पोलांस्की की फिल्म ‘मैकबेथ’ के जॉन फिंच के किरदार को वे याद करते हैं। लेखक ने देवानंद और दिलीप कुमार की प्रतिद्वंद्विता का भी जिक्र किया है।

हिंदी सिनेमा में मौसी (शोले) के चरित्र के रास्ते अमर हो जाने वाली कलाकार लीला मिश्रा और तीखे नाक-नक्श वाली आधुनिक छवि के वाली नादिरा फिल्म ‘श्री 420’ में ‘मुड़-मुड़ के न देख मुड़ मुड़ के’ गाने पर नखरीली अदाओं के माध्यम से तूफानी अंदाज के बीज बो रही थीं। स्त्री जीवन की तमाम दुश्वारियों, तकलीफों, चिंताओं के बीच अपना मकाम हासिल करने के सिनेमाई संघर्ष को लेखक ने इन दोनों कलाकारों के योगदान के माध्यम से हमारे सामने रखा है।

लेखक ने तलत उर्फ तपन कुमार की आवाज की खूबसूरती, स्वर में सूक्ष्म ठहराव के संपूर्ण सौंदर्य को उद्घाटित किया है। विलक्षण गायक किशोर कुमार की आवाज की लचक, निरालेपन और उसकी नई रंग-तरंग को उनकी अदाकारी को भी इस किताब में दर्ज किया गया है। प्रताप सिंह ने किशोर कुमार की ‘आवाज की तरावट, तरंग और मल्कियत’, उनकी आवाज के ‘यूडलिंग’ के निरालेपन को, रोमांटिक मूड के गीतों में पैबस्त श्रम और सरोकारों को महीन ढंग से देखा है। तलत और किशोर कुमार अपने-अपने अंदाज में जिस तरह से हिंदुस्तान की आवाज बन गए थे, ठीक उसी तरह अपने गीतों की रचनात्मकता में शैलेंद्र और कवि प्रदीप एक ओर हिंदुस्तान के दर्द-तकलीफ को व्यक्त कर रहे थे तो दूसरी तरफ हिंदुस्तान के स्वाभिमान और शौर्य को आवाज दे रहे थे। शैलेंद्र ने ‘मेरा जूता है जापानी...फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी’ गीत लिखकर अपने समय में अवांगार्द रच रहे थे तो प्रदीप ‘आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं झांकी हिंदुस्तान की’ लिखकर राष्ट्र-प्रेम के लिए जागरण रच रहे थे। लेखक ने इन दोनों गीतकारों के दर्जन भर से अधिक गीतों के सहारे तत्कालीन भारत की सामाजिकी का चित्र सिरजा है।

लेखक ने कुंदन शाह को सिनेमा, रंगमंच और पारसी-थियेटर के अध्येता के रूप में देखा-समझा है। एक ओर टी.वी.धारावाहिक ‘नुक्कड़’ और ‘वागले की दुनिया’ और  फिल्म ‘जाने भी दो यारों’ के माध्यम से भारतीय सिनेमा में व्यंग्यात्मकता- विद्रूपता तथा विडम्बनाओं से भरी दुनिया का पहला आरेख रचने वाले तो दूसरी ओर व्यावसायिक सिनेमा की मांद में खो जाने वाले फिल्मकार के रूप में कुंदन शाह की पहचान लेखक ने की है।

‘सैल्युलाइड मैन’ के रूप में ख्यात मलयाली परमेश्वरन कृष्ण नायर ने ऐतिहासिक महत्व की जर्जर होती फिल्मी रीलों को संरक्षित करने की पहल की है। लेखक ने उनकी इस भूमिका को दर्ज किया है। सजग और चेतस फिल्मकार मृणाल सेन के बारे में लेखक ने बहुत ही सावधानी से इस किताब में लिखा है। उनकी फिल्मों पर बात करते हुए लेखक कहीं भी वाचालता का शिकार नहीं होता। ‘यथार्थ की पहरेदारी’ करने वाले फिल्मकार मृणाल सेन की विचारधारा और उनकी साहित्यिक अभिरुचि को भी उन्होंने रेखांकित किया है। पूरी किताब में भाषा का अद्भुत संतुलन है जो सबसे अधिक ध्यान खींचता है।

इन जैसा कोई दूसरा नहीं

प्रताप सिंह

प्रकाशक| संधीस पब्लिकेशन

पृष्ठ: 142

मूल्य: 750

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