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गांव-शहर की जमीन पर

रणविजय की नई पुस्तक की समीक्षा
दिल है छोटा सा

इस संग्रह की कहानियां युवाओं की कहानियां हैं। विषय के स्तर पर भी और भाषा के स्तर पर भी। लेखक ने शहरी, कस्बे और गांव तीनों के हालात अपनी कहानियों में दिखाने की कोशिश की है। एकाध कहानी को छोड़ दिया जाए, तो कहानी के नायक युवा ही हैं, बस परिवेश अलग-अलग है। कुछ कहानियों में कॉलेज जाने वाले युवा वर्ग को ध्यान में रख कर वाक्य गढ़े गए हैं। इससे कहानियां विश्वसनीय लगती हैं, क्योंकि कहानी के परिवेश के सभी पात्र इस भाषा के साथ सहज रूप से घुलते-मिलते दिखते हैं। कहानियों का शिल्प भी इस तरह गढ़ा गया है कि अंत तक रोचकता और जिज्ञासा बनी रहती है। इस संग्रह की कहानियों में लालसा, प्रेम और धोखा बहुत मुखर रूप से दिखाई पड़ते हैं। लेखक सरकारी मुलाजिम हैं तो कहानियों में भी सरकारी तंत्र दिखाई पड़ ही जाता है।

संग्रह में कुल नौ कहानियां हैं, जो अलग-अलग पृष्ठभूमि की कथा कहती हैं। पुस्तक में दो कहानियां, ‘तेरी दीवानी’ और ‘दहलीज’ अधेड़ उम्र में फिर पनपने वाले प्यार, लालसा की है। जबकि ‘रोटी की खातिर’ बहुत ही मार्मिक ढंग से लिखी गई कहानी है। इसमें, फैक्ट्री में पिसते और अपना घर चलाने के लिए मशक्कत करते एक मजदूर की दशा कही गई है। जबकि ‘बावर्ची’ और ‘आवरण’ दोनों कहानियों में अवध के गांवों की गंध और भाषा है, जो पाठकों को सीधे लोक से जोड़ती है। 

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