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(भ)आज(पा) के चाणक्य

गोवा में 2017 में सबसे बड़ी पार्टी न होने के बावजूद भाजपा की सरकार बनाकर शाह ने साबित किया कि एक फीसदी संभावना को भी वे सौ फीसदी में बदलने की क्षमता रखते हैं
अमित शाह और भाजपा की यात्रा

इन दिनों अलग तरह की राजनीति का दौर शुरू हुआ है। इस राजनीति में विपक्ष के लिए कोई जगह नहीं है। इसमें दो राय नहीं कि अमित शाह परंपरागत तरीकों को तोड़ने वाले नेता हैं। उनके चुनाव कौशल के कायल उनके विरोधी भी हैं। अध्यक्ष बनने के बाद पार्टी चलाने के लिए जो टीम बनाई, उसके सदस्यों को कम लोग ही जानते थे। गोवा में 2017 में सबसे बड़ी पार्टी न होने के बावजूद भाजपा की सरकार बनाकर शाह ने साबित किया कि एक फीसदी संभावना को भी वे सौ फीसदी में बदलने की क्षमता रखते हैं। लेखक के अनुसार, ‘नरेंद्र मोदी सरकार का दृष्टिकोण अंत्योदय की नींव पर खड़ा दिखाई देता है और भाजपा के कार्यक्रम भी उसी बुनियाद पर आधारित नजर आते हैं।’ लेकिन सरकार की नीतियां कुछ और कहती हैं। सरकार पर हमेशा बिजनेस जगत का साथ देने के आरोप लगते रहे हैं। 1967 में कई राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को बहुमत नहीं मिला। लेखक के अनुसार, कांग्रेस को ऐसे राज्यों में सरकार बनाने का मौका देना न केवल जनभावना का अपमान होता, बल्कि इससे जनता के आत्मविश्वास को आघात भी पहुंचता। लेकिन 2017 में गोवा में यह आदर्श क्यों नहीं दिखा? 6 अप्रैल 1980 को भारतीय जनता पार्टी के जन्म के बाद उसी साल 28-30 दिसंबर को मुंबई में इसका पहला अधिवेशन हुआ। उसमें पांच संकल्प तय किए गए थे- राष्ट्रवाद एवं राष्ट्रीय एकात्मता, लोकतंत्र, गांधीवादी समाजवाद, सकारात्मक धर्मनिरपेक्षता और मूल्य आधारित राजनीति। ये संकल्प आज कहां हैं?

पुस्तक में कहा गया है कि भाजपा के लिए अयोध्या का संघर्ष केवल विवादित भूमि पर अधिकार का संघर्ष नहीं था। यह बहुसंख्यक समुदाय के दिलों को जीतने का सोचा-समझा अभियान था। अगर ऐसा है तो फिर कोर्ट में पार्टी के नेता खुद को क्यों निर्दोष बताते हैं? गोधरा कांड पर गोवा में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने एक बयान में कहा कि राज्य सरकार, उसके राजनीतिक नेतृत्व, प्रशासन और पुलिस को कलंकित करने का प्रयास किया गया। नरेंद्र मोदी ने 16 घंटे में ही नागरिक प्रशासन की सहायता के लिए सेना बुला ली थी। लेकिन वास्तव में वहां क्या हुआ, यह जगजाहिर है। अमित शाह साहिर लुधियानवी और कैफी आजमी की शायरी के प्रशंसक हैं। ज्योतिष विद्या पर भरोसा करते हैं और खुद भी इसके जानकार हैं। क्रिकेट और शतरंज के शौकीन हैं। राजनीतिज्ञ, लेखक और सांस्कृतिक विचारक के.एम. मुंशी से बहुत प्रभावित रहे हैं। उनके जीवन पर मां का प्रभाव है। मां के प्रभाव में ही उन्होंने इतिहास की पुस्तकें और जीवनियां पढ़ीं। सख्त दिखने वाले शाह अपनी पोती के साथ खेलते हुए यह गुनगुनाते हैं, ‘वैष्णव जन तो तैने कहिए, जो पीर पराई जाने रे...।’

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