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राजनीतिः दफा बुलडोजर

अतिक्रमण हटाने में बुराई नहीं लेकिन नियम-कायदे ताक पर रख देना चिंताजनक, इसकी सियासत पर उठे सवाल
सुप्रीम कोर्ट की रोक के बाद भी अवैध के नाम पर बुलडोजर की कार्रवाई जारी रही

देश में न्याय की क्या नई परिभाषा गढ़ी जा रही है, जिसमें नियम-कायदे और अदालतों के लिए कोई स्थान नहीं है? क्या फटाफट न्याय की इस व्यवस्था में राजनीतिक आका का हुक्म ही सर्वोपरि होता है, मातहत अधिकारी जिसकी तामील करना अपना अहोभाग्य समझते हैं? ये सवाल आज हैरानी के साथ कई हलके में इसलिए पूछा जा रहा है, क्योंकि विध्वंस का प्रतीक बुलडोजर ही न्याय का प्रतीक बनता दिख रहा है। उत्तर प्रदेश से शुरू हुआ ‘न्याय’ का यह तरीका मध्य प्रदेश और गुजरात होता हुआ दिल्ली आ पहुंचा है। सख्त कार्रवाई के नाम पर नियमों को ताक पर रख निर्माण ढहाए जा रहे हैं। कोर्ट के आदेश तक की परवाह भी देर से की जाती है।

ऐसा नहीं कि अवैध ढांचा गिराने में पहली बार बुलडोजर का इस्तेमाल हो रहा हो, लेकिन यह पहली बार है कि बुलडोजर के निशाने पर समुदाय विशेष के लोग अधिक हैं। यह भी संभवतः पहली बार है कि ढांचा गिराने से पहले नोटिस तक नहीं दिया जा रहा। इसीलिए तो जब सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली की जहांगीरपुरी के मामले में पूछा कि आपने किस नियम के तहत कार्रवाई की, तो अफसरान को ठीक-ठीक जवाब देते नहीं बना। कोर्ट में सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने कहा, “अगर आप अवैध निर्माण के खिलाफ कार्रवाई करना चाहते हैं तो सैनिक फार्म जाइए, गोल्फ लिंक जाइए जहां हर दूसरे घर में अवैध अतिक्रमण है। आप उन्हें नहीं छुएंगे लेकिन गरीबों को निशाना बनाएंगे।” उन्होंने कहा, “दिल्ली में 731 अनधिकृत कॉलोनियां हैं, लेकिन आपने एक कॉलोनी चुनी क्योंकि आपके निशाने पर एक समुदाय है।”

इसकी शुरुआत उत्तर प्रदेश से हुई। जुलाई 2020 में कानपुर के बिकरू में माफिया विकास दुबे को पकड़ने गई पुलिस टीम पर हमला हुआ, जिसमें आठ पुलिसकर्मी मारे गए थे। उसके बाद प्रशासन ने विकास दुबे की कोठी पर बुलडोजर चला दिया था। सिलसिला शुरू हुआ तो इस सूची में मुख्तार अंसारी, अतीक अहमद, बृजेश कुमार सिंह जैसे नाम जुड़ गए। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को ‘बुलडोजर बाबा’ कहा जाने लगा। विधानसभा चुनाव के दौरान उनका एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें वे कह रहे हैं, “वहां देखो, बुलडोजर भी खड़े हैं हमारी सभा में।” जीत के बाद भाजपा ने राज्य में बुलडोजर रैलियां निकालीं। विध्वंस का प्रतीक कामयाबी का प्रतीक बन गया।

उत्तर प्रदेश से चलकर बुलडोजर मध्य प्रदेश पहुंचा तो वहां मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का नाम ‘बुलडोजर मामा’ पड़ गया। वहां खरगोन जिले में रामनवमी के दौरान हुई हिंसा में कथित तौर पर लिप्त लोगों के मकानों और दुकानों पर राज्य सरकार ने बुलडोजर चलवा दिया। नियम-कानून और अदालतों की कितनी परवाह है, इसका अंदाजा प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा के बयान से लगता है, जिन्होंने कहा, “जिन घरों से पत्थर आए हैं उन घरों को पत्थर का ढेर बनाएंगे।” उनके कहने के कुछ घंटे बाद ही अतिक्रमण हटाने की मुहिम शुरू की गई।

फिर एक और भाजपा शासित राज्य गुजरात में बुलडोजर न्याय दिखा। वहां खंभात में रामनवमी के दिन सांप्रदायिक हिंसा हुई थी। हिंसा के बाद दुकानों, घरों और सड़क किनारे बनी झुग्गियों पर बुलडोजर चला। प्रशासन का दावा है कि बुलडोजर हिंसा के आरोपियों के अवैध कब्जों पर चलाया गया है। गुजरात के हिम्मतनगर में, जहां 10 अप्रैल को रामनवमी जुलूस के दौरान हिंसा हुई थी, वहां दो हफ्ते बाद फिर ‘अवैध निर्माण’ हटाने के लिए बुलडोजर चलाया गया।

फिर, दिल्ली में हनुमान जयंती पर जहांगीरपुरी में हिंसा हुई। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष आदेश गुप्ता ने हिंसा के लिए जिम्मेदार लोगों के अवैध कब्जे तोड़ने की मांग भाजपा शासित उत्तर दिल्ली नगर निगम से की। अगले ही दिन निगम के अधिकारी बुलडोजर लेकर पहुंच गए। अतिक्रमण हटाना शुरू किया ही था कि सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने अभियान रोकने का आदेश दिया। फिर भी अधिकारियों ने यह कहते हुए कार्रवाई दो घंटे तक जारी रखी कि उन्हें अदालत का आदेश नहीं मिला है। माकपा नेता वृंदा करात आदेश की कॉपी के साथ मौके पर पहुंचीं और पुलिस और निगम कर्मियों से कार्रवाई बंद करने का आग्रह किया। अब कोर्ट अवहेलना की भी जांच करेगा।

निशाने पर अल्पसंख्यक?

विपक्षी नेता ऐसी कार्रवाई के पीछे सरकार की अल्पसंख्यक विरोधी मंशा को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इसे संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ बताते हुए कहा, “गरीबों और अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया गया है। भाजपा को इन सबकी बजाय अपने दिल में बैठी नफरत को ध्वस्त करना चाहिए।” वरिष्ठ कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने कहा, “हम रोज कानून के राज को टूटता देख रहे हैं। जल्द ही देश में कोई नियम-कानून नहीं बचेगा। हम जहन्नुम के रास्ते पर अग्रसर हैं।”

समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने  कहा, “भाजपा ने बुलडोजर को अपनी गैरकानूनी ताकत का प्रतीक बना लिया है। अल्पसंख्यक, पिछड़े और दलित इनके निशाने पर हैं। अब तो इनके उन्माद का शिकार हिंदू भी हो रहे हैं। भाजपा दरअसल संविधान पर बुलडोजर चला रही है।”

लेकिन भाजपा नेता ‘अतिक्रमण विरोधी कार्रवाई’ को बढ़ाने पर जोर दे रहे हैं। आदेश गुप्ता का कहना है कि ‘न्याय का बुलडोजर’ चलता रहेगा। भाजपा सांसद मनोज तिवारी बोले, “सुप्रीम कोर्ट के स्टे का हम सम्मान करते हैं, लेकिन बुलडोजर फिर चलेगा।”

उत्तर प्रदेश भाजपा प्रवक्ता मनीष शुक्ला कहते हैं, “यूपी हो या कहीं और, प्रक्रिया के तहत ही इस तरह की कार्रवाई हो रही है। यहां जाति-धर्म के आधार पर आतंकियों, माफियाओं, अपराधियों, कब्जाधारियों को बचाने के प्रयास हो रहे हैं, यह असल समस्या है।”

लेकिन जानकार निर्माण हटाने के तरीके पर सवाल उठा रहे हैं। छत्तीसगढ़ के पूर्व महाधिवक्ता कनक तिवारी आउटलुक से कहते हैं, मुझे अतिक्रमण हटाने से कोई परेशानी नहीं, लेकिन नियमों का पालन नहीं किया जाना चिंता का विषय है। हालिया घटनाओं पर वे कहते हैं, “उत्तर प्रदेश में निजी और सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वालों के खिलाफ अलग नियम बने हैं। फिर भी वहां कार्रवाई के दौरान नियम ताक पर रखे गए। नियम है कि मामला क्लेम ट्रिब्यूनल को भेजा जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं किया गया।” तिवारी के अनुसार मध्य प्रदेश नगरपालिका अधिनियम में भी साफ लिखा है कि कार्रवाई से पहले नोटिस देना पड़ेगा। वे सवाल उठाते हैं कि खुद मुद्दई जज कैसे हो सकता है? प्रक्रिया के तहत तो जाना ही पड़ेगा। आरोपी को भी अपना पक्ष रखने का मौका देना पड़ेगा।

दरअसल, कुछ नेताओं ने बुलडोजर को लोकप्रियता का हथियार मान लिया है। इसलिए इसकी सुगबुगाहट उत्तराखंड, हरियाणा और कर्नाटक जैसे अन्य भाजपा शासित राज्यों तक पहुंच गई है। उत्तराखंड के कई शहरों में बुलडोजर चले हैं। हालांकि सूबे के मुखिया पुष्कर सिंह धामी ने कहा है कि हम जबरन किसी पर बुलडोजर नहीं चला रहे हैं। जहां लोगों ने गड़बड़ी की है, उन्हीं स्थानों पर कार्रवाई हो रही है। कर्नाटक में इसका विरोध करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री कुमारस्वामी का आरोप है कि भाजपा कर्नाटक में भी बुलडोजर संस्कृति की मांग कर रही है। उन्होंने कहा, “कर्नाटक को यूपी, एमपी या गुजरात मत बनाइए।” दरअसल, इससे पहले भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव सी.टी. रवि ने कहा था, एक वक्त था जब आतंकियों को बिरयानी खिलाई जाती थी। अब बिरयानी नहीं खिलाई जाती। अब अगर कोई पूंछ भी हिलाएगा तो बुलडोजर पहुंच जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने देश भर में अवैध निर्माण गिराने पर रोक लगाने से तो इनकार कर दिया है, लेकिन उसका अंतिम फैसला एक नजीर बन सकता है।

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