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लेखक की प्रतिश्रुति

अंकित नरवाल का साहित्य सिर्फ हाशिए के लोगों की ही बात नहीं करता बल्कि समग्र रूप से दुनिया की बातें करता है
यू. आर. अनन्तमूर्ति प्रतिरोध का विकल्प

युवा आलोचक अंकित नरवाल ने बहुत मेहनत से हमारे समय के बिरले और विलक्षण कथाकार यू. आर. अनंतमूर्ति को उनकी रचनाओं के माध्यम से फिर खोजा है। एक कथाकार के रूप में अनंतमूर्ति की खोज हालांकि अनवरत जारी रह सकती है। उनका साहित्य सिर्फ हाशिए के लोगों की ही बात नहीं करता बल्कि समग्र रूप से दुनिया की बातें करता है। इसी समग्रता का गहरा विवेचन और विश्लेषण करने के लिए अंकित ने आलोचना विधा का सहारा लिया है। भारतीपुर के लेखक अनंतमूर्ति को खोजने या उनकी रचनाओं को समझने के लिए पुस्तक का दूसरा अध्याय, ‘जीवन को जिद से जीतते जाना’ जरूर पढ़ा जाना चाहिए।

लेखक बनने के सफर को पढ़ कर ही पाठक समझ जाएंगे कि सोना कुंदन में कैसे बदल जाता है। अनंतमूर्ति अपने यथार्थ को हमेशा यथार्थ के रूप में ही दिखाते थे। लेकिन यह उनकी प्रतिभा ही थी कि इस यथार्थ के नीचे की सड़न भी पाठकों तक बिना लाग-लपेट पहुंच जाती थी। इसका सबसे श्रेष्ठ उदाहरण उनकी रचना घटश्राद्ध है। बकौल अनंतमूर्ति, “मुझे इस बात की चिंता है कि क्या मध्यम वर्ग का कोई लेखक विद्रोही साहित्य की रचना कर सकता है?” उनकी चिंता विद्रोही साहित्य के साथ उस यथार्थ और आदर्श की भी थी, जिसे ग्रहण करने की क्षमता हो तभी कोई लेखक ठोस बन सकता है। प्रतिरोध का विकल्प पढ़ कर लगता है कि अभी लेखकों के ठोस हो जाने में देर है।

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